1.अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष क्या है ?
2.अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के क्या उद्देश्य हैं ?
3.अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के क्या कार्य हैं ?
4.एसडीआर क्या है?
5.विश्व बैंक से क्या समझते हैं?
6.विश्व बैंक के क्या उद्देश्य है?
7.विश्व बैंक के सदस्यता एवं मताधिकार के बारे में बताएं?
8.विश्व बैंक में कौन-कौन से सुधार किए गए हैं?
9. विश्व बैंक के क्या कार्य हैं?
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एक अंतर सरकारी संगठन है। इसकी स्थापना अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विनिमय दर को स्थित करने के लिए किया गया था 1946 में अमेरिका में ब्रेटन वुड्स के 1944 के समझौते के अंतर्गत इसकी स्थापना हुई। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना औपचारिक रूप से 27 दिसंबर 1945 को हुई। मुद्रा कोष की स्थापना औपचारिक रूप से 1945 में हो गई थी पर इसने मई 1946 से कार्य करना शुरू किया। शुरू में इसके सदस्यों की संख्या 30 थी जो इस समय बढ़कर 187 हो गई है मुद्रा कोष प्रत्येक वर्ष विश्व अर्थव्यवस्था के संबंध में वर्ल्ड इकोनामिक आउटलुक प्रकाशित करता है। परंपरागत रूप में विश्व बैंक प्रेसिडेंट सर्वाधिक आधारित करने वाले देश यूएसए द्वारा नामित होता है तथा उसकी राष्ट्रीयता उसी देश की होती है। मैनेजिंग डायरेक्टर यूरोपियन गवर्नर द्वारा नामित होता है। आईएमएफ का मुख्य कार्यालय वाशिंगटन में है। उसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य विनिमय दरों में स्थायित्व, प्रतियोगिता त्मक अवमूल्यन को रोकना तथा अल्पकालिक भुगतान शेष की समस्याओं से निपटना है। आईएमएफ आर्थिक और सामाजिक परिषद के साथ किए गए समझौते( जीटीए 15 नवंबर 1947 को महासभा की मंजूरी प्राप्त हुई) के उपरांत संयुक्त राष्ट्र का विशिष्ट अभिकरण बन गया। इसका मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में स्थित है।

आईएमएफ का उद्देश्यः
- आईएमएफ के समझौते के अनुच्छेद के अनुसार इसके मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैंः
- अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देना।
- संतुलित अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुनिश्चित करना।
- विनिमय दर की स्थिरता सुनिश्चित करना।
- बहुपक्षीय भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देकर विनिमय प्रतिबंधों को समाप्त या कम करना।
- भुगतान के प्रतिकूल संतुलन को समाप्त करने के लिए सदस्य देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करना।
- अंतरराष्ट्रीय व्यापार की मात्रा और अवधि के असंतुलन को कम करना।
आईएमएफ के कार्यः
आईएमएफ का प्राथमिक काम अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली विनिमय राष्ट्रीय भुगतान हो कि वह प्रणाली जो देशों को एक दूसरे के साथ कारोबार करने में सक्षम बनाता है की स्थिरता सुनिश्चित करता है।
निगरानीः इस प्रणाली के माध्यम से आईएमएफ अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली में स्थिरता बनाए रखने के लिए सदस्य देशों की नीतियों, आर्थिक और वित्तीय संकट के प्रति संवेदनशीलता को कम करने और जीवन स्तर को ऊपर उठाने वाली नीतियों को प्रोत्साहित करने वाले उपायों के बारे में सलाह देता है तथा यह अपने विश्व आर्थिक परिदृश्य में वैश्विक संभावनाओं का नियमित मूल्यांकन प्रदान करता है।
वित्तीय सहायताः यह अपने सदस्यों को भुगतान समस्याओं के संतुलन आई एम एस फाइनेंस इन द्वारा समर्पित आईएमएफ के साथ करीबी सहयोग में राष्ट्रीय प्राधिकरण डिजाइन समायोजन कार्यक्रम को सही करने के लिए धन मुहैया कराता है। इन कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन पर सशक्त वित्तीय समर्थन जारी रखता है।
तकनीकी सहायकः सदस्य देशों को डिजाइन एवं प्रभावी नीतियों के कार्यान्वयन में उनकी क्षमता को बढ़ाने में सदस्य देशों की मदद के लिए तकनीकी सहायता एवं प्रशिक्षण मुहैया कराता है। यह कर नीति एवं प्रशासन कर नीति एवं प्रशासन, खर्च प्रबंधन, मौद्रिक एवं विनिमय दर नीतियां, बैंकिंग एवं वित्तीय वित्तीय प्रणाली पर्यवेक्षण एवं नियमन आंकड़े समेत कई तकनीकी सहायता क्षेत्रों में दी जाती है।

एस डी आरः विश्व में अंतर्राष्ट्रीय तरलता की स्थिति में सुधार हेतु यशोदा 1971 में शुरू की गई थी। आईएमएफ अंतरराष्ट्रीय भंडार संपत्ति जारी करता है इसे स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स के नाम से भी जाना जाता है और यह सदस्य देशों के सरकारी भंडारों का पूरक होता है। आईएमएफ धन धन राशि करीब 204 बिलियन एसडीआर है। आईएमएफ सदस्य आपस में मुद्राओं के लिए स्वेच्छा से एसडीआर का विनिमय करते हैं।
संसाधनः आईएमएफ के वित्तीय संसाधनों का प्राथमिक सोच उसके सदस्यों का कोटा है जो विश्व अर्थव्यवस्था मैं सदस्य की सापेक्ष स्थिति को व्यापक पैमाने पर प्रतिबंधित करता है। इसके अलावा आइए मैं अपने कोटा संसाधनों की पूर्ति के लिए अस्थाई रूप से उधार भी लेता है।
प्रशासन एवं संगठनः आईएमएफ अपने सदस्य देशों की सरकारों के प्रति जवाबदेह है। इसके संगठनात्मक संरचना के शीर्ष पर बोर्ड ऑफ गवर्नर होते हैं जिसमें प्रत्येक सदस्य देश से एक गवर्नर और एक वैकल्पिक गवर्नर होता है। बोर्ड ऑफ गवर्नर्स प्रत्येक वर्ष आईएमएफ- विश्व बैंक वार्षिक बैठक में एक बार मिलते हैं।
विश्व बैंक
विश्व बैंक की स्थापना जुलाई 1944 को हुई थी। इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी जॉर्जिया है।विश्व बैंक एक विशिष्ट संस्था है। जिसमें संगठन सम्मिलित हैंः IBRD ,( अंतर्राष्ट्रीय विकास परिषद IDA), अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम( IFC), बहुपक्षीय विनियोग गारंटी संस्था(MIGA), इंटरनेशनल सेंटर फॉर सेटलमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट डिस्प्यूट(ICSID)| इसका उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों को पुनर्निर्माण और विकास के कार्यों में आर्थिक सहायता देना है। विश्व बैंक समूह 5 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का एक ऐसा समूह है जो सदस्य देशों को वित्त और वित्तीय सलाह देता है। विश्व बैंक से अभिप्राय सामान्यतः IBRD तथा IDA से है। इन सभी 5 संस्थाओं को विश्व बैंक समूह के नाम से जाना जाता है। औपचारिक रूप से आई बी आर डी की स्थापना 1945 में हुई। पर इसने वास्तव में 1946 से कार्य करना शुरू किया।

विश्व बैंक के उद्देश्यः
- विश्व बैंक की स्थापना के समय संपन्न समझौते की धारा प्रथम में इसके निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किए गए हैंः
- सदस्य राष्ट्रों के आर्थिक निर्माण एवं विकास हेतु उन्हें दीर्घकालीन पूंजी उपलब्ध कराना। विश्व बैंक द्वारा यह पूंजी निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्रदान की जाती है।
- युद्ध अर्जित अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण हेतु
- शांति कालीन आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादक शक्तियों को पुनः वित्त उपलब्ध कराना
- अल्प विकसित राष्ट्रों में साधनों द्वारा उत्पादन की सुविधाएं विकसित करना
भुगतान संतुलन की साम्यता एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संतुलित विकास हेतु दीर्घकालीन पूंजी विनियोग को प्रोत्साहित करना, जिसके सदस्य राष्ट्रों की उत्पादकता में वृद्धि हो। फलता मानव शक्ति की स्थिति एवं जीवन स्तर और अधिक उन्नत हो सके।
सदस्य राष्ट्रों में पूंजी निवेश को निम्नलिखित माध्यम से प्रोत्साहित करनाः
निजी ऋण तथा पूंजी निवेश के लिए गारंटी प्रदान करना तथा निजी पूंजी निवेश को गारंटी दिए जाने के बावजूद ना हो पाए तो स्वयं के साधनों से उपर्युक्त शर्तों पर उत्पादन कार्य हेतु ऋण उपलब्ध कराना।
लघु एवं बृहत् इकाइयों तथा आवश्यक परियोजना के कार्यान्वयन हेतु ऋण प्रदान करना अथवा ऐसे ऋणों के लिए गारंटी देना।

विश्व बैंक की सदस्यता एवं मताधिकारः
यदि कोई राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सदस्यता ग्रहण कर लेता है तो वह खुद ही विश्व बैंक का भी सदस्य बन जाता है। किसी भी देश द्वारा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सदस्यता का परित्याग करने पर उसकी बैंक की सदस्यता भी समाप्त हो जाती है यदि व्यवस्था है कि कोर्ट के 75% सदस्यों की सहमति से कोई भी सदस्य राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की अध्यक्षता त्यागने पर भी बैंक का सदस्य बना रहता है। आई बीआर डी की सदस्यता मिलने पर ही आईडीए, आईएफसी और एम आई जी ए की सदस्यता मिलती है। आईसीएसआईडी मैं सदस्यता आई बी आर डी के सदस्यों के लिए उपलब्ध होती है। 1956 में भारत आईएफसी 1960 में एनडीए की संस्थापक सदस्यों में शामिल था। जनवरी 1994 में एम आई जी ए का सदस्य बना। भारत आईसीएसआईडी सदस्य नहीं है। आईसीएसआईडी में केंद्रीय अध्यक्ष विश्व बैंक का अध्यक्ष होता है अध्यक्ष ही मध्यस्थों की नियुक्ति करता है। 1949 में रेल को ऋण देने के साथ आईपीआरडी द्वारा भारत को ऋण देने की शुरुआत हुई तथा वर्ष 1949 में भारत में आईएससी और वर्ष 1961 में आई डी ए द्वारा पहला निवेश एक राजमार्ग निर्माण परियोजना पर किया गया था। 1950 के दशक के दौरान भारत हेतु विश्व बैंक के ऋण का एकमात्र स्रोत आई बी आरडी था। दशक के अंत तक भारत की बढ़ती रियल समस्या विश्व बैंक समूह के सॉफ्ट लोन से जुड़े आईडीए के लॉन्च में एक महत्वपूर्ण कारक बनी। 19 के दशक के अंत में अमेरिका ने अपने द्विपक्षीय सहायता कार्यक्रम में तेजी से कटौती की जो उस समय भारत के बाहरी संसाधनों का सबसे बड़ा स्रोत था। तब से ही विश्व बैंक आधिकारिक तौर पर दीर्घकालिक वित्त के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में उभरा। 1960 और 1970 के दशक के दौरान आईडीए ने विश्व बैंक द्वारा दिए गए फूल दिन का लगभग तीन चौथाई हिस्सा भारत को दिया। अफ्रीका के बिगड़ते हार्दिक हालात और भारतीय अर्थव्यवस्था के बेहतर प्रदर्शन से आईडीए में भारत के ऋण हिस्सेदारी तेजी से कम होने लगी। वर्ष 1991 के व्यापक आर्थिक संकट के बाद परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आया। इसके बाद संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रम के अंतर्गत ऋण देने के लिए विश्व बैंक के लिए भारत महत्वपूर्ण देश बन गया क्योंकि उसने वित्त, कराधान और निवेश तथा बिजनेस आदि क्षेत्रों में नीतिगत सुधारों के लिए सहमति जताई थी। भारत का वर्तमान में मिश्रित देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है और इसे निम्न मध्यम आय से मध्यम आय में जाने वाले देश के रूप में भी परिभाषित किया गया है। विश्व बैंक की IBRD सबसे अधिक विकेट लेने वाला देश भारत है।

विश्व बैंक में सुधारः
विश्व बैंक पर अक्सर आरोप लगता रहा है कि यह अपने SAP के जरिए विश्व में पूंजीवाद के उद्देश्यों को पूरा करता है और इसमें अमीर देशों का वर्चस्व रहता है। गुप्त बाजार हेतु आर्थिक नीति में सुधारों का एक समूह है जो विश्व बैंक द्वारा विकसित देशों पर ऋण प्राप्ति की शर्त के रूप में लागू किया जाता है।SAP नीतियों ने स्थानीय और वैश्विक दोनों ही स्थितियों में अमीर और गरीब के बीच की खाई को बढ़ा दिया है। विश्व बैंक अपने आप को बदलती विश्व व्यवस्था के अनुकूल ढालने में विफल रहा है इसलिए तेजी से आगे बढ़ रही भारत और चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं ने एशिया इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक की स्थापना की है। विश्व बैंक में सुधार वर्तमान विश्व व्यवस्था को पुनर्जीवित करने और बढ़ती शक्तियों और विकासशील देशों को इस संस्था में एक सार्थक आवाज देने के हिस्से के रूप में बेहद आवश्यक है।
भारत के भविष्य को लेकर विश्व बैंक का नजरियाः 1. 3 अरब की जनसंख्या और विश्व की 5 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से की हाल की समृद्धि तथा इसका विकास मानसी अत्यंत उल्लेखनीय असफलताओं में से एक है। आज इस्पात, पूछना अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की पहचान विश्व स्तर पर है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी बना जाता है जो इसके विशाल आकार और संभावनाओं को प्रदर्शित करता है। भारत को 21वीं सदी का मजबूत देश बनने के नए नए अवसर पैदा हो रहे हैं। भारत विश्व का सबसे विशाल और अत्यंत युवा श्रम शक्ति वाला देश है और यहां प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ लोग रोजगार तथा अवसरों की तलाश में कस्बों और शहरों की ओर रुख कर रहे हैं यह इस सदी का विशालतम ग्रामीण और शहरी प्रवासन है। इन बदलाव की वजह से भारत एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है जहां यह देखना बेहद जरूरी हो गया है कि भारत अपनी श्रम शक्ति की उल्लेखनीय सामर्थ्य का विकास किस प्रकार करता है और अपने बढ़ते हुए शहरों और कस्बों की समृद्धि के लिए किस तरह की नई योजनाएं तैयार करता है। इन सभी पर आने वाले समय में देश और इसके निवासियों का भविष्य निर्धारित होगा।
विश्व बैंक के कार्य

वर्तमान में विश्व बैंक का प्रधान कार्य सदस्य राष्ट्रों और अल्प विकसित राष्ट्रों को विकास हेतु आवश्यकता अनुसार ऋण उपलब्ध कराना है। बैंक द्वारा ऋण सामान्यता दीर्घकालीन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए दिए जाते हैं। इनकी अवधि 5 से 20 वर्ष तक की होती है। बैंक की ऋण प्रणाली को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता हैः
- बैंक अपनी पूंजी के 20% तक अपने कोष से सदस्य देशों को ऋण दे सकता है।
- सदस्य राष्ट्रों के निजी भी नियोजर को को अपनी व्यक्तिगत गया 90 पर भी ऋण उपलब्ध कराता है ऐसी स्थिति में गारंटी तभी प्रदान की जाती है जबकि वह पहले उन देशों से स्वीकृति प्राप्त कर लें जिनके एकत्रित किया जाएगा तथा जिस देश की मुद्रा में वह ऋण दिया जाएगा।
- इनकी मात्रा ब्याज की दर और अन्य संबंधित शर्तों का निर्धारण बैंक द्वारा किया जाता है।
- सामान्यतः विश्व बैंक के ऋण किसी परियोजना विशेष के लिए स्वीकृत किए जाते हैं।
- ऋण प्राप्तकर्ता राष्ट्र द्वारा ऋण का भुगतान स्वर्ण में अथवा उसी मुद्रा में करना होता है जिसमें ऋण प्राप्त किया जाता है।