बजट क्या है इसके महत्व तथा प्रकारों के बारे में विवेचना करें?
लोक प्रशासन का एक महत्वपूर्ण पक्ष है वित्तीय प्रशासन। यह बजट उपकरण के माध्यम से काम करता है और संपूर्ण बजट के चक्र को घेरता है। इसका अर्थ है बजट का निरूपण, बजट का अधिनियम, बजट का क्रियान्वयन, लेखांकन और लेखा परीक्षण। सीपी भांभरी के अनुसार,” वर्तमान अर्थ में इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1773 में ओपनिंग दी बजट नामक व्यंजन रचना में वालपुल की उस वर्ष की वित्तीय योजना के विरोध किया गया था”।
बजट शब्द पुराने अंग्रेजी शब्द बोगेट से बना है। जिसका अर्थ है बोरा या थैला। आगामी वित्त वर्ष के लिए सरकार की वित्तीय कार्यक्रम का संसद में प्रस्तुत करने के लिए ब्रिटिश वित्त मंत्री अपने कागजात चमड़े के थैले से निकालते थे। इस जुड़ाव के चलते थैली का प्रयोग कागजात के लिए विशेष रूप से वित्तीय प्रस्ताव वाले कागजात के लिए किया जाने लगा।
हैरोल्ड और ब्रूस के अनुसार,” बजट किसी संगठन की अनुमानित आय तथा प्रस्तावित व्यय का वित्तीय वक्तव्य है जो आगामी वर्ष के लिए पहले से तैयार किया जाता है।”
विलने के अनुसार,” बजट अनुमानित आय तथा व्यय का विवरण, आय एवं व्यय का तुलनात्मक चित्र और इन सब के ऊपर यह राजस्व एकत्र करने तथा सार्वजनिक धन खर्च करने के लिए सक्षम प्राधिकारी को दिया हुआ प्राधिकार तथा निर्देश है।”
डिमाक के अनुसार,” बजट एक वित्तीय योजना है जो अतीत में वित्तीय अनुभव का अस्तर प्रस्तुत करता है, वर्तमान की योजना बनाता है और भविष्य के एक निश्चित काल के लिए इसे आगे बढ़ाता है।”
रेन गेज के अनुसार,” आधुनिक राज्य में बजट सार्वजनिक प्राप्ति एवं खर्चों का पूर्वानुमान तथा एक अनुमान है और कुछ खर्च को करने तथा अपराधियों को एकत्र करने का अधिकृत ई करण है”।

बजट किसी वित्तीय वर्ष के संदर्भ में सरकार की अनुमानित प्राप्ति और व्यय का विवरण है अर्थात बजट विधायिका को प्रस्तुत और विधायिका द्वारा स्वीकृत सरकार का वित्तीय दस्तावेज है।
बजट का कार्यः
यह विधायिका के प्रति कार्यपालिका की वित्तीय एवं न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
प्रशासनिक पद सोपान तंत्र में वरिष्ठ ओं के प्रति अधीनस्थों की जवाबदेही को सुनिश्चित करता है।
यह सामाजिक और आर्थिक नीति का उपकरण है जिसका कार्य निर्धारण, वितरण स्तरीकरण है।
यह सरकारी कार्यों और सेवाओं के कुशल कार्यान्वयन का रास्ता साफ करता है।
यह सरकारी विभागों की विभिन्न गतिविधियों को एक योजना के अधीन लाकर उनको एकीकृत करता है और इस प्रकार प्रशासनिक प्रबंधन एवं समन्वय को आसान बनाता है।
बजटिंग के प्रणालियांः
मध्यक्रम बजट निर्माणः इसको परंपरागत यार उड़ी गत बजट निर्माण भी कहा जाता है। बजटिंग की इस प्रणाली का विकास 18वीं और 19वीं शताब्दी में हुआ। इसमें खर्चों के उद्देश्य को सामने लाए बिना उनकी मधु पर जोर दिया जाता है और बजट की कल्पना वित्तीय अर्थों में की जाती है। इस प्रकार की बजटिंग का उद्देश्य विधायिका द्वारा कार्यपालिका को स्वीकृत धन की बर्बादी, आय बाय तथा दुरुपयोग को रोकना है। बजटिंग किया प्रणाली सार्वजनिक व्यय पर अधिकतम नियंत्रण का मार्ग प्रस्तुत करती है।
निष्पादन बजट निर्माणः इस प्रणाली का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ और पहले उसे क्रियाशील बजटिंग कहा जाता था। निष्पादन बजट शब्द को पहले हूबर आयोग ने प्रतिपादित किया था। मध्यक्रम बजटिंग के विपरीत निष्पादन बैटिंग खर्चे के बजाय खर्च के उद्देश्य पर जोर देती है। यह बजट को कार्यकलापों, कार्यक्रमों, क्रियाशीलता और परियोजनाओं के अर्थों में प्रस्तुत करती है।

यह प्रत्येक कार्यक्रम और गतिविधि के वास्तविक और वित्तीय पक्षों के बीच संबंध स्थापित करती है। भारत में निष्पादन बजट की सर्वप्रथम सिफारिश संसदीय आकलन समिति ने 1950 में की थी।
भारत में बजट बनाने की इस प्रणाली की उपयोगिता और व्यवहार करें ता का अध्ययन करने के लिए सरकार ने अमेरिकी विशेषज्ञ प्रैंक डब्ल्यू क्राउच को आमंत्रित किया था।
कार्यक्रम बजट निर्माणः निष्पादन बजट की तरह कार्य अथवा नियोजन कार्यक्रम बजटिंग पद्धति की उत्पत्ति भी संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई। इसका सूत्रपात 1965 में राष्ट्रपति जॉनसन ने किया। इसका उद्देश्य ने उपलब्ध कार्यक्रमों में से सर्वश्रेष्ठ का चुनाव करना तथा बजट में धन का आवंटन करते समय आर्थिक अर्थों में सर्वश्रेष्ठ को चुनना है। यह मानना है कि बजट प्रतिद्वंदी दावों के बीच आवंटन करने की प्रक्रिया है जो नियोजन के प्रासंगिक उपायों का प्रयोग करके चलाई जाती है।
शून्य आधारित बजट निर्माणः इसका भी जन्म और विकास अमेरिका में हुआ। इसका निर्माण निजी उद्योग के एक प्रबंधक पीटर अपीयर ने 1969 में किया। अमेरिका में इसको राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने 1978 में लागू किया। निष्पादन बजट इन की तरह जेड बीवी भी बजटिंग की एक तर्कसंगत पद्धति है। इसके अंतर्गत बजट में सम्मिलित किए जाने से पहले प्रत्येक कार्यक्रम की आलोचना आत्मक समीक्षा होती है और शून्य से प्रारंभ कर संपूर्ण तया दोबारा सही सिद्ध किया जाता है।शून्य आधारित बजटिंग में बजटिंग के वर्धन शिव दृष्टिकोण का पुनः परीक्षा करना शामिल है।
शून्य आधारित बजटकी व्याख्या करते हुए सीधी श्रीनिवासन कहते हैं कि,” यह एक क्रियाशील नियोजन और बजटीय प्रक्रिया है जो प्रत्येक प्रबंधक से अपनी बजट की पूरी मांग को शुरुआत से सही सिद्ध करने की अपेक्षा करती है ओड़िया सिद्ध करने के साथ का बोज प्रबंधक पर डालती है कि उसको धन खर्च ही क्यों करना चाहिए और काम बेहतर ढंग से कैसे किया जा सकता है।
शून्य आधारित बजट पद्धति के लाभः
यह निचली वरीयता के कार्यक्रमों को हटाती न्यूनतम कर देती है।
यह कार्यक्रम की प्रभावशीलता को एकाएक बढ़ा देती है।
इसमें अधिक प्रभावी कार्यक्रमों को अधिक धन लाभ मिलता है।
इससे कर वृद्धि में कमी आती है।
इस वर्ष के दौरान बजट समायोजन शीघ्र होता है।
भारत में शून्य आधारित बजट को सबसे पहले 1983 मैं विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग में और तत्पश्चात 1987 के वित्त वर्ष के दौरान सभी मंत्रालयों में लागू किया गया था।

बजटिंग के सिद्धांतः
बजट संतुलित होः इसका अर्थ यह है कि अनुमानित गया है अनुमानित आय से अधिक नहीं होना चाहिए। सरल शब्दों में संतुलित बजट ऐसी बजट है जिसमें अनुमानित व्यय अनुमानित आय से मेल खाते हैं। अगर अनुमानित आय अनुमानित व्यय से अधिक है इसे बचत का बजट कहते हैं। और यदि अनुमानित आय अनुमानित व्यय से कम है तो इसे घाटे का बजट कहा जाता है।
रोकड़ बजटिंगः इसका अर्थ है कि वे और आय का अनुमान तैयार करने का आधार यह होना चाहिए वर्ष के दौरान वास्तव में कितना ब्याज और कितनी आय होने की आशंका है। रोकड़ बजटिंग के विपरीत होती है राजस्व बजटिंग। अंतर्गत बजट अनुमान मांग और देयता के आधार पर तैयार किए जाते हैं। वित्तीय वर्ष के बजट में एक वित्तीय वर्ष के व्यवसाय को उसका ख्याल रखिए बिना जोड़ा जाता है कि उस वित्तीय वर्ष में वास्तव में खर्चे प्राप्त होंगे या नहीं। संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और भारत में रोकड़ बजटिंग प्रचलित है जबकि फ्रांस और यूरोप में राजस्व बजटिंग प्रचलित है।
वित्तीय लेनदेन के लिए एक बजटः इसका अर्थ यह है कि सरकार को अपने सारे राजस्व और व्यय एक ही बजट में शामिल करने चाहिए। एक बजट की विपरीत है बहू बजट। जिसमें अलग-अलग विभागों के अलग-अलग बजट तैयार किए जाते हैं। एक बजट प्रणाली सरकार की संपूर्ण वित्तीय स्थिति अर्थात संपूर्ण बचत या घाटे को प्रकट करती है। संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन में एक बजट प्रणाली प्रचलित है जबकि फ्रांस स्विट्जरलैंड और जर्मनी में बहु बजट। भारत में 2 बजट होते हैं आम बजट और रेलवे बजट।
बजटिंग सरल होनी चाहिए शुद्ध नहींः इसका अर्थ यह होता है कि बजट में सरकार की प्राप्ति और भाइयों के तमाम लेनदेन को पूर्ण और अलग-अलग प्रदर्शित होना चाहिए केवल वही स्थिति या नहीं जो इनके परिणाम स्वरूप पैदा होते हैं। साथियों को व्यस्त घटाने या इससे उल्टा करने और बजट को शुद्ध प्राप्त हुए खर्चों के लिए तैयार करने की पद्धति बजटिंग का स्वास्थ्य सिद्धांत नहीं कारण यह है कि अधूरे लेखा केचलते इसके विथ पर विधायिका का नियंत्रण कम हो जाता है।

अनुमान ठोस होने चाहिएः अनुमानों को यथासंभव सटीक होना चाहिए क्योंकि अनुमान अधिक होने से कराधान अधिक होता है और अनुमान कम होने से बजट का क्रियान्वयन और प्रभावी होता है।
कालातीत का नियमः बजट वार्षिक आधार पर होना चाहिए अर्थात विधायिका द्वारा कार्यपालिका को धन एक वित्तीय वर्ष के लिए दिया जाना चाहिए। अगर फिक्र धन वित्तीय वर्ष के अंत तक खर्च नहीं होता तब तक धनराशि को समाप्त हो जाना चाहिए और इसे कोषागार को लौटा देना चाहिए। इस प्रक्रिया को कालातीत का नियम कहते हैं। भारत और इंग्लैंड में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक का होता है, संयुक्त राज्य अमेरिका में 1 जुलाई से 30 जून तक और फ्रांस में 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक।
राजस्व और पूंजी विभाग अलग-अलग हो ः सरकार के चालू वित्तीय लेनदेन पूंजीगत लेनदेन से अलग होने चाहिए दोनों को बजट के अलग-अलग हिस्सों में राजस्व बजट और पूंजीगत बजट प्रदर्शित करना चाहिए। इसे प्रचालन व्यय को निवेश व से पृथक करना आवश्यक हो जाता है। वित्तीय मामले में राजस्व बजट को चालू राजस्व से और पूंजीगत बजट को बचत तथा उधारी से काट दिया जाता है।
बजट का महत्वः
कौटिल्य,” सारे काम वित्त पर निर्भर हैं। अतः सर्वाधिक ध्यान कोषागार पर देना चाहिए”।
हूवर आयोग,” वित्तीय प्रशासन आधुनिक सरकार का मर्म है”।
डिमाक,” वित्तीय प्रशासन के सभी पक्षों में से बजट निर्माण सबसे ज्यादा नीति संबंधी प्रश्न उठाता है”।
विलो बी,” बजट प्रशासन का अभिन्न और अनिवार्य औजार है”।
बजट के प्रकारः
भारत में बजट पांच प्रकार के प्रयोग किए जाते हैं
आम बजट
निष्पादन बजट
जीरो बेस बजट
आउटकम बजट
जेंडर बजट
आम बजटः इस बजट का मुख्य उद्देश्य सरकारी खर्चों पर नियंत्रण करना तथा विकास कार्यों को गति प्रदान करना है।
निष्पादन बजटः इस बजट का मुख्य उद्देश सरकार जिन कार्यों को पूरा करना चाहती है उस पर आधारित होता है। इस बजट को उपलब्धि बजट क्या कार्य पूर्ति बजट भी कहा जाता है यह के परिणामों के आधार पर बनाया जाता है।
जीरो बेस बजटः आय कम होने और व्यय अधिक होने की परिस्थिति में इस बजट को जारी किया जाता है जिससॆ व्यय पर कटौती कर के घाटों पर अंकुश लगाया जा सके।
आउटकम बजटः किसी मंत्रालय अथवा विभाग के लिए किया जाता है जिसमें बजट में आवंटित की गई राशि का प्रयोग भौतिक लक्ष्यों का निर्धारण और मूल्यांकन के लिए किया जाता है।
जेंडर बजटः भारत सरकार द्वारा निर्मित ऐसा बजट जो कार्य और योजनाओं का आवंटन लिंग के आधार पर करता है जेंडर बजट कहलाता है।