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कृषि लागत और बाजारीकरण से आप क्या समझते हैं संक्षेप में वर्णन करें ?

भारत सरकार की विकेंद्रित एजेंसी है। पहले इसका नाम कृषि मूल्य आयोग था। कृषि लागत और मूल्य आयोग भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है जिसकी स्थापना 1965 मैं हुई। वर्तमान में इस आयोग में एक अध्यक्ष, सदस्य सचिव, एक सदस्य अधिकारिक और 2 सदस्य गैर अधिकारी शामिल है। गैर आधिकारिक सदस्य कृषक समुदाय के प्रतिनिधि हैं और आमतौर पर कृषक समुदाय के साथ एक सक्रिय संबंध रखते हैं।
आधुनिक तकनीक को अपनाने के लिए काश्तकारों को प्रोत्साहित करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की सिफारिश करना और देश में उभरते मांग के अनुरूप उत्पादकता और समग्र अनाज उत्पादन को बढ़ाना अनिवार्य है। पारिश्रमिक और स्थिर मूल्य वातावरण का आश्वासन कृषि उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि कृषि उपज के लिए बाजार में जगह स्वाभाविक रूप से अस्थिर हो जाती है जो की अक्सर उत्पादकों के लिए अनुचित नुकसान पैदा करते हैं, भले ही वे सर्वोत्तम उपलब्धि प्रौद्योगिकी पैकेज को अपनाते हैं और कुशलता से उत्पादन प्रभु कृषि उत्पादों के लिए एमएसपी को सरकार की सिफारिशों के आधार पर प्रत्येक वर्ष के अंत तक निर्धारित किया जाता है।
सीएसीपी हर साल मूल्य नीति रिपोर्ट के रूप में सरकार को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती है समूह के लिए पांच मूल्य निर्धारण नीति करने से पहले एक व्यापक प्रश्नावली तैयार करती है और सभी राज्य सरकारों और संबंधित राष्ट्रीय संगठनों और मंत्रालय को उनके विचार मांगने के लिए भेजती है। सरकार सीएसीपी रिपोर्ट को राज्य सरकार और संबंधित केंद्रीय मंत्रालय को उनकी टिप्पणियों के लिए प्रेरित करती है सीएसीपी द्वारा अंतिम निर्णय लेने के बाद सिफारिशों के पीछे तर्क को देखने के लिए विभिन्न हित धारकों के लिए वेबसाइट पर अपनी सभी रिपोर्टों को डालता है तथा इन सभी सूचनाओं के आधार पर आयोग अपनी रिपोर्ट तैयार करता है।


भारत में सर्वप्रथम 1955 में कृषि लागत आयोग का गठन किया गया था इसके अध्यक्ष प्रोफेसर दंतेवाड़ा को बनाया गया था। इस आयोग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रेरित करने हेतु उन्हें उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करना था। 1985 में इसका नाम बदलकर कृषि लागत एवं कीमत आयोग कर दिया गया भारत में कृषि मूल्य नीति का उद्देश्य उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है। उपभोक्ता के स्तर पर अधिक उत्पादन होने पर उन्हें कीमत घटाने की स्थिति में सुरक्षा प्रदान करना तथा उपभोक्ता के स्तर पर उन्हें उचित मूल्य पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना भी है। कुल मिलाकर सीएसीपी का उद्देश्य है कि कृषि उत्पादों की कीमतों को स्थिर करना जिससे अर्थव्यवस्था में कीमत को स्थिर किया जा सके।
न्यूनतम समर्थन मूल्य
सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 24 कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की जाती है का उद्देश्य होता है कि किसी वस्तु की अधिक उत्पादन की स्थिति में उसकी कीमत तो एक सीमा के नीचे आने पर उत्पादकों को सुरक्षा प्रदान करना। किसान अपने उत्पादों को बाजार में सही कीमत और बेचने के लिए स्वतंत्र होता है सरकार किसान को इस बात की गारंटी देती है कि यदि बाजार के मूल्य में कमी आई तो वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसके उत्पाद को खरीद लेगा। सरकार बुवाई से पहले ऐसी घोषणा करती है जिससे किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रेरणा मिलती है । इसकी घोषणा सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के बाद की जाती है।
खरीद मूल्यः सरकार द्वारा इसकी घोषणा रवि तथा खरीफ फसल की कटाई के समय की जाती है। यह न्यूनतम समर्थन मूल्य के बराबर या उससे अधिक होता है किंतु किसी भी स्थिति में यह न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम नहीं हो सकता है।
आर्थिक मूल्यः सरकार द्वारा बफर स्टॉक के लिए अनाजों की खरीद की जाती है इसके साथ ही इनके परिवहन भंडारण तथा अन्य प्रबंधकीय कार्य में भी खर्च करना पड़ता है इन सभी खर्चों को जोड़कर अनाज का जो मूल्य होता है उसे ही आर्थिक मूल्य कहा जाता है।
जारी मूल्यः अलग-अलग योजनाओं के लिए सरकार किस मूल्य पर अनाज को जारी करती है उसे ही जारी मूल्य कहा जाता है। सरकार द्वारा कल्याणकारी योजनाओं के लिए जारी किए जाने वाले अनाजों का जारी मूल आर्थिक मूल्य से कम होता है। आर्थिक मूल्य एवं जारी मूल्य के बीच के अंतर को खाद्यान्न सब्सिडी कहा जाता है।


मूल्य निर्धारण प्रणाली

सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण के लिए लागत प्रणाली का उपयोग किया जाता है इसके अंतर्गत दो प्रकार की लागत का निर्धारण किया जाता है

C -2 लागत तथाC -3 लागत।

C -2 लागत पर किसानों द्वारा कृषि कार्य में किया गया व्यय , श्रम तथा विद्यालयों को जोड़ा जाता है।
C -1 लागत= फसल उत्पादन में किसानों का कुल व्यय + किसानों के द्वारा प्रयुक्त घरेलू संसाधनों का मूल्य
C -2 लागत=C -1 लागत+10% लाभ

C -3 लागत=C -2 लागत+ किसानों को प्रबंधकीय पारिश्रमिक का हिसाब लगाने के लिए. C -2 लागत का10%


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