समावेशी विकास से आप क्या समझते हैं 11वीं एवं 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान विकासात्मक नीति एवं रणनीति के बारे में समीक्षा दें ?
भारत की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों से विश्व की सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था बन चुकी है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर औसतन 7% बन रही है। परंतु भारतीय अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख कमजोरी है कि विकास पर्याप्त रूप से समावेशी नहीं रहा है। समावेशी विकास की मुख्य अवधारणा आर्थिक रूप से पिछड़े इन्हीं वर्गों को मुख्यधारा में लाना है तभी भारत के समावेशी विकास की परिकल्पना को एक मुर्त रूप प्रदान होगा।
समावेशी विकास एक ऐसी अवधारणा है जिसमें समाज के सभी लोगों को समान अवसरों के साथ-साथ विकास का लाभ भी समान रूप से प्राप्त हो, अर्थात सभी वर्ग, क्षेत्र, प्रांत के व्यक्तियों को बिना भेदभाव समान विकास के अवसरों के साथ-साथ होने वाला देश का विकास ही समावेशी विकास कहलाता है। यह विकास की वह प्रक्रिया है जिसमें सभी लोग गरीब और अमीर, सभी भगौलीक क्षेत्र महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, आसाम आदि और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र कृषि उद्योग एवं सेवा देश के आर्थिक विकास में बराबर में योगदान देते हैं। अतः समावेशी विकास में देश के सभी वर्गों का बराबर योगदान रहता है तथा सभी वर्ग इस विकास से लाभान्वित होते हैं।
भारत सरकार द्वारा समावेशी विकास को महत्व प्रदान करते हुए 11वीं पंचवर्षीय योजना में इसका उपयोग किया गया। विकास की ओर धनिया एवं समावेशी बनाने के उद्देश्य से इसे पंचवर्षीय योजना के केंद्र में तेज, धारणीय और अधिक समावेशी विकास को रखा गया। योजना बनाने में यह सुनिश्चित किया गया कि जनसंख्या के बड़े हिस्से मुख्यता, कृषक, अनुसूचित जाति और जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्गों को सामाजिक एवं आर्थिक समानता दिलाई जाए। अतः समावेशी विकास को ध्यान में रखते हुए योजनाओं में ऊंची आर्थिक वृद्धि दर से प्राप्त लाखों का सामान वितरण शामिल किया गया।

भारत पीपीपी मॉडल के आधार पर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। परंतु यदि हम व्यक्ति आय की बात करें तो भारत विश्व में 122 में स्थान पर आता है। विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी की गई ” समावेशी विकास सूचकांक” मे भारत का स्थान 63 वां है। भारत से आर्थिक रूप से पिछड़े देश नेपाल को 22 वा स्थान तथा पाकिस्तान को 45 वां स्थान प्राप्त है जो कि भारत से आगे है। भारत में आर्थिक विकास तो किया है परंतु समावेशी विकास उस गति से नहीं हो पाया जिस गति से उसे होना चाहिए था।
भारत को आजादी पाए हुए काफी वर्ष हो चुके हैं। परंतु अभी तक 27% से अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है तथा जीवन यापन हेतु आधारभूत सुविधाओं तक उनकी पहुंच नहीं है। सरकार द्वारा सामाजिक क्षेत्र में समावेशी विकास के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही है। जिससे समाज का वह वर्ग जो विकास की दौड़ में पिछड़ गया है लाभान्वित हो सके तथा आगे जाकर देश के विकास में योगदान दे सकें। सरकार द्वारा इसपर अनेक योजनाओं का निर्माण किया जा रहा है जो इस प्रकार हैंः
बेरोजगारी की दर को घटाना– रोजगार में वृद्धि करने से शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगारों को विकास की प्रक्रिया के साथ जोड़ा जा सकता है। इसके लिए सरकार द्वारा ” स्किल इंडिया मिशन एवं स्टार्टअप इंडिया” योजना एक महत्वपूर्ण कदम बनकर उभरा है। इसे अकुशल श्रमिकों के कुशल बनाकर तथा नए-नए स्टार्टअप ओं के जरिए रोजगार में वृद्धि कराई जा रही है।
कृषि एवं ग्रामीण विकास– आज भी कृषि क्षेत्र ही सबसे अधिक रोजगार उपलब्ध कराने वाला क्षेत्र भारत में है। इसलिए इसका विकास, समावेशी आर्थिक विकास के लिए जरूरी है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से गांवों में और संरचनात्मक सुधार एवं मुद्रा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड से कृषि कार्य हेतु आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध हो रहा है साथ ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों की हानि को कम किया जा रहा है। इसके साथ ही भारत सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का भी लक्ष्य रखा है।

आर्थिक असमानता को समाप्त करना– भारत का उच्च आय प्राप्त करने वाला 1% तब का जीडीपी में 50% की हिस्सेदारी रखता है। समावेशी विकास हेतु इस असमानता को समाप्त करना अति आवश्यक है। इसे दूर करने के लिए सरकार द्वारा जन धन योजना की शुरुआत की गई है जिसके जरिए सरकार समाज के उस वर्ग को अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से जोड़ना चाहती है जिनके पास अभी भी बैंक खाते नहीं हैं।
आधारभूत आवश्यक वस्तुओं तक सब की पहुंच सुनिश्चित करना – स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य, बिजली एवं स्वच्छ पानी जैसी आधारभूत आवश्यक वस्तुओं तक सब की पहुंच सुनिश्चित करना अति आवश्यक है। गरीब बीपीएल परिवारों को दीनदयाल उपाध्याय ज्योति योजना से बिजली एवं उज्जवला योजना से एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराना सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि साबित हुई है।
भारत में समावेशी विकास की अवधारणा कोई नई बात नहीं है यदि हम प्राचीन ग्रंथों का अवलोकन करें उनमें भी सभी लोगों को साथ लेकर चलने का भाव निहित है जैसे सर्वे भवंतू सुखिनाह में सबको साथ लेकर चलने का अर्थ स्पष्ट किया गया है। 90के दशक से उदारीकरण की प्रक्रिया के प्रारंभ होने से यह शब्द नए रूप में प्रचलन में आया। क्योंकि उदारीकरण के दौर में वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को भी आपस में निकट से जुड़ने का मौका मिला और अभी अवधारणा देश और प्रांत से बाहर निकलकर वैश्विक संदर्भ में भी प्रासंगिक बन गई है। समावेशी विकास की अवधारणा पहले-पहले 11वीं पंचवर्षीय योजना के कार्यक्रम में प्रस्तुत की गई लोगों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने और अवसर की समानता लाने की बात कही गई थी। 12वीं पंचवर्षीय योजना के कार्यक्रम में इस पर और भी जोड़ दिया गया जिसमें गरीबी को कम करने, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं में सुधार और आजीविका के अवसर प्रदान करने जैसी बातों पर खास जोर दिया गया। सरकार द्वारा घोषित कल्याणकारी योजनाओं में इस समावेशी विकास पर विशेष बल दिया गया और 12वीं पंचवर्षीय योजना 2012 से 2017 का तो सारा जोर एक प्रकार से त्वरित, समावेशी सतत विकास के लक्ष्य हासिल करने पर है।

ऐसा भी नहीं है कि इन 10 सालो में सरकार द्वारा इस दिशा में प्रयास नहीं किए गए केंद्र तथा राज्य स्तर पर लोगों की गरीबी दूर करने हेतु अनेक कार्यक्रम बने परंतु उचित अनुश्रवण के अभाव में इन कार्यक्रमों से आशा अनुरूप परिणाम नहीं मिले और कहीं तो यह कार्यक्रम पूरी तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। वर्तमान में मनरेगा जैसी और भी कई रोजगार परक योजनाएं प्रभारी हैं। और इससे कुछ हद तक लोगों को सहायता भी मिली है। अब तक का हमारा अनुभव यही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं कृषि के अलावा रोजगार के अन्य वैकल्पिक साधनों का सृजन ही नहीं हो सका भले ही विगत 3 दशकों में रोजगार सृजन की कई योजना चलाई गई हैपरंतु गांव में ढांचागत विकास अभी भी उपेक्षित है जिससे गांव से शहरों में भारी संख्या में लोगों का पलायन होता रहा है।
12वीं पंचवर्षीय योजना के समय समावेशी विकास- योजना आयोग के अध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहां की 12वीं पंचवर्षीय योजना में परिस्थितियों के अनुरूप समावेशी विकास को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। अहलूवालिया ने यहां लखनऊ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि आर्थिक विकास के बारे में अखबारों में जाहिर वक्तव्य पढ़कर एक चीज सामने उभर कर आई है की आर्थिक विकास के बारे में ही सोचना हमारे लिए बहुत छोटा सा लक्ष्य है। 12वीं पंचवर्षीय योजना में हमें अलग-अलग लक्ष्यों को तय करना होगा जिसमें सिर्फ आर्थिक विकास करना हमारा एकमात्र लक्ष्य नहीं होगा। हमारा लक्ष्य होगा समावेशी विकास करना। सरकार का लक्ष्य ऐसी विकास दर हासिल करना है जो समावेशी हो क्षेत्रीय संतुलन वाली हो और जो हर राज्य को अतीत के मुकाबले भविष्य में बेहतर काम करने में सक्षम बनाएं। साथ ही विभिन्न समुदायों के बीच अंतर को खत्म करें लैंगिक विभेद को खत्म करने के हमारे उद्देश्य को पूरा करें और महिलाओं का सशक्तिकरण करें तथा उनकी सामाजिक तथा शैक्षणिक स्थिति को सुधारें।