लोक वित्त क्या है इसके अर्थ एवं महत्व का वर्णन करें?
राजस्व अर्थशास्त्र की वह शाखा है जो सरकार के एवं व्यय का अध्ययन करती है। राजस्व को लोकवित्त के पर्यायवाची शब्द के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। राजस्व संस्कृत भाषा का शब्द है जो दो अक्षरों राजन और स्व से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है राजा का धन। किसी से राजा को समाज एवं क्षेत्र विशेष को प्रतिनिधित्व करने वाला मुख्य माना जाता है। इस प्रकार सरल शब्दों में राजस्व का अर्थ राजा के धनिया राजनीतिक दृष्टिकोण से मुखिया के धन से होता है।
लोक वित्त को विभिन्न देशों की भाषा में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है जैसे जर्मनी में इसे Finanzwissenschaft है जिसका अर्थ है वित्त का विज्ञान, फ्रांस में इसके लिए science des finaces शब्द का प्रयोग किया जाता है। इन शब्दों को सार्वजनिक आय एवं व्यय के प्रबंध के रूप में प्रयोग किया जाता है।
लोक वित्त की परिभाषाः
प्रोफेसर फिंडले सिराज के अनुसार,” लोक वित्त के अंतर्गत लोकसत्ता ओके कोसों में वृद्धि एवं व्यय से संबंधित सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है।”
डॉक्टर डाल्टन के अनुसार, ” लोक वित्त उन विषयों में से एक है, जो अर्थशास्त्र एवं राजनीति शास्त्र की सीमा रेखा पर स्थित है। इसका संबंध लोकसत्ता ओके आय व्यय तथा उनके पारस्परिक समायोजन और समन्वय से है।”
प्रोफेसर सीएस बैस्टेल के अनुसार,” वित्त राज्य की लोकसत्ता ओके आय व्यय, उनके पारस्परिक संबंध, वित्तीय प्रशासन एवं नियंत्रण का अध्ययन करता है।”
कुछ अर्थशास्त्रियों ने परिभाषा में दोष निकाला है इन्होंने लोक वित्त को इस प्रकार परिभाषित किया हैः
लुट्ज के अनुसार,” लोक वित्त उन साधनों की व्यवस्था, सुरक्षा तथा वितरण का अध्ययन करता है जिनकी सार्वजनिक अथवा सरकारी कार्यों को चलाने के लिए आवश्यकता पड़ती है।”

आर्मीटेज स्मिथ के अनुसार,” राजकीय तथा राजकीय आए की प्रकृति एवं सिद्धांतों की व्याख्या को लोक वित्त कहा जाता है।”
श्रीमती उर्सुला के हिक्स के अनुसार ,” लोक वित्त का मुख्य विषय उन विधियों का निरीक्षण एवं मूल्यांकन करना है जिनके द्वारा सरकारी संस्थाएं आवश्यकता ओं की सामूहिक संतुष्टि करने का निरीक्षण करती है और अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक कोश प्राप्त करती है।”
प्रोफेसर डी मार्को के अनुसार,” लोक वित्त राज्य की उन उत्पादक क्रियाओं का अध्ययन करता है जिनका उद्देश्य सामूहिक आवश्यकताओं को पूरा करना होता है।”
स्मिथ ने अपनी पुस्तक वेल्थ ऑफ नेशन(1776) के खंड 5 मैं लोक वित्त के विभिन्न अंगों का विश्लेषण किया है। इस खंड में 3 अध्याय हैं जो क्रमशः सरकार के व्यय, सरकार के राजस्व तथा लोक ऋण की विवेचना करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि लोक वित्त का क्षेत्र तीन विषय वस्तु तक सीमित है। लोक व्यय, लोक राजस्व तथा लोक ऋण।
1960 के दशक के पिछले भाग तथा 1970 के दशक में मेट्रो आर्थिक नीति के महत्व में काफी कमी हुई ।इसके कई कारण थे। नीति को लागू करने में व्यावहारिक कठिनाइयां, आर्थिक विचारों के क्षेत्र में मुद्रा वादी प्रति क्रांति तथा लोक वित्त के पारंपरिक क्षेत्र में अन्य विषयों का उदय तथा उनके फिर से खोज। लोक व्यय खुद नया विषय नहीं है, किंतु इस विषय को नए रूप से देखा जाता है जिससे इसके क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई है। पहले लोक व्यय के अंतर्गत इसमें वृद्धि के कारण, इसके प्रभाव वर्गीकरण विश्लेषण किया जाता था। आज लोग भी आए के अंतर्गत जिन मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया जाता है, वे है सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के सापेक्ष आकार वे परिस्थितियां जहां बाजार यंत्र टूट जाता है, सार्वजनिक क्षेत्र के आकार के निर्धारण में राजनीतिक समाधान का महत्व आदि। दूसरा नया विषय है बहु स्तरीय वि जहां राजकोषीय संघ की समस्याओं अर्थात केंद्र राज्य तथा स्थानीय सरकारों की वित्त की समस्याओं की विवेचना की जाती है। राज्य द्वारा निजी क्षेत्र को दी जाने वाली सब्सिडी अर्थ अर्थ आर्थिक सहायता की प्रकृति तथा परिणामों की भी गहराई से खोज की जाने लगी है
लोक वित्त अर्थशास्त्र का वह भाग है जो किसी देश की व्यवस्था तथा उससे संबंधित प्रशासनिक एवं अन्य समस्याओं का अध्ययन करता है। उपरोक्त विवरण के आधार पर लोक वित्त के अध्ययन क्रम को हम पांच भागों में विभाजित करते हैंः
सार्वजनिक व्यय
सार्वजनिक आय
सार्वजनिक ऋण
वित्तीय प्रशासन
राजकोषीय या वित्तीय नीति

सार्वजनिक व्ययः लोक वित्त के इस अंग के अंतर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि सार्वजनिक दिया है किन किन मदों पर करना आवश्यक है? व्यय का स्वरूप तथा परिमाण क्या हो? वेयर करते समय किन किन नियमों एवं सिद्धांतों का पालन किया जाए? इन विषयों का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है तथा इससे संबंधित कठिनाइयां क्या है? तथा उन्हें किस प्रकार दूर किया जा सकता है।
राजकीय अथवा सार्वजनिक व्यय का महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। जनकल्याण के सभी का सार्वजनिक व्यय पर ही निर्भर करते हैं। सार्वजनिक व्यय कीमतों तथा उन पर व्यय की जाने वाली धनराशि जिसके आधार पर उस देश की आर्थिक सामाजिक एवं राजनीतिक नीतियों तथा स्थितियों की समीक्षा की जा सकती है।
सार्वजनिक आयः इस अंक के अंतर्गत यह ध्यान दिया जाता है कि सरकार अपनी आय किन किन स्रोतों से प्राप्त करती है । इसमें आए के विभिन्न स्रोतों का विश्लेषण वर्गीकरण, साधनों की गतिशीलता तथा उनके सापेक्षिक महत्व एवं सिद्धांत का अध्ययन किया जाता है।
सार्वजनिक ऋणः किस अंग के अंतर्गत या अध्ययन किया जाता है कि सरकारी ऋण क्यों और किस उद्देश्य हेतु लिए जाते हैं। राज्य किन सिद्धांतों के आधार पर ट्रेन प्राप्त करता है तथा इन ऋणों का भुगतान किस प्रकार किया जाता है ओके क्या प्रभाव पड़ते हैं। तथा दिनों से संबंधित क्या समस्या उत्पन्न होती है आदि।
वित्तीय प्रशासनः इस विभाग के अंतर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि सरकार वित्तीय क्रियाओं का प्रबंध किस प्रकार करती है? इसके अंतर्गत विशेष रूप से या अध्ययन किया जाता है कि बजट किस प्रकार बनाया जाता है बजट बनाने के क्या उद्देश्य है घाटे के बजट तथा आदि के के बजट का क्या महत्व है, इसके अतिरिक्त लेखों का अंकेक्षण करना भी इसके अंतर्गत आता है। वित्तीय प्रशासन लोक वित्त का सर्वाधिक महत्वपूर्ण विभाग है। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात किस का महत्व काफी बढ़ गया है। लोकगीत की कोई भी पुस्तक तब तक पूरी नहीं की जा सकती जब तक कि वह वित्तीय प्रशासन और बजट की समस्याओं का अध्ययन नहीं करती।
राजकोषीय या वित्तीय नीतिः लोक वित्त के एक भाग के रूप में राजकोषीय अथवा वित्तीय नीति के महत्व को आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने स्वीकार किया है। स्थिरता के साथ आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के लिए आज वित्तीय नीति का सहारा लिया जाता है। इसके द्वारा देश में उत्पादन क्रियाओं को नियमित करके राष्ट्रीय आय की वितरण को न्याय पूर्ण बनाकर तथा कीमतों में स्थिरता देकर आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है।

लोक वित्त की प्रकृति
लोक वित्त की प्रकृति के विवेचन हेतु यह जानने का प्रयास किया जाता है कि लोक वित्त विज्ञान है अथवा कला? विज्ञान ज्ञान का वह शास्त्र है जिसमें किसी विषय का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन निरीक्षण प्रयोग एवं विश्लेषण पर आधारित होता है। इस तरह के अध्ययन के आधार पर जो नियम बनाए जाते हैं या निष्कर्ष निकाले जाते हैं उनका स्वभाव वैज्ञानिक होता है। इस आधार पर लोक वित्त को विज्ञान कहना अनुचित नहीं होगा। परंतु ध्यान देने योग्य है कि लोक वित्त एक स्वतंत्र विज्ञान नहीं है बल्कि एक आश्रित विज्ञान है क्योंकि इसका अर्थशास्त्र अथवा राजनीति शास्त्र से गणेश संबंध है और यह उन पर आश्रित है।
लोक वित्त के अंतर्गत तथ्यों का अध्ययन दोनों दृष्टिकोण से किया जाता है। कला ज्ञान का व्यवहारिक स्वरूप है। किसी बात का ज्ञान तो विज्ञान है और उस ज्ञान को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान करने की जब नियम बनाए जाते हैं तो उसे कला कहते हैं इस तरह किसी कार्य को रोकने के लिए व्यावहारिक नियमों को बताना ही कला है। इस दृष्टि से लोक वित्त कला भी है। यह कलाकारी उस समय धारण कर लेता है जब किसी देश की सरकार विभिन्न स्रोतों से प्राप्त अपनी आय को इस प्रकार बयां करने का निश्चय करती है ताकि सामाजिक कल्याण अधिकतम हो सके।
लोक वित्त विज्ञान तथा कला दोनों हैं। जब हम सार्वजनिक आय और व्यय के सिद्धांत हुए नियमों का अध्ययन करते हैं तो यह लोक वित्त का वैज्ञानिक पहलू होता है और जब इन सिद्धांतों एवं नीतियों का का प्रयोग सरकार की वित्तीय समस्याओं को हल करने में किया जाता है तो वही लोग वित्त का कलात्मक पहलू कहलाता है।
लोक वित्त का महत्वः प्राचीन काल में राज्य के कार्य समिति के लोक वित्त का महत्व भी उसी के अनुरूप कम था। लोक वित्त का महत्व राज्यों की आर्थिक क्रियाओं से संबंध होता है प्रारंभ कार के काले केवल बाय आक्रमण से सुरक्षा तथा न्याय तक ही सीमित थे फल स्वरुप सरकार का कोष भी सीमित ही रखा जाता था। क्लासिकल अर्थशास्त्री भी हस्तक्षेप नीति के समर्थक थे और चाहते थे कि आर्थिक क्रियाओं के स्वता संचालन में सरकार को किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए इस तरह के सरकार के अल्प योगदान पर विश्वास करते थे। किड्स के सामान्य सिद्धांत के प्रकाशन के बाद देश की आर्थिक क्रियाओं में राज्य के हस्तक्षेप और लोक वित्त के महत्व में क्रांतिकारी परिवर्तन आया, किसने प्रतिपादित किया कि देश में आर्थिक स्थिरता तथा रोजगार में वृद्धि राज्य के हस्तक्षेप द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। सरकार राजकोषीय एवं मौद्रिक नीति का सहारा लेकर अर्थव्यवस्था को वांछित दिशा में ले जा सकती है आज विकसित देश आर्थिक स्थायित्व के लिए तथा विकासशील देश स्थिरता के साथ फ्री आर्थिक विकास के लिए प्रयत्नशील है परिणाम स्वरूप किन देशों में राज्य एवं लोक वित्त का महत्व अपेक्षाकृत बढ़ता जा रहा है।। सरकार अपनी राजकोषीय नीति के द्वारा स्थिरता के साथ विकास तथा राष्ट्रीय आय के न्याय उचित वितरण आदि उद्देश्यों को सुगमता पूर्वक प्राप्त कर सकती है। राज्य आज आर्थिक विकास को बढ़ावा देने मन से सुरक्षा तथा आंतरिक शांति बनाए रखने, सामाजिक सुरक्षा तथा जनकल्याणकारी कार्यों के कार्यान्वयन करने, सामाजिक बुराइयों को दूर करने ,उद्योगों को संरक्षण प्रदान कर विदेशी प्रतियोगिता से बचाने के लिए, आर्थिक विषमता को समाप्त करने के लिए, दुर्लभ साधनों के सर्वोत्तम ढंग से आवंटन के लिए, राष्ट्रीय उपक्रमों का विकास करने तथा बेरोजगारी दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोई भी राज्य कुशलतापूर्वक अपने उक्त कार्यों का संपादन तब तक नहीं कर सकती जब तक कि उसके पास संगठित लोक वित्त नहीं होगा। इस क्या महत्व में वृद्धि होने से लोक वित्त के महत्त्व में बहुत अधिक वृद्धि हो चुकी है।

लोक वित्त की सीमाएंः संबंधित नीतियां राष्ट्रीय आय उत्पादन एवं रोजगार पर वांछित प्रभाव डालने एवं अवांछित प्रभावों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है इस तरह देश के आर्थिक जीवन को प्रभावित करने में भारी योगदान प्रदान करती है।। देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद लोक वित्त की नीतियां की अपनी कुछ सीमाएं भी हैं।
कर प्रणाली में मनचाहा परिवर्तन करना सुगम नहीं होता।
कभी-कभी सरकारी व्यय में वृद्धि से निजी निवेश में गिरावट आने लगती है।
कार्यक्रम तभी सफल हो सकते हैं जब उन्हें उचित समय पर क्रियान्वयन किया जाए परंतु इस उचित समय अर्थात मंदी का पूर्वानुमान लगाना कठिन होता है।
सार्वजनिक निर्माण कार्यों को तुरंत लागू करना सदैव संभव नहीं हो पाता।
इस तरह अकेली लोग वित्तीय नीति अर्थव्यवस्था को स्थिरता के साथ विकास के पथ पर तेजी से ले जाने में पूर्णतया समर्थ नहीं हैं।