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वनों के प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष लाभ

प्रत्यक्ष लाभ
भोजन के लिए फल-फूल आदि की प्राप्ति होती है जो कई जनजातियों के लिए आज भी भोजन प्राप्ति का एकमात्र साधन है। वनों से हमें प्रतिवर्ष 4000 से अधिक प्रकार की लकड़ी प्राप्त होती है जी ने 500 से अधिक मूल्यवान लकड़ियां है जैसे सागवान, शीशम, देवदार, चंदन यादी। इससे हमें इंधन जलावन की लकड़ी भी प्रचुर मात्रा में मिलती है। उद्योगों के लिए कच्चा माल भी हमें वनों से प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है जैसे कागज, दिया सलाई, रब्बर आदि। वनों से हमें विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटी प्राप्त होती है जो हमें कई सारे बीमारियों से मुक्ति दिलाती है। सरकार को इससे अरबों रुपए की वार्षिक आय प्राप्त होती है। वनों से कई जनजातियों तथा जीव जंतुओं को आश्रय प्रदान होता है।

  • अप्रत्यक्ष लाभ
    वन वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रताको नहीं बनने देते हैं। साथ ही साथ रेगिस्तान के फैलाव को भी रोकते हैं। पर्यटकों को आकर्षित कर के लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। वातावरण में नमी बनाए रखने के साथ-साथ जलवायु को स्वच्छ बनाए रखते हैं। वनों से नदियों की धारा नियंत्रित होती है तथा बाढ़ को रोका जाता है। वनों से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। वन भूमिगत जल स्तर को उठाते हैं जिससे कुआं खोदने तथा सिंचाई करने में सुझाव होती है। वनों से मृदा अपरदन पर भी काफी नियंत्रण होता है।
  • सामाजिक वानिकी
    सामुदायिक हितों और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से सामाजिक वानिकी कार्यक्रम की शुरुआत 1980 में की गई थी। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय कृषि आयोग की अनुशंसा पर प्रारंभ किया गया था इसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में वैकल्पिक अर्थव्यवस्था तथा जलावन की लकड़ी की समस्या के लिए एक ऐसा सामाजिक वानिकी कार्यक्रम चलाया जाए जिसमें वन लगाने तथा उसके उपयोग करने की जिम्मेदारी उसी प्रदेश के लोगों की हो।
    कृषि आयोग, 1978 के अनुसार किस के मुख्य उद्देश्य-
  • इंधन उपलब्ध कराना तथा गोबर का प्रयोग खाद के रूप में करना।
  • फलो का उत्पादन बढ़ाकर खाद्य संसाधन की बढ़ोतरी करना।
  • लोगों में वृक्षों के प्रति चेतना तथा प्रेम को बढ़ाना।
  • भू परिदृश्य के लिए सजावटी तथा छायादार वृक्ष लगाना।
  • सुरक्षित तथा संरक्षित वनों को पशु चारण से बचाने के लिए चारे की उपलब्धता बढ़ाना।
  • जल स्तर में सुधार।
  • प्रादेशिक आत्मनिर्भरता
    अधिकतर अर्थशास्त्री तथा भूगोल वक्ताओं के अनुसार सामाजिक वानिकी ना केवल परिस्थिति संतुलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है बल्कि गरीबी निवारण ग्रामीण विकास तथा रोजगार के नए अवसर प्रदान करने की भी योजना है


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