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भारत के प्राकृतिक संसाधन:-

  • प्राकृतिक संसाधन व संसाधन होते हैं जो मानव जाति के कार्यों की बिना मौजूद है दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं जो अपने अपेक्षाकृत मूल प्राकृतिक रूप में मूल्यवान माने जाते हैं उन्हें प्राकृतिक संसाधन कहते है
  • प्राकृतिक संसाधन के महत्वपूर्ण तथ्यप्राकृतिक संसाधन सामान्य रूप से प्रकृति के द्वारा दिया गया एक अनुपम उपहार है। जैसे कि सूरज की रोशनी, जल, मिट्टी और हवा। यह सारे संसाधन मनुष्य के हस्तक्षेप के बिना स्वाभाविक रूप से उत्पादित होते हैं जो कि प्रकृति में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं ऐसे भी संसाधन हैं जो आसानी से नहीं मिलते जैसे खनिज और जीवाश्म ईंधन। प्राकृतिक संसाधन के संसाधन होते हैं जो प्रकृति द्वारा उपलब्ध कराए जाते हैं। प्राकृतिक संसाधन को दो भागों में बांटा जाता है-
  • नवीकरणीय संसाधन– ऐसे संसाधन जिसको हम बार-बार उपयोग में ला सकते हैं नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं।
  • आ नवीकरणीय संसाधन वैसे संसाधन है जिन्हें दोबारा उपयोग में नहीं लाया जा सकता है अर्थात जिसके निर्माण में बहुत ही लंबा समय लग जाता है और नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं।
  • भारत की कृषि तरफ जलवायु क्षेत्रों की विशाल श्रंखला, भूमि एवं वन का भंडार, जैव विविधता की संपन्न सिलता इसे विश्व के सर्वाधिक संपदा संपन्न राष्ट्रों में से एक बनाती है। भारतीय भूमि में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र अनेक प्रकार की जैविक एवं और जैविक संसाधनों के भंडार से भरे पूरे हैं। जैविक संसाधनों में वन, पशुधन, मछलियां, कोयला ,पेट्रोल एवं जैविक संसाधनों में भूमि, स्वच्छ जल, वायु यो अनेक धात्विक खनिज और अधात्विक खनिज सम्मिलित होते हैं। हम सभी जानते हैं कि भारत प्राकृतिक एवं मनुष्य धन दोनों ही संसाधनों में धनी है। यहां आवश्यकता मात्र प्राकृतिक संसाधनों के प्रभावपूर्ण एवं क्षमता पूर्ण दोहन की है जिससे कि देश के मनुष्य धन का अधिकतम कल्याण किया जाए।
  • भारत के विशाल प्राकृतिक भंडार से संबंधित कुछ तथ्य इस प्रकार हैं-
  • भारत 3287 260 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्र के साथ विश्व का सातवां सबसे बड़ा राष्ट्र है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के ” खाद्य एवं कृषि संगठन” अनुमानों के अनुसार भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20 से 21% भाग वनों से आच्छादित है।
  • भारत मे 360 400 1 किलोमीटर की जलियाक्षेत्र एवं औसत वर्षा 1 100 मिली मीटर है।
  • भारत में 8118 किलोमीटर की तटीय क्षेत्र सीमा, 3827 मछुआरे गांव एवं वन फोर मछली पकड़ने के केंद्र हैं।
  • भारत विश्व के 7% वनस्पतियों का भंडार है। भारत में फूलों वाली वनस्पतियों की 15000 जनजातियों के साथ वनस्पतियों की 45000 प्रजातियां पाई जाती है।
  • भारत में चार प्रकार के इंजन, 11 धात्विक, 52 अधात्विक एवं लघु खनिजों का भंडार है। भारत विश्व में कोयला भंडार में चतुर्थ, लौह अयस्क उत्पादन में पंचम, मैग्नेट अयस्क भंडार में सप्तम, बॉक्साइट भंडार में पंचम एवं थोरियम में प्रथम स्थान रखता है।
  • 125 मिलीयन मेट्रिक टर्न के तेल भंडार के साथ भारत एशिया प्रशांत महासागर क्षेत्र में तेल भंडार में द्वितीय स्थान पर स्थित है।
  • भारत में अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का भी बहुत भंडार है जैसे कि पवन ऊर्जा, बायोगैस, सौर ऊर्जा, ज्वार भाटा ऊर्जा आदि। भारत विश्व का प्रथम राष्ट्र है जिसने और परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का मंत्रालय सन 1980 में स्थापित किया। भारत पवन ऊर्जा क्षमता का पांचवा सबसे बड़ा देश है।
  • दुर्भाग्यवश साधनों का अत्यधिक दोहन के फल स्वरुप इनमें से कई संसाधनों का क्षय हो चुका है जो कि इस प्रकार है-
  • बढ़ती हुई जनसंख्या एवं नगरीकरण के कारण भारत की उपजाऊ भूमि लगातार कम होती जा रही है। भारत में कुल 17051 वर्ग किलोमीटर भूमि बंजर अथवा अन्य उप जाने के योग्य नहीं है तथा भारत में प्रति वर्ष 2.6 प्रतिशत की दर से शहरीकरण भर रहा है। इसके अतिरिक्त भूमि मृदा की गुणवत्ता में भी कमी आई है। जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उत्पादित खाद्यान्नों पर पड़ रहा है।
  • भारत में प्रति व्यक्ति वन भूमि की उपलब्धता विश्व में सर्वाधिक कम है। वनों का क्षय एक महत्वपूर्ण समस्या है।
  • भारतीय नदियां औद्योगिक कचरा, धार्मिक अनुष्ठान एवं वशिष्ठ मृदा इत्यादि को फेंकने के लिए जो ना केवल नदियों अपितु भूमिगत जल एवं समुद्रों को भी दूषित करता है।
  • उद्योगों से निकलने वाली हानिकारक कैसे वायुमंडल में काफी मात्रा से बढ़ रही है भारत में विश्व मैं कार्बन डाइऑक्साइड का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। तथा भारत में होने वाली मृत्यु का पांचवा सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है।
  • भारत में कोई भी प्राकृतिक संसाधन प्रबंध उपाय तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयास न किया जाए जो कि इस प्रकार है-
  • भूमि संसाधन।
  • जल प्रबंधन।
  • मृदा स्वास्थ्य।
  • समस्या उत्पन्न करने वाली मृदा का प्रबंध।
  • मृदा एवं जल संरक्षण।
  • खाद्यान्न विविधीकरण।
  • कृषि एवं वन प्रबंध।
  • बंजर भूमि प्रबंध।
  • भारत में प्राकृतिक संसाधन प्रबंध की समस्याएं एवं चुनौतियां।
  • जनसंख्या का बढ़ता दबाव।
  • तेजी से बढ़ते हुए शहरीकरण एवंऔद्योगिकीकरण की लालसा।
  • तेजी से बढ़ता हुआ जल एवं वायु प्रदूषण।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन जो कि जैव विविधता को प्रभावित कर रहा है।
  • प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता।
  • नियमों एवं अधिनियमों का सख्ती से पालन ना होना।
  • संरक्षण संबंधी उपकरणों की ऊंची कीमत।
  • महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशिक्षण सेवाएं आदि में कम पहुंच ।
  • इको फ्रेंडली तक नहीं क्यों का ग्रामीण क्षेत्रों में कम प्रचार-प्रसार।
  • कृषि के अधिकतर क्षेत्रों में सीमित तथा किसी संभावना का ना होना।
  • उपरोक्त उपायः
  • उपरोक्त समस्त समस्या एवं चुनौतियां केंद्र सरकार राज्य सरकार एवं विभिन्न विकास संस्थान द्वारा ही हल की जा सकती है। इसके तहत लिए गए कुछ उपाय इस प्रकार है-
  • नदियों में कचरा डालने पर रोक एवं वर्षा जल संरक्षण।
  • यूको आपस में इस प्रकार जोड़ना की बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के अधिक जल का प्रयोग सूखाग्रस्त क्षेत्रों में किया जा सके।
  • जैव विविधता के कारण संरक्षण हेतु राष्ट्रीय पार्कों एवं वन्य जीव अभयारण्य की स्थापना करना।
  • लोगों के हानिकारक गैसों के उत्सर्जन का सख्त प्रमाणीकरण।
  • कचरे के प्रबंध में 3R का प्रयोग रिड्यूस, रीसायकल और रीयूज।
  • उद्योगों के हानिकारक गैसों के उत्सर्जन का सख्त प्रमाणीकरण।
  • बेकार पड़ी भूमि पर बांस यूकेलिप्टस इत्यादि की खेती करना।
  • महिलाओं का सशक्तिकरण।
  • पर्यावरण के नियमों का सख्ती से पालन करना।
  • भूमि संसाधन– भारत का विशाल एवं विविधता पूर्ण आकार सर्वाधिक महत्वपूर्ण संसाधन है। कुल भूमि का लगभग 43% मैदानी क्षेत्र खेती के लिए उपयुक्त आधार प्रदान करता है। तथा 30% पर्वतीय भाग प्राकृतिक संसाधनों का भंडारण गृह है और 27% भूक्षेत्र में पठारों का विस्तार है। क्योंकि भूमि एक सीमित संसाधन है और बढ़ती माना एवं जंतु आबादी ने साल दर साल भूमि उपलब्धता में कमी की है। 1951 में प्रति व्यक्ति भूमि उपलब्धता 0.89 हेक्टेयर थी 1991 मैं यह घटकर0.37 हेक्टेयर रह गई और 2035 तक इसके0.20 हैप्पी रह जाने की अपेक्षा की गई है।
  • भूमि का उपयोग- भूमि उपयोग का तात्पर्य मानव द्वारा धरातल के विभिन्न रूपों में प्रयोग किए जाने वाले कार्यों से है ।भूमि का प्रमुख उपयोग फसलों के उत्पादन के लिए किया जाता है ,तथा इसका अनुपयोगी यातायात मनोरंजन आवास उद्योग तथा व्यवसाय आदि जैसे कार्यों के लिए होता है ,साथ ही वन की भूमि का उपयोग चारागाह के रूप में तो होता ही है साथ ही साथ उसे मनोरंजन के रूप में प्रयोग भी लाया जाता है। हमें अभी देखना होता है कि जो भूमि बेकार पड़ी हुई है उसे उपयोग के लायक बनाया जाए तथा उसे कृषि योग्य बनाया जाए। कुछ अर्थशास्त्रियों ने भूमि उपयोग के स्थान पर भूमि संसाधन उपयोग शब्द का प्रयोग किया है इस संदर्भ में उनका कथन है कि जब मनुष्य भूमि का उपयोग अपनी आवश्यकता और इच्छाओं के अनुरूप करने में सक्षम हो जाता है तो उसमें भूमि एक संसाधन के रूप में परिवर्तित हो जाती है दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि जब किसी क्षेत्र का भूमि उपयोग वहां की आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में संपन्न हो रहा हो तो वह प्राकृतिक पर्यावरण का प्रभाव कम हो गया उस अवस्था में उसे” भूमि संसाधन उपयोग” कहते हैं।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था की भौगोलिक स्थिति भौतिक संरचना और विविध प्रकार की जलवायु विभिन्न प्रकार की वृक्ष और वनस्पतियों के उद्गम और विकास की पोषक है। इसी कारण भारत में विभिन्न प्रकार की 1 और वनस्पतियां पाई जाती है। अर्थव्यवस्था के पर्यावरणीय असंतुलन और वनों से मिलने वाले अधिक लाभ की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के भौगोलिक क्षेत्रफल में अपेक्षित स्तर तक वनों का होना आवश्यक है और आज जब अर्थव्यवस्थाओं में औद्योगिक क्रियाओं को प्रमुखता और प्रोत्साहन दिया जा रहा है तब वह क्षेत्र का अपेक्षित मानक से कम होना अर्थव्यवस्था के लिए घातक भी होगा। सामान्यतया अपेक्षा की जाती है देश के 33% भूभाग पर वनों का होना आवश्यक है। परंतु भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल पर वन क्षेत्रीय स्तर से अत्यंत कम हो रहा है। शासनकाल में वनों के विकास के लिए जो कुछ प्रयास हुए उनका वन क्षेत्र के प्रचार में कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं हुआ। वन संपदा प्रकृति की एक अप्रतिम कृति है जो कि एक नवीकरणीय संपदा है जिसका अस्तित्व समाज को तात्कालिक लाभ तो देता ही है साथ ही साथ परोक्ष रूप से जीव जगत के अस्तित्व का आधार भी होता है यह आर्थिक दृष्टि से लाभदायक है ही साथ ही साथिया पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। कुछ भूमि का उपयोग गैर कृषि भूमि के रूप में भी होता है इसमें उस प्रकार की भूमि को सम्मिलित किया जाता है जो भवन, सड़क रेल मार्ग आदि के प्रयोग में है तथा साथ ही साथ वैसी भूमियाँ जो जल प्रवाहों तथा नदियों या नहरों के अंतर्गत है वह भी इसी में सम्मिलित है।
  • कुछ भूमि का प्रयोग बंजर कृषि योग्य भूमि के नाम पर होता है इस श्रेणी में वैसी भूमिया आती हैं जो कि कृषि योग्य नहीं होती है। स्कूटी में रेगिस्तानी भोमिया आती है इन भूमियों का अत्यधिक लागत के बिना फसलों के अंतर्गत में नहीं लाया जा सकता है। कुछ भूमियों का उपयोग चारागाह के रूप में होता है इसके अंतर्गत चराई वाली भूमिया सम्मिलित होती है ज्यादातर प्रकार की भूमि ग्राम समूह के अंतर्गत आती है। कुछ भूमि का उपयोग परती भूमि के रूप में किया जाता है जैसे कि जो पहले कृषि के अंतर्गत थी परंतु अब परंतु उसे चालू वर्ष में पढ़ती रखा जाता है। कुछ भूमि का उपयोग अन्य प्रति भूमि के अंतर्गत आता है भूमि आती है जो पहले कृषि के योग्य थी परंतु अब अस्थाई रूप से 1 वर्ष की अवधि से परंतु 5 वर्ष की अवधि से मैं खेती के अंतर्गत नहीं आती है। ।
  • कृषि भूमि उपयोग-
  • कृषि भूमि से अभिप्राय उस भूमि से है जिसका उपयोग कृषि फसलों के उत्पादन में होता है इसके अंतर्गत भूमि के उपयोग के तीन उत्पादन शुद्ध बोया गया क्षेत्र, सिंचित क्षेत्र तथा एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र का अध्ययन किया जाता है।
  • शुद्ध बोया गया क्षेत्र- भूमि उपयोग का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष शुद्ध कृषि भूमि से है, इसके उपयोग की विभिन्न अवस्थाओं से मानव के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास स्तर का परिचय प्राप्त होता है। कृषि भूमि मुख्यता सिंचाई के साधनों, उर्वरकों, उन्नतशील बीजों, नवीन कृषि यंत्रों एवं प्राविधिक ज्ञान से प्रभावित होती है। सभ्यता के आदिकाल से ही मनुष्य प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण से समायोजन स्थापित करते हुए भूमि का सर्वाधिक उपयोग करता आ रहा है। काल क्रम में जब भूमि उपयोग प्रारूप के निर्धारण में मानवीय पक्ष निर्णायक होने लगता है तब भूमि की संसाधनता में वृद्धि होने लगती है एवं आर्थिक स्तर ऊंचा होने लगता है।
  • सिंचित क्षेत्र- भूमि उपयोग को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारकों मैं सिंचाई का महत्वपूर्ण स्थान है। लगभग 100 वर्ष पूर्व संपूर्ण क्षेत्र वनाच्छादित था जनसंख्या विरल होने के कारण भूमि पर जन भार कम था और कृषि जीवन कान के लिए परंपरागत ढंग से की जाती थी। हाल के वर्षों में विद्युत, डीजल 40 नलकूपों तथा नेहरू द्वारा सिंचाई के साधनों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। कुछ अध्ययनकत्ता के अनुसार रवि की फसल क्षेत्र की औसत रूप से 89.38 प्रतिशत छेत्र को सिंचाई की सुविधा प्राप्त हो रही है। तथा खरीफ की फसल के लिए41.19 प्रतिशत है कि संपूर्ण औसत रूप से आधे से कम खरीफ की फसल क्षेत्र को सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो रही है। क्योंकि जायद का फसल किस मौसम की फसलों से आच्छादित रहता है अतः इन फसलों को सिंचाई की सुविधाओं का अत्यंत आवश्यक है इन फसलों के लिए अधिकांशत निजी नलकूप तथा पंपसेट द्वारा जल की आपूर्ति भी की जाती है।
  • एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र– यह सच है कि भूमि की आवश्यकता निरंतर बढ़ती जा रही है पर आने वाले वर्षों में और अधिक तेजी से बढ़ेगी। विकास प्रक्रिया के लिए इतनी बड़ी मात्रा में भूमि उपलब्ध कराना एक दुष्कर कार्य होगा इसलिए विस्तृत खेती की क्षमता सीमित है किंतु गहन खेती की अपार संभावनाएं हैं जिसका उपयोग कब किया ही जाना चाहिए। कृषि की बिक्री तकनीकी का मूल बिंदु है फसलों की गहनता में विस्तार अब एक से अधिक बार ज्योति गई भूमि के अंतर्गत क्षेत्रों में तेज गति से वृद्धि क्यों नहीं हुई यह एक आश्चर्यजनक और विचारणीय तथ्य है संभवत इस प्रवृत्ति के दो उदाहरण हो सकते हैं
  • पहला कृषि आदान ओके पैकेज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हुए तथा दूसरा जब यह पैकेज उपलब्ध हुए तो लोगों के पास पर्याप्त राशि नहीं होना ।

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