मानसून एवं उसे प्रभावित करने वाले कारक
मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द मौसिम से हुआ है, जिसका अर्थ है मौसम। यह शब्द हिंदू एवं उर्दू एवं विभिन्न उत्तर भारतीय भाषाओं में भी प्रयोग किया जाता है। अधिकांश ग्रीष्मकालीन मानसून ओं में प्रबल पश्चिमी घटक होते हैं और साथ ही विपुल मात्रा में प्रबल वर्षा की प्रवृत्ति भी होती है इस कारण ऊपर उठने वाली वायु में जलवाष्प की मात्रा प्रचुर होती है। हालांकि इनके 3 बताओ और ऑडी प्रत्येक वर्ष में समान नहीं होती है। मानसून एक भूमंडलीय प्राकृतिक घटनाक्रम है। भारत में मानसून की अवधि 4 महीने यानी 1 जून से 30 सितंबर तक मानी जाती है। समूचे भारत को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है जिनमें तापमान का प्रत्येक भाग में यंत्र द्वारा अध्ययन किया जाता है वातावरण में 6 किलोमीटर और 20 किलोमीटर ऊपर बहने वाली हवा के रुख को अलग-अलग महीनों में नोट किया जाता है। इसके साथ ही मानसून की भविष्यवाणी में वायुमंडलीय दबाव की भी अहम भूमिका होती है। बसंत ऋतु में दक्षिणी भाग का दबाव और समुद्री सतह का दबाव जबकि जनवरी से मई तक हिंद महासागर में विषवुतीय दबाव को मापा जाता है। मानसून की भविष्यवाणी में जनवरी से मार्च तक हिमालय के खास भागों में बर्फ का अस्तर, खेत्र और दिसंबर में यूरेशियन भाग में बर्फबारी की भी अहम भूमिका है।

एशिया और यूरोप का विशाल भूभाग जिसका एक हिस्सा भारत है ग्रीष्म काल में गर्म होने लगता है। इसके कारण उसके ऊपर की हवा गर्म होकर उठने और बाहर की ओर बहने लगती है और जबकि उसके पीछे रह जाता है कम वायुदाब वाला एक विशाल प्रदेश। यह प्रदेश ध्वनि प्रदूषण से वायु को आकर्षित करता है और अधिक वायुदाब वाला एक बहुत बड़ा हिस्सा भारत को घेरने वाले महासागरों के ऊपर क्योंकि सागर, अस्थल भागों में जितना गर्म नहीं होता इसलिए उसके ऊपर भाइयों का घनत्व अधिक रहता है। दक्षिणी पश्चिमी मानसून भारत के दक्षिणी भाग में जून तक पहुंचता है और साधारण का मानसून केरल के जाटों पर जून महीने के प्रथम 5 दिनों में प्रकट होता है। यही सेवा उत्तर की ओर बढ़ता है और भारत के अधिकांश भागों पर जून के अंत तक पूरी तरह छा जाता है।
भारत की को प्रभावित करने वाले कारक अनेक है परंतु इन्हें दो भागों में बांटा गया है-
स्थिति तथा उच्चावच संबंधी कारक
वायुदाब एवं पवन संबंधी कारक
● स्थिति एवं उच्चावच संबंधी कारक-

- अक्षांश- भारत की मुख्य भूमि का अक्षांशीय विस्तार6°4 उत्तरी अक्षांश से37°6 उत्तरी अक्षांश तक एवं देशांतरीय विस्तार68°7 पूर्वी देशांतर से 97°25 पूर्वी देशांतर तक है।
भारत में कर्क रेखा पूर्व पश्चिम दिशा में देश के मध्य भाग से गुजरती है इस प्रकार भारत का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबंध में और कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित भाग उष्णकटिबंधीय पड़ता है।
उष्ण कटिबंध भूमध्य रेखा के अधिक निकट होने के कारण सारा साल अधिक तापमान और कम दैनिक और वार्षिक ताप का अनुभव करता है।
कर्क रेखा से उत्तर स्थित भाग में भूमध्य रेखा से दूर होने के कारण उच्च दैनिक तथा वार्षिक तापांतर के साथ विषम जलवायु पाई जाती है। - हिमालय पर्वत- उत्तर में ऊंचा हिमालय अपने सभी विस्तार ओं के साथ एक प्रभावी जलवायु विभाजक की भूमिका निभाता है
यह पर्वत श्रृंखला उपमहाद्वीप को उतरी पवन से सुरक्षा प्रदान करती है तथा वहां जमा देने वाली या ठंडी पवन उत्तरी ध्रुव रेखा के निकट पैदा हो जाती है।
हिमालय पर्वत मानसून पवनों को रोककर उपमहाद्वीप में वर्षा का कारण बनता है। - समुद्र तट से दूरी- लंबी तटीय रेखा के कारण भारत के विस्तृत तटीय प्रदेशों में समकारी जलवायु पाई जाती है। भारत के अंदरूनी भाग समुद्र के समकारी प्रभाव से वंचित रह जाते हैं ऐसे क्षेत्र में विषम जलवायु पाई जाती है।
- उच्चावच- भारत का भौतिक स्वरूप तथा उच्च व तापमान दिशा इन सभी को प्रभावित करता है। जून और जुलाई के बीच पश्चिमी घाट तथा असम के पावन अभी मुखी ढाल अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं जबकि पश्चिमी घाट के साथ लगा दक्षिणी पठार पवन विमुखी की स्थिति के कारण प्राप्त करता है।
● वायुदाब एवं पौधों से जुड़े कारक- - धरातलीय वायुदाब- शीत ऋतु में भारत का मौसम मध्य एवं पश्चिमी एशिया में वायुदाब के वितरण से प्रभावित होता है। उच्च वायुदाब केंद्र के दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप की और निम्न स्तर पर कल के साथ-साथ पवनों का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है।
मध्य एशिया के उच्च वायुदाब केंद्र से बाहर की ओर चलने वाले धरातलीय ने भारत में शुष्क महाद्वीपीय पौधों के रूप में पहुंचती है यह महाद्वीपीय पवन उत्तर पश्चिम भारत में व्यापारिक पवनों के संपर्क में आती है। - ग्रीष्म ऋतु में मौसम शुरू होने पर जब सूर्य उत्तरायण स्थिति में आता है, तब उपमहाद्वीप के नियमित तथा उच्च दोनों ही अवसरों पर वायु परिसंचरण में उत्क्रमण हो जाता है, जुलाई के मध्य तक धरातल के निकट निम्न वायुदाब पेटी जिसे उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र कहा जाता है उत्तर की ओर खिसक कर हिमालय के लगभग समानांतर जाता है। इस समय तक पश्चिमी जेट प्रवाह भारतीय क्षेत्र से लौट चुका होता है।
आईटीसी जेड निम्न वायुदाब का क्षेत्र होने के कारण विभिन्न दिशाओं से पौधों को अपनी और आकर्षित करता है दक्षिणी गोलार्ध से उष्णकटिबंधीय सामुद्रिक वायु सहित विषवत वृत्त को पार करके समानता दक्षिणी पश्चिमी दिशा में इसी कम दाम वाली पेटी की ओर अग्रसर होता है आदर वायु धारा दक्षिणी पश्चिमी मानसून कहलाती है। - जेट प्रवाह- यह पवन तिब्बत के पठार के समानांतर हिमालय के उत्तर में एशिया महाद्वीप पर चलती है इसलिए इन्हें जेट प्रवाह कहा जाता है। उच्च भूमि इन जेट प्रवाह के मार्ग में अवरोधक का काम करती है। यह एक संकरी पट्टी में स्थित छोभ मंडल में12000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली पश्चिमी हवाएं होती है। जेट प्रवाह की दक्षिण शाखा हिमालय के दक्षिण में पूर्व की ओर बहती है इसका स्तर 200 से 300 मिली बार होता है ऐसा माना जाता है की जेट प्रवाह की यही दक्षिणी शाखा भारत में जाड़े के मौसम पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। जून में प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग पर पूर्वी जल प्रवाह 90 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से चलता है। यह प्रवाह अगस्त में 15 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर तथा सितंबर में 22 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर स्थित हो जाता है। ऊपरी वायुमंडल में पूर्वी जेट प्रवाह सामान्यता 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश से परे नहीं जाता है। पूर्वी जेट प्रवाह उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को भारत में लाता है इसके मार्ग में भारत में सर्वाधिक वर्षा वाले भाग हैं।