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भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण का सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव का उल्लेख करेंः

वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया है। इसे एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का एक संयोजन है। यह एक लंबी सदी से चलने वाली प्रक्रिया है जो मानव जनसंख्या और सभ्यता के विकास पर नजर रखती है। 17 वी सदी में वैश्वीकरण एक कारोबार बन गया जब डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई जो अक्सर पहला बहुराष्ट्रीय निगम कहलाती है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में उच्च जोखिम के कारण डच ईस्ट इंडिया कंपनी दुनिया की पहली कंपनी बन गई जिसने स्टॉक के जारी शेयरों के माध्यम से कंपनियों के जोखिम और संयुक्त स्वामित्व को शेयर किया यह वैश्वीकरण के लिए एक महत्वपूर्ण संचालक रहा। 19 वी सदी को कभी-कभी वैश्वीकरण का प्रथम युग भी कहा जाता है वैश्वीकरण की वास्तविक शुरुआत 16 वीं शताब्दी में पुर्तगाली के विस्तार बाद के बाद हुई थी यह वह काल था जिसमें वर्गीकरण यूरोपीय शक्तियों, उनके उपन्यासों और बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच तेजी से बढ़ते अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश के आधार पर किया गया। यह वही काम था जब उप सहारा अफ्रीका के और प्रशांत विश्व प्रणाली में शामिल हो गए। वैश्वीकरण का प्रथम युग के टूटने की शुरुआत बीसवीं शताब्दी में प्रथम विश्व युद्ध के साथ हुई और बाद में 1920 के दशक के अंतर 1930 के दशक की शुरुआत में स्वर्ण मानक संकट के दौरान यह ध्वस्त हो गया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से वैश्वीकरण मुख्य रूप से व्यापारिक हितों और राजनीतिज्ञों के नियोजन का परिणाम है।


भारत में वैश्वीकरण का सकारात्मक प्रभावः


उत्पादों की किस्मेंः कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में अपनी पूंजी निवेश करती है अतः भारतीय उपभोक्ता गुणात्मक तथा कई किस्मों के उत्पादन न्यून दरों पर प्राप्त कर सकता है।
आधारभूत ढांचे में विकासः इस योजना के कारण आधारभूत ढांचे की स्थिति में मानक रूप से सुधार हुआ है। स्वर्ण चतुर्भुज का निर्माण कर रही है जो सभी मुख्य शहरों को आपस में जुड़ेगा तथा संचार क्षेत्र में अधिक प्रगति देखने को मिलेगा।
भारतीय कंपनियों के लिए वृद्धिः इस योजना के कारण निजी क्षेत्रों का अधिक तेजी से लाभ कमाते हैं अब निजी क्षेत्र के अन्य देशों से कच्चे माल तथा तकनीक के आयात के लिए स्वतंत्र हैं। आया तथा निर्यात पर से कई प्रतिबंध हटा दिया गया है। वैश्वीकरण कुछ योग्य बड़ी भारतीय कंपनियां रखता है जो अपने आप में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभरी है जैसे कि टाटा मोटर्स, इंफोसिस, रैनबेक्सी, एशियन पेंट। जो अपने विश्व विस्तार संचालन में फैल रही है।
सेवा क्षेत्र के लिए वृद्धिः वैश्वीकरण सेवा देने वाली कंपनियों विशेष रूप से वे जिनमें सूचना तथा संचार तकनीकी शामिल है के लिए नए अवसर निर्माण करती है।
विदेशी मुद्रा तथा विदेशी समक्ष निवेशः विदेशी मुद्रा नई आर्थिक योजना के कारण बड़े विस्तार को कई गुना करती है। विदेशी समझ निवेश जो 1991 में 174 करोड रुपए था 2000 में 9338 करोड बढ़ गया।
आधुनिक व्यापार का वैश्विक रूपः वैश्वीकरण के कारण व्यापार अब विश्व में आने लगा है। अब भारत माल का आयात और निर्यात भी करता है तथा इससे भारत की अर्थव्यवस्था भी काफी अस्तर तक सुधर चुकी है हमारे व्यवसाय भी सभी प्रकार के विदेशी बाजार में अपनी पहुंच जमा चुके हैं।
होड़ में वृद्धिः वैश्वीकरण की प्रक्रिया तथा उदारीकरण विभिन्न उद्योगों के बीच प्रतिस्पर्धा की वृद्धि करती है। यह और निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र की दक्षता तथा उत्पादकता में वृद्धि करते हैं।

भारत में वैश्वीकरण का नकारात्मक प्रभावः
श्रमिकों का शोषणः
बहुराष्ट्रीय कंपनियों को विस्तृत वैश्विक संपर्क सा सस्ती वस्तुओं के लिए उनके लाभ को बढ़ाने के क्रम में देखा जाता है। श्रमिकों को अधिक घंटे काम करने तथा श्रेष्ठ समय के दौरान नियमित आधार पर रात्रि पाली में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। श्रमिक वैश्वीकरण द्वारा हुए लाभ के सही साझे के लिए मना करते हैं।
कृषि के लिए कम महत्वः वैश्वीकरण की नई आर्थिक योजना भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र के महत्व को नकार ती है।
निर्भरता उपशमन में असफलः यह गरीबी की समस्या को सुलझाने में असमर्थ है जो कि भारत की सबसे बड़ी आर्थिक समस्या है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया अमीर तथा गरीब के बीच के अंतर को बढ़ाती है जिससे आपसी परेशानियां बढ़ती चली जाती है
लघु उद्योगों के लिए समस्याः
बहुराष्ट्रीय कंपनियां उन वस्तुओं के निर्माण में जो लागू करवाने के लिए आरक्षित के उत्पादन में प्रवेशित है। लघु पैमाना उद्योग बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्पर्धा में असमर्थ होता है।
प्रतिस्पर्धा तथा अनिश्चित रोजगारः वैश्वीकरण तथा प्रतिस्पर्धा का दबाव श्रमिकों के जीवन को पूर्ण रूप से परिवर्तित करता है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के विरुद्ध अधिकांश कर्मचारी इन दिनों कार्य करने वाले मजदूरों को लचीले बनाते हैं जिसका अर्थ है कि श्रमिकों की नौकरियां अधिक समय तक सुरक्षित नहीं है।


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