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भारत का भौगोलिक विस्तार

भारत एक विशाल देश है। यह एक अकेला देश है जिसका नाम हिंद महासागर से जुड़ा है। इसकी आकृति चतुष्कोणीय है। अक्षांश की दृष्टि से भारत उत्तरी गोलार्ध का देश है तथा देशांतर की दृष्टि से पूर्वी को लात के मध्य में है। इसका विस्तार 6°4 से 37° 6 तथा 68° 7 से 97°25 पूर्वी देशांतर के बीच है। भारत का क्षेत्रफल 32, 87, 263 वर्ग किलोमीटर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व का सातवां बड़ा देश है। भारत की भौगोलिक आकृतियों को पांच भागों में बांटा गया है-
उत्तर का महान पर्वतीय भाग
उत्तरी भारतीय मैदान
प्रायद्वीपीय मैदान
तटीय मैदान
दीप समूह
उत्तर का महान पर्वतीय भाग- उत्तर के महान पर्वतीय भागों को दो भागो में बांटा गया है। ट्रांस हिमालय और हिमालय। हिमालय के उत्तर में तिब्बत में स्थित है। इसमें काराकोरम लद्दाख और जास्कर पर्वत श्रेणी में शामिल है। इसकी लंबाई लगभग 200 किलोमीटर से 400 किलोमीटर है। विश्व की दूसरी सबसे ऊंची चोटी गॉडविन ऑस्टिन भी यही स्थित है। सिंधु नदी से लेकर के पर्वतीय भागों हिमालय संख्या कैसे हैं हिमालय में उत्तर से दक्षिण तीन समानांतर पर्वत श्रेणियां पाई जाती है जिनकी ऊंचाई दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमशाह बढ़ती जाती है। इन श्रेणियों के नाम है- हिमाद्री, हिमालय, शिवालिक।


हिमाद्री- यह सब से उतरी श्रेणी है । या कश्मीर में नंगा पर्वत से लेकर अरुणाचल में नामचा बरवा तक विस्तृत है। इसकी ऊंचाई 6000 किलोमीटर है। इसकी औसत चौड़ाई 25 किलोमीटर है। माउंट एवरेस्ट विश्व की सबसे ऊंची चोटी जिसकी ऊंचाई लगभग 8848 किलोमीटर है। यही स्थित है जिसे तिब्बती भाषा में चोमोलूंगमा एवं नेपाल में सागरमाथाव कहा जाता है।
लघु हिमालय या हिमाचल- हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित हिमालय पर्वत को हिमाचल कहा जाता है। उसकी ऊंचाई लगभग 4000 से 4500 किलोमीटर है। बहुत सारे पर्यटन स्थल इसी श्रेणी में स्थित है जैसे कि डलहौजी नगर, शिमला, मसूरी, नैनीताल, रानीखेत आदि।
शिवालिक -हिमाचल के दक्षिण में सबसे दक्षिणी भाग श्रेणी को शिवालिक कहा जाता है। यह सबसे निचली पर्वत श्रेणी है। इसकी ऊंचाई 12 साल से पंद्रह सौ किलोमीटर के बीच है। इसका विस्तार पंजाब के पोत वान बेसिन से कोसी नदी तक है। इस श्रेणी का निर्माण अवसादी चट्टानों, असंगठित पत्थरों तथा शिल्ट से हुआ है। में पाए जाने वाली संकरी घाटियों को दून कहा जाता है। इस श्रेणी कई घाटिया पाई जाती है जैसे पूर्व में हरिद्वार पश्चिम में देहरादून।


उत्तर भारतीय मैदान- हिमालय के निर्माण के समय शिवालिक के दक्षिण में एक हाई का निर्माण हो गया था जिसे उत्तरी मैदान का नाम दिया गया। गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाए गए और अवसादो के निक्षेपन से इसका निर्माण हुआ है। इसकी लंबाई 100 किलोमीटर और चौड़ाई डेढ़ सौ से 480 किलोमीटर है। इन मैदानों को निम्न भागों में बांटा गया है-
बांगर- यह पेटी उच्च भूमि या पुरानी कांप के नीक्षेपों से निर्मित कॉपियां है। इसमें कैल्शियम कार्बोनेट या कंकड़ की अधिकता पाई जाती है।
खादर- यह क्षेत्र प्रतिवर्ष सिल्ट के नए निक्षेपों से समृद्ध होती है।
तराई- यह भाबर के दक्षिण में 15 से 30 किलोमीटर तक दलदली पट्टी है। यहां नदियां पुनः प्रकट होती हैं।
भाबर- यह सिंधु से तीस्ता नदी तक स्थित है। यह 8 से 10 किलोमीटर चौड़ी पट्टी है। यह क्षेत्र कृषि के लिए अधिक उपयोगी नहीं हैं।
प्रायद्वीपीय पठार- यह पठार गोंडवाना लैंड का भाग है। या राजस्थान से लेकर कन्याकुमारी तक तथा गुजरात से पश्चिम बंगाल तक 1600000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। नर्मदा नदी भ्रंशन के कारण इसे दो भागों में बांटा गया है-
मध्यवर्ती उच्च भूमि या
अरावली श्रेणी- या श्रेणी पालनपुर से राजस्थान होकर दिल्ली तक लगभग 800 किलोमीटर लंबाई में विस्तृत है इसकी सर्वोच्च शिखर गुरु शिखर आबू की पहाड़ियों में स्थित है।
मालवा का पठार- इसकी सीमाओं का निर्धारण उत्तर अरावली, दक्षिण में विंध्य श्रेणी तथा पूर्व में बुंदेलखंड द्वारा होता है।
छोटा नागपुर का पठार- इसका विस्तार बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा झारखंड में है। इसकी मुख्य नदी स्वर्णरेखा, महानदी, एवं दामोदर है। यहां पर प्रकार के खनिज अयस्क पाए जाते हैं जैसे कि कोयला, लोहा, अभ्रक, तांबा आदि।


ढक्कन का पठार
यह पठार पूर्वी तथा पश्चिमी घाटों के पहाड़ियों के बीच 7लाख किलोमीटर में विस्तृत है। इसकी ऊंचाई 500 से 1000 मीटर है। सतपुरा सैनी, महानदी बेसिन कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु का पठार आदि आते हैं। पश्चिमी घाट- यह तापी के मुहाने से कन्याकुमारी तक 16 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में विस्तृत है।
तटवर्ती मैदान- दक्षिणी पठार से पूर्वी हम पश्चिमी तट की ओर अर्थात पूर्वी और पश्चिमी घाट और समुद्र के बीच तटीय मैदान विस्तृत है जोकि दो भागों में म विभाजित है पश्चिमी तटीय मैदान और पूर्वी तटीय मैदान। पश्चिमी तटीय मैदान खंभात की खाड़ी से लेकर अंतरीप तक 1500 किलोमीटर लंबाई में फैला है। यहां की अधिकतर नदियां ज्वारनदमुख का निर्माण करती है जिसके दो भाग हैं कोंकण तट और मालाबार तट। कोंकण तट गोवा से कर्नाटक तक है मालाबार तट मंगलौर से कन्याकुमारी तक। मालाबार टट में अनेक प्रकार के लैगून एवं फर्स्ट जल मिलते हैं।
पूर्वी तटीय मैदान इसका विस्तार आंध्र प्रदेश लाडो के तट के सहारे दो भागों में है पहला उत्तरी सरकार तट क्योंकि हुबली तथा कृष्णा नदियों के देवताओं के मध्य है चिल्का झील यहां कीप्रमुख लैगून है। तथा दूसरा कोरोमंडल तट है जोकि कृष्णा डेल्टा से कन्याकुमारी तक है।
द्वीप समूह- भारत में 247दीप समूह है जो बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में बिखरे हैं।
बंगाल की खाड़ी- अंडमान निकोबार दीप समूह यहां का महत्व पूर्ण द्वीप है। यह दीप समूह 10 डिग्री चैनल द्वारा पृथक है। भारत का दक्षिणतम बिंदु इंदिरा पॉइंट भी यहीं स्थित है। यहां पर अनेक प्रकार के ज्वालामुखी भी पाए जाते हैं। सैंडल चोटी अंडमान दीप की सर्वोच्च चोटी है। यह म्यानमार से काकू जल मार्ग द्वारा अलग होता है। इसकी राजधानी पोर्ट ब्लेयर है।
अरब सागर दीप समूह- लक्षदीप यहां का महत्व पूर्ण द्वीप है। इसका क्षेत्रफल 180 वर्ग किलोमीटर है। आंद्रोत यहां का सबसे बड़ा द्वीप है। कवारत्ती कहां की राजधानी है। मिनिकॉय यहां का दक्षिणतम द्वीप है। सबसे उत्तर में आमीन देवी दीप समूह है जो कि मत्स्य उत्पादन एवं पर्यटन के लिए विख्यात है।


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