Share it

२.तापमान का ऊर्ध्वाधर वितरण Vertical Distribution of Temperature:-

सामान्य अवस्थाओं में ऊँचाई बढ़ने पर तापमान निरन्तर कम होता रहता है। इनकी दर प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1° सेण्टीग्रेड तापमान कम हो जाता हैं। तापमान के इस प्रकार कम होने से स्पष्ट पता चलता है, कि वायुमण्डल प्रत्यक्ष रूप से धरातल द्वारा ही गरम होती है। सूरज का प्रभाव अप्रत्यक्ष होता है। अतः धरातल के समीप की वायु अधिक गरम होती है। इसके अतिरिक्त भूतल के निकट की हवा भारी होती है, और उसमें जलवाष्प, धूल कण, आदि अधिक मात्रा में रहते हैं। फलतः धरातल के समीप की वायु उससे ऊपर की शुष्क, हल्की तथा स्वच्छ वायु की अपेक्षा अधिक पार्थिव शक्ति को ग्रहण करने में सफल होती है। वायुमण्डल के निचले भागों में वायु की सघनता तथा गर्मी को सुरक्षित रखने वाली गैसों की अधिकता से वायु अधिक उष्ण रहती है, और जेसे जेसे हम ऊपर उठते जाते हैं, उष्णता की कमी आती जाती है। वर्तमान शताब्दी में किए गए शोधकार्यों से स्पष्ट हुआ है, कि ऊँचाई के अनुसार तापमान घटने का नियम एक निश्चित ऊँचाई तक (सिर्फ विक्षोभ मण्डल की सीमा तक) ही लागू होती है। इस ऊँचाई से ऊपर समताप मण्डल में तापमान प्रायः समान होती है। समताप मण्डल के बाद अधिक ऊपर जाने पर पुनः तापमान बढ़ने लगता है।

तापमान का व्युत्क्रमण या ताप विलोमता Inversion of Temperature:-

ऊँचाई के अनुसार तापमान में कमी आती रहती है, किन्तु कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि ऊँचाई बढ़ने पर भी तापमान घटने की अपेक्षा बढ़ती जाती हैं और वायु तहें सामान्य अवस्था के विपरीत, शीतल, उष्ण और अधिक शीतल के रूप में पायी जाती हैं। वायुतहों की ऐसी व्यवस्था है कि तापमान का व्युत्क्रमण या तापमान का प्रतिलोमन कहा जाता है। निम्न विशेष परिस्थितियाँ इस व्युत्क्रमण में सहायक होती हैं-

लम्बी रातें- लम्बी रातें होने से धरातल के ताप का विकिरण समाप्त हो जाता है। तथा रात्रि के अन्तिम प्रहर में धरातल का तापमान वायु की अपेक्षा अधिक बढ़ जाती है।

स्वच्छ आकाश- रात्रि को स्वच्छ आकाश की उपस्थिति में धरातल से विकिरित P ताप वायुमण्डल द्वारा रोका नहीं जा सकता। और वह शीघ्रता से बाह्य आकाश में विकिरित होकर समाप्त हो जाता है। तथा धरातल को ठण्डा रहने का अवसर प्राप्त होता है।

शीतल एवं शुष्क वायु- ऐसी वायु भी विकिरित ताप को न्यून मात्रा में ही सोख पाती है। जिसके कारण वायुमण्डल की ऊपरी सतहों में तापमान अधिक तथा निचली सतहों में कम हो जाता है।

शान्त वायु- वायु के शान्त रहने से संवहन धाराएँ नहीं बन पाती है तथा तापमान में विभिन्न स्तरों पर परिवर्तन नहीं आ पाते हैं।

हिम की उपस्थिति- हिम सूर्य किरणों को प्रत्यावर्तित कर देता है। तथा रात्रि को उससे शीत लहरों का विकिरण होता है।

तापमान का व्युत्क्रमण या प्रतिलोमन के प्रकार Types of Inversion of Temperature:-

तापमान का व्युत्क्रमण सामान्य रूप से तीन प्रकार का होता है-

घरातलीय व्युत्क्रमण Surface Inversion:-

शीत कटिबन्ध के ठण्डे स्थानों पर सर्दियों में या रात्रि में प्रमुख रूप से पाए जाते है। रात्रि में ठण्डी तथा शुष्क वायु प्रवाहित होती है तथा आकाश स्वच्छ रहता है। रात्रि भी शीत ऋतु में लम्बी होती हैं। इस कारण दिन में प्राप्त होने वाला ताप रात्रि में शीघ्रता से विकिरित हो जाता है। भूमि वायु की अपेक्षा शीघ्र ठण्डी हो जाती है, इस कारण रात्रि में धरातल एवं उसके सम्पर्क में आने वाला वायुमण्डल का निचला सिरा अधिक ठण्डा हो जाता है, जबकि ऊपरी स्तर अपेक्षाकृत गरम रहता है।

सम्पकीय व्युत्क्रमण Advectional Inversion:-

ऐसी स्थिति शीतोष्ण चक्रवातों के वाताग्र क्षेत्रों में पाई जाती है। यहां पर ठण्डा सीमान्त (Cold Front) प्राय: गरम सीमान्त (Cold Front) की गरम वायु को ऊँचा उठा देती है। इस कारण नीचे का स्तर ठण्डा तथा ऊपर का अपेक्षाकृत गरम रहती है।

उच्च धरातलीय व्युत्क्रमण Upper face Inversion:-

यह स्थिति बहुधा पर्वतों पर पायी जाती है, जहां कि ठण्डी वायु रात्रि में घाटियों में पहुँच जाती है। तथा उसका स्थान लेने के लिए निकटवर्ती प्रदेश से गरम वायु जाती है। उच्च भाग से घाटियों की ओर प्रवाहित होने वाली शीतल वायु को वायु-प्रवाह कहते हैं।

तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले घटक

भूमध्य रेखा से दूरी या अक्षांशीय स्थिति- किसी स्थान पर उसके अक्षांश के अनुसार ही सूर्य की किरणों का तिरछापन होता है। सामान्यतः भूमध्य रेखा पर सूर्य लम्बवत् चमकता है तथा उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में वर्ष पर्यन्त रहता है। अतः यहाँ अधिक गरमी प्राप्त होती है। भूमध्य रेखा से उत्तर और दक्षिण की ओर जाने पर ताप कम हो जाता है। यही कारण है कि कोलम्बो मुम्बई से अधिक गरम रहता है।

१.सागर से दूरी-
 स्थल की अपेक्षा जल धीरे-धीरे गरम होता है, और धीरे-धीरे ठण्डा होता है। इसी कारण सागर स्थल की अपेक्षा गर्मियों में शीतल और शीतकाल में भी हल्के गरम रहते हैं। इसी भांति तटवर्ती भागों की अपेक्षा दूर वाले स्थानों में ग्रीष्म में अधिक गर्मी और शीतकाल में अधिक सर्दी पड़ती है। तथा सागर के निकटवर्ती भागों की जलवायु सम और दूर वाले स्थानों की जलवायु विषम होती है। इसी कारण मुम्बई की तुलना में दिल्ली की जलवायु विषम रहती है।

२.समुद्रतल की ऊँचाई- 
साधारणतः ऊँचाई के साथ विलोमता साथ तापमान घटता जाता है। प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर 1° सेण्टीग्रेड तापमान कम हो जाती है। जो स्थान समुद्रतल से जितनी अधिक ऊँचाई पर होती है, वह उतना ही ठण्डी होता है। विषुवत् रेखा के निकट समुद्रतल पर बसे सिंगापुर का औसत तापमान 23°  सेण्टीग्रेड है, जबकि विषुवत् रेखा पर 2,851 मीटर की ऊँचाई पर स्थित क्वीटो नगर का औसत तापमान 13° सेण्टीग्रेड है।

३.प्रचलित पवनें- किसी भी स्थान की जलवायु वहां पर चलने वाली पवनों पर ही निर्भर करती है। जब किसी स्थान पर गरम पवनें चलती हैं, तो तापमान को बढ़ा देती हैं। और यदि वहां ठण्डी पवनें चलती हैं तो वे उसके तापमान को नीचा कर देती हैं। ध्रुवों की ओर से आने वाली ठण्डी पवनें शीतकाल में समस्त मध्य एशिया को बहुत ही ठण्डा कर देती हैं। जबकि थार मरुस्थल की ओर से चलने वाली पवने ग्रीष्म में दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तापमान को बढ़ा देती हैं।

४.समुद्री धाराएँ- धाराओं का तटवर्ती भागों की जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जिन तटों के समीप ठण्डी धाराएँ बहती हैं, वहां शीतकाल में तापमान बहुत नीचे हो जाता हैं, और समुद्र तटों पर हिम जम हो जाती है। इसके विपरीत, जिन तटों के समीप गरम धाराएँ बहती हैं, वे तट को गरम बना देती हैं। ऐसे तटों का तापमान शीतकाल में भी काफी ऊँचा रहता है। जिससे वे जमते नहीं।
उदाहरण:- फिनलैण्ड की खाड़ी तथा उत्तरी सागरीय क्षेत्र के समीप से उत्तरी अटलांटिक प्रवाह गरम धारा बहती है। जिससे वहां का तट शीतकाल में भी नहीं जमता, परन्तु उन्हीं अक्षांशों पर स्थित लैब्राडोर का पठार लैब्रोडोर की ठण्डी धारा के कारण वर्ष में नौ महीने हिम से ढका रहता है।

५.भूमि का ढाल- सूर्य के सम्मुख पड़ने वाले ढाल विमुख ढालों की अपेक्षा गर्मियों में अधिक गरम और शीतकाल में कम ठण्डे रहते हैं। इसका कारण यह है कि सूर्य के सम्मुख ढाल पर विमुख ढाल की अपेक्षा सूर्य की किरणें कम तिरछी पड़ती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में हिमालय पर्वत के दक्षिणी ढाल, जो सूर्य के सम्मुख पड़ते हैं, उत्तरी ढालों की अपेक्षा अधिक गरम रहते हैं।

६.मिट्टी की प्रकृति- मिट्टी की प्रकृति का भी जलवायु पर प्रभाव पड़ता है। बालू मिट्टी शीघ्र गरम अथवा ठण्डी हो जाती है। फलस्वरूप मरुभूमि अन्य स्थानों की अपेक्षा गर्मियों में अधिक गरम और जाड़ों में अधिक ठण्डी रहती है। राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भागों में जलवायु की विषमता का एक प्रमुख कारण रहा है, किन्तु चिकनी मिट्टी वाले प्रदेश धीरे-धीरे गरम और ठण्डे होते हैं।

७.मेघ तथा वर्षा- जिन भागों में वर्ष भर वर्षा होती है, और आकाश मेघों से ढके हुए रहते है, वहां गर्मियों का औसत तापमान कम रहता है, क्योंकि मेघ सूर्य की गर्मी का कुछ अंश सोख लेते हैं और कुछ गर्मी वाष्पीकरण क्रिया में नष्ट हो जाती है। इसके विपरीत, शीतकाल में मेघ धरातल से विकिरण को रोक लेते हैं, जिससे शीत ऋतु में वहां का तापमान अपेक्षाकृत अधिक रहता है। मेघ और वर्षा दोनों ही वार्षिक ताप-परिसर को कम करने में सफल होती हैं। यही कारण है कि ब्रिटेन में सामुद्रिक तटों और भारत का मालाबार तट का ताप-परिसर बहुत कम रहता है।


Share it