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1.रामकृष्ण मिशन की स्थापना क्यों की गई? 2.रामकृष्ण मिशन के संस्थापक कौन थे?

विश्व भ्रमण करने के दौरान 1897 ईसवी में 4 वर्ष बाद भारत पँहुचे एवं उन्होंने कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । शुरुआत में इसकी स्थापना बारानगर में की गई जिसे बाद में बेलूर में स्थापित किया गया.
इसका मुख्यालय उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा के मायावती नामक स्थान में भी स्थित है । रामकृष्ण मिशन का उद्देश्य समाज के पीड़ित वर्ग को उन उनकी पीड़ा से मुक्ति दिलाना था जैसे कोई रोगी जिसे चिकित्सा की आवश्यकता है उसका इलाज कराना। जनसाधारण के कष्टों का निवारण करना रोगियों को चिकित्सा प्रदान करना। इसके अलावा यदि कोई अनाथ है तो उसकी देखभाल भी रामकृष्ण मिशन के द्वारा की जाती थी अर्थात रामकृष्ण मिशन का मुख्य उद्देश्य था वर्तमान में पीड़ितों गरीबों अनाथ और रोगियों के कष्टों का निवारण करना। वे सामाजिक कुरीतियों के विरोध के बदले तत्काल में जो व्यक्ति पीड़ा से गुजर रहा है उनकी पीड़ा को दूर करना था।

रामकृष्ण मिशन का नाम रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रखा गया। रामकृष्ण स्वामी विवेकानंद के गुरु थे उनके स्मृति में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की गई।
राम कृष्ण जी के बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था इनका जन्म कोलकाता में हुआ था। कोलकाता में गंगा नदी के पूर्वी तट पर मां काली के मंदिर जिसे दक्षिणेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है वह इस मंदिर के पुजारी थे, इसीलिए इन्हें दक्षिणेश्वर के नाम से भी पुकारा जाता है। परमहंस तत्कालिक संतोष जैसे तोतापुरी भैरवी आदि से बहुत अधिक प्रभावित थे।
पुनर्जागरण काल में समाज सुधारको में रामकृष्ण परमहंस का नाम भी शुमार है । यह समाज के साथ-साथ लोगों की तकलीफों को अलग नजरिए से देखते थे। उनका मानना था कि सभी धर्म सच्चे हैं वह सभी ईश्वर तक पहुंचने का एक माध्यम है चाहे वह हिंदू धर्म हो ,पारसी ,क्रिश्चियन या मुस्लिम,सभी ईश्वर तक पहुंचने का एक मार्ग हैं।
इसलिए उन्होंने धर्म की एकता और मानव सेवा पर बल दिया। इस प्रकार धर्म की एकता में उन्हें बहुत विश्वास था। मानव सेवा का कार्य भी रामकिशन मिशन द्वारा पूरा किया गया। वह भारतीय संस्कृति व सभ्यता में निष्ठा रखते थे और सभी धर्मों को सत्य मानते थे एवं वह मूर्ति पूजा में विश्वास रखते थे।

राम कृष्ण जी के बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था इनका जन्म कोलकाता में हुआ था। कोलकाता में गंगा नदी के पूर्वी तट पर मां काली के मंदिर जिसे दक्षिणेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है वह इस मंदिर के पुजारी थे, इसीलिए इन्हें दक्षिणेश्वर के नाम से भी पुकारा जाता है। परमहंस तत्कालिक संतोष जैसे तोतापुरी भैरवी आदि से बहुत अधिक प्रभावित थे।

वे सभी धर्मों को मानते थे। तथा धर्मों को ईश्वर से मिलाने का एक माध्यम मानते थे। वे मानते थे कि जो शाश्वत है सर्वशक्तिमान है उस ईश्वर को पाने का बस एक ही मार्ग है वह है भक्ति और मानव सेवा का। मानवता को ही यह अपना सबसे बड़ा सेवा मानते थे।
उन्होंने तांत्रिक विधि से वैष्णव विधि से ईश्वर की साधना की। साधना के दौरान बुध बुध भगवान कृष्ण ईसा मसीह माता काली आदि देवों का दर्शन किया का दर्शन किया।
अद्वैत साधना में लीन होकर इन्होंने ईश्वर की तपस्या की तभी से इनका नाम परमहंस पड़ा और इसी नाम से यह विख्यात हो गए।
स्वामी विवेकानंद ——- स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 ईस्वी को कोलकाता में हुआ था। इनके बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था। इनका भी सभी धर्मों में विश्वास था इन्होंने भारतीय दर्शन के साथ-साथ पश्चात्य दर्शन का भी अध्ययन किया था।
17 वर्ष की उम्र में 18 80 ईस्वी में पहली बार इनकी मुलाकात रामकृष्ण जिसे हुई थी। और कुछ ही समय में विवेकानंद परमहंस के प्रिय शिष्य बन गए। उनसे शिक्षा दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात विवेकानंद जी संपूर्ण भारत की यात्रा पर निकले और 1891 ईस्वी में तमिलनाडु पहुंच गए। इसी यात्रा के दौरान उन्होंने भारत के गरीबों को पीड़ितों को देखा। जिस से उनको बहुत दुख हुआ और वह उनके दुख को दूर करने के लिए प्रयासरत हो गए। इसी प्रयास के संदर्भ में उन्होंने राम में कृष्ण मिशन की स्थापना की।
भारत भ्रमण के दौरान हैं वे राजस्थान के खेतडी में पहुंच गए। खेतडी के तत्कालिक राजा थे कुंवर अजीत राज सिंह। महाराजा नरेंद्र दत्त के विचारों से बहुत अधिक प्रभावित थे। उन्होंने ही इनका नाम स्वामी विवेकानंद दिया था।
इस प्रकार वे नरेंद्र दत्त से स्वामी विवेकानंद के नाम से मशहूर हो गए। महाराजा अजित राज सिंह ने अपने खर्च पर उन्हें शिकागो भेजा उस समय शिकागो में प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन हो रहा था। महाराजा अजीतसिंह जानते थे कि विवेकानंद जी ही भारत की ओर से हिंदू धर्म( सनातन धर्म) का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं ।इसलिए 1893 ईस्वी में हिंदू धर्म के प्रतिनिधित्व करने के लिए उन्हें अमेरिका के शिकागो में भेजा गया।
19 सितंबर 1893 ईस्वी को इन्होंने विश्व धर्म सम्मेलन में बहुत ही ओजपूर्ण भाषण दिया इनके भाषण से वहां पर उपस्थित सभी धर्म ज्ञानी अचंभित हो गए।


अपने भाषन मे उन्होंने कहा जिस प्रकार सभी धाराएं अपने जल को नदी और फिर सागर मैं मिला देती है। ठीक उसी प्रकार यह सभी धर्म मनुष्य को ईश्वर तक पहुंचने का एक मार्ग है।
शिकागो की एक बहुत बड़ी पत्रिका थे जिसका नाम न्यूयॉर्क हरा डल था । ने उनको सुनने के बाद अपने पत्रिका में प्रकाशित किया कि निश्चित रूप से स्वामी विवेकानंद विश्व धर्म संसद के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है। इनको सुनकर उन्होंने कहा इनको सुनने के बाद हम अनुभव करते हैं ऐसे ज्ञान संपन्न देश भारत में हम अपने धर्म प्रचारक को भेजते हैं यह हमारी बहुत बड़ी मूर्खता है।
उसी वक्त विवेकानंद जी ने यह भविष्यवाणी की थी कि एक दिन समस्त विश्व पर सर्वहारा वर्ग और दलित वर्ग का शासन होगा। और ऐसा हुआ भी कुछ दिनों के बाद रूस में लिबरल पार्टी की राज्य हो गई और भारत में भी ऐसा ही दिन आएगा जहां सर्वहारा वर्ग और दलित वर्ग का साम्राज्य होगा।
1896 ईस्वी में उन्होंने न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की उसी साल उन्होंने कैलिफोर्निया में शांति मठ की स्थापना की।


4 जुलाई 1902 को उनकी मृत्यु हो गई ।
इनका मुख्य उद्देश्य – मानवता की सेवा करना था। इन्हें नव हिंदू जागरण का संस्थापक भी माना जाता है नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का आध्यात्मिक पिता कहा है ।

इनके शिष्य लेडीस मार्गरेट नोबल थी जिन्हें भारत में सिस्टर निवेदिता के नाम से जाना जाता है उनकी मृत्यु उपरांत सिस्टर निवेदिता ने ही रामकृष्ण मिशन के कार्यभार को संभाला और उनके उपदेशों को और आदर्शों को आगे बढ़ाती रही ।
इन्होंने कई पुस्तकें लिखी थी जिसमें प्रमुख था मैं “समाजवादी हूं”, इनके और पुस्तकों में से था राजयोग ,कर्म योग ,भक्ति योग ,और मेरे गुरु,। इनके साथ हैं पुनर्जागरण का काल धीरे-धीरे
समाप्त होता गया । इनके सिद्धांत आज भी हमारे समाज के लिए एक आदर्श है।


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