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महाद्वीपीय विस्थापन (Continental drift)
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पृथ्वी में महाद्वीपों के एक-दूसरे के सम्बन्ध में हिलने को कहते हैं।
करोड़ों वर्षों के भौगोलिक युगों में देखा जाए तो यह प्रतीत होता है कि महाद्वीप और उनके अंश समुद्र के फ़र्श पर टिके हुए हैं और किसी-न-किसी दिशा में बह रहे हैं।महाद्वीपों के बहने की अवधारणा सबसे पहले 1496 में डच वैज्ञानिक अब्राहम ओरटेलियस​ ने प्रकट की थी लेकिन 1912 में जर्मन भूवैज्ञानिक ऐल्फ़्रेड वेगेनर​ ने स्वतन्त्र अध्ययन से इसका विकसित रूप प्रस्तुत किया है,और आगे चलकर प्लेट विवर्तनिकी का सिद्धांत विकसित हुआ जो महाद्वीपों की चाल को महाद्वीपीय प्रवाह से अधिक अच्छी तरह समझा पाया।
वेगेनर तथा उनके पूर्ववर्ती:
अल्फ्रेड वेगेनर ने 1912 में यह परिकल्पना प्रस्तुत की कि महाद्वीपों के टूट कर प्रवाहित होने से पहले वे एकीकृत भूमिखंड के रूप में थे।
वेगेनर का सिद्धांत स्वतन्त्र रूप से बना हुआ था और वे अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक उत्कृष्ट था फिर बाद में वेगेनर ने कुछ पुराने लेखकों के मिलते जुलते विचारों से कुछ श्रेय दिया:
फ्रेंकलिन कॉक्सवर्दी (1848 तथा 1890 के बीच),रॉबर्टो मन्टोवानी (1889 तथा 1909 के बीच), विलियम हेनरी पिकरिंग (1907)और फ्रैंक बर्सले टेलर (1908).
महाद्वीपों के ‘प्रवाह’ के साक्ष्य

महाद्वीपीय प्रवाह के अब व्यापक साक्ष्य हैं।विभिन्न महाद्वीपों के तटों पर मिलते-जुलते पौधे और पशुओं के जीवाश्म पाए जाने से ऐसा लगता है कि वे कभी इनसे जुड़े हुए थे।मेसोसौरस, ताजे पानी का एक सरीसृप है जो कि एक छोटे घड़ियाल के जैसा था, के जीवाश्म का ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका में पाया जाना इसका यह भी एक उदाहरण है;
लिस्ट्रोसौरस नामक एक जमीनी सरीसृप के जीवाश्म का समसामयिक चट्टानों से दक्षिणी अमरीका, अफ्रीका तथा अन्टार्क्टिका के विभिन्न स्थानों से प्राप्त होता है।
कुछ जीवित साक्ष्य भी हैं – इस दोनों महाद्वीपों पर एक जैसे कुछ पशु पाए जाते हैं। जेसे कि कुछ केंचुओं के कुछ परिवार/प्रजातियां उदाहरण :(ओक्नेरोड्रिलिडे, एकेंथोड्रिलिडे, ओक्टोकेतिडे) अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में पाए जाते हैं।

वेगेनर के सिद्धांत की अस्वीकृति

अब यह माना जाने लगा है कि पृथ्वी की सतह पर महाद्वीप गतिशील रहते हैं – यद्यपि उनकी गति दिशा निर्देशित होती है ना कि वे दिशाहीन रूप से चलन करते हैं – फिर भी सैद्धांतिक रूप से इस प्रवाह को कई वर्षों तक स्वीकार नहीं किया गया। इसकी एक यह भी समस्या थी कि कोई विश्वसनीय लगने वाली चालन शक्ति नहीं दिख रही थी। साथ ही वेगेनर का भूगर्भ वैज्ञानिक नहीं होना भी एक समस्या थी।
1953 में कैरे द्वारा प्लेट टेकट्रोनिक सिद्धांत का परिचय दिए जाने से पांच वर्ष पूर्व – महाद्वीपीय प्रवाह के सिद्धांत को भौतिकशास्त्री शीडिगर (Scheiddiger) द्वारा निम्नलिखित आधारों पर ख़ारिज कर दिया गया था।

१.पहले, यह भी देखा गया कि एक घूमते हुए जिओइड पर तैरते हुए द्रव्यमान भूमध्य पर एकत्रित हो जाते हैं तथा वहीं बने रहते हैं। यह सिर्फ एक बात की व्याख्या कर सकते है और वह है किसी महाद्वीपीय जोड़े के बीच पर्वतों के बनने की घटना; यह अन्य ओरोजेनिक घटनाओं की व्याख्या करने में अक्षम है।
२.किसी तरल में अधःस्तर पर मुक्त रूप से तैरते पिंडों, जैसे महासागर में बर्फ का पहाड़, को आइसोस्टेटिक साम्य (ऐसी स्थिति जहां उत्प्लवन तथा गुरुत्व के बल संतुलन में होते हैं) में होना चाहिए. गुरुत्वाकर्षण माप दिखाते हैं कि कई क्षेत्रों में आइसोस्टेटिक संतुलन नहीं है।
३.तीसरे,यह भी एक समस्या थी कि पृथ्वी की सतह (क्रस्ट) का कुछ भाग ठोस होता है तथा अन्य भाग द्रव क्यों है। इसकी व्याख्या करने के कई प्रयासों ने कई अन्य कठिनाइयों को बढ़ा दिया है।
और अब यह भी ज्ञात हो गया है कि पृथ्वी पर दो प्रकार की क्रस्ट होती हैं, महाद्वीपीय क्रस्ट व महासागरीय क्रस्ट, जहां पहली वाली एक भिन्न संरचना वाली तो वहीं दूसरी मूलरूप से हल्की होती है, तथा दोनों ही प्रकार की क्रस्ट एक कहीं गहरे द्रवीकृत आवरण पर स्थित होती हैं। और इसके अलावा, महासागरीय क्रस्ट अब भी फैलते हुए केन्द्रों पर बने हुए हैं या बन रही हैं, तथा यह सब्डक्शन के साथ, प्लेटों की प्रणाली को अव्यवस्थित रूप से चलाता है जिसके परिणाम स्वरूप सतत ओरोजेनी तथा आइसोस्टेटिक असंतुलन उत्पन्न होता है। प्लेट टेक्टोनिक्स के द्वारा इन सब तथा महाद्वीपों की गति को कहीं बेहतर रूप से स्पष्ट किया जा सकता है।

पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर घूमती रहती है।इसकी दो गतियां है १.घूमना (Rotation)२.परिक्रमण (Revolution)
पृथ्वी के अपने अक्ष पर चक्रण को (rotation) कहते हैं। पृथ्वी पश्चिम से पूरब दिशा में घूमती है और एक चक्र को पूरा करने में से 23 घंटे 56 मिनट 4.1 सेकंड का समय लगता है इससे दिन व रात होता है। पृथ्वी सूरज चारों ओर अंडाकार पथ पर 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट व 45.1 सेकेंड में एक चक्कर पूरा करती है।जिसे इसकी ‘परिक्रमण गति’ (revolution) कहते हैं।

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घूर्णन गति:-

  • पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूरब की ओर लगभग 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है पृथ्वी के घूर्णन गति के कारण दिन व रात होता है इसे दैनिक गति भी कहते हैं।
  • नक्षत्र दिवस: किसी निश्चित नक्षत्र के उत्तर उत्तरोत्तरदो बार गुजरने के बीच की अवधि को नक्षत्र दिवस कहते हैं या 23 घंटे 56 मिनट की अवधि का होता है।
  • सौर दिवस : जब सूर्य की गति ही मानकर पृथ्वी द्वारा उसकी परिक्रमण की गणना दिवसों के रूप में की जाती है तब सौर दिवस ज्ञात होता है इसकी अवधि 24 घंटे की होती है।
  • पृथ्वी की घूर्णन की दिशा पश्चिम से पूरब है इसीलिए पृथ्वी पर खड़े व्यक्ति के लिए सूर्य चंद्रमा और तारे की आभासी प्रवासन की दिशा पूरब से पश्चिम होती है।
  • पृथ्वी के घूर्णन की गति किलोमीटर पर घंटा में देशांतर को 24 से भाग देकर प्राप्त की जाती है।
  • विषुवत रेखा पर घूर्णन गति लगभग 1,667 किलोमीटर प्रति घंटा होती है तथा या ध्रुवों की तरफ घटते घटते शून्य पर पहुंच जाती है।
  • पृथ्वी पर रहने वाले लोग इस घूर्णन से अनभिज्ञ रहते हैं क्योंकि यह एक स्थिर गति है और पृथ्वी के साथ ही वायुमंडल में घूर्णन करती है।
  • पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण उत्पन्न अपकेंद्रीय बल जो भूमध्य रेखा पर स्वर्ग के लगभग 1/290 गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही पृथ्वी पर लध्वक्ष गोलाभ आकृति में प्रतीत होता है।
  • पृथ्वी के घूर्णन गति के कारण है पृथ्वी पर वायु एवं जल राशियां अपनी दिशा परिवर्तित करती है इसके प्रभाव को एक घूर्णन तश्तरी के प्रयोग के द्वारा देखा जा सकता है।

परिक्रमण गति:
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पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमने के साथ साथ सूर्य के चारों ओर एक अण्डाकार पर ३६५(365) दिन 6घंटे 48मिनट और 4.091सेकण्ड में एक चक्कर पूरा करती है।

  • उपसौर (Perihelion) :-3 जनवरी को पृथ्वी जब सूर्य के अत्यधिक पास होती है (14.73 करोड़ किलोमीटर), उससे हम उपसौर कहते हैं।
  • अपसौर (Aphelion):-4 जुलाई को पृथ्वी जब सूर्य से अधिकतम दूरी पर होती है (15.2 करोड़ किलोमीटर), उससे हम अपसौर कहते हैं ‌।
  • अक्षांश (latitude):-ग्लोब पर पश्चिम से पूरब की ओर खींची गई काल्पनिक रेखाएं हैं जिससे अंश में प्रदर्शित किया जाता है, वास्तव में शांत हुआ कौन है जो विषुवत रेखा तथा अन्य स्थान के बीच पृथ्वी के केंद्र पर बनी हुई होती है विषुवत रेखा को 0 अंश की स्थिति में माना जाता है यहां से उत्तर की ओर बढ़ने वाली कोणिक दूरी को उत्तरा अक्षांश तथा दक्षिण वाली दूरी को दक्षिणी अक्षांश कहते हैं
  • ध्रुवों की ओर बढ़ने पर भूमध्य रेखा से अक्षांशों की दूरी प्राय: बढ़ने लगती है।
  • सभी अक्षांश रेखाएं सामानान्तर होती है तथा दो अक्षांशो के बीच की दूरी ( क्षेत्रफल) “यानी” कि जून के नाम से जानी जाती है।
  • पृथ्वी के किसी स्थान से सूर्य की ऊंचाई उस स्थान की अक्षांश पर निर्भर करती है।
  • दो अक्षांश ओके मध्य की दूरी 111 किलोमीटर की होती है।
  • न्यून अक्षांशो पर दोपहर के समय सूर्य जी सर के ऊपर रहता है।
  • इस प्रकार पृथ्वी के तल पर पढ़ने वाली सूरज की किरणों की गर्मी विभिन्न अक्षांशो पर भिन्न-भिन्न होती है।
  • पृथ्वी के तल पर किसी भी देश अथवा नगर की स्थिति का निर्धारण उस स्थान के अक्षांश और देशांतर के द्वारा ही किया जाता है।
  • किसी स्थान के अक्षांश को मापने के लिए अब तक खगोलीय अथवा त्रिभुजीकरण नाम की दो विधियां प्रयोग में लाई जाती रही है।
  • अब इसकी उचित माफ के लिए 1971 ई॰ मैं श्री निरंकार सिंह जी ने भू घूर्णन मापी नामक एक यंत्र का आविष्कार किया जिससे किसी स्थान के अक्षांश का माप केवल अंश (डिग्री) में ही नहीं अपितु कला (मिनट) मैं भी प्राप्त किया जा सकता है।
  • भूमध्य रेखा ही 00 अक्षांश है एवं इसके दोनों ओर ( उत्तर एवं दक्षिण ) पूरब से पश्चिम दिशा में अन्य अक्षांश रेखाएं खींची गई है यह रेखाएं गुणवत्ता है तथा इसकी संख्या 180 है।
  • भूमध्य रेखा के अतिरिक्त कोई भी दूसरा अक्षांश पृथ्वी को दो बराबर भागों में विभाजित नहीं करता है।
  • भूमध्य रेखा से उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों की ओर बढ़ने पर अक्षांश वृत्त क्रमशः बढ़ते हैं जबकि अक्षांश वृत्त उत्तरोत्तर छोटे होते जाते हैं।
  • अक्षांश रेखाओं की मदद से किसी स्थान की स्थिति को समझने में मदद मिलती है तथा साथ ही इनके द्वारा किसी स्थान की जलवायु की भी जानकारी प्राप्त होती है।

पृथ्वी की गतियां
देशान्तर:
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ग्लोब पर उत्तर से दक्षिण की ओर खींची जाने वाली काल्पनिक रेखाएं है और यह रेखाएं समानान्तर नहीं होती है। और यह पृथ्वी के बीचो-बीच जीरो डिग्री पर खींची गई यह रेखाएं “मध्याह्न रेखा” या “ग्रीनविच रेखा” कहलाती है दुनिया का मानक समय भी इस रेखा से निर्धारित किया जाता है।

  • 1॰ दशान तरकी भूमध्य रेखा पर दूरी 111.32 किलोमीटर है जो ध्रुवों की ओर से कम होती जाती है।
  • 1॰ देशांतर के बीच 4 मिनट समय का अंतर होता है।
  • एक देशांतर का अंतर होने पर समय में 4 मिनट का अंतर होता है जो कि पृथ्वी पश्चिम से पूरब की ओर घूमती है। फलत: पूरब की ओर बढ़ने पर प्रत्येक देशांतर पर समय 4:00 मिनट बढ़ जाता है तथा पश्चिम मैं जाने पर प्रत्येक देशांतर पर समय 4:00 मिनट घट जाता है या कम हो जाता है।
  • इनकी कुल संख्या 360 है इंग्लैंड के ग्रीनविच नामक स्थानों से गुजरने वाले देशांतर का ‘प्रधान देशांतर’ या 00 देशांतर माना जाता है।
  • इसकी बाई की ओर की रेखाएं पश्चिम देशांतर और धनी और की रेखाएं पूर्वी देशांतर कहलाती है।
  • देशांतर के आधार पर ही किसी स्थान का समय ज्ञात किया जा सकता है।
  • दुनिया का मानक समय भी इसी रेखा से निर्धारित होता है या किया जाता है।
  • लंदन का शहर ‘ग्रीनविच’ रेखा पर स्थित है, इसीलिए इसे ग्रीनविच रेखा भी कहते हैं।
  • इन देशांतर रेखाओं को मध्यांन्तर रेखा भी कहा जाता है। क्योंकि एक रेखा पर स्थित सभी स्थानों पर मध्यान्ह यह दोपहर एक ही समय पर होता है अब।
  • कर्क रेखा (Tropic of Cancer): यह रेखा उत्तरी गोलार्ध
    मैं भूमध्य रेखा के समानान्तर 23॰30′ उत्तरी अक्षांश पर खींची गई है।
  • मकर रेखा (Tropic of Capricorn): या रेखा दक्षिणी गोलार्ध में भूमध्य रेखा के समानांतर 23॰30′ दक्षिणी अक्षांश पर खींची गई है।
  • विषुवत अथवा भूमध्य रेखा (Equator): या रेखा पृथ्वी को उत्तर एवं दक्षिण गोलार्ध में दो बराबर भागों में बांटती है।
  • 21 मार्च और 30 सितंबर को संपूर्ण पृथ्वी पर दिन रात बराबर होता है।
  • उत्तरी गोलार्ध मैं सबसे बड़ा दिन 21 जून को तथा दक्षिणी गोलार्ध मैं सबसे बड़ा दिन 22 दिसंबर को होता है।
  • उत्तरी गोलार्ध मैं सबसे छोटा दिन 22 दिसंबर को तथा दक्षिणी गोलार्ध मैं सबसे छोटा दिन 21 जून को होता है।
  • विषुवत रेखा पर दिन रात सदैव बराबर होते हैं क्योंकि इसको प्रकाश व्यक्ति हमेशा दो बराबर भागों में बांटती है।
  • देशांतर ( longitude): किसी स्थान की कोणीय दूरी जो प्रधान यामोत्तर (0॰ या ग्रीनविच) के पूरब का पश्चिम में होता है वह देशांतर कहलाती है।
  • 1॰देशांतर की भूमध्य रेखा पर दूरी 111.32 किलोमीटर है जो ध्रुवों की ओर कम होती जाती है।
  • 1॰देशांतर के बीच 4 मिनट समय का अंतर होता है।

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