तापमान की माप Measurement of Temperature:-
तापमान को मापने के लिए तीन प्रकार के पैमाने काम में लाए जाते हैं, जिन्हें फारेनहाइट, सेण्टीग्रेड और रियूमर (Reaumur) कहते हैं। फारेनहाइट पैमाना 180 बराबर भागों में बंटा रहता है। इसमें हिमांक बिंदु (Freezinz Point) 32° और क्वथनांक बिंदु (Boiling Point) 212° होते हैं। सेन्टीग्रेड पैमाना 100 भागों में बंटा रहता है। इसमें हिमांक बिंदु 0° और क्वथनांक बिंदु 100° माना जाता है। तापमापी यंत्र (Thermometers) सामान्यतः इन दोनों पैमाने पर ही बने होते हैं। इसके अतिरिक्त अधिकतम न्यूनतम तापमान मापने के लिए अधिकतम और न्यूनतम तापमापी काम में लाया जाता है। इस यन्त्र में लकड़ी के एक तख्ते पर दो तापमापी लगे होते हैं। इनमें से एक अधिकतम तथा दूसरा न्यूनतम ताप प्रकट करते है।

- अधिकतम तापमापी में पारा भरा होता है और पारे के ऊपर एक लोहे का संकेतक रहता है। दिन में गर्मी से पारा फैलता है। पारे के फैलने से संकेतक ऊपर चढ़ जाता है, परन्तु पारे के सिकुड़कर नीचे उतर जाने पर संकेतक नीचे नहीं उतर पाता, क्योंकि उसके नीचे एक कमानी लगी रहती है। इस प्रकार संकेतक की स्थिति से दिन भर के अधिकतम तापमान को जाना जा सकता है। वर्तमान में न्यूनतम एवं अधिकतम तापमापी एक साथ मिले होते हैं।
उपर्युक्त °C और °F पैमाने अधिक प्रचलित हैं। लेकिन विशेष उद्देश्यों में रियूमर(°R) का भी प्रयोग होता है। °R में हिमांक बिंदु 0° तथा क्वथनांक बिंदु 80° और सम्पूर्ण मापन 80 बराबर भागों में बंटा होता है। एक पैमाने से दूसरे पैमाने में परिवर्तन के निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं-
C/5 = F-32 / 9 = R/4
तापलेखी Thermograph
- तापमान का स्वयं-सूचक यन्त्र होता है।
- इसमें दो धातुओं (जिनके प्रसारण गुण भिन्न होते हैं) की दो पतियाँ लगी रहती हैं।
- इसके एक सिरे पर पेंसिल लगी रहती है, जिसकी नोंक एक घूमते हुए ढोल को छूती है।
- तापमान के घटनेबढ़ने पर धातु की पती पर जो प्रभाव होता है उससे पेंसिल ऊंची=नीची होती है, और नोंक से ढोल पर चिपके ग्राफ कागज पर उसकी एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा खिंच जाती है। इस रेखा से हमें तापमान के सभी परिवर्तन ज्ञात हो जाते हैं।

दैनिक ताप परिसर Daily Range Temperature:-
- दिन और रात के अधिकतम और न्यूनतम तापमान के अन्तर को दैनिक ताप परिसर कहा जाता है। इससे जलवायु की विषमता का पता लगता है। इसकी विशेषताएँ निम्न हैं-
- विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर दैनिक तापपरिसर घटता जाता है। भूमध्य रेखा पर कम तथा मरुस्थलीय क्षेत्रों में यह सर्वाधिक रहती है।
- मेघ तथा जल-वाष्प की उपस्थिति में यह अधिक नहीं हो पाती है। मेघ कम्बल का कार्य करते हैं। वे सूर्य किरणों के ताप को सोखकर दिन में तापमान को अधिक बढ़ने तथा विकीर्ण ताप रोककर रात्रि में अधिक घटने से रोकते हैं। फलस्वरूप ताप-परिसर अधिक नहीं हो पाती है।
- ऊँचाई बढ़ने के साथ तापपरिसर घटता रहता है।
- सागरों तथा जलाशयों की निकटवर्ती स्थिति से भी तापपरिसर अधिक नहीं होने पाता, किन्तु महाद्वीपों के भीतरी भागों में यह अधिक रहता है।
- हिम की उपस्थिति से तापपरिसर बढ़ता है, क्योंकि उससे विकिरण शीघ्र होता है।
तापमान:-वायुमंडल एवं भूपृष्ठ के साथ सूर्यताप की अन्योन्य क्रिया द्वारा जनित ऊष्मा तापमान के रूप में मापा जाता है।तापमान किसी वस्तु की उष्णता की माप है। अर्थात्, तापमान से यह पता चलता है कि कोई वस्तु ठंढी है या गर्म।
उदाहरणार्थ, यदि किसी एक वस्तु का तापमान 20 डिग्री है और एक दूसरी वस्तु का 40 डिग्री, तो यह कहा जा सकता है कि दूसरी वस्तु प्रथम वस्तु की अपेक्षा गर्म है।

एक अन्य उदाहरण – यदि बंगलौर में, 4 अगस्त 2006 का औसत तापमान 29 डिग्री था और 5 अगस्त का तापमान 32 डिग्री; तो बंगलौर, 5 अगस्त 2006 को, 4 अगस्त 2006 की अपेक्षा अधिक गर्म था।
गैसों के अणुगति सिद्धान्त के विकास के आधार पर यह माना जाता है, कि किसी वस्तु का ताप उसके सूक्ष्म कणों (इलेक्ट्रॉन, परमाणु तथा अणु) के यादृच्छ गति (रैण्डम मोशन) में निहित औसत गतिज ऊर्जा के समानुपाती होता है।
तापमान अत्यन्त महत्वपूर्ण भौतिक राशि है। प्राकृतिक विज्ञान के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों (भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, जीवविज्ञान, भूविज्ञान आदि) में इसका महत्व दृष्टिगोचर होता है। इसके अलावा दैनिक जीवन के सभी पहलुओं पर तापमान का महत्व है।