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हरित क्रांति की उपलब्धियां

तृतीयक योजना के आरंभ से लेकर अब तक के वर्ष भारतीय कृषि के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण है। हरित क्रांति सरकार द्वारा अपनाए गए कई उपायों का परिणाम थी। हरित क्रांति की उपलब्धियों को कृषि में तकनीकी परिवर्तन से संस्थागत एवं उत्पादन में हुए सुधार के रूप में देखा जा सकता है।
उन्नत किस्म के बीजों के प्रयोग में वृद्धि हुई सबसे पहले किस्म “नोरिन 10 “थी जिसे डॉक्टर सैलमन ने 1948 में जापान से अमेरिका गया। सी सुब्रमण्यम के प्रयासों के फलस्वरूप सोनरा 63् एवं 64 जैसी मैक्सिकन प्रजातियां शुरू में भारत में सीधे प्रयोग में लाई गई। रसायनिक उर्वरकों के उपयोग में भी तेजी से वृद्धि हुई भारत में हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में काफी वृद्धि हुई है। 1961 में रासायनिक खाद का उपयोग केवल 39000 टन था जबकि 2010 में बढ़कर 264. 86 लाख टन हो गया। हरित क्रांति को और मजबूत बनाने के लिए सिंचाई की सुविधाओं में भी काफी वृद्धि हुई। विभिन्न प्रकार की लघु परियोजनाओं का उद्घाटन किया गया तथा नलकूपों का निर्माण किया गया। भारत में लगभग 10% फसल कीटाणु और लोगों द्वारा नष्ट हो जाती है।

इनसे फसलों के बचाव करने की क्रिया को पौधा संरक्षण कहते हैं mq2 को नाश करने के लिए दवा छिड़कने का कार्य किया जाता है। कृषक ओने व्यवसायिक साहस की क्षमता को विकसित करने के उद्देश्य से देश में कृषि सेवा केंद्र स्थापित करने की योजना लागू की अब तक देश में 146 कृषि सेवा केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं। वर्तमान कृषि में हरित क्रांति में आधुनिक कृषि उपकरणों का भी उपयोग काफी तेजी से हो रहा है। 1966 में भारत में 21000 ट्रैक्टर थे लेकिन आज इसकी संख्या 600000 से भी अधिक है। इसके अंतर्गत मृदा परीक्षण कार्यक्रम को भी बढ़ावा दिया गया है जिसका उद्देश्य भूमि की उर्वरा शक्ति का पता लगाकर किसानों को उसी अनुसार रासायनिक खाद एवं उत्तम बीजों के प्रयोग की सलाह देना है। कृषि विकास नीति के अंतर्गत सरकार द्वारा किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य देने की गारंटी दी जाती है। इस कार्य के लिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग है जिसका कार्य फसल की बुवाई के समय उन मूल्यों का सिफारिश करना है जिस पर फसल की आने पर सरकार तय करने के लिए वचनबद्ध है 1965 में कृषि मूल्य आयोग की स्थापना कर दी गई।

हरित क्रांति की कमियां

हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप कुछ फसलों के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई है परंतु कुछ समस्याओं का भी सामना करना पड़ा है जो इस प्रकार है-
कृषि विकास में असंतुलन हरित क्रांति का क्षेत्र कुछ ही राज्यों तक सीमित है। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र। दूसरी और राजस्थान हिमाचल प्रदेश बिहार तथा आसाम जैसे राज्य कृषि में कोई विशेष प्रगति नहीं ला सके हैं। हरित क्रांति ने ना केवल देश के विभिन्न भागों में कृषि के विकास की दर में असमानता पैदा की अपितु देश के एक ही क्षेत्र में कृषि के विकास में असमानता पैदा कर दी। उदाहरण के लिए हम कह सकते हैं कि पंजाब के रूप नगर तथा होशियारपुर के जिलों में हरियाणा के नारनौल जिले में सिंचाई की पर्याप्त सुविधाओं के उपलब्ध ना होने के कारण कृषि में इतनी प्रगति ना हुई इन राज्यों के बाकी हिस्सों में कृषि ने काफी प्रगति हासिल की।
कुछ ही फसलों तक सीमित होना- अनाज के संबंध में हरित क्रांति गेहूं की फसल के साथ ही प्रमुख रूप से जुड़ी है। यह मानना है कि डालो व्यापारिक फसलों आदि के संबंध में अधिक उपज वाले 20 शेयर करने के प्रयास बहुत अधिक सफल नहीं हुए हैं। भारत में जहां सिंचाई की सुविधाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध ही उन क्षेत्रों के हरित क्रांति गेहूं और चावल का उत्पादन बढ़ाने में सहायक हुई हैं।


पूंजीवादी खेतों को प्रोत्साहन- हरित क्रांति बड़ी मशीनों उर्वरक तथा सिंचाई सुविधामें एक भारी निवेश पर आधारित है। बड़े किसानों ने ही कृषि की नई तकनीकी का लाभ उठाया। इन सुविधाओं का लाभ छोटे किसानों ने कम पूंजी होने के कारण नहीं उठा पाया।
क्रांति के लिए आवश्यक सुविधाओं की कमी- सिंचाई के साधन आर्थिक ज्योत तथा शास्त्री कृषि आदतों का अभी विदेश में अभाव है। छोटे किसान इन सभी साधनों के अभाव में हरित क्रांति के लाभों से वंचित रह गए हैं जिससे कृषि विकास में वांछित सफलता नहीं प्राप्त हो रही है
हरित क्रांति की सफलता के लिए सुझाव

भूमि सुधार कार्यक्रमों को प्रोत्साहन- हरित क्रांति को सफल बदक बनाने के लिए भूमि सुधार कार्यक्रमों को प्रभावी रूप से लागू करना चाहिए। तथा चकबंदी को प्रभावी बनाकर जोंतों के विभाजन पर रोक लगाए जाने की आवश्यकता है। जिससे कृषि की नई तकनीकी प्रभावी रूप से लागू हो जाए।
सिंचाई सुविधाओं का विस्तार- किसी के विकास के लिए विशेष तौर पर शुल्क व उपसर्ग उपखंड में कृषि की नई तकनीकी का लाभ उठाने के लिए सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया जाना आवश्यक है। इसके लिए लघु सिंचाई परियोजनाओं के विस्तार वर्षा के जल को इकट्ठा करके खेतों की सिंचाई चिल्का प्रणाली द्वारा की जाए तो इससे पानी बिजली श्रम सब में बचत होगी।
कृषि वित्त की सुविधाओं का विस्तार- हरित क्रांति का लाभ छोटे किसान भी उठा पाए इसके लिए आवश्यकता है कि वित्तीय संस्थाएं प्रशासनिक व अन्य तरीकों से इन किसानों को ऋण आसान किस्तों में उपलब्ध कराएं।


फसलों की बीमा योजना- फसल बीमा योजना का लाभ लघु एवं सीमांत कृषक को तक पहुंचाने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा प्रयास किए जाने चाहिए। सरकार द्वारा व्यापक फसल बीमा योजना 1985 में कृषि को को उनकी फसलों के सूखा और अतिवृष्टि आदि कारणों से नष्ट होने की स्थिति में सहायता प्रदान करने हेतु प्रारंभ की गई है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को अनिश्चितता के समय विश्वास दिलाना है।
आने फसलों के लिए भी उन्नत किस्मों के बीजों का विकास- हरित क्रांति के बाद मुख्यतः चावल और गेहूं की उत्पादकता में बहुत वृद्धि हुई दुआ ने फसलों जैसे दाल तिलहन का पासवर्ड पर्सन की उत्पादकता में वृद्धि नहीं हुई इसका कारण यह है कि इनके लिए उन्नत किस्म के बीजों का विकास नहीं हुआ तथा इनके ऊपर को बढ़ाने के लिए अन्य उपाय करना। इसलिए इस बात पर ध्यान देना होगा कि विशेष तौर पर छोटे व सीमांत किसानों को ऐसे बीज उपलब्ध कराया जाए। इससे ना केवल किसान अपनी भूमि पर कूची पसली उत्पादित करेंगे बल्कि फसलों में भी विविधता का प्रोत्साहन मिलेगा।


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