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सदाबहार क्रांति और इंद्रधनुषी क्रांति के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन करें?

हरित क्रांति के पितामह प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन ने कहा था कि यदि कृषि के मामले में गलती होती है तो अन्य कोई भी चीज सही नहीं रह पाएगी। इसी कारण किसानों के जीवन में बेहतरीन प्रक्रिया को लाने के लिए सभी प्रोग्राम और नीतियों का केंद्र बिंदु बनाना होगा।
किसी भी क्रांति का प्रभाव काफी लंबे अरसे तक रहता है लेकिन इसकी इतनी लंबी भी नहीं होती कि 4 दशक बीत जाने के बाद भी हम हाथ पर हाथ धरे बस उसके नतीजों की ओर आस लगाए बैठे रहे।
हरित क्रांति को हुए 4 दशक का लंबा समय बीत चुका है और हम बदली प्राकृतिक सामाजिक ,आर्थिक तथा वैज्ञानिक परिस्थितियों के अनुकूल अपने आप को ढाल पाने में अक्षम रहे हैं। इसी का परिणाम है कि खेती अब लाभदाई कारोबार नहीं हो पा रहा है। भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों तथा सार्वजनिक व निजी निवेश में लगातार हो रही कमी तथा वैज्ञानिक तरीकों से कृषि उत्पादकता पर असर पड़ रहा है। हम हर क्षेत्र में तरक्की करते जा रहे हैं लेकिन कृषि के क्षेत्र में हमारी रफ्तार धीमी है और आज भी हम पारंपरिक तरीकों और संसाधनों पर निर्भर हैं। रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल से मिट्टी पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर की बात साबित हो जाने के बाद भी सरकारों ने इस पर सब्सिडी जारी रखें
देश की अधिकतर आबादी ग्रामीण इलाके में निवास करती है और उनका मुख्य पेशा कृषि है बात तो बिल्कुल साफ है कि यदि कृषि क्षेत्र में ऐसी गिरावट जारी रही तो हम प्रति व्यक्ति आमदनी बढ़ाने और मानव विकास सूचकांक का ग्राफ ऊपर उठाने में असफल रहेंगे।


ऐसा बिजली परियोजनाएं शुरू नहीं की गई। 25 हजार करोड़ की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, 5000 करोड़ का राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, 111 100 करोड़ का राष्ट्रीय बागवानी मिशन जैसी कई योजनाओं को पहले से शुरू किया जा चुका है।
देश की 121 करोड़ की आबादी का पेट पालने के लिए हमें राष्ट्रीय किसान नीति में किए गए वायदों को पूरा करना होगा इसके लिए हमें विकसित तकनीक और जन्मों की नीतियों का सहारा लेते हुए इस तरह बाहर हरित क्रांति को आकार देना होगा। हमने अपनी पहली हरित क्रांति से लक्ष्यों की प्राप्ति तो कर दी लेकिन हम उन पर इस कदर निर्भर हो गए कि अभी ना सोचा कि प्राकृतिक संसाधनों का इस तरह दोहन हो रहा है जिसके वजह से अत्यधिक भूजल के दोहन और रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशक पानी मिट्टी की उपजाऊ पन पर असर डाल दिया।
21वी सदी में हमें जलवायु परिवर्तन ऊजा के महत्वपूर्ण स्रोत पेट्रोलियम पदार्थों की आसमान छूती कीमतें तथा सुख एवं बाहर जाती आपदाओं की चुनौतियों का सामना करना है तो इसके लिए हमें काफी हद तक विज्ञान प्रौद्योगिकी जैव प्रौद्योगिकी और संचार प्रौद्योगिकी को विकसित करने की जरूरत है। मतलब जलवायु से हमें धरती के तापमान बढ़ने, सूखने एवं बाढ़ जैसे हालात बार-बार पैदा होना, अंडा समुद्री सतह का बढ़ना और वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गैसों का अधिक जमा कृषि के लिए अनुकूल परिस्थितियां नहीं हैं।
भारत नहीं बल्कि पूरे विश्व में एक जैव प्रौद्योगिकी नियंत्रण पद्धति विकसित किए जाने की आवश्यकता है। जिसका आधार वायुमंडल की सुरक्षा उपभोक्ता का स्वास्थ और पूरे राष्ट्र की जैविक सुरक्षा होना चाहिए।

इंद्रधनुष क्रांति
इसे रेंबो प्लानिंग भी कहा जाता है यह सन 2000 में लागू किया गया था इस में हरित क्रांति नीली क्रांति पीली क्रांति सफेद क्रांति दूसर क्रांति रजत क्रांति इन सब का एक मित्र एजेंडा तैयार किया गया था जिसके जरिए किसान की आय को दोगुना करने का लक्ष्य बनाया गया था। यह योजना अटल बिहारी वाजपेई द्वारा लागू की गई थी अर्थात से इसे लगातार रैंबो क्रांति के नाम से जाना जाता है इंद्रधनुष में बहुत सारे रंग होते हैं अर्थात की सात रंग होते हैं वैसे इस क्रांति में 7 क्रांतियां शामिल की गई थी। इस क्रांति का मुख्य उद्देश्य कृषि क्षेत्र में उत्पादन की दर को बढ़ाकर 4% से ऊपर करना था तथा इसमें कृषि को अनुसंधान कार्यों से जोड़ा गया तथा इस अनुसंधान को शिक्षकों को सुनिश्चित किया गया। इसमें अनुबंधित कृषि तथा कृषि क्षेत्र में पूंजी निवेश की अनुमति जैसे उपाय भी अपनाए गए। इंद्रधनुषी क्रांति वस्तुतः दूसरी हरित क्रांति का विस्तार है।


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