प्राकृतिक आपदाएं क्या है का संक्षिप्त विवरण दें।
वह प्राकृतिक घटना जिससे मनुष्य के जीवन या सामग्री को हानि पहुंचे प्राकृतिक आपदा कहलाता है। प्राकृतिक आपदाएं सदियों से मनुष्य के अस्तित्व के लिए चुनौती रहे हैं। वर्तमान में हम प्राकृतिक संसाधनों का इस तरह अंधाधुन इस्तेमाल किए जा रहे हैं जिससे हमारे प्रकृति का संतुलन अस्त-व्यस्त साधारण भाषा में हम कह सकते हैं कि अनियंत्रित हो चुका है। जिससे हमें कई प्रकार के दिक्कतों का सामना करना पड़ता है जैसे कि जंगल में आग, बाढ़, हिमस्खलन, भूस्खलन, भूकंप, ज्वालामुखी, सुनामी आदि।
यह सभी मनुष्य की की गई मनमानी यों का ही नतीजा है साधारण मनुष्य इसे ईश्वर का प्रकोप या गुस्सा भी कहते हैं। आज मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के लिए बनो, जंगलों, मैदानों, पहाड़ों और खनिज पदार्थों का अंधाधुंध दोहन कर रहा है जिसके परिणाम स्वरूप प्राकृतिक आपदाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ऐसी आपदाओं के कारण भारी मात्रा में जानमाल की हानि होती है।
भारत भारत में और उसके आसपास जुड़े कुछ आपदाएं-
1999 में उड़ीसा में महा चक्रवात आया जिसमें 10000 से अधिक लोग मारे गए हैं।
2001 का गुजरात भूकंप जिसमें 20000 से अधिक लोग मारे गए।
2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी से 200000 से अधिक लोगों की जान चली गई। इसमें अंडमान निकोबार दीप समूह, श्रीलंका और दक्षिण भारत ज्यादातर प्रभावित हुए थे।
2014 में जम्मू कश्मीर में भीषण बाढ़ आने से 500 से अधिक लोग मारे गए।
ऐसी प्राकृतिक आपदाएं कुछ समय के लिए आती है पर भारी मात्रा में नुकसान करती है। सभी मकानों परिसरों और शहरों को नष्ट कर देती है जिससे जिसे जान माल का बहुत नुकसान होता है।

प्राकृतिक आपदाओं के विभिन्न प्रकार हैं-
भूकंप- पृथ्वी की सतह के अचानक हिलने को भूकंप या भूचाल कहते हैं इसमें धरती में दरारे पड़ जाती हैं। भूकंप आने से घर मकान इमारतें पुल सड़क सब टूट जाते हैं। 26 जनवरी 2001 में गुजरात में विनाशकारी भूकंप आया था इसमें 20000 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। अप्रैल 2015 में नेपाल में विनाशकारी भूकंप आया था जिसमें 8000 से अधिक लोग मारे गए। भारत में भूकंप को 3 छात्रों में बांटा गया है-
हिमालय क्षेत्र- यह सबसे अधिक भूकंप प्रभावित क्षेत्र माना जाता है। हिमालय क्षेत्रों में 1828 मैं कश्मीर का भूकंप तथा 1991 में आया गढ़वाल भूकंप ब विशेष विनाशकारी था।
गंगा सिंधु का क्षेत्र- हिमालय क्षेत्र के निकट होने के बावजूद भी अधिक विनाशकारी नहीं हैं।
प्रायद्वीपीय क्षेत्र- इस क्षेत्र को पहले स्थिर भूभाग माना जाता था परंतु अभी अभी भूकंप संभावित क्षेत्र में शामिल हो गया है। 1993 में महाराष्ट्र के लातूर जिले में आई भूकंप से 40000 लोगों की मृत्यु हुई।
भूकंप प्रबंधन-
भूकंप आने पर इमारत, बिल्डिंग, मकान, ऑफिस से तुरंत बाहर खुले में आ जाना चाहिए।
भूकंप के समय लिफ्ट का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
जब तक भूकंप के झटके लगते रहे बाहर खुले स्थान में बैठे रहना चाहिए।

सुनामी- महासागरों का तीव्र गति से विस्थापन तरंगों का एक क्रम उत्पन्न करना सुनामी कहलाता है। इन लहरों की गति 400 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है ऊंचाई 15 मीटर से भी अधिक हो सकती है। 26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में सुनामी आने से एक 11 देशों में दो लाख से ज्यादा लोग मारे गए और 1000000 से अधिक लोग बेघर हो गए। इस सुनामी में भारत का दक्षिणी छोर इंदिरा पॉइंट नष्ट हो गया।
सुनामी प्रबंधन-
सुनामी से बचाव के लिए जीवन रक्षक किट बना लेना चाहिए इसमें खाना पानी फोन दवाइयां प्राथमिक उपचार वाली सारी जरूरी चीजें रखी जानी चाहिए।
सरकारी चेतावनी, मौसम विभाग की चेतावनी को ध्यानपूर्वक सुनते रहना चाहिए, क्योंकि ज्यादातर सुनामी भूकंप के बाद आती है।
यदि पशु अजीब व्यवहार करें, पक्षी अस्थान छोड़कर जाने लगे तो यह सुनामी का संकेत होता है।
सुनामी आने से पहले समुद्र का पानी कई मीटर पीछे चला जाता है, इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए
भूस्खलन- यह प्राकृतिक आपदा भूवैज्ञानिक घटना है आधार शैलों या आवरण प्रस्तर का भारी मात्रा में तेजी से खिसक नाही भूस्खलन कहलाता है। बड़े भूस्खलन में पूरी की पूरी पहाड़ी ही नीचे गिर जाती है यह भारी बारिश, भूकंप, धरातलीय हलचल मानवीय कार्यों जैसे पेड़ों की कटाई, चट्टानों को काटकर सड़क, घर बनाने, पानी के पाइपों में रिसाव से होता है। खनन का परिणाम ढालों की तीव्रता, चट्टानों के संस्करण वनस्पति आवरण की मात्रा तथा चट्टानों में वलन और ब्रिनसन पर निर्भर करता है।

भूस्खलन प्रबंधन
भूस्खलन होने पर फौरन उस स्थान से निकल जाना चाहिए ।
अगर आपका घर भूस्खलन के क्षेत्र में है तो ज्यादा से ज्यादा पेड़ चारों तरफ लगाना चाहिए ।पेड़ पहाड़ों को बांधे रखते हैं।
जिस स्थान पर ऊपर से चट्टान गिरने का खतरा हो वहां से दूर रहना चाहिए।
ज्वालामुखी- यह घटना है जिसमें पृथ्वी के भीतर से गर्म लावा राख और गैस का प्रयोग विस्फोट होता है। यह प्रक्रिया धीरे भी हो सकती है और तेज भी। सर्वप्रथम भारत में दक्षिण पठार पर आर्यन युग के धारवाड़ काल में ज्वालामुखी का एक अरब वर्ष पूर्व उदगार हआ। इसका मुख्य केंद्र झारखंड में डालमा श्रेणी था। भारत के अंडमान दीप समूह के नारकोंडम और बैरन में जागृत ज्वालामुखी पाए जाते हैं। इसी वर्ष 2018 मैं ग्वाटेमाला में ज्वालामुखी विस्फोट होने से 33 लोगों की मौत हो गई 20 लोग घायल हुए और 1700000 से अधिक लोग प्रभावित हुए। इसका धूआँ बहुत ही हानिकारक होता है विस्फोट होने पर 100 किलोमीटर से अधिक के दायरे में आकाश में फैल जाता है जिसके कारण हवाई जहाज की उड़ानें रद्द करनी पड़ती है।
ज्वालामुखी प्रबंधन
मौसम विभाग की जानकारियों को लगातार सुनते रहना चाहिए।
ज्वालामुखी राख से अपने मशीनों को बचाने के लिए प्लास्टिक के कवर से ढक देना चाहिए।

चक्रवात- हमारे देश में चक्रवात प्रायर बंगाल की खाड़ी में आते हैं। यह समुद्र की सतह पर निम्न वायुदाब के कारण उत्पन्न होते हैं तेज हवाएं बारिश के साथ गोलाकार रूप में दौड़ती हैं जो समुद्र तट पर जाकर भयंकर विनाश करती है। चक्रवात की जीवन अवधि 5 से 7 दिनों तक रहती है। विश्व में आने वाले कुल चक्र बातों में से 6% भारत में आते हैं।600 किलोमीटर किलोमीटर या इससे अधिक ब्यास वाले चक्रवात अधिक विनाशक और भयंकर होते हैं।
चक्रवाती तूफान के प्रबंधन
आंधी तूफान या चक्रवाती तूफान आने पर घर में ही रहना चाहिए घर से नहीं निकलना चाहिए।
प्राथमिक उपचार किट अपने पास रखना चाहिए
सुखा- मानसून की अनिश्चितता के कारण भारत में औसतन प्रति 5 वर्षों में एक सूखा पड़ता है। सुखा में किसी अस्थान पर कई महीनों सालों तक कोई वर्षा नहीं होती है जिसके कारण भूजल का स्तर गिर जाता है। इस वजह से कृषि बुरी तरह प्रभावित होती है। पालतू पशु पक्षियों मनुष्यों के लिए पेयजल का संकट हो जाता है। सुखा के कारण कुपोषण, भुखमरी मारी जैसी समस्याएं पैदा होने लगती हैं। सुखा के कारण उस स्थान पर किसी फसल की खेती नहीं हो पाती है यह तीन प्रकार का होता है- मौसमी या सुखा, जलीय सूखा, कृषि संबंधी सूखा।

सूखा प्रबंधन
सूखे की समस्या से निबटने के लिए वर्षा के जल का संरक्षण 10 को और प्राकृतिक जलाशयों में करना चाहिए ।
सागर जल ऑल वनीकरण किया जाना चाहिए। जिससे समुद्र के जल को सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सके।
सूखे की समस्या से बचने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए।
ऐसे क्षेत्रों में पानी का करने वाले फैक्ट्री और उद्योगों को बंद करना चाहिए।
हिमस्खलन- पहाड़ों पर बर्फ, मालवा, चट्टान और पेड़-पौधों आदि के अचानक खिसकने की घटना को हिमस्खलन कहते हैं। बर्फ से ढके पहाड़ों पर इस तरह की प्राकृतिक आपदा ज्यादा होती है। लगातार बारिश, भूकंप, जमीन में कंपन, अधिक बर्फबारी ही हिमस्खलन को बढ़ावा देता है।
हिमस्खलन प्रबंधन
हिमस्खलन में गिरने वाले बरसों को रोकने के लिए लोहे के तारों का जाल बनाकर पहाड़ों पर सड़कों की सुरक्षा की जा सकती है।
सॉफ्टवेयर द्वारा पहाड़ी जगह में ऐसे स्थानों का पता लगाया जा सकता है जहां हिमस्खलन आ सकता है।
पहाड़ों पर अधिक से अधिक पेड़ लगाकर, दलानों को काटकर चबूतरा बनाकर, मजबूत दीवार बनाकर हिमस्खलन को रोका जा सकता है।�