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जल संसाधन का क्या अर्थ है? तथा कृषि और औद्योगिक विकास में इसका क्या योगदान है का संक्षेप में विवरण दे।

जल एक बहुमूल्य संसाधन है। किसीक्षेत्र में यह विकास का तो किसी क्षेत्र में विनाश का कारण बन जाता है। जनसंख्या का इस तरह से वृद्धि एवं भावी आवश्यकता को देखते हुए जल के एक-एक बूंद की उपयोगिता हमारे लिए बढ़ती जा रही है। जल संरक्षण एवं विकास वर्षा की बूंद का पृथ्वी पर गिरने के साथ ही करना चाहिए। इसके लिए हमें नदी के मार्गों पर बांध एवं जलाशयों का निर्माण करना चाहिए ताकि हमें भविष्य में पीने को शुद्ध पेयजल, सिंचाई, मत्स्य पालन एवंऔद्योगिक कार्य हेतु जल उपलब्ध हो सके। इसके साथ ही बाढों से मुक्ति मिल सके एवं औद्योगिक कार्यों हेतु जल उपलब्ध हो सके।
जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत मानसूनी वर्षा है। ऊपरी महानदी बेसिन में मानसूनी से वर्षा होती है। इस कारण वर्षा की अनियमितता, अनिश्चितता एवं असमान वितरण का पाया जाना संभव है। इस असमानता को करने के लिए जल संसाधन संरक्षण की आवश्यकता है।
जल का संरक्षण-
जब हमें प्रकृति के द्वारा दिया गया अनुपम उपहार है। जिसका विवेकपूर्ण उपयोग हमें करना चाहिए। महानदी बेसिन में जल का मुख्य स्रोत सत्य एवं भूमिगत जल है। सतहीं जल में नदियां, नहरे एवं जलाशय है जब की भूमिका चल में कुआं एवं नलकूप प्रमुख है। इन जल सन ग्राहकों से जल संग्रह कर96.99 प्रतिशत भाग में सिंचाई किया जाता है एवं शेष3.01 प्रतिशत जल का उपयोग औद्योगिक एवं अन्य कार्यों हेतु होता है। औद्योगिक कार्य में बहुतायत से जल का उपयोग हो रहा है जिसे भावी पीढ़ी के लिए जल की गंभीर समस्या बनी हुई है अतः जल संसाधन विकास के लिए जन संरक्षण एवं प्रबंधन करना अति आवश्यक है।

  • जल संरक्षण की समस्याएंः
  • ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन की प्रचुरता है लेकिन जल का विवेकपूर्ण उपयोग ना होने के कारण पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है। अतः जल संसाधन संबंधी समस्या उत्पन्न हो गई है। जो कि इस प्रकार हैः
  • जल की कमी
  • भूमिगत जल संसाधन का अति विदोहन
  • धरातलीय जल का उचित प्रयोग ना कर पाना
  • निरंतर कृषि भूमि का विस्तार
  • शहरीकरण एवं उधोगीकरण
  • जल का अनावश्यक उपयोग
  • वर्षा का पानी
  • जलाशयों एवं जल संग्रह क्षेत्रों की कमी
  • जल शोधन संयंत्रों की कमी


जल संरक्षण के उपायः
ऊपरी महानदी बेसिन में जल का विभिन्न उत्पादन कार्यों में निर्भर उपयोग हो रहा है। जल धरातलीय एवं भूमिगत स्रोतों से प्राप्त हो रहा है। जिसका उपयोग मानव अपनी आवश्यकता अनुसार करता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार प्रतिवर्ष 500 घन मीटर जल का उपयोग किया जाता है, जिसमें घरेलू उपयोग हेतु 16. 7 घन मीटर, औद्योगिक कार्य हेतु 10 घन मीटर तथा ताप विद्युत यंत्र हेतु 2.6 घन मीटर जल का उपयोग शामिल है।
भूमिगत जल विकास लघु सिंचाई कार्यक्रम का एक हिस्सा है इसे व्यक्तिगत एवं सरकारी सहयोग से पूर्ण किया जाता है। पूरी स्थिति पर नजर डालें तो यह देखा जाएगा कि हम जल का उपयोग अनुशासित ढंग से नहीं करते थे तथा जरूरत से ज्यादा जल का नुकसान करते थे संरक्षण की जागरूकता रहने से इस में जल संरक्षण हेतु हमें कई कदम उठाने होंगे जो इस प्रकार हैः
हर नागरिक में जल संरक्षण हेतु जागरूकता लानी होगी।
हर नागरिक सावर की जगह बाल्टी में पानी भरकर स्नान करें।
बर्तन धोते समय नल के स्थान पर टब में प्रयोग करें।
उत्तराखंड जल संसाधन के अनुसार टॉयलेट में लगी प्लस की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में पानी भर कर रख देने से हर बार 1 लीटर जल बचाया जा सकता है।
गांव और शहरों में पहले तालाब हुआ करते थे जिनमें जल एकत्र रहता था जो ना केवल पानी के स्तर को आसपास बचाए रखता था बल्कि दैनिक उपयोग के काम आता था।
गंदे जल का सिंचाई में उपयोग करके भी जल संरक्षण किया जा सकता है।
वर्षा का जल छत पर संरक्षण कर उसका उपयोग करना।

  • पर्यावरण के प्रति जागरूकता जरूरी है क्योंकि पर्यावरण संतुलन का सकारात्मक प्रभाव जल संरक्षण पर पड़ता है। कांटे वृक्षों के कारण भूमि की नामी लगातार कम हो रही है जिससे भूजल स्तर पर बुरा असर पड़ रहा है। इसलिए जरूरी है कि वृक्षारोपण कार्यक्रम हेतु जागरूकता लाई जाए।
  • जल संरक्षण विषय को व्यापक अभियान की तरह सरकारी और गैर सरकारी दोनों अवसरों पर प्रसारित करने की जरूरत है। जिससे छोटे बड़े सभी इस विषय की गंभीरता को समझें और इस अभियान में अपनी भूमिका अदा करें।
  • जल संरक्षण हेतु केंद्र और राज्य सरकार के कानून बनाएं।
  • जल संरक्षण हेतु रेन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक का सहारा लेना चाहिए। यह तकनीक पानी की कमी से निपटने का तरीका भर नहीं है कई बार तो यह भी देखा गया है कि इस तकनीक से इतना जल एकत्र हो जाता है कि दूसरे स्रोत की आवश्यकता ही नहीं पड़ती और यहां तक कि दूसरे को पानी उधार देने में हम सक्षम हो जाते हैं।
  • अतः जल संरक्षण आज के पूरे विश्व की मुख्य चिंता है। प्रकृति हमें निरंतर वायु, जल, प्रकाश आदि शाश्वत गति से दे रही है लेकिन हम विकास की आंधी में बराबर प्रकृति का नैसर्गिक संतुलन बिगड़ते जा रहे हैं। जल संरक्षण हेतु समय रहते चेत जाने की जरूरत है।
  • जल संसाधन के मानव जीवन में उपयोगः
  • जल संसाधन का उपयोग कृषि में सिंचाई के अलावा मनुष्य, पशुओं, औद्योगिक कार्य हेतु किया जाता है। जल एवं मानव का एवं व्यापक संबंध है।
  • जल का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है-
  • सिंचाई- बेसिन में जल संसाधन का कुल उपलब्ध जल राशि का 44% सिंचाई कार्य में प्रयुक्त होता है। बेसिन में 41,165 लाख घन मीटर सतही जल एवं 11132. 93 लाख घन मीटर भूगर्भ जल सिंचाई कार्य में प्रयुक्त होता है। महानदी बेसिन में नदियों के जल को संग्रहित करने हेतु जलाशयों का निर्माण किया गया है जिससे नहरे निकालकर सिंचाई की जाती है। इन नहरों में मुख्य शहर मांडर, अभनपुर, भाटापारा एवं नमन साना है। बेसिन में इनके जल का 26. 99 प्रतिशत सिंचाई के लिए प्रयुक्त होता है। इसमें रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, दुर्ग, राजनांदगांव एवं बस्तर जिले के तहसील का क्षेत्र सम्मिलित है। सिंचाई की सुविधा होने से खरीफ एंड रबी फसलों की कृषि की जाती है। यहां सिंचाई के आर्थिक विकास के लिए छोटी बड़ी सिंचाई परियोजनाएं भी निर्मित की गई है।


औद्योगिक कार्य- औद्योगिक कारखानों के संचालन के लिए जल की खपत होती है। इंजनों, रासायनिक क्रियाओं के लिए, वस्त्र उद्योग में धुलाई, रंगाई छपाई के लिए, लौह इस्पात उद्योग में धातु को ठंडा करने के लिए, कोयला उद्योग में कोक को धोने के लिए, रसायन उद्योग में चारों और अंडों के निर्माण तथा चमरा उद्योगों में भी अधिक मात्रा में शुद्ध जल का प्रयोग होता है। ऊपरी महानदी बेसिन में कोरबा, चंपा, अकलतरा औद्योगिक क्षेत्र में 210. 10 लाख घन मीटर जल मनियारी,खारंग एवं हसदेव बांगो परियोजना से मिलती है। भिलाई इस्पात संयंत्र के लिए 41 लाख घन मीटर जल रवि शंकर सागर परियोजना से प्राप्त होता है।
नौ परिवहन– जल संसाधन का उपयोग मनोरंजन की दृष्टि से महत्वपूर्ण होता जा रहा है। पुपरी महानदी बेसिन में वर्षा के दिनों में नदियों में नौका विहार आने जाने के लिए एवं मनोरंजन के लिए होता है। महानदी के तट के संस्थानों में यह सुविधा उपलब्ध है। भविष्य में बैटिंग के नदियों एवं जलाशयों में जल परिवहन एवं मनोरंजन की दृष्टि से विकास किया जा सकता है। क्योंकि यहां वर्षा काल में इनकी संभावनाएं अधिक होती है।
मत्स्य पालन– मत्स्य पालन जल संसाधन विकास का महत्वपूर्ण अंग है। बेसिन में उपलब्ध जल संसाधन क्षेत्रों में 171 228. 45 हेक्टेयर में 129 040. 86 मत्स्य पालन होता है। यहां स्वच्छ जल की व्यापारिक मछली कतला, रोहू, मृगल आदि का पालन किया जाता है। यहां दुधावा, गंगरेल, मुरूम सिल्ली, सोंदूर एवं मरौदा जलाशयों में 56 280 मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन किया जाता है जिसे 52. 16 लाख रुपए की आय होती है।


पानी की कमी और खेती के तरीके-
भारत का लगभग एक चौथाई हिस्सा सूखे की चपेट में है। बारिश का नामोनिशान नहीं और फसल बुरी तरह से प्रभावित हो रही है विशेषज्ञों का कहना है कि समस्या मानसून पर बहुत अधिक निर्भरता का नहीं बल्कि खेती के गलत और तौर तरीके और पानी के गैर जिम्मेदाराना उपयोग करने से हैं। जल संचयन और कम पानी मैं होने वाली फसलें लगाकर ऐसी स्थिति से बचा जा सकता है जिसे भारत आजकल जूझ रहा है देश में खरीफ की फसल की बुवाई 20% कम हुई है। अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन हमसे भी यह पता चला है कि भूजल के इस्तेमाल को न रोका गया तो भारत को पानी की जबरदस्त कमी का सामना करना पड़ सकता है। देश में सिंचाई की कुल जरूरत का आधा भोजन से पूरा किया जाता है जबकि यह खत्म होने वाला संसाधन है। भारत में सिंचाई के बुनियादी तरीके हैं पंजाब में भाखड़ा नांगल जैसे बड़े बांध या फिर पारंपरिक तलाब या नलकूप। देश में सबसे कम बारिश रेगिस्तानी इलाके जैसलमेर में होती है इस तरह अब तक सिर्फ 3 सेंटीमीटर बारिश हुई है लेकिन फिर भी वहां तालाब लबालब भरे हुए हैं परंतु ठीक इसके विपरीत जहां भरपूर बारिश हुई है वहां की स्थितिबाकी यहां से पूरी विपरीत है। विशेषज्ञों के अनुसार पिछले 30 सालों में ऐसे फसलों की खेती अधिक हो रही है जिन्हें पानी की अधिक आवश्यकता होती है। यह वह फसलें हैं जिनकी बाजार में अधिक कीमत मिलती है अजब मानसून की बारिश कम होती है तो परेशानियां बढ़नी शुरू हो जाती है।
इस समस्या से निपटने के लिए हमें कम पानी वाले पशुओं को लाना होगा। ओरिया उस समय तक नहीं हो सकता जब तक सरकार ध्यान नहीं देती। किसान चने और बासमती की खेती से तब तक हटेंगे जब तक सरकार किसानों के नुकसान की भरपाई करेगी। सरकार ने बारिश के पानी पर निर्भर होने के लिए एक योजना बनाई थी जो कि 2002 में पारित हुई थी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने जोड़ने के लिए एक बहुत बड़े प्रोजेक्ट की घोषणा की थी जिसका खर्च भारत के कुल बजट के आधे के बराबर है।
इसलिए हमें चाहिए की हम इस तरह से पानी का उपयोग करें कि इससे हमारे कृषि पर ज्यादा प्रभाव ना हों।


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