ढोकलो सोहोर शासन व्यवस्था को खड़िया शासन व्यवस्था भी कहते हैं। इनकी जनजाति प्रोटो- आस्ट्रोलॉयड है।इनकी भाषा खड़िया,मुंडा,उरांव,आर्य होते हैं। इनका धर्म-सरना धर्म,हिंदू धर्म, और क्रिश्चियन धर्म होते हैं। झारखंड के गुमला सिमडेगा तथा रांची उड़ीसा छत्तीसगढ़ पश्चिम बंगाल क्षेत्र में निवास करते हैं। इनकी जाति के प्रकार तीन होते हैं 1पहाड़ी खड़िया, 2दूध खड़िया 3 डेलकी खड़िया। खड़िया में कुल 9 गोत्र होते हैं-डुगडुग,कूलर, टेटे, बा, लेरकेटा,सौरेंग, टोंपो, विलुग और किंडो। इनका गठन 1934- 35 ईसवी के आसपास हुई। गुमला,सिमडेगा,रांची,उड़ीसा, छत्तीसगढ़ में इसका विस्तार हुआ।पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को चलाने वाला, गांव को बसाने वाला मुख्य व्यक्ति को महतो का उपाधि दिया गया है। वंश परंपरागत पद तथा गांव की सहमति द्वारा ही परिवर्तन किया जाता है। पाहन जिन्हे कालो भी कहते हैं जो पूजा पाठ करता है जिन्हें शादी तथा सार्वजनिक त्योहारों में बुलाया जाता है। प्रत्येक गांव का एक करवहा जो गांव का संचालक करता है। गांव गांव के फैसलों को सुनाना तथा मुसीबतों का निपटारा करना इन्हीं लोगों का काम होता है। खड़िया समाज में आसपास के गोत्र गांव मिलाकर क्षेत्रीय प्रशासन तंत्र का गठन करता है जिन्हें खुट कहते हैं कारवाहा में से एक इस खुट का अध्यक्ष होता है इस पद को खड़िया घाट कहा जाता है। ढोकला का सभापति संपूर्ण खड़िया समाज का राजा होता है उसे ढोकला शोहोर कहा जाता है। ढोकला बैठक होता है ढोकलो बैठक होता और सोहॉर अध्यक्ष। करवाह बैठक का आयोजन करता है। ढोकला में सभी क्षेत्र के प्रतिनिधि महतो,पाहन,करवाहा इकट्ठे होते हैं।ढोकला सोहोर का चुनाव खड़िया जनजाति के लोग करते हैं इनका कार्यकाल 3 वर्षों का होता है। गांव को संगठित करना तथा गोत्र संबंधित समाधान करना इनका कार्य होता है। करवाओ,गांव की सभी घटना एवं सूचना खड़िया समाज (ढोकला सोहर)को देता है। इनके अधिकारी,सेक्रेटरी लिखकर, तिजोरकड़(खजाची)सलाहकार (दीवान)न्याय सहायक करता है। सेक्रेटरी-रिपोर्ट तैयार करता है, खाजाची – फंड का हिसाब, दीवान (सलाहकार)सलाह देता है। न्याय राजा स्वयं फैसला अपने मंत्रियों की सहायता से करते हैं तथा मुकदमे के आधार पर जुर्माना लिया जाता है।ढोकलो सोहोर शासन व्यवस्था को खड़िया शासन व्यवस्था भी कहते हैं। इनकी जनजाति प्रोटो- आस्ट्रोलॉयड है।इनकी भाषा खड़िया,मुंडा,उरांव,आर्य होते हैं। इनका धर्म-सरना धर्म,हिंदू धर्म, और क्रिश्चियन धर्म होते हैं। झारखंड के गुमला सिमडेगा तथा रांची उड़ीसा छत्तीसगढ़ पश्चिम बंगाल क्षेत्र में निवास करते हैं। इनकी जाति के प्रकार तीन होते हैं 1पहाड़ी खड़िया, 2दूध खड़िया 3 डेलकी खड़िया। खड़िया में कुल 9 गोत्र होते हैं-डुगडुग,कूलर, टेटे, बा, लेरकेटा,सौरेंग, टोंपो, विलुग और किंडो। इनका गठन 1934- 35 ईसवी के आसपास हुई। गुमला,सिमडेगा,रांची,उड़ीसा, छत्तीसगढ़ में इसका विस्तार हुआ।पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को चलाने वाला, गांव को बसाने वाला मुख्य व्यक्ति को महतो का उपाधि दिया गया है। वंश परंपरागत पद तथा गांव की सहमति द्वारा ही परिवर्तन किया जाता है। पाहन जिन्हे कालो भी कहते हैं जो पूजा पाठ करता है जिन्हें शादी तथा सार्वजनिक त्योहारों में बुलाया जाता है। प्रत्येक गांव का एक करवहा जो गांव का संचालक करता है। गांव गांव के फैसलों को सुनाना तथा मुसीबतों का निपटारा करना इन्हीं लोगों का काम होता है। खड़िया समाज में आसपास के गोत्र गांव मिलाकर क्षेत्रीय प्रशासन तंत्र का गठन करता है जिन्हें खुट कहते हैं कारवाहा में से एक इस खुट का अध्यक्ष होता है इस पद को खड़िया घाट कहा जाता है। ढोकला का सभापति संपूर्ण खड़िया समाज का राजा होता है उसे ढोकला शोहोर कहा जाता है। ढोकला बैठक होता है ढोकलो बैठक होता और सोहॉर अध्यक्ष। करवाह बैठक का आयोजन करता है। ढोकला में सभी क्षेत्र के प्रतिनिधि महतो,पाहन,करवाहा इकट्ठे होते हैं।ढोकला सोहोर का चुनाव खड़िया जनजाति के लोग करते हैं इनका कार्यकाल 3 वर्षों का होता है। गांव को संगठित करना तथा गोत्र संबंधित समाधान करना इनका कार्य होता है। करवाओ,गांव की सभी घटना एवं सूचना खड़िया समाज (ढोकला सोहर)को देता है। इनके अधिकारी,सेक्रेटरी लिखकर, तिजोरकड़(खजाची)सलाहकार (दीवान)न्याय सहायक करता है। सेक्रेटरी-रिपोर्ट तैयार करता है, खाजाची – फंड का हिसाब, दीवान (सलाहकार)सलाह देता है। न्याय राजा स्वयं फैसला अपने मंत्रियों की सहायता से करते हैं तथा मुकदमे के आधार पर जुर्माना लिया जाता है।

August 6, 2020
स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना
Share it1. स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना से क्या समझते हैं? 2. झारखंड में भूमि और पर्यावरण से संबंधित मुद्दे की चर्चा करें। स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना गरीबों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के...