1.भारत में विदेशी निवेश नीति से आप क्या समझते हैं?
2.प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की व्याख्या करें?
3. खुदरा बिक्री से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार का वर्णन करेंं.
4. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति के क्या मायने हैंै?
5. निवेशकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले प्रवेश मार्गों की व्याख्या करें .
6.बहू ब्रांड खुदरा बिक्री से आप क्या समझते हैं?
7.विदेशी पोर्टफोलियो निवेश से क्या समझते हैंं?
विदेशी निवेश कि वास्तव में दो प्रमुख भाग होते हैं एक जिसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहते हैं और दूसरा विदेशी संस्थाओं द्वारा निवेश जिसे आजकल हम विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक से जानते हैं। भारत परियोजनाओं में विदेशी शेयर निवेश तथा इसका मुख्य उद्देश्य है व्यवसाय को सीधा नियंत्रित करना। या शेयर निवेश किसी मौजूद कंपनी अथवा नहीं कंपनी में देश में चलने वाली विभिन्न परियोजनाओं में किया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य होता है नई कंपनी में देश में वाणिज्यिक व्यवसाय करना। एक विदेशी निवेशक शेयरों के माध्यम से देश में कितना निवेश करता है उसे हम क्षेत्रीय परिसीमन कहते हैं। जो कि सरकार द्वारा समय-समय पर प्रेस नोट के माध्यम से निर्धारित किया जाता है प्रेस नोट औद्योगिक नीति एवं प्रोन्नति विभाग वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी किया जाता है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की कुछ पहलुओं पर हमें ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि सर्वप्रथम यानी देश को तो व्यवसाय मुनाफे के लिए होता है इन के माध्यम से आधुनिक टेक्नोलॉजी ज्ञान एवं व्यावसायिक प्रबंधन लड़के भी देश में आते हैं। जैसा कि हमने पहले भी देखा है की एफडीआई का उद्देश्य मुनाफा कमाना है परंतु या मुनाफा तुरंत प्राप्त होना शुरू नहीं होता है इसमें समय लगता है इन कंपनियों को हानि रहित व्यापार स्तर तक पहुंचने में ही काफी समय लग जाता है और जिसके बाद मुनाफा शुरू होता है जब भी मुनाफा कमाने लगते हैं तब पूरा मुनाफा नहीं उसका प्रतिशत ही विदेश जाता है एफबीआई के माध्यम से विदेशी मुद्रा का निवेश मुख्यता शेयर बाजार कारपोरेट ऋण तथा सरकारी प्रतिभूतियों के लिए किया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य उपरोक्त निवेश से लाभ कमाना है निवेश अल्पकाल के लिए अत्यंत चलायमान होते हैं यदि million-dollar शेयर बाजार में आते हैं तो एक रात में बाहर भी जा सकते हैं इनकी उपस्थिति बाजार में तभी तक होती है जब तक वातावरण उपयुक्त है जरा सी भी अनिश्चितता की स्थिति मैं विदेशी निवेश बाजार से सबसे पहले बाहर निकलता है। इस प्रकार के निवेश को पोर्टफोलियो निवेश कहते हैं।

भारत में विदेशी निवेश की शुरुआत धीरे-धीरे सावधानी से एक-एक कदम लेकर की गई है प्रथम भारत की विदेशी निवेश नीति की शुरुआत चुने हुए क्षेत्रों में उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों तक सीमित थी। इसके बाद हाईफर्न उत्पादों का नवंबर आया। विदेशी कंपनियां भारत में निवेश के लिए संयुक्त उद्यम के रूप में आ सकती थी जिसमें भारतीय कंपनियां हिस्सेदार हो उदाहरण के लिए मारुति सुजुकी, अकाई बुश, टाटा यदोगावा आदि। विदेशी कंपनियों को यह भी अनुमति मिल गई कि वे अपने ब्रांड का नाम का इस्तेमाल बिना भारतीय हिस्सेदारी के भी कर सकते हैं इसके अतिरिक्त उठाए गए कदमों में मुनाफा संतुलन की दृष्टि से कंपनियों को अपना मुनाफा विदेश भेजने के लिए समान मूल्य का निर्यात करना अनिवार्य था। इस श्रेणी के 22 उद्योगों के लिए सरकार ने यह प्रतिबंध समाप्त कर दिया। वर्तमान में लगभग पूरी अर्थव्यवस्था विदेशी निवेश के लिए खोल दी गई है और ज्यादातर क्षेत्रों में 100% एफडीआई जैसे पेट्रोलियम क्षेत्र, सड़क निर्माण, दवाइयां, फार्मासिस्ट यूकल होटल एवं पर्यटन आदि की अनुमति है। सरकार ने विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए स्वचालित मार्ग में फास्ट ट्रैक तंत्र की स्थापना की है जिसके माध्यम से क्षेत्रीय परिसीमन का ध्यान रखते हुए की स्थापना करना सरल हो गया है जिनके लिए औद्योगिक लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है और जिनका भारत में पहले से कोई संयुक्त उद्यम मौजूद नहीं है। किसी एक देश की कंपनी का दूसरे देश में किया गया निवेश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहलाता है। ऐसे निवेश से निवेशकों को दूसरे देश की उस कंपनी के प्रबंधन में कुछ हिस्सा हासिल हो जाता है जिसमें उसका पैसा लगता है। चिंतित उद्यम के प्रबंधन में भाग लेने के लिए आदेश में मौजूदा विदेशी उद्यम के शेयरों का अधिग्रहण कर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया जा सकता है। इसके साथ ही मौजूदा उद्यम और कारखानों पर भी, 100% स्वामित्व के साथ एक नई सहायक कंपनी विदेशों में स्थापित करके , यह शेयर धारिता के माध्यम से एक संयुक्त उद्यम में भाग लेने के लिए संभव है,। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रौद्योगिकी उन्नयन विस्तार उद्योग में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने, पूंजीगत स्टॉक में वृद्धि बुनियादी ढांचा आधार को मजबूत करने में सहायता करता है इससे हमें काफी क्षेत्र में लाभ मिलती है जैसे जुटाने निवेश के अस्तर, प्रौद्योगिकी के अपग्रेडेशन, नडियाद प्रतिस्पर्धा में सुधार, रोजगार सृजन, उपभोक्ताओं को लाभ। इससे हमें काफी हानि भी होती है जैसे विदेशी निवेश के घर निवेश के साथ प्रतिस्पर्धी हो गए हैं जिसे घरेलू उद्योगों के मुनाफे में गिरावट आती है तथा कॉर्पोरेट करो के माध्यम से सार्वजनिक राजस्व के लिए विदेशी कंपनियों का योगदान है क्योंकि मैं जवान सरकार द्वारा प्रदान की गई उदार कर निवेश भत्ते सार्वजनिक सब्सिडी और टैरिफ सुरक्षा के अपेक्षाकृत कम है।

आगामी बिक्री या प्रसंस्करण की बिक्री की तुलना में अंतिम खपत के लिए की जाने वाली बिक्री को खुदरा कहते हैं। अतः इसे अंतिम उपभोक्ता के लिए की गई बिक्री भी कहते हैं। खुदरा बिक्री को उत्पादक और व्यक्तिगत उपभोक्ता जो व्यक्तिगत जरूरी के लिए खरीदारी करता है के बीच का संबंध कहते हैं। इसमें निर्माता और सरकार एवं अन्य थोक उपभोक्ताओं जैसे संस्थागत खरीदारों के बीच का प्रत्यक्ष संबंध शामिल नहीं होता है। खुदरा विक्रेता उत्पादक और वितरण श्रृंखला के साथ व्यक्तिगत उपभोक्ता को जोड़ने वाली अंतिम कड़ी होती है। खुदरा उद्योग के दो प्रकार हैं पहला संगठित खुदरा बिक्रीः इसका अर्थ होता है व्यापारिक गतिविधियां लाइसेंस धारी खुदरा विक्रेताओं द्वारा की जाएगी अर्थात वैसे विक्रेता जो बिक्री कर आयकर आदि के लिए पंजीकृत हैं। इसमें कॉरपोरेट समर्थित हाइपरमार्केट और रिटेल चेन शामिल है। इसमें निजी स्वामित्व वाले बड़े खुदरा व्यापारी भी आते हैं। दूसरा है असंगठित खुदरा बिक्रीः यह कम लागत वाली खुदरा बिक्री के परंपरागत प्रारूप को बताता है उदाहरण के लिए स्थानीय किराना की दुकान, जनरल स्टोर, सुविधा स्टोर हस्तशिल्प और फुटपाथ के विक्रेता आदि। सरकार ने मल्टीब्रांड खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए 14 सितंबर 2012 को कई कदम उठाए जिसके बाद भारतीय बाजारों अर्थव्यवस्था के प्रति निवेशकों का विश्वास और भी बढ़ गया। सरकार ने 21 जून 2016 को ऑनलाइन रिटेल प्लेटफार्म के क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी इसके साथ ही कई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नियमों में भी डाल दी। भारतीय खुदरा क्षेत्र बहुत खंडित है। इसके व्यापार का 97% और संगठित खुदरा व्यापारियों द्वारा संचालित होता है। खुदरा व्यापार अपने आरंभिक चरण में हैं। मुद्रा व्यापार उद्योग में एफडीआई के आने से आगामी 10 वर्षों में करीब 10 मिलीयन रोजगार के सृजन की संभावना है। कृषि के बाद रोजगार की दृष्टि से खुदरा क्षेत्र सबसे बड़ा स्रोत है ग्रामीण क्षेत्र में इसकी गहरी पैठ है। जो कि भारत के जीडीपी का 12% से भी अधिक का योगदान करता है। खुदरा उद्योग कृषि क्षेत्र की स्थिति में सुधार लाता है क्योंकि जब यह खुदरा व्यापारी सीधे किसानों से सामान खरीदते हैं तो इससे सब्जी और अन्य वस्तुओं के मूल्य में कमी आती है।

किसी एक व्यक्ति या कंपनी द्वारा दूसरे देश में किया गया निवेश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहलाता है। इसके अंतर्गत विदेशी कंपनी घरेलू देश में नई कंपनी शुरू कर यहां के बाजार में प्रवेश करती है या वह किसी भारतीय कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम भी बना सकती है अथवा का पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी अर्थात सब्जी डायरी भी शुरू कर सकती है। भारत सरकार का वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय निरंतर आधार पर एफडीआई नीति एवं क्षेत्रीय नीति में होने वाले बदलावों की निगरानी और समीक्षा के लिए नोडल एजेंसी है एफडीआई नीति को औद्योगिक सहायता सचिवालय, औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग द्वारा प्रेस नोट के माध्यम
से अधिसूचित किया जाता है। विदेशी निवेशक भारत में कुछ क्षेत्रों को छोड़कर निवेश करने को स्वतंत्र हैं। फिर कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां निवेश करने से पूर्व उन्हें आरबीआई या विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड से अनुमति लेने की आवश्यकता होती है। सरकार ने मल्टीब्रांड खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए 14 सितंबर 2012 को कई कदम उठाएं जिसे भारतीय बाजार और अर्थव्यवस्था के प्रति निवेशकों का विश्वास काफी बढ़ चुका है। सरकार ने मल्टीब्रांड खुदरा व्यापार में 51% तक एफबीआई को हरी झंडी देने का फैसला लिया तथा कहा कि कुल एफडीआई का कम से कम 50% शुरुआती एफडीआई के 3 वर्ष के भीतर बुनियादी ढांचे के आखिरी दौर में निवेश किया जाए सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि निर्मित यात्रा संस्कृत उत्पादकों की कम से कम 30% खरीद लघु उद्योगों से होनी चाहिए जिनका संयंत्र और मशीनरी में कुल निवेश हो और जो 1000000 अमरीकी डॉलर से अधिक नहीं है। हरा की 24 जनवरी 2006 से पहले खुदरा क्षेत्र में एफडीआई अधिकृत नहीं थे ज्यादातर आम निवेशक ही देश में काम कर रहे थे।

निवेशक को द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले प्रवेश मार्गों की व्याख्याः
विशेष विक्रय अधिकार समझौताः भारतीय बाजार में प्रवेश करने का यह सबसे सरल मार्ग है। चाचाजी और कमीशन एजेंट सर्विसेज में विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम के तहत भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमोदन के साथ एफडीआई की अनुमति है। यह फूड बॉन्डेज के प्रवेश के लिए सबसे सामान्य मोड़ है। पिज्जा हट जैसे क्विक फुड बॉन्ड के अलावा एडिडास, रीबॉक, अमेजॉन और कोलमैन जैसे खिलाड़ी भी भारत में इसी रास्ते से आए थे।
कैश एंड कैरी होलसेल ट्रेडिंगः थोक व्यापार में 100% एफडीआई की अनुमति है। इसमें स्थानीय निर्माताओं की सहायता करने के लिए बड़े वितरण संरचना का निर्माण शामिल है। थोक व्यापारी सिर्फ छोटे खुदरा व्यापारियों से सौदा करते हैं। उपभोक्ताओं से सौदा नहीं करते। जर्मनी का मेट्रो एजी इस मार्ग के माध्यम से भारत में प्रवेश करने वाला पहला महत्वपूर्ण वैश्विक खिलाड़ी था।
सामरिक लाइसेंस समझौताः कुछ विदेशी ब्रांड भारतीय कंपनियों को विशेष लाइसेंस और वितरण अधिकार प्रदान करते हैं। इन अधिकारों के जरिए भारतीय कंपनियां उनके उत्पादों को या तो अपनी दुकानों के माध्यम से बेचती है या शॉप इन शॉप एग्रीमेंट्स में प्रवेश करती है या फ्रेंचाइजी ओ को ब्रांड बांट देती है। मैंगो, भारत में पिरामिड ब्रांड के साथ समझौता कर इसी माध्यम से आया।
विनिर्माण और पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियांः नाइकी, रीबॉक एडिडास आदि जैसी विदेशी ब्रांड जो भी निर्माण के क्षेत्र में पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों की मालिक है भारतीय कंपनियां समझी जाती है और इसलिए इन्हें खुदरा व्यापार करने की अनुमति दी गई है। इन कंपनियों को फ्रेंचाइजी, घरेलू वितरकों, मौजूदा भारतीय खुदरा व्यापारियों, खुद की दुकानों आदि के माध्यम से भारतीय उपभोक्ताओं को अपने उत्पाद बेचने के लिए अधिकृत किया गया है। जैसे नाइकी ने सिएरा इंटरप्राइजेज के साथ एक्सप्लोसिव लाइसेंस इन एग्रीमेंट के माध्यम से प्रवेश किया था लेकिन अब इसके पास पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी नाइकी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड है।

बहु ब्रांडः सरकार ने बहु ब्रांड शब्द को भी परिभाषित नहीं किया है। बहु ब्रांड खुदरा बिक्री में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अर्थ है खुदरा बिक्री करने वाले दुकान बिदेशी निवेश के साथ एक ही छत के नीचे कई ब्रांडों की वस्तुओं की बिक्री कर सकते हैं। सरकार ने मल्टीब्रांड खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के के लिए कई महत्वपूर्ण ठोस कदम उठाएं जैसे भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक सुधर गई। एफडीआई को इसके लिए विभिन्न जरूरत है जैसे कि देश की अर्थव्यवस्था के विकास के लिए घरेलू पूंजी पर्याप्त नहीं है, विदेशी पूंजी आमतौर पर जरूरी होती है तथा कम से कम अस्थाई उपाय के तौर पर उस अवधि के दौरान जब पूंजी बाजार विकास की प्रक्रिया में हो, विदेशी पूंजी आमतौर पर अपने साथ तकनीकी जानकारी, व्यापार विशेषज्ञता और व्यापार के नवीनतम रुझानों के बारे में जानकारी जैसे अनूठी उत्पादक कारकों को भी लाती है। एफडीआई से देश को काफी लाभ होता है जैसे विदेशी मुद्रा स्थिति में सुधार, रोजगार सृजन और उत्पादन में बढ़ोतरी, नए पूंजी को लाने के साथ पूंजी निर्माण में मदद, नई प्रौद्योगिकियों, प्रबंधन कौशलों तथा बौद्धिक संपदा के हस्तांतरण में मदद। स्थानीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा बढ़ाना, निर्यात में मदद तथा कर राजस्व में बढ़ोतरी। भारतीय समाज में किराना स्टोर कीपैठउनकी व्यक्तिगत सेवा की सुविधा आदि के कारण विदेशी रिटेल व्यवसाय अपनी विशेषताओं के बावजूद कभी भी स्थानीय किराना स्टोर की जगह नहीं ले सकता। इसका अर्थ यह है कि किराना स्टोर को वॉलमार्ट से आशंकित होने की आवश्यकता नहीं है। भारत में एफडीआई का प्रवेश सबसे पहले सेवा क्षेत्र की ओर उन्मुख था जो कि बाद में आईटी कंप्यूटर सॉफ्टवेयर तथा दूरसंचार में लगभग 50% तक पहुंच गया। एसबीआई के विस्तार के संबंध में एक परेशान करने वाला तथ्य यह है कि सभी राज्यों में समान भाव से वितरित ना होकर पोषित व्यापार एवं कंपनियों का विकास अधिकतर दक्षिण राज्य तथा दिल्ली मुंबई और गुजरात में हुआ है। कुछ राज्य खनिज पदार्थ और प्राकृतिक संपदा से संपन्न है परंतु फिर भी वे विदेशी निवेश को आकर्षित नहीं कर सके। दूसरे देशों की अपेक्षा भारत अपनी विशेषताओं के कारण एक लाभप्रद ठिकाना है परंतु इन्हें अवसरों में बदलना हमारी जिम्मेदारी है। इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भली-भांति प्रचारित करना जिससे विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सके।

पोर्टफोलियो संस्था या व्यक्ति द्वारा किए गए निर्देशों का एक उचित संयोजन या संग्रह होता है। यह विदेशी निवेश का दूसरा पहलू है प्रवृत्ति काफी चंचल होती है। एक विदेशी पोर्टफोलियो निवेश स्टॉक, ब्रांड और नकद संकट जैसी परिसंपत्तियों का एक समूह है ज्योति सीधे एक निवेशक द्वारा या वित्तीय पेशेवरों द्वारा प्रबंधित किया जाता है। एफडीआई की ऊपरी सीमा पर समय-समय पर लगाए गए सरकार प्रतिबंध के साथ एफडीआई निवेश कॉरपोरेट ऋण पत्रों तथा सरकारी प्रतिभूतियों में किया जा सकता है। एफडीई को एसबीइआई के यहां सूचीबद्ध होना पड़ता है तभी या भारतीय शेयर बाजार में निवेश कर सकता है। एफडीआई से संबंधित दो मुद्दों के बारे में जानना हमारे लिए अति आवश्यक है पहला भागीदारी नोट माध्यम से वे कंपनियां जो एसीबीआई के साथ सूचीबद्ध नहीं है शेयर बाजार में निवेश कर सकती है इसके लिए पहले से रजिस्टर्ड कंपनी का पीएन प्राप्त करना होगा। देश में अधिकतर FDI इसी PN के माध्यम से हुआ है इसमें एक कठिनाई सामने यह आई है भारतीय शेयर बाजार उन कंपनियों के लिए उपलब्ध हो गया है जिसका ना तो ठीक नाम, पता, राष्ट्रीयता और ना ही निवेश करने का उद्देश्य स्पष्ट है।। भारतीय शेयर बाजार का एक बड़े व्यवसाई के तौर पर उभरने और उसमें गहराई का भी श्रेय एफडीआई के निवेश को जाता है हम पहले भी यह कह चुके हैं एफडीआई निवेश काफी चंचल प्रकृति के होते हैं ऑडी ने शेयर बाजार में उल्टी हालत पैदा करने में बहुत कम समय लगता है। FDI के माध्यम से पूंजी प्रवाह की अधिक ता उभरती अर्थव्यवस्थाओं में देखते हुए कई देश, जैसे ब्राजील चीन ने अल्पकाल के पूंजी आगमन पर टैक्स लगा दिया है जिसे टोबिन टैक्स कहते हैं। भारत ने अभी तक इस प्रकार का कोई टैक्स नहीं लगाया है क्योंकि वर्तमान में एफडीआई आगमन मैहर का मन की स्थिति आरामदायक और अर्थव्यवस्था के असंतुलित रखने की प्रवृत्ति नहीं रखती। इस प्रकार के प्रस्ताव पर विचार कर सकते हैं जब पूंजी आगमन अत्यधिक हो अथवा अचानक बहिर्गमन हो जिससे अर्थव्यवस्था के संतुलन पर दबाव पड़े।