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भारत में बैंकिंग सुधार के दौर का वर्णन करें!
नाबार्ड क्या है ? इसके क्या कार्य है? संबंधित कार्यों का वर्णन करें ।

भारत के बैंकिंग क्षेत्र में सुधारः भारत में बैंकिंग क्षेत्र में एक सेवा प्रधान क्षेत्र है। जिसका उद्देश्य वस्तुओं का निर्माण और विक्रय ना होकर सेवाएं प्रदान करना है। सेवाओं की उपयुक्तता प्रभाव कारिता एवं लाभदायक ता हेतु यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि बैंक कर्मचारियों को बैंकिंग विधि, नीतियां प्रक्रिया का पर्याप्त ज्ञान हो। एक विकासशील वातावरण की रचना हेतु हमारे बैंक वर्तमान में अपनी गतिविधियों एवं प्रतिक्रिया में समय की पुकार के अनुकूल क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में प्रयत्नशील है जिसके लिए बैंक कर्मचारियों के शिक्षण एवं प्रशिक्षण हेतु देश में अनेक प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जा चुकी है। बैंकिंग सबसे अच्छा और लोकप्रिय क्षेत्र है। अच्छा वेतन, सुरक्षित भविष्य और प्रतिष्ठित करियर का यह प्रवेश द्वार है। भारत में बैंकिंग की नौकरी की पर्याप्त संभावनाएं मौजूद है।


बैंकिंग सुधार का दौरः


सार्वजनिक व्यापारिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण की असफलताओं को ध्यान में रखकर 14 अगस्त 1991 में भारत सरकार ने देश की कार्यप्रणाली एवं वित्तीय प्रणाली की संरचना में सुधार करने के लिए आवश्यक सुझाव देने हेतु श्री एम नर्सिंग होम की अध्यक्षता में एक समिति गठित की अपनी रिपोर्ट 20 नवंबर 1991 को प्रस्तुत की। समिति ने व्यापारिक बैंकों की गिरती लखदाता के लिए सार्वजनिक दायित्व से बंधे होने के कारण गिरती व्यास से आए निरंतर बढ़ती हुई बैंकों की परिचालन लागत को उत्तरदाई माना है। समिति ने पूंजी बाजार में त्वरित एवं प्रभाव पर उदारीकरण की सिफारिश की है विकास से संबंध वित्तीय संस्थाओं के संबंध में यह भी कहा कि इन संस्थाओं को प्रतियोगी दरों पर बाजार से ही संसाधन जुटाने चाहिए। समिति ने निजी क्षेत्र के अंतर्गत ने बैंकों के विस्तार पर कोई नियंत्रण नहीं लगाया कल की बैंकों के ढांचे को पुनः निर्मित करके या सुझाव दिया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जो कि लाभकारी गतिविधियां संपन्न करते हैं अपनी पूंजी बढ़ाने के लिए पूंजी बाजार में बिना किसी रोक-टोक के प्रवेश करने की अनुमति दी जानी चाहिए। केंद्र सरकार ने नरसिंहम समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए अनेक वित्तीय परिवर्तनों का समावेश बजट के अंतर्गत तैयार किया और वित्तीय क्षेत्र के अंतर्गत लाभकारी प्रभावों का विगत वर्षों के बजट से परिवर्तन के संकेत मिलने लगे।


वैश्वीकरण के परिपेक्ष में बैंकिंग सुधारों के लिए गठित दूसरी नरसिंहम समिति ने अपनी रिपोर्ट 23 अप्रैल 1998 को केंद्रीय वित्त मंत्री को सौंपी। आर्थिक समीक्षा के अनुसार भारतीय बैंकिंग प्रणाली में सुधार लाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बावजूद हमारी बैंक की प्रणाली को अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा में आने के लिए सुधारों की आवश्यकता है। इसके लिए वित्तीय निष्पादन को बढ़ाने और उच्च क्षमता को प्राप्त करने में उपायों को अपनाने की आवश्यकता पर ध्यान दिया। बैंकों की परिसंपत्तियों की गुणवत्ता में सुधार, गैर निष्पादन परिसंपत्तियों में कमी, पूंजी पर्याप्तता अनुपात में वृद्धि, बैंकों को राजनीति से मुक्त करने आदि के क्षेत्र में भी सुधार करने की आवश्यकता को जाहिर किया। वित्तीय क्षेत्र में जो व्यापक सुधार पिछले वर्षों में किए गए वह समग्र आर्थिक सुधारों का एक भाग है। बिटिया का समग्र और चित्र वित्तीय प्रणाली की दक्षता एवं कार्य कुशलता को सुधारना एवं एक ऐसी प्रतियोगिता नाली विकसित करना था जिसमें विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके। वर्तमान में हमारे देश में लगभग 22 म्युचुअल फंड कार्यरत है जो फंड पोर्टफोलियो प्रबंधक के रूप में कार्य करते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में क्रेडिट कार्ड व्यवसाय में प्रवेश किया है। इस समय भारत में लगभग 1500000 से भी अधिक लोगों के पास मास्टरकार्ड हैं। ग्रामीण बैंक के संबंध में रिजर्व बैंक ने विशेष रियायती दर पर देने की रणनीति बनाई है की व्यापारिक बैंकों के पास जमा का साजन क्षेत्र के बैंकों के पास सदस्य स्टेट बैंक और उनके सहयोगी बैंकों के पास होगा।
हमारी अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण की दिशा में अग्रसर हो चुकी है। इस दिशा में किए गए बैंकिंग सुधारों की रणनीति में कहीं न कहीं प्रयासों की सफलता में संदेह है। हमारे दृष्टिकोण से भारत में वित्तीय सुधारों के अंतर्गत संरचनात्मक परिवर्तन होना चाहिए साथ ही वित्तीय उदारीकरण में साख उपयोग एवं ब्याज दरों पर लगे नियंत्रण को भी हटाना चाहिए क्योंकि आर्थिक उदारीकरण की इस प्रक्रिया के दौरान देश में सामाजिक आर्थिक परिदृश्य में मध्यवर्ग परिमाणात्मक रूप से बड़ा है एवं उनकी अस्थान छांव में भी वृद्धि हुई है। क्योंकि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप इस दौर में प्रतिकूल आर्थिक मंदी के बावजूद अपनी वित्तीय स्थिति एवं प्रबंधन में सुधार के प्रति गहरी प्रतिबद्धता का परिचय दिया है। उच्च लाभप्रदता के साथ तेजी से विकसित हो रहे व्यवसाय को संभालने में आमूल परिवर्तन की महत्वता की आवश्यकता है।

नाबार्ड( राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक):

यह संसद के एक अधिनियम के तहत राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अर्थात नाबार्ड की स्थापना 12 जुलाई 1982 को की गई। एक विकास बैंक के रूप में नाबार्ड को समन्वित ग्रामीण विकास के संवर्धन और समृद्धि हासिल करने तथा उससे जुड़े मामलों अथवा प्रासंगिक उपायों के लिए कृषि, लघु उद्योग, कुटीर एवं ग्रामोद्योग, हस्तशिल्प, ग्रामीण शिल्प और ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य अनुषंगी आर्थिक गतिविधियों हेतु ऋण उपलब्ध कराने एवं उसका विनिमय करने का आदेश दिया गया।
इसका उद्देश्य सहभागिता, संधारणीयता और समानता पर आधारित वित्तीय और गैर वित्तीय सहयोग, प्रौद्योगिकी और संस्थागत विकास के माध्यम से समृद्धि लाने के लिए कृषि और ग्रामीण विकास का संवर्धन करना है। नाबार्ड का स्वामित्व भारत सरकार के अंतर्गत है। इसका प्रधान कार्यालय मुंबई में है तथा राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में 31 क्षेत्रीय कार्यालय श्रीनगर में एक कच्छ, भारत के उत्तरी पूर्वी दक्षिणी क्षेत्र में तीन प्रशिक्षण संस्थान तथा जिला स्तर पर 423 जिला विकास प्रबंधक है। नाबार्ड में 2386 प्रोफेशनल के सहयोग के लिए 1193 अन्य स्टाफ है। इसका मुख्य कार्य संवर्धन और विकास, पुनर वित्त, वित्त पोषण, आयोजना और अनु प्रवर्तन तथा पर्यवेक्षण सहित नाबार्ड के प्रमुख कार्य हैंः


गैर ऋण संबंधीः

  • कृषि और ग्रामीण विकास से संबंधित मामलों पर भारत सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और राज्य सरकारों को नीति निर्माण में सहयोग ।
  • ग्रामीण ऋण वितरण प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए सहकारी संस्थाओं व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का संस्थागत विकास और क्षमता निर्माण। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों राज्य सहकारी बैंकों और जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों का सांविधिक निरीक्षण और राज्य सरकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों का स्वैच्छिक निरीक्षण करना।
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंकों को वित्तीय समावेशन प्रयासों में सहयोग देना।
  • आजीविका अवसरों और सूक्ष्म उद्यमों के संवर्धन पर बल देना।
  • अनुसंधान और विकास आदि को सहयोग प्रदान देना।

ऋण संबंधीः ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और गैर कृषि गतिविधियों के लिए निवेश ट्रेन और उत्पादन तथा विपणन दिन के लिए ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं को पुनर वित्त।
ग्रामीण आधारभूत संरचनाओं और सहकारी ऋण संरचना के सुदृढ़ीकरण के लिए राज्य सरकारों को ऋण।
राज्य सरकारों, केंद्र सरकार के स्वामित्व, सहकारिताओं के संघों, कृषक उत्पादक संगठनों, कृषक समूह के फेडरेशनो, प्राथमिक कृषि ऋण समितियां अथवा इसी प्रकार की संस्थाओं और कॉरपोरेट्स आदि को भंडारगार संरचनाओं के लिए ऋण उपलब्ध करना।
सहकारिता और उत्पादक संगठनों को प्रत्यक्ष रेन नाबार्ड आधारभूत सुविधा विकास सहायता के तहत राज्य के स्वामित्व वाली संस्थाओं और कॉरपोरेशन को सहायता और व्यक्तियों, कॉर्पोरेट, एनजीओ, कृषक समूहों आदि को प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन कार्यक्रम के तहत प्रत्यक्ष ऋण उपलब्ध कराना।
साझेदार संस्थाएंः
ऋण संबंधीः
अनुसूचित वाणिज्य बैंक
राज्य सरकार
राज्य स्वामित्व निकाय और कॉरपोरेशन
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक

अनुसूचित वाणिज्य बैंकः भारत में अनुसूचित बैंक उन बैंकों को कहा जाता है जी ने भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 134 के द्वितीय अनुसूची में शामिल किया गया है। रिजर्व बैंक की इस अनुसूची में केवल उन बैंकों को ही शामिल करना था जो उपर्युक्त अधिनियम की धारा 42 के मानदंडों का अचरज पालन करते हैं। जून 1999 तक भारत में कुल 300 अनुसूचित बैंक से जिनका कुल नेटवर्क 64958 शाखाओं का था। भारत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक और उसके सहयोगी 8, राष्ट्रीय कृत बैंक 19, विदेशी बैंक 45ं, निजीक्षेत्र के बैंक 32, सहकारी बैंक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक शामिल है। भारत में अनुसूचित बैंकों से अभिप्राय भारतीय स्टेट बैंक जिसका गठन भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम 1955 के तहत हुआ।


ग्रामीण सहकारी बैंकः सहकारी बैंक वह बैंक है जिन का गठन एवं कार्य कलाप सहकारिता के आधार पर होता है विश्व के अधिकांश भागों में सहकारी बैंक है जो लोगों की पूंजी जमा करते हैं तथा लोगों को धन उधार देते हैं। इन बैंकों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र के लिए अधीक्षक सुविधाएं उपलब्ध कराना है जो कि वित्तीय संस्थाओं के समावेशन में सहायक है। इनकी स्थापना राज्य सहकारी समिति अधिनियम के अनुसार की गई थी इनका पंजीकरण रजिस्ट्रार ऑफ कोऑपरेटिव सोसाइटी के पास किया जाता है। इसका नियमन राज्य सरकार तथा भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आंशिक रूप से किया जाता है। इसकी शाखाएं एक राज्य तक ही सीमित होती है।
भारत में सहकारी बैंकों के प्रकारः
प्राथमिक सहकारी साख समितियां
केंद्रीय तथा जिला सहकारी बैंक
राज्य सहकारी बैंक
भूमि विकास बैंक
प्राथमिक सहकारी साख समितियांः
प्राथमिक सहकारी साख समितियां दो प्रकार की होती है प्राथमिक कृषि सहकारी साख समितियां तथा प्राथमिक कृषि सहकारी साख समितियां।
प्राथमिक कृषि सहकारी साख समितियांः इनकी स्थापना गांव और कस्बों में हुई है यह किसानों को साख उपलब्ध कराने का कार्य करती है।
प्राथमिक गैरकृषि सहकारी साख समितियांः इनकी स्थापना कोई नगर या कस्बे में होती है इनमें सदस्य कारीगर मजदूर या दुकानदार होते हैं ऐसी समितियां शहरी क्षेत्रों में शुल्क डेनिश के सिद्धांत पर बनाई जाती है।
केंद्रीय अथवा जिला सहकारी बैंकः. केंद्रीय सहकारी बैंक दो प्रकार के होते हैं पहला वे बैंक जिनमें केवल प्राथमिक समितियों को ही सदस्य बनाया जाता है। तथा दूसरा वी बैंक जिनमें समितियों के अलावा अन्य व्यक्ति को भी सदस्य बना सकते हैं।
इनका कार्य क्षेत्र से संबंधित जिला स्तर पर होता है यह जिले की समस्त प्राथमिक साख समितियों को नियंत्रण करता है।
राज्य सहकारी बैंकः राज्य सहकारी बैंक सहकारी साख संगठन की सर्वोच्च संस्था होती है। जिस प्रकार गांव गांव या मस्ताना स्थान पर फैली हुई साख समितियों के नियंत्रण के लिए पर स्थित केंद्रीय बैंक करता है उसी प्रकार राज्य में भर में फैले हुए समस्त केंद्रीय बैंकों को राज्य सहकारी बैंक संगठित करता है इस रुप से या बैंक समस्त राज्य भर में फैले हुए कृषि सहकारी संस्थाओं के शीर्ष संस्था है।
भूमि विकास बैंकः भूमि विकास बैंक ऑफ बैंक है जो कृषकों को उनकी भूमि बंधक रखकर कृषि विकास कार्यक्रमों के लिए दीर्घकालीन ऋण प्रदान करती है।


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