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वनस्पति तथा उनके विभिन्न प्रकारों का संक्षिप्त विवरण

किसीप्रदेश में पाए जाने वाले विभिन्न जाति के पेड़ पौधों के समूह को वनस्पति कहते हैं। जो पौधे बिना मानवीय सहायता के जंगली अवस्था में उगते हैं उसे प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं। अर्थात हम यह भी कह सकते हैं की प्राकृतिक वनस्पति से तात्पर्य उन पौधों से है जो मानव की सहायता के बिना अथवा प्राकृतिक अवस्था में उगते हैं। प्राकृतिक वनस्पति के विकास में विभिन्न कारकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है-
1 . तापमान- एक पौधे को अपने विकास के लिए कम से कम 6 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान की आवश्यकता होती है। इसे कम तापमान पर पौधे नहीं पनपते हैं। इसी तरह उच्च तापमान से भी पौधे मुरझा जाते हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण अरुणाचल प्रदेश असम की वनस्पतियों में स्वरूप गत भिन्नता है। अरुणाचल प्रदेश असम दोनों राज्यों में वर्षा की मात्रा उच्च रहती है किंतु अरुणाचल प्रदेश में निम्न तापमान रहने के कारण वहां की वनस्पति के आकार प्रकार में अंतर होता है।
2 . वर्षा- यह वनस्पतियों के विकास में एक महत्वपूर्ण कारक है। विभिन्न पदों हेतु वर्षा की मात्रा भिन्न-भिन्न आवश्यकता होती है। कुछ पेड़-पौधों को प्रचुर मात्रा में बारिश की आवश्यकता होती है तथा कुछ को आवश्यकता के अनुसार काम।
3 . मिट्टी- मिट्टी के प्रकार व उसकी अपनी विशेषता का भी वनस्पति पर प्रभाव पड़ता है। भारत में बांगर मिट्टी के क्षेत्रों की वनस्पति खादर मिट्टी के क्षेत्रों की वनस्पति से भिन्न होती है। इसी प्रकार रेतीली मिट्टी में अलग प्रकार की वनस्पति उत्पादित होती है काली मिट्टी में अलग प्रकार की। तरह तरह की मिट्टियों में तरह तरह के फसलों का उत्पादन होता है।

  1. धरातलीय स्वरूप- धरातलीय स्वरूप भी वनस्पतियों को प्रभावित करता है। हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में वर्षा की मात्रा का वनस्पति पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होता। यहां ऊंचाई तथा तापमान ने वनस्पति प्रदेश निर्धारित किए हैं जलवायु और धरातलीय स्वरूप में अंतर होने के कारण ही भारत में उच्च और शीतोष्ण कटिबंधीय दोनों ही प्रकार की वनस्पति पाई जाती है।
  2. सूर्य का प्रकाश- सूर्य का प्रकाश पौधों की वृद्धि में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया हेतु काफी महत्वपूर्ण तत्व है।
    वनस्पतियों के प्रकार-
  3. आद्र उष्णकटिबंधीय सदा रहित एवं अर्ध सदा रहित वनस्पति
  4. उष्णकटिबंधीय आंध्र पर्णपाती वनस्पति
  5. उष्णकटिबंधीय शुष्क वनस्पति
  6. ज्वारीय वनस्पति
  7. पर्वतीय वनस्पति
    आद्र उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनस्पति- यह उष्णकटिबंधीय वर्षा वन है जिन्हें उनकी विशेषताओं के आधार पर दो प्रकार में बांटा जाता है
  8. आद्र उष्णकटिबंधीय सदाबहार बनस्पति- यह उन प्रदेशों में पाई जाती है जहां वार्षिक वर्षा 300 सेंटीमीटर से अधिक तथा संस्कृति बहुत छोटी होती है। पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग, केरल तथा कर्नाटक प्रकार की वनस्पति पाई जाती है।है।यह 1 घने होते हैं तथा हरित पैरों से युक्त होते हैं। इनकी लंबाई 60 मीटर या इससे अधिक होती है। महोगनी, सिनकोना, बांस तथा ताल इन वनों में पाए जाने वाले खास पेड़ हैं। इन पेड़ों की लकड़ी अधिक कठोर व भारी होती है।
  9. आद्र उष्णकटिबंधीय अर्थ सदा रहित वनस्पति- यह आदर सदा रहित वनस्पति तथा आदर शीतोष्ण पढ़ पाती वनस्पति के मध्यवर्ती भागों में पाई जाती है। इस प्रकार की वनस्पति अंडमान निकोबार दीप तथा मेघालय के पठार ओं में पाई जाती है इन वनों की लकड़ी दानेदार अच्छे किस्म की होती है। रोजवुड, एनी तथा सहा दरी इन वनों के प्रमुख वृक्ष है।
  10. आद्र उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वनस्पति- यह भारत की सबसे विस्तृत वनस्पति है जो कि 100 सेंटीमीटर से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र में पाई जाती है। प्रायद्वीपीय पठार तथा शिवालिक में हिमालय पहाड़ियों के क्षेत्रों में पाई जाती है। यह खासतौर पर मानसूनी वनस्पति है। सागवान, साल, चंदन, शीशम इन वनों के मुख्य वृक्ष है।
  11. शुष्क उष्णकटिबंधीय वनस्पति- यह वनस्पति को भी दो भागों में बांटा गया है-
    शुष्क पर्णपाती- यह वनस्पति उत्तर प्रदेश के कुछ भाग, गुजरात, महाराष्ट्र ,आंध्र प्रदेश आदि क्षेत्रों में पाई जाती है।
    शुद्ध उष्णकटिबंधीय कटीली बनस्पति- 70 सेंटीमीटर से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है इसमें भारत के उत्तरी व उत्तरी पश्चिमी भाग शामिल है। बबूल, कैक्टस इस वनों के मुख्य वृक्ष है।
  12. ज्वारीय वनस्पति- इस प्रकार की वनस्पति मुख्य रूप से गंगा, महानदी, गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के डाटा प्रदेशों में पाई जाती है मैनग्रोव इस प्रकार की प्रतिनिधि वनस्पति है। यह पश्चिम बंगाल के डाटा के निचले भाग में बहुतायत से पाया जाता है जिस कारण उसे सुंदरवन कहा जाता है। यह अपनी टिकाऊ लकड़ी के लिए भी जाना जाता है।
    5.पर्वतीय वनस्पति- उत्तरी तथा प्रायद्वीपीय पर्वतीय श्रेणियों के तापमान तथा अन्य मौसमी दशाओं में अंतर होने के कारण दो पर्वत समूह की प्राकृतिक वनस्पति में अंतर पाया जाता है दो भागों प्रायद्वीपीय पठार की पर्वतीय वनस्पति तथा हिमालय श्रेणियां कि पर्वतीय वनस्पति के रूप में बांटा गया है
  13. १. प्रायद्वीपीय पठार की वनस्पति- पठारी प्रदेश के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में नीलगिरी, अन्नामलाई सतपुड़ा आदि क्षेत्रों में या वनस्पति पाई जाती है। अधिक ऊंचाई पर पाए जाने वाले ऐसे बनो की सघनता ज्यादा है। सिनकोना तथा यूकेलिप्टस के वृक्ष विदेशों से लाकर यहां लगाए गए हैं।
  14. २. हिमालय श्रेणियों की वनस्पति- हिमालय पर्वतीय प्रदेश में बढ़ती हुई ऊंचाइयों पर विभिन्न प्रकार की वनस्पति पाई जाती है अदरक उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन शिवालिक श्रेणियों के क्षेत्रों में हजार मीटर की ऊंचाई तक पाए जाते हैं। आद्र शीतोष्ण कटिबंधीय सदा रहित वन 1000 से 3000 मीटर की ऊंचाइयों के मध्यवर्ती क्षेत्रों में पाए जाते हैं देवदार तथा स्प्रूस इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। सुरक्षित उसने वनस्पति इस पर्वतीय प्रदेशों की अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ी डालो पर पाई जाती है। अल्पाइन वनस्पति 3000 से 4000 मीटर की ऊंचाइयों के मध्य पाई जाती है जो की कंपनी होती है हिम रेखा की ओर बढ़ने पर पेड़ों की ऊंचाई क्रमशः कम होती जाती है।

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