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भारत के बैंकिंग व्यवस्था पर प्रकाश डालें?

बैंक आम जनता और अर्थव्यवस्था के बीच वित्तीय मध्यस्थ का काम करती है। आम जनता का यह जमा धन अपने पास रखती है और इसी राशि पर उन्हें ब्याज देती है। जबकि अर्थव्यवस्था के संदर्भ में बैंक उत्पादन और कारोबार के लिए धन कर्ज स्वरूप देता है और उस पर ब्याज अर्जित करता है। जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र निजी क्षेत्र और विदेशी बैंक सभी शामिल है। बैंक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं। देश में बैंकिंग व्यवस्था की शुरुआत को इतिहास का लगभग 18 वीं शताब्दी से ही मानते हैं। अंग्रेजों ने आधुनिक बैंकिंग प्रणाली को लाकर भारत की अर्थव्यवस्था में क्रांति कर दी थी। अंग्रेजों ने सुनियोजित तरीके से धन की उगाही के लिए तीनों प्रेसीडेंसी हो मसलन मद्रास मुंबई और बंगाल में बैंकों की स्थापना की। इसके बाद तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों को मिलाकर 1921 में इंपीरियल बैंक की स्थापना हुई। भारत की स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1955 को इंपीरियल बैंक की सभी संपत्तियों का अधिग्रहण करके स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कार्य करना शुरू कर दीया। 1926 में हिल्टन यंग कमीशन ने यह सुझाव दिया कि इंपीरियल बैंक से अलग एक केंद्रीय बैंक स्थापित किया जाना चाहिए जो विदेशी विनिमय कोर्स प्रबंधन के साथ-साथ नोट भी जारी कर सके।
भारत के सार्वजनिक क्षेत्र में 26 बैंक है। जिस में शामिल है स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और उसके पास एसोसिएट बैंक 19 राष्ट्रीय कृत बैंक, और अब आईडीबीआई भी सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक बन चुका है। अर्थव्यवस्था की संपूर्ण विधि में बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है बैंकों की यह क्षमता है कि वे अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में कार्य देकर अर्थव्यवस्था के विस्तार में सहायता प्रदान करते हैं तथा वर्तमान व्यापार का विविधीकरण और नए व्यापार स्थापित करने में सहायक होते हैं।


भारत में बैंकिंग का इतिहास काफी प्राचीन है। भारतीयों द्वारा स्थापित प्रथम बैंकिंग कंपनी अवध कमर्शियल बैंक (1881) थी। 1940 के दशक में 588 बैंकों की असफलता के कारण कड़े नियमों की जरूरत महसूस हुई जिसके बाद अधिनियम फरवरी 1949 में पारित हुआ। जो बाद में बैंकिंग नियमन अधिनियम के नाम से संशोधित हुआ।
19 जुलाई 1969 को 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। बाद में अप्रैल 1980 में 6 और बैंकों का भी राष्ट्रीयकरण किया गया। राष्ट्रीयकरण के बाद के तीन दशकों में देश में बैंकिंग प्रणाली का असाधारण गति से विस्तार हुआ भौगोलिक लिहाज से भी और वित्तीय विस्तार की दृष्टि से भी। 14 अगस्त 1991 को एक उच्च स्तरीय समिति वित्तीय प्रणाली के ढांचे, संगठन कामकाज और प्रक्रियाओं के सभी पहलुओं की जांच करने के लिए नियुक्त की गई। एम नरसिंहम की अध्यक्षता में बनी इस समिति की सिफारिशों के आधार पर 1992 से 93 में बैंकिंग प्रणाली में व्यापक सुधार किए गए। हाल में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक स्ट्रेस टेस्ट के अनुसार भारतीय बैंकिंग प्रणाली किसी भी तरह के आर्थिक संकट और ऊंची नंद परफॉर्मिंग परिसंपत्तियों के झटकों को सहन करने में पूरी तरीके से सक्षम है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास सोने का दुनिया में दसवां सबसे बड़ा भंडार है। नवंबर 2009 में रिजर्व बैंक ने 6.7 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 200 मीट्रिक टन सोने की खरीद की थी। इस खरीद से उसके विदेशी मुद्रा कोष में गोल्ड होल्डिंग की हिस्सेदारी बढ़ गई जो कि पहले 4% थी अब बढ़कर 6% हो गई। स्टेट ग्राउंड फाइनेंस द्वारा किए गए वार्षिक अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग अध्ययन के अनुसार 20 भारतीय बैंकों को ब्रांड फाइनेंस ग्लोबल बैंकिंग 500 की सूची में शामिल किया गया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया भारत की ऐसी पहली बैंक बन गई है जिसे दुनिया की 50 बैंकों की सूची में स्थान मिला है। इसे 50 बैंकों के माध्यम 36 वां स्थान मिला है। 2009 में जहां स्टेट बैंक की ब्रांड वैल्यू 1.5 अरब अमेरिकन डॉलर थी 2010 में 4.6 अरब डॉलर हो गई है। आईसीआईसीआई बैंक को दुनिया में सोंग्स बेस्ट बैंकों की सूची में स्थान मिला है इस की ब्रांड वैल्यू 1.3 अरब अमेरिकी डॉलर है।है।vinayiasacademy.com
बैंकों को का वित्तीय प्रदर्शनः भारत की अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की 2008 से 2009 की बैलेंस शीट देखने से हमें यह अनुमान लग जाता है कि इन की वित्तीय स्थिति काफी संतोषजनक है। लेकिन यह बैंक के भी ग्लोबल आर्थिक संकट से पूरी तरह से अछूती नहीं रही थी। मार्च 2009 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की कसौली डेटेड बैलेंस जीटीए दर्शाती है इनकी वृद्धि दर 21.2% रही। जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में वृद्धि दर 25.0% रही थी। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की देश में कुल 34709 शाखाएं हैं।


पूंजी पर्याप्तता अनुपातः अथवा वित्तीय निरीक्षण के लिए बनी बैंकिंग कमेटी एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था है तथा उसका हिस्सा है इसे विश्व आर्थिक संकट के पश्चात बेसल -1, बेसल – 2,बेसल – 3 प्रतिमानो के नाम से भी जाना जाता है। बेसल स्विट्जरलैंड में एक स्थान है जहां बीपीएसपी के प्रतिमान बनाए गए और इनका पूरे विश्व की बैंकिंग व्यवस्था में पालन होता है। पर्याप्तता से आशा है कि कोई भी बैंक ऋण देते समय अपने पास कितनी पूंजी अवश्य रखें कि उधार देने में जो सामान्य जोखिम है उसकी भरपाई करने में वाह समर्थ रहे।vinayiasacademy.com
बैंक की अपनी पूंजी और उसका रिजर्व तथा उसकी पूरा पूंजी उसके पास उपलब्ध होती है। वर्तमान के नियम अनुसार बैंकों के पास अपनी पूंजी होनी चाहिए जो कि शेयरधारकों के पोस्ट और रखा हुआ लाभ के रूप में होगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय क्षेत्र के सुधार के अंतर्गत भारतीय बैंकों को एक समय सीमा के अंदर बेसल अनुवर्ती होने को कहां। बैंक की परिसंपत्ति पोर्टफोलियो पर जोखिम का भार रहता है इसलिए विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों ने यह नियम बनाया है कि न्यूनतम 8% पूंजी बैंक के पास पूंजी पर्याप्तता तथा बेसल प्रतिमान के रूप में रहनी चाहिए। परंतु इस समय सीमा के अंदर बेसल अनुवर्ती होने के बाद प्रतिमान के दर को 9% कर दिया गया आज भी लागू है। विश्व आर्थिक संकट के बाद किस अनुपात को और बढ़ा दिया गया है जिससे बैंकों की पूंजी को आवश्यकता और बढ़ गई है ऐसा इसलिए किया गया है कि भविष्य में इस प्रकार का विश्व आर्थिक संकट दोबारा ना पैदा हो। पूंजी की पर्याप्तता इस प्रकार वित्तीय नियमों को विश्वस्तरीय बना चुकी है।


भारत में अनुसूचित बैंकों की सूचीः
इलाहाबाद बैंकः यह देश की सबसे पुरानी सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक है।
आंध्र बैंक
बैंक ऑफ बड़ौदा
बैंक ऑफ इंडिया
बैंक ऑफ महाराष्ट्र
बैंक ऑफ पंजाब
केनरा बैंक
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडियाः
यह एक वाणिज्यिक बैंक है जो क्रेडिट डिपॉजिट और इंटरनेशनल बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराता है।
सेंचुरियन बैंक लिमिटेड
सिटीबैंक

भारत में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की शुरुआत 1975 में हुई। वर्तमान में भारत में क्षेत्रीय बैंकों की संख्या 196 है। केलकर समिति की संस्कृतियों के आधार पर 1987 के उपरांत किसी ने क्षेत्रीय बैंक की स्थापना नहीं की गई। सिक्किम आर्कोवा में कोई भी क्षेत्रीय बैंक नहीं है।vinayiasacademy.com
नाबार्डः इसकी स्थापना 1983 में की गई। यह वर्तमान में भारत में कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र के विकास से संबंधित सिर्फ वित्तीय संस्था है। यह प्रत्यक्ष ऋण आवंटित नहीं करता है। पहले नाबार्ड का कार्य भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा संचालित होता था। 1995 में नाबार्ड के अंदर ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास के दृष्टिकोण से एक प्रकोष्ठ की स्थापना की गई जिसका नाम रूरल इन्फ्राट्रक्चर डेवलपमेंट फंड रखा गया था बाद में इस निधि का नाम बदलकर वर्तमान में जयप्रकाश नारायण निधि कर दिया गया।
बैंकिंग सुधारः भारतीय अर्थव्यवस्था में 1991 के आर्थिक संकट के उपरांत बैंकिंग क्षेत्र के सुधार के दृष्टिकोण से जून 1991 में एम नरसिंहम की अध्यक्षता में नरसिंहम समिति अथवा वित्तीय क्षत्रिय सुधार समिति की स्थापना की गई। जिसने अपने संस्तुतियों दिसंबर 1991 में प्रस्तुत की।
निजी बैंकः 1993 में बैंकिंग प्रणाली में अधिक उत्पादकता और कुशलता लाने के लिए भारतीय बैंकिंग प्रणाली में निजी क्षेत्र को नए बैंक खोलने की अनुमति मिल गई इन बैंक को अन्य बातों के साथ निम्नलिखित न्यूनतम शर्तों को पूरा करना था ः
यह एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत होनी चाहिए।vinayiasacademy.com
इसकी न्यूनतम प्रदत्त पूंजी 100 करोड़ रुपए होनी चाहिए परंतु अभी इसे बढ़ाकर 200 करोड़ कर दिया गया है।
इसके शेयर स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होनी चाहिए।
बैंक का काम काज हिसाब किताब तथा अन्य नीतियां भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित विवेकपूर्ण मानकों के द्वारा होनी चाहिए।
स्टॉक मार्केटः भारतीय स्टॉक मार्केट में कुल 22 स्टॉक एक्सचेंज है। इनमें बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और over-the-counter स्टॉक एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज है। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के अनुसार देश में 13 अगस्त 2009 तक कुल 1680 पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशक थे जिन्होंने कुल 65.5 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था।


बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंजः बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना अट्ठारह सौ पचहत्तर मैं हुई थी। एशिया का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है। अधिसूचित कंपनियों के लिहाज से बीएसई विश्व का पहले नंबर वन का स्टॉक एक्सचेंज है इसमें कुल 55 सौ कंपनियां अधिसूचित हैं। 21 दिसंबर 2007 तक इसका कुल बाजार पूंजीकरण 1.6 अरब अमेरिकी डॉलर था। इसमें सीमेंट, दूरसंचार, रियल स्टेट, बैंकिंग, आईटी, निर्माण, ऑटोमोबाइल, आयल, उऊर्जा और इसकी क्षेत्र की प्रमुख कंपनियां शामिल है। सेंसेक्स में शामिल प्रमुख कंपनियां हैः इंफोसिस टेक्नोलॉजी, रिलायंस, टाटा स्टील, टाटा पावर, टाटा मोटर्स।vinayiasacademy.com
नेशनल स्टॉक एक्सचेंजः प्रतिदिन के टर्नओवर के लिहाज से नेशनल स्टॉक एक्सचेंज देश का सबसे बड़ा सिक्योरिटी एक्सचेंज है। 19 मई 2009 को एनएससी का कुल टर्नओवर 8.63 अरब रुपए था। 1992 से ही एनएएसी में एक एडवांस ऑटोमेटेड इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग सिस्टम है जिसे देश के 1486 जगह से एक्सेस किया जा सकता है। द1994 से एनएएसी ने थोक ऋण बाजार से 1 मिनट में अपना ऑपरेशन शुरू कर दिया था। निफ्टी सूचकांक का निर्धारण 21 उद्योगों की 50 कंपनियों द्वारा होता है इसमें सीमेंट, दूरसंचार अल्मुनियम और वित्त क्षेत्र की कंपनियां शामिल है,। प्रमुख कंपनियों में भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स, भारती एयरटेल, केयर्न इंडिया, गेल, हीरो होंडा मोटर्स, हिंदुस्तान युनिलीवर, हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन इंफोसिस टेक्नोलॉजी शामिल है ।
ओवर द काउंटर एक्सचेंजः 1990 में स्थापित over-the-counter एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया देश का एकमात्र ऐसा एक्सचेंज है जो पिछले 3 साल से कार्यरत लघु और मध्यम श्रेणी की कंपनियों को कैपिटल मार्केट से पैसे उठाने में मदद करता है।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्डः भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड की स्थापना 12 अप्रैल 1992 को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम 1992 के प्रावधानों के तहत की गई थी। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया लिमिटेड देश का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। पिछले 5 वर्षों में की वजह से देश के 363 शहरों के निवेशक बाजार से ऑनलाइन जुड़ चुके हैं बाजार में पूर्ण पारदर्शिता, वित्तीय लेनदेन के निपटारे की गारंटी, वैज्ञानिक तरीके से डिजाइन और व्यावसायिक तौर से संबंधित संकेतक ओं का प्रचलन और देश भर में डिमैट का प्रचलन असंभव हो गया है।


आज के समय में बैंकों का स्वरूप किस प्रकार से बदल रहा हैः आज के बैंकिंग व्यवहार और उपभोक्ताओं की जरूरतों में परिवर्तन जिस तरीके से हो रहे हैं वैसी स्थिति में बैंकों का भविष्य भी संकट के घेरे में है और अब तो यही लग रहा है कि परंपरागत बैंकिंग का दौर खत्म हो चुका है और बैंकलेस मजबूत अ्वधारणा मजबूत हो रही है। आज के तकनीक ने बैंकों के स्वरूप को एकदम बदल दिया है। मोबाइल बैंकिंग के आने से तो ग्राहकों और बैंक के बीच के संवाद के तरीके में काफी बदलाव आ गया है। बैंकिंग के द्वारा घर से दूर रहकर भी अपने बैंक के खातों की जानकारी ली जा सकती है तथा किसी भी समय खाते से पैसों को ट्रांसफर करना बिलों का भुगतान इत्यादि किया जा सकता है। कैशलेस अर्थव्यवस्था ने बैंकिंग स्वरूप में और बड़ा परिवर्तन किया है। इसे एक और जहां लोगों को लंबी कतारों से मुक्ति के साथ-साथ समय की बचत हुई तो वहीं दूसरी और काले धन को रोकने में बहुत हद तक मदद मिली अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता आई है।vinayiasacademy.com
वैश्वीकरण के दौर में बैंकों का स्वरूप लगातार बदल रहा है। पहले जहां बैंकों में लंबी-लंबी कतारें लगी रहती थी वहीं अब तकनीक ने इस कार्य को सरल और सुगम बना दिया है। आधुनिक बैंकिंग विशेषकर कैशलेस अर्थव्यवस्था बैंकिंग लेनदेन के डिजिटल करण के दौर में चिंता का विषय जरूर है आईआईटी जैसे संस्थानों के साथ मिलकर विभिन्न तरीकों से निपटने के प्रयास किए हैं। जन धन योजना और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर जैसी योजनाओं के माध्यम से बैंकिंग के जरिए वित्तीय समावेशन पर सरकार बहुत जोर दे रही है। कुल मिलाकर भारत का आज का बैंकिंग स्वरूप बदलते परिवेश में नया स्वरुप बनकर उभर रहा है ऐसे में जरूरत इस बात की है कि यह केवल भारतीय जनता के सामाजिक आर्थिक विकास को और बेहतर बनाने में अपनी भूमिका निभाए।


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