मुद्रास्फीति क्या है इस पर किस प्रकार नियंत्रण पाया जाता है तथा इसके मौद्रिक राजकोषीय तथा प्रत्यक्ष के बारे में विस्तार पूर्वक उल्लेख करें? Vinayiasacademy.com
मुद्रास्फीति एक ऐसी स्थिति है जिसमें अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती है। मुद्रास्फीति वह दर है जिस पर वस्तुओं और सेवाओं के लिए कीमतों का सामान्य स्तर बढ़ रहा है, और परिणाम स्वरूप मुद्रा की क्रय शक्ति गिर रही है यदि माल की कीमतों के साथ-साथ आय में वृद्धि नहीं होती है तो सभी की प्रभावी रूप से कम हो जाती है जिससे अर्थव्यवस्था स्थिर हो सकती है।
मुद्रास्फीति का अर्थ सामान्य मूल्य सूचकांक से है जिसे थोक मूल्य सूचकांक के नाम से भी जाना जाता है, यह वृद्धि के दर को कहते हैं।
सरकार कृषि श्रमिकों और औद्योगिक श्रमिकों के लिए अलग-अलग उपभोक्ता मूल्य सूचकांक प्रकाशित करती है इस सूचकांक में वैसे ही बस में हो शामिल किया जाता है जो उपभोक्ताओं की दृष्टि से संवेदनशील होती है। उदाहरण के लिए 1990 में ₹100 में जितना सामान आता था अगर 2020 में उसे खरीदने के लिए ₹300 व्यय करना पड़े तो ऐसी स्थिति में मुद्रास्फीति बढ़ जाती है।
अगर अर्थव्यवस्था में कीमत कुछ समय के लिए बढ़ती है और फिर कम हो जाती है और फिर दोबारा बढ़ती है तो हम इसे मुद्रास्फीति नहीं कह सकते हैं। मुद्रास्फीति में तो सामान्य कीमत स्तर लगातार बढ़ना चाहिए। एक निश्चित आय वर्ग वाले लोगों पर मुद्रास्फीति का बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि उसकी आय निश्चित होती है जब कीमतें बढ़ती हैं तो उनकी तरह शक्ति कम हो जाती है तो इस प्रकार एक विकासशील अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का बहुत ही भयंकर प्रभाव पड़ता है।
विभिन्न विद्वानों ने इसकी विनविन परिभाषाएं दी हैंः
बहुत कम माल के लिए बहुत अधिक धन की आपूर्ति हो जाने से इसका जन्म हो जाता है।
माल्या सेवा की आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक हो जाने पर भी इसका जन्म होता है।
आपूर्ति में दोष, गति अवरोधक तथा ढांचागत असंतुलन के चलते भी मुर्दा स्थिति पनपती है।Vinayiasacademy.com

मुद्रास्फीति के प्रकारः
डिमांड पुल इन्फ्लेशन- डिमांड पुल मुद्रास्फीति तब आती है जब सर्कल मांग एक सतत दर से बढ़ रही है जो दुर्लभ संसाधनों और एक सकारात्मक आउटपुट अंतर पर दबाव बढ़ाती है। मांग कुल मुद्रास्फीति एक खतरा बन जाती है जब एक अर्थव्यवस्था तेजी के साथ अनुभव करता है कि सकल घरेलू उत्पाद संभावित जीडीपी की लंबी अवधि की प्रवृत्ति वृद्धि की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है।
कॉस्ट पुश इन्फ्लेशन– कॉस्ट पुश मुद्रास्फीति तब होती है जब फार्म अपने लाभ मार्जिन की रक्षा के लिए कीमतों में वृद्धि करके बढ़ती लागत का जवाब देते हैं।
मुद्रास्फीति के कारण
इसे दो भागों में बांटा गया है
मांग कारक(demand pull)
मूल्य वृद्धि कारक(cost push)
मांग कारकः
कई सालों से जिस तरह से सरकारी व्यय बढ़ता जा रहा है उसे सामान्य जनता के हाथों में अधिक धन आ जाता है जो उन की खरीद क्षमता को बढ़ाता है यह मुख्य रूप से गैर योजना व्यय है प्रकृति का होता है तथा केवल क्रय क्षमता में तथा मांग में वृद्धि करता है।
घाटे की पूर्ति तथा मुद्रा पूर्ति में वृद्धि से बढ़ते सरकारी बैंक की पूर्ति घाटे के बजट से तथा नई मुद्रा छाप कर की जाती है जो मुद्रास्फीति तथा आपूर्ति दोनों में वृद्धि कर देते हैं।
मूल्य वृद्धि कारकः
जब कभी उत्पादन में अत्याधिक उतार-चढ़ाव आता है या फिर प्राप्त उत्पादन में मुनाफा कमाने वाले लोग जमा कर लेते हैं तो यह स्थिति उत्पन्न होती है।
उत्पादकता से अधिक वेतन वृद्धि लागत मूल्य को बढ़ाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप मूल्य में वृद्धि हो जाता हैं। जो पहले वाले शीर्षक के अंतर्गत वृद्धि कर देती है।
अप्रत्यक्ष कर भी लागत मूल्य बढ़ाकर सामग्री के मूल्य में वृद्धि के कारण बनते हैं।
प्रशासित मूल्य में वृद्धि जैसे खाद्यान्न के न्यूनतम समर्थन मूल्य या पेट्रोल तथा अन्य उत्पादों के मूल्य जी ने सरकार शिक्षा से निर्धारित करती है क्योंकि वह आम आदमी के बजट का एक बड़ा भाग होता है।Vinayiasacademy.com

मुद्रास्फीति के प्रभावः हल्की मात्रा में मूल्य का वृद्धि होना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है क्योंकि इससे उत्पादकों को और अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहन मिलता है। परंतु यदि मूल्य वृद्धि की दर आय में वृद्धि की दर से ज्यादा हो जाती है इससे अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है।
निवेश करता पर प्रभावः निवेश करता दो प्रकार के होते हैं। पहले प्रकार के निवेशकता वह होते हैं जो सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं। सरकारी प्रतिनिधियों से निश्चित आय प्राप्त होती है। तथा दूसरे निवेश करता भी होते हैं संयुक्त पूंजी कंपनियों के हिस्से खरीदते हैं इनकी आई मुद्रास्फीति के होने पर बढ़ती है। मुद्रास्फीति कर्ता की पहली वर्ग को नुकसान तथा दूसरे वर्ग को फायदा होता है।
निश्चित आय के वर्ग पर प्रभावः निश्चित आय के वर्ग में वे सब लोग आते हैं जिनकी आय निश्चित होती है जैसे श्रमिक, अध्यापक, बैंक कर्मचारी आदि। मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतें बढ़ती है जिसका प्रभाव निश्चित आय वर्ग पर पड़ता है मुद्रास्फीति के कारण निश्चित आय वर्ग नुकसान उठाता है।
किसानों पर प्रभावः मुद्रास्फीति का किसान वर्ग पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि जब ऋण दाता अपने रुपए किसी को उधार देता है तुम मुद्रास्फीति होने के कारण उसके रुपए का मूल्य कम हो जाएगा प्रवीण दादा को मुद्रा स्थिति से हानि तथा ऋणी को लाभ होता है।
बचत पर प्रभावः मुद्रास्फीति का बचत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि मुद्रास्फीति होने के कारण वस्तुओं पर किए जाने वाले व्यय में वृद्धि होती है ।इसे बचत की संभावना कम हो जाती है दूसरी और मुद्रास्फीति से मुद्रा के मूल्य में कमी होगी और लोग बचत करना ही नहीं चाहेंगे।
भुगतान संतुलन पर प्रभावः मुद्रास्फीति के समय वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि होती है। इश्क हमारे निर्यात महंगे हो जाएंगे तथा आयात सस्ते हो जाएंगे। निर्यात में कमी होगी तथा आयातों में वृद्धि होगी जिसके कारण भुगतान संतुलन प्रतिकूल हो जाएगा।Vinayiasacademy.com
सार्वजनिक ऋण पर प्रभावः मुद्रा स्थिति के कारण सार्वजनिक ऋण में वृद्धि हो जाती है क्योंकि जब कीमत स्तर में वृद्धि होती है तो सरकार को सार्वजनिक योजनाओं पर अपने व्यय को बढ़ाना पड़ता है इस व्यय की पूर्ति के लिए सरकार जनता से ऋण लेती है मुद्रास्फीति के कारण सार्वजनिक ऋण में वृद्धि हो जाती है।
नैतिक प्रभावः मुद्रास्फीति के कारण व्यापारी वर्ग लालच में अंधा हो जाता है और जमाखोरी मुनाफाखोरी तथा मिलावट आदि का प्रयोग उत्पादन को बेचने में करने लगता है। सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार से लिप्ट हो जाता है तथा व्यक्तियों में नैतिक मूल्यों का पतन होना शुरू हो जाता है।

मुद्रा स्थिति को नियंत्रित करने के उपायः मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के निम्नलिखित उपाय हैंः
मौद्रिक उपायः मौद्रिक नीति के द्वारा भी हम मुद्रा की पूर्ति को नियमित कर मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर सकते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित मौद्रिक उपायों को प्रयोग में लाया जाता हैः
मुद्रा की मात्रा पर नियंत्रण- मुद्रा की मात्रा को नियंत्रित करके मुद्रास्फीति पर काबू पाया जा सकता है और मुद्रा की मात्रा को केंद्रीय बैंक द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। इस प्रकार जब केंद्रीय बैंक मुद्रा की मात्रा पर कड़ा नियंत्रण लागू करें तो मुद्रा की मात्रा नियंत्रित हो जाती है।
साख नियंत्रण– बढ़ती हुई कीमतों पर काबू पाने के लिए केंद्रीय बैंक साख को नियंत्रितकर सकती है। इसे नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक परिमाणात्मक तथा गुणात्मक दोनों प्रकार के उपायों को प्रयोग में ला सकती है उपायों के अंतर्गत बैंक दर में वृद्धि रेपो दर तथा रिवर्स रेपो दर में वृद्धि न्यूनतम नकद कोष में वृद्धि प्रतिभूतियों को खुले बाजार में बेचने तथा सीमांत आवश्यकता में भी वृद्धि कर सकता है
विमुद्रीकरण– अगर मुद्रास्फीति पर नियंत्रण कर पाना संभव नहीं हो पाता है तो सरकार विमुद्रीकरण का सहारा लेती है विमुद्रीकरण के अंतर्गत सरकार पुरानी करेंसी की जगह नई करेंसी लेकर आती है जिसे मुद्रा स्थिति को नियंत्रण में लाया जाता है।
राजकोषीय उपायः राजकोषीय उपायों में हम निम्नलिखित उपायों को शामिल कर सकते हैं
सार्वजनिक व्यय में कमी- सार्वजनिक व्यय में वृद्धि से लोगों की क्रय शक्ति में वृद्धि होती है। क्रय शक्ति में वृद्धि होने से मांग में वृद्धि होगी तथा मांग में वृद्धि होने से कीमत स्तर में वृद्धि होगी। इस प्रकार सार्वजनिक व्यय में कमी करके हम मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर सकते हैं।
सार्वजनिक ऋण में वृद्धि– कीमत मांग में वृद्धि होने के कारण होती है जिसे सार्वजनिक ऋण में वृद्धि हो जाती है। मांग को कम करने के लिए सरकार निजी व्यक्तियों से ऋण ले सकती है। जब निजी क्षेत्र से लिया जाता है तो निजी क्षेत्र के व्यय में कमी हो जाती है। इस प्रकार सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करके भी मुद्रा स्थिति को नियंत्रण किया जा सकता है।
करों में वृद्धि- मुद्रास्फीति के कारण सार्वजनिक व्यय में वृद्धि होती है इसलिए की पूर्ति के लिए सरकार नए-नए कर लगाना शुरु करती है तथा पुराने करो की दरों में वृद्धि कर देती है करो कि दरों में वृद्धि का उत्पादन पर उल्टा प्रभाव पड़ता है।

अन्य उपायः
उत्पादन में वृद्धि- उत्पादन में वृद्धि करके भी हम मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर सकते हैं क्योंकि मुद्रा स्थिति उस समय पैदा होती है जब कुल मांग कुल पूर्तिसे ज्यादा हो जाती है। इस प्रकार हम कूल पूर्ति उत्पादन को बढ़ाकर मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर सकते हैं।
बचत को प्रोत्साहन देकरः बचत को बढ़ाकर भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है सरकार द्वारा बचत को प्रोत्साहित करने वाली योजनाएं चलानी चाहिए जब बचत में वृद्धि होती है सोनी जी देव में कमी होती है तथा मांग स्वयं ही कम हो जाती है और कीमत वस्त्र नियंत्रण में आ जाता है।
अर्थात एक वृहद स्तर पर हम कह सकते हैं मुद्रास्फीति एक अनुभूति है, जिसमें सरकार की मूल्य नियंत्रण क्षमता के बारे में आम लोग समझते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी पदार्थ के मूल्यों के बारे में अनिश्चित है तब वह उसकी कुछ मात्रा अपने पास स्टॉक करना चाहेगा और यदि उस व्यक्ति की आशंका सच निकली तब वह और भी ज्यादा मात्रा में स्टॉक करना चाहेगा उस स्थिति की कामना कीजिए जब अर्थव्यवस्था में हर व्यक्ति इसी प्रकार का व्यवहार करना अगर शुरू कर देगा तो सरकार चाहे कितनी भी कोशिश कर ले उस पदार्थ की बढ़ती कीमत को पूरी तरह नहीं रोक पाएगी और मुद्रास्फीति के अंतर्गत यही होता है।। कोई भी सरकार मुद्रास्फीति के ढक्कन को कभी खोलना नहीं चाहती क्योंकि इसका नियंत्रण हमेशा ही चुनौतीपूर्ण रहा है मुद्रास्फीति जनमानस के मस्तिष्क में ऐसे निशान छोड़ जाती है जिसे मिटाना मुश्किल होता है।�