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अर्थव्यवस्थाओं के भुगतान संतुलन के बारे में संक्षिप्त विवरण दें?

खुली अर्थव्यवस्था में व्यापार की बड़ी भागीदारी होती है, इसी व्यापार से मुद्रा की आवक होती है आयात का बिल चुकता किया जाता है निर्यात के लिए विदेशी मुद्रा का अर्जन होता है।
भारत कभी भी अपने निर्यात द्वारा इतने विदेशी मुद्रा नहीं अर्जित कर सका है कि देश में होने वाले आयात के लिए विदेशी मुद्रा में उसकी बिल अदायगी कर सकें। भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है और किस का बढ़ता उप भाग या आवश्यक बनाता है कि निर्यात में वृद्धि कर कच्चे तेल के आयात का भुगतान किया जाए। अर्थव्यवस्था में घरेलू और विदेशी मुद्राएं दोनों ही प्रचलन में होती है। अजब व्यापार में वृद्धि होती है तब एक निगरानी तंत्र की आवश्यकता पड़ती है जो इस बात का लेखा-जोखा करती है कि कितनी विदेशी मुद्रा अर्थव्यवस्था से आयात के कारण बाहर जा रही है और कितनी निर्यात के जरिए अन्य स्रोतों से देश में वापस आ रही है।इसे ही किसी देश का भुगतान संतुलन कहते हैं। अलग और स्वतंत्र रिकॉर्ड रखने वाली व्यवस्था है जिसमें विदेशी मुद्रा में देश में होने वाले सभी प्रकार के लेन-देन का हिसाब रखा जाता है। भारत में बीओपी का हिसाब किताब रखने की जिम्मेदारी भारतीय रिजर्व बैंक की है।


भुगतान संतुलन के प्रकारः
व्यापार संतुलन अथवा व्यापार की वस्तुओं का लेखाः लेखा में विदेशी मुद्रा जिसका उपयोग वस्तुओं के आयात निर्यात में हुआ है उसका हिसाब रखा जाता है। व्यापार संतुलन पता नहीं अभी होगा यदि निर्यात से प्राप्त विदेशी मुद्रा आयात के कारण बाहर जाने वाली विदेशी मुद्रा से अधिक है। दूसरे प्रकार का अकाउंट है अदृश्य का संतुलन जिस प्रकार उत्पादों का आयात निर्यात होता है उसी प्रकार सेवाओं का भी आयात निर्यात होता है बैंकिंग, जहाजरानी, बीमा, सॉफ्टवेयर, कंसल्टेंसी इत्यादि। सेवा क्षेत्र से आयात निर्यात में विदेशी मुद्रा के अर्जुन और बैल का हिसाब रखा जाता है। यहां कुछ और प्रकार के भी लेनदेन तथा विदेशी मुद्रा के माध्यम से होता है जिसका लेखा-जोखा बीओआई में रखा जाता है जो इस प्रकार हैंः
अंतरगामी एवं बहिर्गमी पर्यटनः विदेशी पर्यटकों को भारत आने पर उन्हें अपने देश की मुद्रा को रुपए में बदलना होगा और जब भारतीय पर्यटक देश के बाहर जाते हैं तो उन्हें भारतीय रुपया उस देश की मुद्रा में बदलना पड़ता है।
अंतरगामी एवं बहिर्गमी प्रेषण: लगभग 35 मिलियन भारतीय विश्व के विभिन्न भागों में बसे हैं जिन्हें अप्रवासी भारतीय कहा जाता है। इनमें से काफी भारतीय अपने घरों को पैसा भेजते हैं क्योंकि वह विदेशी मुद्रा में अर्जुन कर रहे हैं अतः यह प्रेषण भी विदेशी मुद्रा में करेंगे जिस मैं बदलकर उनके परिवारों या किसी भी प्राप्त तक को दिया जाएगा इसी प्रकार जो विदेशी भारत में अर्जुन कर रहे हैं वे भी अपने देश में पैसा भेजना चाहेंगे तो उनके लिए भी यही नियम लागू किया जाएगा।
अंतरगामी एवं बहिर्गामी शिक्षाः भारतीय छात्रों द्वारा विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने का चलन दिनों दिन बढ़ता जा रहा है इसके लिए उन्हें अपनी फीस विदेशी मुद्रा में चुकानी पड़ती है। वहां जाकर भारतीय रुपए को विदेशी मुद्रा में बदलना पड़ेगा। ठीक उसी प्रकार जो विदेशी छात्र भारत में शिक्षा ग्रहण करना चाहते हैं उन्हें अपने देश की मुद्रा को भारतीय करेंसी में बदलना होगा।
देश में विदेशी मुद्रा का आगमन बहिगर्मित मुद्रा में ज्यादा है। परंतु CAD की स्थिति में यह दशा विपरीत हो जाती है अर्थात बहिगर्मित मुद्रा आने वाली विदेश मुद्रा में ज्यादा है।
उपरोक्त सभी प्रकार के लेनदेन पूंजीगत अकाउंट लेनदेन कहे जाते हैं बीओपी के पूंजीगत अकाउंट में लिखे जाते हैं करंट अकाउंट का पूंजीगत अकाउंट कैसे किसी देश की बीओपी होती है। बीओपी को एक बैलेंस शीट की तरह बैलेंस करना पड़ता है जिसमें लिंडानी एवं देनदारी में अंतर नहीं हो सकता। इसलिए बीओपी का सुन्न होना आवश्यकता है। अर्थातCAD की स्थिति मुद्रा आवक के आदि माध्यम से चाहे वह विदेशी निवेश हो या अप्रवासी भारतीयों का अकाउंट संतुलित करना ही पड़ेगा और यदि यह दोनों नहीं है तब सरकार को उधार लेकर CAD की कमी को पूरा करना पड़ेगा!


बीओपी को शुन्य करने के कुछ उपाय:
CAS– विदेशी मुद्रा का अधिक आगमन विदेशी मुद्रा भंडार को और भी ज्यादा मजबूती देगा|
CAD– इस स्थिति में यदि पर्याप्त पूंजी का आगमन उधार के अतिरिक्त होता है तो घाटे को समाप्त किया जा सकता है| भुगतान संतुलन की स्थिति को देखकर अर्थव्यवस्था के हालात पर खासकर व्यापार की दृष्टि से टिप्पणी नहीं की जा सकती चाहेCAD अथवा CAS किसी की स्थिति में हो|

बीओपी विदेशी मुद्रा के आगमन और बहिर्गमन का लेखा-जोखा है और इसमें इस आगमन और बहिर्गमन को चालू खाते में संतुलित किया जाता है इस संबंध में वस्तुस्थिति का सही अनुमान पीओपी के चालू खाते को देखकर लगाया जा सकता है।
भारतीय संदर्भ में चालू खाता घाटाः स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हर वर्ग आयात निर्यात के मुकाबले अधिक रहा है अन्य शब्दों में भारत का व्यापार संतुलन हमेशा ही बुरी तरह घाटे में रहा है। वर्ष 2001 से 2002 और 2300 2005 में CAS सकल घरेलू उत्पाद का 1.4% रहा है l इसका मुख्य कारण बड़ी राशि का बचत के रूप में उपलब्ध होना जिससे BOT के घाटे को पूरा किया जा सका| दिसंबर 2008 के बादCAD विश्व आर्थिक मंदी के कारण और भी खराब हो गई 2010 में इस आर्थिक संकट से उबरने के लक्षण दिखने शुरू हो गए थे और सकल घरेलू उत्पाद का या 3.7% हो गया| हालांकि विश्व की अर्थव्यवस्था की दशा भी ज्यादा भी नहीं है। भारत की स्थिति सही है क्योंकि देश में विदेशी निवेश के कारण पूंजीगत अकाउंट में हाल के वर्षों में पूंजी की आवक लगातार हो रही है। यह आवक वर्ष 2005 से 2006 में सकल घरेलू उत्पाद का 3.1% रही है और वर्ष 2006 से 2007 में 5.1% और 2007 से 2008 में बढ़कर या 9.3% हो गई थी।
वर्ष 2005 से 2006 में विदेशी आवाज सकल घरेलू उत्पाद का 3.1% थी जो कि वर्ष 2006 से 2007 में 5.1% और 2007 से 2008 में और बढ़कर 9.3% के स्तर तक पहुंच गई थी। परंतु वर्ष 2012 से ऐसी स्थिति बनी है कि चालू खाता लगातार घाटी में जा रहा है। वर्ष 2012 से 2013 में पूर्व की अपेक्षा सर्वाधिक 4. 8रतिशत के स्तर तक पहुंच गया।
खुली अर्थव्यवस्था मेंCAS का ग्रुप से ज्यादा अच्छा है और CAD की स्थिति नहीं आनी चाहिए क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था अति संवेदनशील हो जाती है और संकट की स्थिति पैदा हो जाती है| भारतीय रिजर्व बैंक भुगतान संतुलन को बनाए रखने के साथ ही चालू खाता और पूंजी आवक पर कड़ी और नजदीकी निगरानी रखता है यह सही भी है सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में ऊंची सभी संकट पूर्ण अर्थव्यवस्थाओं की समान पहचान है।
यदि CAD की कमी को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा उधार ही एकमात्र विकल्प है तब वाकई संकट की स्थिति है और इस प्रकार नहीं किया जा सकता। बिना उधार लिए विदेशी निवेश अप्रवासी भारतीयों को बचत से घाटा पूरा हो सके तभी स्थिति नियंत्रण में मानी जाएगी और यह चिंता का विषय नहीं होगा चालू खाते के संकट को भुगतान संतुलन संकट भी कहते हैं।


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