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मुख्य उपज- केवल लकड़ियों का उत्पादन

  • साल – इसका उपयोग फर्श ,मकान, फर्नीचर बनाने में किया जाता है।
  • शीशम- इसका उपयोग फर्नीचर बनाने में सर्वाधिक किया जाता है।
  • सेमल- इसका उपयोग ज्यादातर खिलौने तथा पैकिंग की पेंटियों को बनाने में किया जाता है। सागवान- इसका उपयोग हवाई जहाज व रेल के डिब्बे बनाने में होता है।
  • महुआ – इसका उपयोग फूल से शराब, फलों से तेल बनाने में किया जाता है ।
  • इसके अलावा भी कुछ प्रमुख उपज जैसे जामुन, आम, कटहल, पैसार,करंज आदि ।
  • गौण उपज-
  • लाह- कुल उत्पादन का 50% झारखंड में होता है।
  • वाह का कीड़ा या लेसिफर धक्का से इसका उत्पादन होता है इन कीड़ों की वृद्धि बरगद, कुसुम ,पीपल ,बबूल इत्यादि वृक्षो पर होती है। इसके अलावा तेंदू पत्ता, चाकुलिया काजू और हनी इत्यादि गौण उपज में होते हैं ।

वन नीति- #vinayiasacademy.com#

  • सर्वप्रथम 1952 में बनी ।
  • 1952-1988 के बीच का विनाश बढ़ा।
  • 1988 में नई नीति की घोषणा (भारत की राष्ट्रीय वन नीति )
  • इस नीति के अनुसार किसी प्रदेश में 33.33% भाग पर वनों का विस्तार आवश्यक ।
  • झारखंड में कुल क्षेत्रफल का 29.1% भाग पर वन है।
  • 33% से अधिक करने के लिए नई नीति बनाई गई इसमें कुछ महत्वपूर्ण है-
  • प्रत्येक गांव में वन समिति (प्रत्येक परिवार का एक सदस्य अनिवार्य),200 वन समिति का गठन
  • ग्रामीण क्षेत्र में वृक्षारोपण (आवश्यकतानुसार)।वनों की सुरक्षा वन विभाग व ग्रामीणों पर।

वन प्रबंधन #vinayiasacademy.com#

वनों को बेहतर प्रबंधन के उद्देश्य से 31 प्रादेशिक प्रमंडल,10 सामाजिक वानिकी प्रमंडलो ,4 विश्व खाद्य प्रमंडलो का सृजन किया गया।
उद्देश्य –

  • 9 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि पर वन रोपण कार्य। रांची में बिरसा मुंडा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना – वन प्रबंधन प्रशिक्षण हेतु।
  • राज्य प्रयोगशालाओं की स्थापना।
  • दसवीं पंचवर्षीय योजना (3424 वर्ग किमी क्षेत्र) ई-गवर्नमेंट वेबसाइट बनाई गई (forest jharkhand.gov.in)
  • ग्रामीण हेतु सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाया गया।
  • बाँस रोपण पर विशेष बल दिया गया।
  • निजी वन भूमि पर वृक्षारोपण के लिए मुख्यमंत्री जनवन योजना की शुरुआत ।

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