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झारखंड के कृषि और सिंचाई विभागों के बारे में महत्वपूर्ण टिप्पणी दें?

झारखंड राज्य का लगभग 1600000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि ऊंचा या मध्यम है। कृषि वैज्ञानिक के अथक परिश्रम एवं किसानों के निरंतर प्रयास से भारतवर्ष में हरित क्रांति का सपना साकार हुआ है। झारखंड सरकार कई महत्वपूर्ण कार्य किसानों के हित में कर रही है। रांची पठारी क्षेत्र होते हुए भी यहां की भूमि कृषि के लिए उपयुक्त है। यहां सिंचाई के रूप में मुख्य रूप से लोग बारिश होने पर होते हैं परंतु कुआँऔर नदी का भी उपयोग किया जाता है। निकला क्षेत्र धान की खेती के लिए उपयुक्त स्थितियां प्रदान करता है खेती के लिए उच्च ऊंचाई वाले बगीचे बाजरा और सब्जी के बगीचे भी प्रदान करता है। झारखंड की 25 लाख हैक्टेयर भूमि खेती योग्य है इसमें 15% रवि फसल की खेती होती है बाकी 75% खरीफ फसल की खेती होती है सबसे ज्यादा धान उसके बाद दलहन और तिलहन की खेती होती है। झारखंड में कृषि विभाग के द्वारा प्रदेश की बेकार बड़ी भूमि को कृषि योग बनाने की योजनाओं का क्रियान्वयन कोई नया बात नहीं है और कृषि उत्पादन लक्ष्य बनाने के लिए सरकार कृषि भूमि के क्षेत्रफल में विस्तार का ताना-बाना वर्षों से तैयार कर रही है। Vinayiasacademy.com

झारखंड में कृषि उत्पादकता का मानक 116% है अर्थात राज्य में 100 एकड़ में मात्र 16 हेक्टेयर में ही खेती की जा रही है। झारखंड के कृषि विभाग ने वित्तीय वर्ष 2012 में ही ऐसी प्रति भूमि को कृषि कार्य के लिए उपयोग में लाने की योजना तैयार की थी जहां उस समय तक खेती नहीं की गई थी। कृषि का रकबा बढ़ाने की जुगत में जुटे कृषि विभाग ने वित्तीय वर्ष 2012 में 38372 प्रति भूमि पर खेती की योजना बना डाली थी। झारखंड के हजारीबाग जिले के अधिकांश हिस्से जंगल और पत्थरों से भरे पड़े हैं खेती योग्य भूमि को दो भागा था ऊपरी भूमि और निकली भूमि में विभाजित किया गया है नदियों के किनारे जो भूमि स्थित है वह तो उपजाऊ है इसलिए इन भूमि में उर्वरकों ई का मात्रा का उपयोग करके भी अच्छी फसल मिल जाती है लेकिन ऊपरी भूमि बंजर है इन जमीनों में खेती के लिए भारी मात्रा में उर्वरक और सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है सामान्य तो यहां पर रवि और खरीफ की फसल को बोया जाता है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण इस जिले में सिंचाई सुविधा प्राप्त नहीं है । और पंप सेट का उपयोग किया जाता है दामोदर घाटी योजना भी इस क्षेत्र में सिंचाई के लिए की जाती है लेकिन यह उपाय पर्याप्त नहीं है अभी भी आमतौर पर किसान अपनी खेती के लिए बारिश पर ही निर्भर है।

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झारखंड की सिंचाई व्यवस्था
झारखंड को सिंचाई कूप निर्माण में पूरे देश में तीसरा स्थान मिला है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस वित्तीय वर्ष 2019 के अगस्त माह तक की रैंकिंग में इसे तृतीय स्थान दिया है जिसमें झारखंड तीसरे पायदान पर है। इस वित्तीय वर्ष के 5 माह में झारखंड में अब तक 5734 हुए बन चुके हैं। राज्य का 1.8 मिलियन हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है जो कि यहां के भौगोलिक क्षेत्रफल का 22% है। पारंपरिक तौर पर यहां के किसान वर्षा पर आधारित खेती करते हैं। सरकार द्वारा विभिन्न सिंचाई व्यवस्था राज्य के हर उन क्षेत्रों में की जा रही है जहां पढ़ पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं है या फिर ना के बराबर है। स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना 1978 में 128 करोड़ की लागत से शुरू हुई यह योजना अभी तक पूरी नहीं हुई है इस दौरान इसका बजट बढ़कर 14949 दशमलव 78 करोड हो गया है। चांडिल के बाईं मुख्य नहर का कार्य पूरा होने से 127 किलोमीटर तक जल प्रवाहित किया जा रहा है जिससे 99507 हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता के सृजन का जल संसाधन विभाग के द्वारा किया जा रहा है। अजय बराज योजना के निर्माण में 10. 34 करोड़ की स्वीकृति प्रशासन के तरफ से 1975 में दी गई परंतु अब तक इस योजना में 412 करोड रुपए का वह हो चुका है।

पुनासी जलाशय परियोजना 1982 में शुरू की गई थी जिसका उस समय प्रशासन के द्वारा तय की गई कीमत 26. 90 करोड़ थी अभी इसकी पुनरीक्षित लागत बढ़कर 797. 82 करोड़ हो गई है। इस योजना से चुरा अब तक 50% कार्य भी पूरा नहीं हुआ है। उत्तर कोयल जलाशय परियोजना को मंडल डैम के नाम से जाना जाता है यह परियोजना 1970 में महज 30 करोड़ रुपए में प्रशासन के द्वारा जीके स्वीकृति से शुरू की गई थी, परंतु बरसो काम बंद रहने के कारण प्रधानमंत्री ने इसे इस वर्ष जनवरी में अधूरे कार्य पूरा करने के लिए शिलान्यास किया था जिससे उसकी योजना की लागत बढ़कर 13000 करोड रुपए से भी अधिक हो गई है।Vinayiasacademy.com
झारखंड में सिंचाई की व्यवस्था काफी दयनीय है। विभिन्न तरह के सिंचाई योजना का कार्य प्रगति पर है अगर यह इसी तरह सुचारू रूप से चला तो झारखंड में सिंचाई के लिए मनुष्य को किसी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।


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