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भारत की जनसंख्या घनत्व वितरण तथा वृद्धि पर टिप्पणी

जीव विज्ञान में विशेष प्रजाति के अंत जीव प्रजनन संख्या को जनसंख्या कहते हैं। भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत में पहली बार जनसंख्या 1872 में संपन्न हुई थी। 1881 की जनगणना को भारत की पहली जनगणना माना जाता है। 2011 की जनगणना के आकलन हेतु भाई 100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे जो प्रति व्यक्ति भार का 18.33 है। दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि विश्व का हर छठवां व्यक्ति भारतीय है। भारत में उपलब्ध भूमि विश्व की कुल भूमि का 2.42% ही हैं। और इतनी ही भूमि पर विश्व की कुल जनसंख्या का करीब 17% भारत में है। क्षेत्रीय प्रसार की दृष्टि से विश्व में भारत का स्थान रूस, कनाडा, चीन , संयुक्तराज अमेरिका, ब्राजील, और ऑस्ट्रेलिया के बाद सातवां है। 3 महाद्वीप उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या को जोड़ दिया जाए तो भारत की जनसंख्या से काम है। की जनसंख्या अथवा किसी भी देश की जनसंख्या उसके सभी भागों में समान रूप से वितरित नहीं होती है भारत में भी लागू होता है। देश के कुछ भागों में घनी जनसंख्या है तो कुछ भागों में मध्यम जनसंख्या है तो कुछ भाग विरल बसे हैं पिछले 100 वर्षों में जनसंख्या का घनत्व चौगुना से भी ज्यादा बढ़ा है सन उन्नीस सौ एक में यह घनत्व 77 था जबकि सन 2001 में या 324 हो गया।

भारत में जनसंख्या का घनत्व 324 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है इसे यह मतलब नहीं निकलता है कि देश के प्रति वर्ग किलोमीटर पर आबादी 324 व्यक्ति की होगी। वास्तव में जनसंख्या का वितरण भारतवर्ष में बहुत ही अनियमित है। अरुणाचल प्रदेश मैं औसतन जनसंख्या 13 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है जबकि दिल्ली में 9294 व्यक्ति वर्ग किलोमीटर है। किसी क्षेत्र अथवा देश की जनसंख्या के घनत्व को इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं घनत्व= देश की कुल जनसंख्या/ देश का सकल भूमि का क्षेत्रफल
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक-
भारत की जनसंख्या का स्थानीय वितरण एक समान नहीं है यह तो हम सभी जानते है। जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों को दो श्रेणी में बांटा गया है- पहला भौतिक कारक तथा दूसरा सामाजिक आर्थिक कारक।
भौतिक कारक- संख्या के घनत्व एवं वितरण को प्रभावित करने में अहम भूमिका रखता है इसमें भूमि की बनावट, जल और मृदा आदि कारक सम्मिलित हैं


भू आकृति- जनसंख्या वितरण के प्रतिरूप को यह काफी प्रभावित करता है भू आकृति का सबसे महत्वपूर्ण भाग है उसमें मौजूद ढलान तथा उसकी ऊंचाई। इन दोनों गुणों पर जनसंख्या का घनत्व एवं वितरण बहुत कुछ आधारित रहता है प्रमाण पहाड़िया मैदानी क्षेत्र की भूमि को लेकर किया जा सकता है गंगा सिंधु का मैदानी भाग घनी आबादी का क्षेत्र है जबकि अरुणाचल प्रदेश समूचा पहाड़ियों से घिरा उबर खाबर पर्वतीय भू-भाग है जहां जनसंख्या का घनत्व सबसे कम है।
जलवायु- किसी स्थान की जलवायु जनसंख्या के अस्थानिक वितरण एवं प्रसार को प्रभावित करती है राजस्थान के गर्म और सूखे रेगिस्तान साथ ही ठंडा एवं आद्रता नमी वाले पूर्वी हिमालय भूभाग का उदाहरण अगर हम देखें तो यहां जनसंख्या का वितरण असमान तथा घनत्व कम है। केरल एवं पश्चिम बंगाल की भौगोलिक परिस्थितियां इतनी अनुकूल है कि एवं समान रूप से वितरित है।
मृदा- बहुत हद तक जनसंख्या के घनत्व एवं वितरण को मृदा भी प्रभावित करती है। वर्तमान औद्योगिकीकरण एवं उद्योग प्रमुख समाज में मृदा जनसंख्या को प्रभावित करने में सक्षम हो गई है। आज भी भारत की 75% जनसंख्या गांवों में बसती है बात हम सब भली भांति जानते हैं। ग्रामीण जनता अपना जीवन यापन खेती से करती है और खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है जिस वजह से भारत का उत्तरी मैदानी भाग समुद्र तट वटी मैदानी भाग एवं सभी नदियों के डाटा क्षेत्र उर्जा व मुलायम मिट्टी की प्रचुरता के कारण सघन जनसंख्या वितरण प्रस्तुत करते हैं। किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या का घनत्व एवं वितरण एक से अधिक भौतिक एवं भौगोलिक कारकों से प्रभावित होता है।

सामाजिक- भौतिक कारकों के सामान्य सामाजिक आर्थिक कारक भी जनसंख्या के वितरण एवं घनत्व को काफी नुकसान पहुंचाता है। परंतु इन दोनों कारकों के सापेक्षिक महत्व के विषय में पूर्ण एकरूपता नहीं भी हो सकती है कुछ स्थान पर भौतिक कारक ज्यादा प्रभाव प्रभाव सील होते हैं। तो कुछ जगहों पर सामाजिक एवं आर्थिक कारक अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सामाजिक मैं राजनीतिक एवं सांस्कृतिक कार्य करते हैं इसका एक बहुत ही स्पष्ट उदाहरण है आज से 200 वर्ष से भी पहले पश्चिमी समुद्री तटवर्ती थाने इलाके के सकरी खाड़ी में महत्वहीन छोटे-छोटे विक्रय द्वीपसमूह थे। साथ ही पुर्तगाली नागरिकों ने इन दीप समूह पर अपना अधिकार जमा लिया था अधिग्रहित दीपों का स्वामित्व उनके राजा के पास था। पुर्तगाल के राजा ने इसे इंग्लैंड के राजघराने को दहेज स्वरूप भेंट कर दिया तथा इस ग्रुप में निवास करने वाले मछुआरों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा कि किसी दिन उनकी अब बसावट एक विशाल जनसंख्या के समूह के रूप में विकसित हो जाएगी। और इंग्लैंड की ईस्ट इंडिया कंपनी ने इन रूपों पर एक व्यापारिक केंद्र को स्थापित किया जिसे बाद में मुंबई प्रेसिडेंसी के राजधानी शहर में परिवर्तित कर दिया गया। उद्यमी व्यापार कुशल संप्रदायों ने यहां कपड़ा बनाने की मिलों को स्थापित किया और इसके लिए आवश्यक जल शक्ति का विकास किया। स्वेज नहर के निर्माण हो जाने से मुंबई भारत का एक ऐसा बंदरगाह बन गया जो यूरोप का सबसे नजदीक व्यापारिक केंद्र सिद्ध हुआ। मुंबई में शिक्षित युवकों की मौजूदगी तथा कोंकण के सस्ते सशक्त एवं अनुशासित मजदूरों की क्षेत्रीय जनसंख्या को तेजी से पनपने में बहुत बड़ा योगदान दिया।
प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है छोटा नागपुर का पठार एक पर्वतीय एवं उबर खाबर क्षेत्र का है जनसंख्या घनत्व की दृष्टि से देश के अविरल क्षेत्रों में गिना जाता है। प्रचुर मात्रा में खनिज अयस्क जैसे लोहा, मैग्नी चुना पत्थर आदि के उपलब्ध होने के कारण पिछली शताब्दी के दौरान अनेक औद्योगिक केंद्र तथा नगरों की स्थापना हुई जिससे यहां पर जनसंख्या का घनत्व काफी तेजी से पनपने लगा।

भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण-
उच्च जन्म दर- किसी देश में 1 वर्ष में जनसंख्या के प्रति हजार व्यक्तियों में जन्म लेने वाले जीवित बच्चों की संख्या जन्म दर कहलाती है। जन्म दर अधिक होने पर जनसंख्या वृद्धि भी बहुत अधिक होती है
मृत्यु दर- किसी देश में जनसंख्या के प्रति हजार व्यक्तियों पर 1 वर्ष में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं। किसी देश की मृत्यु दर जितनी ऊंची होगी जनसंख्या वृद्धि दर उतनी ही नीची होगी। मृत्यु दर नीची हुई तो जनसंख्या दर ऊंची होगी। मृत्यु दर में निरंतर कमी से भारत में वृद्धों का अनुपात अधिक होगा जनसंख्या पर अधिक भार बढ़ेगा। जन्म दर तथा मृत्यु दर के अंतर को प्राकृतिक वृद्धि दर कहा जाता है।
प्रवास- जनसंख्या के एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण को प्रवास कहते हैं। जनसंख्या की वृद्धि में इसका महत्वपूर्ण प्रभाव है। बांग्लादेश की सीमा से लगे राज्य में जनसंख्या वृद्धि का एक बड़ा कारण है त्रिपुरा, मेघालय और आसाम के जनसंख्या वृद्धि में बांग्लादासे आए प्रवासी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है।
जीवन प्रत्याशा- इधर के अंतर को प्राकृतिक वृद्धि दर कहा जाता है। सन 1921 में भारत में जीवन प्रत्याशा 20 वर्ष थी जो अब बढ़कर 63 वर्ष हो गई है जो वृद्धि दर में तात्कालिक प्रभाव डालता है।
अशिक्षा एवं अज्ञानता- आज भी हमारे देश में अधिकांश लोग निरक्षर हैं और अशिक्षा के कारण अज्ञानता का अंधकार चारों ओर फैला हुआ है। पढ़े लिखे ना होने के कारण लोगों को परिवार नियोजन के उपायों की ठीक से जानकारी नहीं है और लोग आज भी बच्चों को भगवान की देन मानते हैं।
बाल विवाह- आज भी हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा प्रचलित है। जल्दी शादी होने के कारण किशोर जल्दी मां बाप बन जाते हैं इससे बच्चे अधिक पैदा होते हैं और उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है उम्र में विवाहित होने के वाले अधिकांश युवा आर्थिक रूप से दूसरों पर आश्रित होते हैं रामस्वरूप कमाने वाले की संख्या कम और खाने वालों की संख्या अधिक हो जाती है।
लड़के की चाह में ज्यादा बच्चे पैदा करना- लोग सोचते हैं कि लड़का ही पिता की कामों में हाथ बता सकता है और बेटियां पराई होती है लड़का ही असली बारिश होता है तथा पिता का अंतिम संस्कार करता है बेटे की चाह में लड़कियां पैदा करते चले जाते हैं।
अन्य कारण- हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि के अन्य कारण है संयुक्त परिवार प्रथा, गरीबी एवं अशिक्षा।

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के उपाय

शिक्षा का प्रसार- भारत की 80% जनसंख्या गांवों में निवास करती है। जनसंख्या का इस कदर बढ़ना देश के लिए एक अभिशाप बनता जा रहा है जिससे गरीबी बेरोजगारी तथा महंगाई दिनों प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है। अज्ञानता के कारण तथा शिक्षा की कमी के कारण जनसंख्या नियंत्रण का कोई भी कार्यक्रम सफल नहीं हो पा रहा है लोगों में शिक्षा का प्रसार कर के ही जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण किया जा सकता है।
परिवार नियोजन- परिवार नियोजन का विभिन्न कार्यक्रमों का प्रचार प्रसार कर के ही जनसंख्या वृद्धि को रोकने में सफलता हासिल किया जा सकता है।
विवाह की आयु में वृद्धि करना- भारत में आज भी बाल विवाह की प्रथा है अतः बाल विवाह पर कानूनी रोक लगाई जानी चाहिए तथा साथ ही लड़कियों की विवाह की आयु को बढ़ाना चाहिए।
संतानोत्पत्ति की सीमा निर्धारण- समाज और राष्ट्र के हित में संतान की सीमा का निर्धारण करना अति आवश्यक है। जनसंख्या के विस्फोट से बचने के लिए सरकार को हम दो हमारे दो के उपाय को अपनाकर जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण पाने मैं कदम उठाना चाहिए।
जनसंख्या शिक्षा- इस प्रकार की शिक्षा सरकार तथा स्वयंसेवी संगठनों द्वारा चलाया जा रहा है जिसके माध्यम से लोगों को बढ़ती हुई जनसंख्या से पनपती हुई कठिनाइयों जैसे कि दुष्प्रभावों खानपान बीमारी एवं स्वास्थ संबंधी कई दिक्कतों के बारे में जानकारी दी जा रही है। अब जनसंख्या शिक्षा अनिवार्य कर दिया गया है ताकि युवाओं में जनसंख्या के प्रति जागरूकता आ सके।
महिला शिक्षा- हमारे देश में आज भी महिलाओं का अस्तर पुरुष की अपेक्षा काफी नीचे है। महिलाओं के शिक्षित ना होने के कारण जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों को हम नहीं समझ पा रहे हैं जिन क्षेत्रों में महिलाओं का शिक्षा स्तर काम है वहां जनसंख्या वृद्धि दर भी अधिक है अगर महिलाएं शिक्षित होंगी तो वे अपने बच्चों के खान-पान पोषण तथा स्वास्थ्य पर भी ध्यान देगी तथा जनसंख्या पर भी नियंत्रण होगा और एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा।


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