झारखंड की जलवायु, मिट्टी तथा वनों पर विस्तार पूर्वक वर्णन?
झारखंड के जलवायु सामान्यता उष्णकटिबंधीय है किंतु पठारी भाग होने के कारण यहां की जलवायु की स्थिति आसपास के क्षेत्रों से भिन्न है। झारखंड प्रदेश उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित है यह क्षेत्र मानसूनी जलवायु के अंतर्गत आने वाले प्रत्येक मौसम के उतार-चढ़ाव से परिपूर्ण है। अतः यहां की जलवायु उसने मानसूनी कही जाती है झारखंड में कर्क रेखा नेतरहाट, किसको, ओरमांझी, गोला, मुरहू सुदी, गोपालपुर, पोखन्ना, गोसाईडीह और पाल कुद्री होते हुए बंगाल की और चली जाती है। अर्थात या रेखा झारखंड के ठीक बीचोबीच गुजरती है जिसके आधार पर इसे गर्म जलवायु का आभास करना पड़ता है। झारखंड की जलवायु में पर्याप्त मात्रा में आद्रता होती है जिसके कारण यह उष्णकटिबंधीय जलवायु से कुछ भिन्न प्रकार की बन जाती है। यहां पर वार्षिक वर्षा 1200 मिली मीटर से 1400 मिली मीटर के बीच में होती है। यह क्षेत्र दक्षिण पश्चिम मानसून के रास्ते में आता है इसलिए कभी-कभी जुलाई से सितंबर के दौरान भारी बारिश होती है, गर्मियों के मौसम के दौरान अधिकतम तापमान यहां 40 सेंटीग्रेड से 45 सेंटीग्रेड तक बढ़ जाता है न्यू में न्यूनतम 8 सेंटीग्रेड तक स्थिर रहता है।
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झारखंड में पाई जाने वाली मिट्टियाँ ः
झारखंड में 6 तरह की मिट्टी पाई जाती है
लाल मिट्टी- यह राज्य की प्रमुख मिट्टी है जो कि छोटा नागपुर के क्षेत्र में लगभग 90% मात्रा में पाई जाती है। यह छोटा नागपुर में दामोदर घाटी की गोंडवाना चट्टानों का क्षेत्र तथा ज्वालामुखी उद्भव के राजमहल उच्च भूमि को छोड़कर संपूर्ण छोटा नागपुर में सामान्यता पाई जाती है। लो खनिज तत्वों की कमी या आदित्य के अनुसार इस मिट्टी का रंग लाल या पीलापन होता है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और सो मच की कमी रहती है इसलिए इसकी उर्वरा शक्ति भी कम होती है।
काली मिट्टी– यह मिट्टी राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है जो कि धान एवं चने की खेती के लिए प्रसिद्ध है। यह मिट्टी बेसाल्ट के अपक्षय से निर्मित है। इसका रंग काला और बुरा होता है यह मिट्टी ग्रेनाइट चट्टानों से बनी हुई है इसमें अत्यंत आभारी कणों से हुआ है इसलिए पानी पड़ने पर यह अत्यंत ल सरदार हो जाती है और पैरों से चिपकने लगती है। इस मिट्टी मैं लोहा चूना , मैग्नीशियम और एलुमिना का मिश्रण होता है।
लैटेराइट मिट्टी– यह मिट्टी रांची के पश्चिमी क्षेत्र में पलामू के दक्षिणी क्षेत्र संथाल परगना के क्षेत्र आदि में पाई जाती है यह मिट्टी उपजाऊ नहीं होती है। इस मिट्टी का रंग गहरा लाल होता है इसमें लोहा ऑक्साइड की प्रधानता होती है तथा या मिट्टी कंकड़ी ली होती है।
अभ्रक मुलक- यह मिट्टी कोडरमा के मांडू बड़कागांव तथा झुमरीतिलैया आदि के क्षेत्र में पाई जाती है जो अभ्रक के लिए काफी प्रसिद्ध है। इसका रंग हल्का गुलाबी होता है निम्न प्रदेशों में नमी के कारण पीला हो जाता है यह मिट्टी रेतीली होती है। इसमें अभ्रक के कणों की चमक रहती है तथा या मिट्टी उपजाऊ होती है लेकिन जल की कमी के कारण इस मिट्टी में कृषि कार्य समुचित रूप से नहीं हो पाता है।
रेतीली मिट्टी– हजारीबाग के पूर्व और धनबाद में या मिट्टी पाई जाती है इसमिट्टी में मोटे अनाज प्रचुर मात्रा में उगाए जाते हैं। इस मिट्टी का रंग लाली युक्त, धूसर कथा पीला होता है।
जलोढ़ मिट्टी- यह मिट्टी मुख्यता संथाल परगना के उत्तरी क्षेत्र में पाई जाती है जो कि धान एवं गेहूं की खेती के लिए काफी उपयुक्त होती है यह मिट्टी खेती के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्णस्थान रखती है।

झारखंड में वनों का विस्तार
झारखंड भारत का एक राज्य है जिसकी रांची राजधानी है। झारखंड की सीमाएं उत्तर में बिहार पश्चिम उत्तर प्रदेश एंड छत्तीसगढ़ दक्षिण में उड़ीसा और पूर्व में पश्चिम बंगाल को छूती है। संपूर्ण भारत में वनों के अनुपात में यह प्रदेश एक अग्रणी राज्य माना जाता है। झारखंड वनस्पतिक एवं जैविक विविधता का भंडार है। यहां अनेक प्रकार के अभयारण्य एवं वनस्पति उद्यान भी मौजूद है जैसे कि बेतला राष्ट्रीय अभ्यारण जो कि पलामू में है डाल्टेनगंज से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह लगभग 250 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है विभिन्न प्रकार के वन्यजीव तथा बाघ हाथी जैसे सैकड़ों तरह के जंगली सूअर एवं 20 फुट लंबा अजगर चित्तीदार हिरण ओके जुड़ शीतल एवं अन्य स्तनधारी प्राणी इस पार्क की शोभा बढ़ाते हैं। इस बार को 1974 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था।
रांची जैसे झाड़ झंकार वाले प्रदेश झारखंड की पहचान और जंगल यहां के रहने वाले लोगों से ही हैं। राज्य की बड़ी आबादी अभी बनो पर ही आश्रित है हाल ही में जहां देश में जंगल घटते जा रहे हैं वहीं झारखंड में वनों का क्षेत्रफल बढ़ता जा रहा है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 200 वर्ग किलोमीटर जंगल बड़े हैं जंगलों पर नक्सलियों और खनन माफियाओं का कब्जा रहा है इसे जंगल की आबोहवा ही बदल गई है।

राज्य सरकार ने झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पार्षद को मजबूत बनाने के लिए एक योजना तैयार की है। हजारीबाग में परिषद के क्षेत्रीय कार्यालय सर प्रयोगशाला के लिए सरकार ने 1.059 एकड़ जमीन हस्तांतरित कराई है तथा रांची में भी एक नई भवन निर्माण की योजना की है। बायो मेडिकल वेस्ट कॉमन डिस्पोजल सिस्टम की स्थापना के लिए प्रक्रिया अंतिम चरण पर है। झारखंड में बाघों की संख्या लगातार घटती जा रही है जबकि इनके रखरखाव पर ज्यादा पैसे खर्च हो रहे हैं अभिक पलामू टाइगर प्रोजेक्ट में 2003 में 38 बाघ थे अब मात्र एक ही बाघ का पता चल रहा है। एशिया में पाए जाने वाले हाथियों की कुल संख्या का करीब 50 पीस दी भारत में पाया जाता है हाल के वर्षों में इनकी संख्या तो बढ़ी है लेकिन इनकी सुरक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जंगल और वहां के रहने वाले लोगों को बचाना है तो वन अधिकार कानून 2006 को सख्ती से लागू करना होगा क्योंकि जंगल हमारी संस्कृति है सरकार की संपत्ति नहीं। सरकार बनो का व्यवसायीकरण कर अधिक से अधिक लाभ कमाने की कोशिश कर रही है जिससे जंगल तो नहीं बचेगा पर्यावरण भी हमारा दूषित होता चला जाएगा। झारखंड का करीब एक तिहाई हिस्सा वनों से आच्छादित है जिसमें पचासी तिथि प्रोटेक्टेड 1 और 15 फ़ीसदी ही रिजर्व फॉरेस्ट हैं प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट पैसायिला का होता है जहां कुछ कार्यों की मनाही है उसे छोड़कर सब कुछ ग्रामीणों द्वारा किया जा सकता है जबकि रिजर्व फॉरेस्ट में यह सुविधा नहीं है। सरकार प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट का सही लाभ वन में रहने वाले लोगों को दे तो जंगलों का नक्शा ही बदल जाएगा।