खाद्य सुरक्षा तथा इससे संबंधित किए गए कार्यक्रमों का विश्लेषण करें?
खाद्य सुरक्षा की सर्वप्रथम आवश्यकता है , खाद्यान्नों की देश के अंदर उपलब्धि। कोई भी देश अपने खाद्यान्न एवं दूसरे कृषि उत्पादों की जरूरतों के लिए दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहना चाहता है जब तक कि उसके पास सिवाय इसके कोई और विकल्प ना हो। स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर आज तक खाद्यान्न आत्मनिर्भरता के मामले में भारत को एक लंबा सफर तय करना पड़ा है जहां पहले भारत खाद्यान्नों का आयात करता था अब वह अपने घरेलू कृषि उत्पादन में वृद्धि करके आत्मनिर्भर बन चुका है। खाद्य सुरक्षा का मतलब उन लोगों को उचित खाद्य आपूर्ति करना है जो मूल पोषण से वंचित हैं भारत में खाद्य सुरक्षा एक प्रमुख चिंता रही है। संयुक्त राष्ट्र भारत के मुताबिक भारत में लगभग 18.5 करोड़ कुपोषित लोग हैं। जो कि वैश्विक भुखमरी का एक चौथाई हिस्सा है। भारत में लगभग 43% बच्चे लंबे समय तक कुपोषित हैं।
खाद्यान्न के सुरक्षित भंडारः
भारत विश्व के उन कुछ देशों में से एक है जहां की सरकार खाद्यान्न का सुरक्षित भंडारण करती है जिसके निम्न कारण हैः
प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति से निपटने के लिए
फसल चौपट होने की अवस्था में मूल्यों को स्थिर करने के लिए
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत खाद्यान्न मुहैया कराने के लिए

सरकार ने सुरक्षित भंडारण के लिए वर्ष के अलग-अलग महीनों के लिए नियम बना रखे हैं। वर्तमान में गेहूं और चावल की अधिकतम भंडारण सीमा सरकार द्वारा उपर्युक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिए 27 मिलियन टर्न है। खाद्यान्नों का भंडारण भारतीय खाद्य निगम की प्रमुख जिम्मेदारी है। यह निगम सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न खरीद कर देशभर में फैले अपने भंडारों में रखता है जहां से खाद्यान्नों को राज्यों की आवश्यकता अनुसार आपूर्ति किया जाता है। भारतीय खाद्य निगम समय-समय पर भंडारण किया हुआ खाद्यान्न फसल खराब होने की स्थिति में जब मूल्य में उतार-चढ़ाव होता है तब खुले बाजार में भी भेजता है ताकि मूल्य नियंत्रित रहे।
सार्वजनिक वितरण प्रणालीः इस योजना की सबसे बड़ी कमी यह है कि बीपीएल वर्ग का एक बड़ा भाग रियायती दर पर राशन पाने से वंचित रह गया है इस कारण से इस योजना की व्यापकता पर प्रश्न खड़े हुए हैं इस योजना में शामिल होने का आधार केवल आर्थिक है और यह बहुधा कम करके आंका जाता है या रिपोर्ट में शामिल किया जाता है। ऐसा इसलिए संभव है कि देश में राष्ट्रीय आय आंकड़ा जैसे डेटाबेस का अभाव है। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों की जब आए बढ़ती है तो उन्हें तकनीकी रूप से इस सूची से बाहर हो जाना चाहिए परंतु ऐसा नहीं होता इस प्रकार बीपीएल परिवारों की श्रेणी में रहने के पीछे रियायत e-ration प्रोत्साहन जैसा दिखता है और इस कारण कोई भी परिवार इस से बाहर नहीं आना जाना चाहता। अतः वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत सिर्फ प्रवेश और बहिर्गमन ही नहीं सिद्धांत का काम कर रहा है जिसे सरकार के ऊपर वित्तीय छूट देने का बोझ बढ़ता जा रहा है और वास्तविक लाभार्थियों तक योजना पूरी तरह से नहीं पहुंच पा रही है। एक दूसरी समस्या है सार्वजनिक वितरण प्रणाली के राशन की बड़े पैमाने पर कालाबाजारी जमाखोरी और उसे खुले बाजार में बेचने की। सरकारी सूत्रों के अनुसार लक्षण मुख्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लगभग 20% राशन खुले बाजारों में बिक जाता है इस खाद्यान्न की गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में इसलिए है कि खाद्य निगम की भंडारण व्यवस्था असंतोषप्रद है। यहां सबसे बड़ी अहम बात यह है कि जिन गरीब परिवारों के लिए यह योजना बनी है उनतक यहराशन पहुंची नहीं पाता। बड़े पैमाने पर राशन की बर्बादी और राशन को भ्रष्टाचार द्वारा गलत दिशा में पहुंचा देना जैसी समस्याएं अपनी जगह है विडंबना यह है कि भारत में जहां आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न सुरक्षा भंडारों में खाद्यान्न जमा हो सरकार द्वारा अधिक रियायतें दी जा रही हूं फिर भी देश में भुखमरी हो और 270 मिलीयन गरीब निवास करते हो तो यहां खाद्य सुरक्षा पर ही प्रश्न उठ जाता है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियमः लोक सभा द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 3 जुलाई 2013 को पारित किया गया। यह अधिनियम भारत की कुल आबादी का 67% जनसंख्या को ढढरियायती दर पर खाद्यान्न सुलभ होने का अधिकार देता है और इस में ढिलाई बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध दंड का भी प्रावधान है। यूपीए-2 सरकार द्वारा लिए गए इस ऐतिहासिक फैसले से 22 बिलियन डॉलर यह महत्वाकांक्षी कल्याणकारी योजना एक अध्यादेश द्वारा प्रारंभ की गई जिसके माध्यम से देश की सैकड़ों मिनियन निर्धन जनता को रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध हो सकेगा। यह अध्यादेश 10 सितंबर 2013 को लोकसभा द्वारा मंजूर किया गया। जिसका उद्देश्य मानव जीवन चक्र में खाद्यान्न और पोषण की सुरक्षा की जानी थी। इसमें यह भी सुनिश्चित किया गया कि निर्धन जनता को उचित और रियायती मूल्य पर खाद्यान्न सम्मान पूर्वक जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराया जाए। यह कानून ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 75% और शहरी क्षेत्र की लगभग 50% आबादी को लाभान्वित करता है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के विशेष प्रावधान इस प्रकार हैंः
ग्रामीण क्षेत्र में तीन चौथाई आबादी और शहरी क्षेत्र में लगभग आधी आबादी को 5 किलोग्राम अनाज रियायती दर पर( चावल 3 रुपया प्रति किलो, गेहूं ₹2 प्रति किलो, मोटा अनाज ₹1 प्रति किलो) उपलब्ध होगा।
अत्यंत निर्धन परिवार ” अंत्योदय आने योजना” के अंतर्गत 35 किलोग्राम अनाज प्रति माह रियायती दरों पर प्राप्त करेगा।
गर्भवती महिलाएं और शिशु को स्तनपान कराने वाली महिलाओं को जननी लाभ के रूप में ₹6000 मिलेंगे।
6 से 14 वर्ष आयु के बच्चों को या तो घर ले जाने के लिए राशन या पका हुआ खाना प्राप्त होगा।
केंद्र सरकार खाद्यान्न को परिवहन से धुलाई और उसके प्रबंधन के लिए सहायता प्रदान करेगी।
महिलाओं को घर चलाने के लिए अधिक अधिकार देने के उद्देश्य से वरिष्ठ गृहणी को घर के मुखिया के हैसियत से राशन कार्ड उसके नाम से चाहिए होगा।
राज्य योजनाएंः तमिलनाडु सरकार ने अम्मा उन्नाव गम भोजनालय शुरू किया है जिसे सामान्यता अम्मा कैंटीन कहा जाता है ।छत्तीसगढ़ सरकार ने छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2012 को पारित किया। राज्य विधानसभा द्वारा यह अधिनियम 21 दिसंबर 2012 को निर्विरोध पारित किया गया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि राज्य के लोगों को गरिमा पूर्ण जीवन जीने के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन और पर्याप्त पोषण की अन्य आवश्यकताएं हर समय हर कीमत पर उपलब्ध हो।

खाद्य सुरक्षा के लिए क्या किया जाएः सर्वप्रथम एक ऐसे तंत्र की आवश्यकता है जिसके द्वारा गरीब जनता की सही पहचान की जा सके। ” गरीब रेखा के नीचे” का सूचक कार्ड धारकों को अंतिम रूप से इसका पात्र बताने का प्रमाण है परंतु यह निर्धारित करने में असफल रहा है कि इसके धारक वास्तव में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोग ही हैं। भारत में खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है। सरकार ने भारत विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की स्थापना करके जियो पंजीकरण के माध्यम से 12 अंकों की एक विशिष्ट पहचान देने की महत्वकांक्षी पहल की है। यह अपने आप में इतने बड़े अस्तर का विश्व में अकेला अनूठा प्रयास है जिसे आधार प्रोजेक्ट के नाम से जाना चाहता है। या विशिष्ट पहचान नंबर व्यक्ति की पहचान तो करेगा परंतु वह निर्धन है या नहीं और उसके उपभोग खर्च का ब्यौरा क्या है इसकी जानकारी नहीं दे सकता और बिना इस जानकारी के पात्रता की पहचान नहीं हो सकती। सार्वजनिक वितरण प्रणाली जिसमें भंडारण खाद्यान्नों की धूल गरीबों में वितरण इन सारी प्रक्रियाओं में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए पूरे देश में कंप्यूटरीकृत निगरानी की व्यवस्था होनी चाहिए कितना मुश्किल है परंतु सरकारी स्तर पर आधार कार्ड आधारित पूरी जनसंख्या का डाटाबेस तैयार किया जा सकता है इसके बाद खाद्यान्न मैनेजमेंट प्रणाली संभव है। हमें भविष्य में खाद्यान्न भंडारण क्षमता में 15 से 20 मिलियन टन की वृद्धि करने की आवश्यकता है। भारत की सबसे बड़ा केंद्र बिंदु है रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना भारत को इस दिशा में प्रयास करना है कि अधिकांश जनसंख्या को दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा चक्र में लाया जा सके। इसके लिए उनकी सापेक्ष योग्यता के अनुसार उन्हें जीवन यापन का अवसर मिले और अपनी आय से इच्छा अनुसार खाद्यान्न खरीद कर खा सके इसके लिए कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी करके आपूर्ति श्रृंखला को सुदृढ़ करने की जरूरत है जिससे कि न्यूनतम पोषण पैकेज उचित मूल्य पर निर्धन परिवारों के लिए हमेशा उपलब्ध हो ।