सतत विकास अवधारणा तथा सूचकांक और भारत में सतत विकास रणनीति के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन करें?
पर्यावरण की हा्स को रोकने तथा भूमंडलीय तापन की समस्या के समाधान के लिए टिकाऊ विकास अत्यंत जरूरी है। वर्ष 1992 की पृथ्वी शिखर सम्मेलन में सतत विकास और उससे होने वाले सामाजिक एवं आर्थिक लाभ हो पर लंबी पड़ी चर्चा की गई थी। पृथ्वी शिखर सम्मेलन के कुछ प्रमुख बिंदुओं का संक्षिप्त वर्णन इन बातों में किया गया हैः
ब्राइटलैंड महोदय के अनुसार ऐसा विकास जिसमें वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और आने वाली पीढ़ी अभी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके तथा पारितंत्र भी स्वस्थ एवं सतत अवस्था में बना रहे। टिकाऊ विकास की प्रमुख विशेषताएं निम्न प्रकार से हैंः
विकास की ऐसी क्षमता जिसमें पारितंत्र उत्पादन देता रहे तथा भविष्य के लिए स्वस्थ एवं टिकाऊ अवस्था में बना रहे।
ऐसा विकास जिससे मानव जीवन सुखी बना रहे।
प्राकृतिक संसाधनों का ऐसा सदुपयोग जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी संसाधन उपलब्ध रहे और सब का जीवन सुखी बना रहे।
सतत विकास वर्तमान की परम आवश्यकता है ताकि पारितंत्र की उत्पादकता को बनाए रखा जा सके। वास्तविकता यह है कि मानव जीवन का आधार पारितंत्र एवं पर्यावरण ही हैं। पार्षद एवं पर्यावरण को सतत बनाए रखने के लिए विभिन्न देशों में विभिन्न उपाय किए जा सकते हैं फिर भी भारत जैसे विकासशील देश को विशेष उपायों पर बल देने की आवश्यकता है।
सतत विकास एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्यः सतत विकास एक काफी पुरानी अवधारणा है परंतु दूसरे महायुद्ध के पश्चात इसकी महत्वता पर विशेष बल दिया जा रहा है। सही संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित किया गया था। वर्ष 1974 में बेरी महोदय ने प्रसिद्ध पुस्तक क्लोजिंग सर्कल प्रकाशित की थी।

इस पुस्तक में निम्न बिंदुओं पर विशेष बल दिया गया थाः
पृथ्वी पर हर एक वस्तु एक दूसरे से जुड़ी हुई है।
पृथ्वी की हर एक वस्तु किसी न किसी दिशा में बढ़ रही है।
प्रकृति सब कुछ भली-भांति जानती है।
इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1983 की जनरल असेंबली में वर्ल्ड चैप्टर फॉर नेचर का प्रस्ताव पारित किया। इसके पश्चात ब्रिकलैंड महोदय ने अपनी रिपोर्ट आवर कॉमन फ्यूचर में सतत विकास की अवधारणा प्रस्तुत की थी। इस रिपोर्ट में भी निम्न बातों पर ध्यान दिया गयाः
की सरकार जिसमें सभी नागरिकों की निर्णय लेने में भागीदारी हो।
ऐसी आर्थिक संस्था जिसमें अधिक उत्पादन किया जाए तथा टेक्नोलॉजी का विकास किया जाए।
ऐसा तंत्र जो पारिस्थितिकी को ध्यान में रखकर विकास की योजनाओं पर बल दे।
ऐसा उत्पादक तंत्र जो विकास के साथ-साथ पारिस्थितिकी का संरक्षण करता हो।
ऐसा टेक्निकल तंत्र जो निरंतर विकास पर बल देता है।
ऐसा प्रशासनिक तंत्र जिसमें लचक हो और बदलती परिस्थिति के अनुसार वह निर्णय ले सके।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पर्यावरण के टीका उत्पन्न का ध्यान दे सके।
ब्रेक लाइट महोदय ने अपनी रिपोर्ट में विकास की योजना बनाते समय निम्न बातों को ध्यान में रखने पर बल दियाः
सतत विकास
सतत पृथ्वी
सतत मानव विकास
सतत शांति एवं विकास
सतत उपभोग
सतत टेक्नोलॉजी

वर्ष 1980 से वर्ष 1990 तक बहुत ही अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन एवं सम्मेलन आयोजित किए गए। इनमें से प्रमुख सम्मेलन इस प्रकार हैंः
वर्ष 1987 में ओजोन हा्स के संबंध में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल।
वर्ष 1987 में खतरनाक पदार्थों के बारे में बेसल कन्वेंशन।
वर्ष 1992 में जलवायु परिवर्तन कन्वेंशन।
जैविक निवेदिता कन्वेंशन वर्ष 1992।
पृथ्वी सम्मेलन 1992।
वर्ष 2002 का विश्व सम्मेलन सतत विकास के संबंध में।
परिस्थितिकी विकासः परिस्थितिकी विकास की अवधारणा का अर्थ ऐसे विकास से है जिसमें विकास के साथ-साथ पारिस्थितिकी संतुलन बनाया रखा जा सके इस प्रकार के विकास पर सबसे पहले यूएनडीपी ने विचार रखा था इसके प्रमुख उद्देश्यों में प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना है।
सतत विकास का मूलभूत स्वरूपः
विकासशील देशों की तेज गति से बढ़ती हुई जनसंख्या तथा विकसित देशों में बढ़ते हुए उपभोक्तावाद के कारण सतत विकास को प्राप्त करना एक कठिन कार्य बन चुका है। सतत विकास को प्राप्त करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक हैः
जैव विविधता,
ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन,
खतरनाक कूड़े करकट का प्रबंधन,
उद्योगों से निकलने वाले बड़े करकट का प्रबंधन,
परिस्थिति की सुरक्षा।
विश्व के अधिकतर भागों में विकास करते समय पारिस्थितिकी के सिद्धांतों को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है जिसके कारण प्राकृतिक संसाधन तथा पर्यावरण का तेजी से दोहन हो रहा है।
सतत विकास के पूर्व अपेक्षाः
पारिस्थितिकी की संतुलन को स्थापित करने के लिए आर्थिक विकास निम्न सिद्धांतों को ध्यान में रखकर करना चाहिएः
प्राकृतिक संसाधनों का समर्थन शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
टेक्नोलॉजी विकास करते समय न विकृत संसाधनों के संरक्षण का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
नवी कृत संसाधनों के उपयोग में लाने के लिए विशेष नीति तैयार की जानी चाहिए।
धारणीय विकास के सिद्धांतः
धारणीय विकास के सिद्धांत निम्न प्रकार हैंः
प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग।
जैविक विविधता का संरक्षण।
सांस्कृतिक विविधता का संरक्षण
पर्यावरण एवं संसाधनों से सतत आय
संसाधनों का उपयोग किस प्रकार किया जाए ताकि समाज के सभी वर्गों को लाभ पहुंच सके।
संसाधनों का पूरा उपयोग।
मानव का गुणात्मक विकास।
सतत विकास के लिए विश्व परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखना।
समाज के सभी वर्गों के संसाधनों का सदुपयोग करना।
विश्व के सभी समुदायों द्वारा आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना।
सतत विकास के लिए सभी व्यक्तियों एवं समाजों की सबल भागीदारी।

सततता का मापन ः जागरण तथा प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग उनके समर्थन शक्ति के आधार पर किया जाता है पारिस्थितिकी के सरलता को आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक उपयोगिता के आधार पर भी परखा जा सकता है। पारितंत्र के सत्तता को परखने के लिए सूचकांकों का संक्षिप्त वर्णन निम्न बातों में प्रस्तुत किया गया हैः
पारिस्थितिकी सूचकांकः इस यंत्र में भूमि उपयोग, भूमि उपयोग में परिवर्तन, बायोमास की गुणवत्ता एवं मात्रा, मृदा की उत्पादकता, उर्जा की उपलब्धि इनका प्रबंधन सम्मिलित है।
भूमि उपयोग के प्रतिरूप में परिवर्तनः भूमि रिकॉर्ड तथा रिमोट सेंसिंग की सहायता से भूमि उपयोग के वर्तमान प्रतिरूप का पता लगाया जाता है जिसके आधार पर भूमि उपयोग के लिए भविष्य की योजना तैयार की जा रही है।
बायोमास की मात्रा एवं गुणवत्ताः धरातलीय एवं जलीय परितंत्र से प्राप्त होने वाले उत्पादन ओ की मात्रा एवं गुणवत्ता भी पारितंत्र के संगठन शक्ति के महत्वपूर्ण सूचकांक है।
जल मात्रा की उपलब्धता एवं गुणवत्ताः जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। नदियों, पोखरा, तालाबों भूमिगत जल की मात्रा एवं गुणवत्ता भी पारितंत्र के समर्थन का सूचकांक माना जाता है।
मृदा उत्पादकताः मृदा का सदुपयोग करते हुए वैज्ञानिक फसल चक्र के द्वारा फसलों का उत्पादन करने से इसमें मदद मिलती है।
ऊर्जा ः ऊर्जा पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी का एक महत्वपूर्ण तत्व है। सभी प्रकार की ऊर्जा तथा जीवाश्म ऊर्जा, सूर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वार भाटा ऊर्जा का पारितंत्र एवं पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
सामाजिक सूचकांकः जीवन की गुणवत्ता एक प्रमुख सामाजिक सूचकांक है। लोगों का जीवन स्तर जितना ऊंचा होता है वहां का पर्यावरण एवं पारितंत्र भी उतना ही टिकाऊ होता है।
सतत विकास के लिए व्यक्तिगत प्रयासः पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रत्येक व्यक्ति को निम्न उपाय करने की आवश्यकता हैः
ऊर्जाः
बाय साइकिल का प्रयोग करें वाहन को आवश्यकता पड़ने पर थोड़ी दूरी तक ही चलाएं। दैनिक जीवन में सरकारी वाहनों का इस्तेमाल करें।
उत्तम प्रकार की बिजली के बल्ब तथा उपकरणों का प्रयोग करें।
घरों की विद्युत रोधी उपकरणों को ठीक देखरेख करें।
ऐसी बैटरी हूं का उपयोग करें जिन को फिर से रिचार्ज किया जा सके।
ऊर्जा के विकल्प साधनों को खोजा जाए।

आहारः
भोजन ऐसे प्रदेशों और क्षेत्रों से प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए जहां गोबर तथा कंपोस्ट और हरी खाद का फसलों को उगाने में इस्तेमाल होता है। रसायनिक खाद से उगाई फसलें सब्जियां तथा फल इत्यादि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।
घर के आंगन में सब्जियां उगाई जानी चाहिए।
भोजन की वस्तुओं को ऐसे खेलों में खरीद कर लाना चाहिए जिसका दोबारा इस्तेमाल हो सके।
जलः
जल को किफायती के साथ इस्तेमाल करना चाहिए।
घर के आंगन में लगी घास की सिंचाई बार-बार नहीं करनी चाहिए। हमें घरों में ऐसी घास लगानी चाहिए जो कम जल मिलने पर भी हरी-भरी रह सके।
रसोई के बर्तन धोने पर भी जल की बचत करें।
प्रदूषण तत्वः विषाक्त पदार्थों का उचित ढंग से प्रबंधन। जिन डिब्बा में रंग रोगन, कीटाणु नाशक दवाई रसायनिक पदार्थ रखे जाएं उनको उपयुक्त स्थान पर जमा करें और उनका इस्तेमाल खाने पीने की वस्तुओं को रखने के लिए ना करें।
वस्तु को खरीदने से पहले उस पर लिखे लेबल को पढ़ें तथा कम विषाक्त पदार्थ वाली वस्तु को खरीदें।
पुनर उपयोग एवं कूड़ा करकटः पत्र ,अखबार, मैगजीन, बोतल, ग्लास आदि का पुनर उपयोग करें।
ऐसी वस्तुएं खरीदी चाहिए जिनका दोबारा इस्तेमाल किया जा सके।
अपने निवास स्थान को साफ सुथरा रखने के लिए सभी संभव प्रयास करना चाहिए।
कागज के स्थान पर तौलिए का इस्तेमाल करना चाहिए।
जैव एवं पर्यावरण सुरक्षाः
वृक्षारोपण
खुली जग्गू तथा मैदानों की सुरक्षा
सीएससी गैसों के उत्सर्जन पर रोक लगाएं
ध्वनि प्रदूषण करने वाले संगठनों का बहिष्कार किया जाए
अन्य बातेंः
- चिपको आंदोलन जैसी संस्थाओं से जुड़ना तथा उनको सहयोग प्रदान करना
- अपने मित्रों को पर्यावरण संबंधित जागरूकता समझाना
- सतत विकास के लक्ष्यः
- गरीबी के सभी रूपों को पूरे विश्व से समाप्ति।
- भूख की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा।
- समावेशी और न्याय संगत गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर देना।
- लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करना।
- सभी के लिए स्वच्छता और पानी के सतत प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- लचीले बुनियादी ढांचे, समावेशी औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देना।
- देशों के बीच और भीतर असमानता को कम करना।
- जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करना।
- स्थाई सतत विकास के लिए महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग।
- सतत उपयोग को बढ़ावा देने वाले स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों, सुरक्षित जंगलों, भूमि क्षरण जैव विविधता के बंढते नुकसान को रोकने का प्रयास करना।
- सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्त कार्यान्वयन को मजबूत बनाना।

यूएनडीपी की भूमिकाः
SDG 1 जनवरी 2016 से प्रभाव में आए तथा यूएनडीपी की निगरानी और संरक्षण में यह अगले 15 सालों तक प्रभावी रहेंगे। संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख एसडीजी लक्ष्य प्राप्ति कार्य करने वाली संस्था यूएनडीपी विश्व के 170 देशों में इन लक्ष्य की प्राप्ति पर नजर रखेगी।
यूएनडीपी का प्रमुख लक्ष्य गरीबी को खत्म करना, लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को प्रोत्साहन, पर्यावरण परिवर्तन और आपदा परिवर्तन पर कार्य तथा आर्थिक समानता प्राप्ति आदि पर ज्यादातर केंद्रित रहेगा।
एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकारी, निजी क्षेत्र नागरिक समाज तथा सभी लोगों को आपके सहयोग से काम करना होगा।
सतत विकास लक्ष्यों का मुख्य उद्देश्य विश्व से गरीबी को पूर्णता खत्म करना तथा सभी समाजों में सामाजिक न्याय और पूर्ण समानता स्थापित करना है।
भारत में सतत विकासः भारत लंबे अरसे से सतत विकास के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है किस के मूलभूत सिद्धांतों को अपनी विभिन्न विकास नीतियों में शामिल कर रहा है। हाल के विश्वव्यापी आर्थिक संकट के बावजूद विकास की अच्छी दर बनाए रखने में हम भारतीय सफल रहे हैं। 2030 के हमारे सतत विकास एजेंडे में निर्धनता को पूर्णता समाप्त करने का लक्ष्य ना केवल हमारा नैतिक दायित्व है बल्कि शांतिपूर्ण , और चिरस्थाई विश्व को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी भी है । भारत के विकास संबंधी अनेक लक्ष्य को सतत विकास लक्ष्यों में शामिल किया गया है। हमारी सरकार द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे अनेक कार्यक्रम सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप हैं जिनमें मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीणऔर शहरी दोनों, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, डिजिटल इंडिया, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शामिल है। इसके अलावा अधिक बजट आवंटन उसे बुनियादी सुविधाओं के विकास और गरीबी समाप्त करने से जुड़े कार्यक्रमों को भी भारत में बढ़ावा दिया जा रहा है। सतत विकास लक्ष्यों को विकास नीतियों में शामिल करने के लिए हम अनेक मोर्चों पर अनेक कार्य कर रहे हैं ताकि अगर हमारी पृथ्वी के अनुकूल एक बेहतर जीवन जीने की हमारी देशवासियों की इच्छाओं को पूरा किया जा सके। केंद्र सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने तथा इसके समन्वय की जिम्मेदारी नीति आयोग को सौंप दी है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा प्रस्तावित संकेत को की वैश्विक सूची से संकेत को को पहचान करना जो हमारे राष्ट्रीय संकेतक ढांचे के लिए अपनाए जा सकते हैं वास्तव में हमारे लिए 1 मील का पत्थर है।
संघीय ढांचे में सतत विकास लक्ष्यों की संपूर्ण सफलता में राज्यों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए भारतीय संसद विभिन्न हित धारकों के साथ गहन विचार-विमर्श कर रही है जैसे अध्यक्षीय शोध कदम जो हाल ही में स्थापित किया गया एक मंच है जो सतत विकास लक्ष्यों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर हमारे सांसदों द्वारा क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ विचार विमर्श को सुविधाजनक बनाता है। भारत सरकार द्वारा न्यूयॉर्क में जुलाई 2017 में आयोजित होने वाले उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच पर अपनी पहली स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा प्रस्तुत करने हेतु लिया गया निर्णय इसका एक उदाहरण है। भारत सतत विकास लक्ष्यों के सफल कार्यान्वयन को कितना महत्व दे रहा है यह हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है। पर्यावरण को संरक्षित रखते हुए पूर्ण विकास हेतु लोगों की आकांक्षाएं पूरी करने के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य तथा स्थानीय स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति और संस्था द्वारा और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
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