Uncategorized – Vinay IAS Academy https://vinayiasacademy.com Rashtra Ka Viswas Mon, 17 Aug 2020 05:37:21 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=5.3.4 भारतीय नौसेना के मध्यम दर्जे वाले युद्धपोत का निर्माण अब झारखंड में(important current affairs for jpsc/jssc/bpsc/upsc) https://vinayiasacademy.com/?p=2971 https://vinayiasacademy.com/?p=2971#respond Sat, 15 Aug 2020 03:41:27 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2971 Share it झारखंड के पांच पुलिसकर्मियों को केंद्रीय गृह मंत्रालय मंत्रालय को केंद्रीय गृह मंत्रालय मंत्रालय द्वारा बेहतर अनुसंधान के लिए गृहमंत्री अवार्ड दिया जाएगा। इन्हें रांची के बूटी मोड़ में बीटेक छात्र की हत्या की गुत्थी सुलझाने वाले सीबीआई इंस्पेक्टर परवेज आलम समेत चार पुलिसकर्मियों को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा बेहतर अनुसंधान के लिए […]

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  • झारखंड के पांच पुलिसकर्मियों को केंद्रीय गृह मंत्रालय मंत्रालय को केंद्रीय गृह मंत्रालय मंत्रालय द्वारा बेहतर अनुसंधान के लिए गृहमंत्री अवार्ड दिया जाएगा।
  • इन्हें रांची के बूटी मोड़ में बीटेक छात्र की हत्या की गुत्थी सुलझाने वाले सीबीआई इंस्पेक्टर परवेज आलम समेत चार पुलिसकर्मियों को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा बेहतर अनुसंधान के लिए मेडल दिया जाएगा।
  • देश भर में 121 बेहतर अनुसंधान करने वालों की सूची जारी कर दी गई है जिसमें ज्योतिर्मयी मांझी, रांची के डीएसपी नीरज कुमार ,सब इंस्पेक्टर पुष्पराज कुमार सिंह, व आर्थिक अपराध शाखा के इंस्पेक्टर आशीष आनंद को शामिल किया गया है।
  • गोल्डन लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार के लिए केंद्रीय कर्मचारी एवं अधिकारी परिषद के अध्यक्ष झारखंड के डॉक्टर सहदेव राम को को चयनित किया गया है ।
  • इन्हें भारत रत्न पब्लिशिंग हाउस दिल्ली की ओर से पुरस्कृत किया जाएगा।
  • यह पुरस्कार भारत के विभिन्न शहरों में सर्वेक्षण रिपोर्ट के बाद समाज में उत्कृष्ट कार्य करने वाले लोगों को दिया जाता है ।
  • स्वरांजलि और प्राचीन कला केंद्र की ओर से 15 अगस्त को विश्व सितार महोत्सव का ऑनलाइन आयोजन किया जाएगा ।
  • इसमें विश्व के सभी देशों के 135 सितारवाद इसमें अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे ।
  • इसमें झारखंड के मनोज केडिया के मनोज केडिया सहित अन्य कलाकार भी शामिल है।
  • झारखंड के राज्य सरकार द्वारा जांच के लिए झारखंड के प्रमुख चार जिलों में विशेष अभियान चलाया जाएगा।
  • इन 4 जिलों में जमशेदपुर, धनबाद ,रांची व पलामू में 2 दिनों का कोरोना की रैपिड टेस्टिंग की जाएगी।
  • इसमें लगभग 40 हजार लोगों की कोरोना जांच कराई जाएगी एवं चारों शहरों से 10-10 हजार लोगों की जांच की जाएगी।
  • पीवी रामानुजम का हाल ही में निधन हो गया है यह पत्रकारिता के क्षेत्र से संबंधित है।
  • अब नौसेना के जहाजों के इंजन रांची में भी बनाए जाएंगे। भारतीय नौसेना के मध्यम दर्जे वाले युद्धपोत का निर्माण किया जाएगा ।
  • मंत्रालय द्वारा गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड रांची में स्थित में डीजल इंजन प्लांट डीजल इंजन प्लांट में इंजन का निर्माण किया जाएगा।
  • इंजन के लिए एसईसी व मेरिन डीजल के साथ एमओयू किया गया है ।
  • फेम इंडिया एशिया पोस्ट द्वारा देश की 50 उम्दा विधायकों की सूची हाल ही में जारी की गई है ,जिसमें विशिष्ट विधायक सुदेश महतो तथा अंबा प्रसाद को आइकॉन विधायक चुना गया है।
  • कृषि मंत्रालय द्वारा भारत में सबसे अधिक किसान  ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसान है।
  • सलाम इंडिया नामक शॉर्ट फिल्म को हाल ही में यूट्यूब पर लांच किया गया है।
  • इस फिल्म में एक रिक्शेवाले की कहानी दर्शाई गई है।
  • मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा 14 अगस्त को मुख्यमंत्री श्रमिक रोजगार योजना की शुरुआत की गई है । इस योजना के अंतर्गत नगर विकास एवं आवास विभाग का अंतिम रूप दिया जाएगा।
  • इस योजना के अंतर्गत 100 दिन रोजगार देना सुनिश्चित किया गया है एवं 15 दिनों में काम मांगने वालों को काम नहीं देने पर सरकार बेरोजगारी भत्ता की व्यवस्था करेगी।
  • 14 अगस्त को झारखंड सरकार का नया प्रतीक चिन्ह लागू किया गया है ।
  • इसे आर्यभट्ट सभागार रांची में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू एवं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा लांच किया गया है।
  • कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग द्वारा झारखंड के सभी जिलों में 24 जिलों में डेडीकेटेड सिंगल कंट्रोल रूम बनाने का निर्णय लिया गया है ।
  • इसके अंतर्गत पॉजिटिव मरीज की पुष्टि होने के बाद उसके संपर्क में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों की अधिकतम 48 घंटे के अंदर पहचान कर उसका जांच करवाना शामिल है।
  • केंद्र द्वारा राज्य में 8 से 15 अगस्त तक गंदगी मुक्त भारत अभियान का शुरुआत किया गया है इस अभियान के अंतर्गत 13 को पेंटिंग व निबंध प्रतियोगिता का भी आयोजन कराया जाएगा।
  • ‌झारखंड एथलीट एसोसिएशन द्वारा इस वर्ष रहेगा। झारखंड दौड़ का आयोजन राजधानी सहित कई जिलों में कराया जाएगा।

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गुप्त साम्राज्य का उदय( भाग-1) https://vinayiasacademy.com/?p=2757 https://vinayiasacademy.com/?p=2757#respond Mon, 27 Jul 2020 10:39:11 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2757 Share itगुप्त साम्राज्य का उदय गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी शताब्दी के अंत में प्रयाग के निकट कौशांबी में हुआ था जिस प्राचीनतम गुप्त राजा के बारे में पता चला है वह है श्री गुप्त हालांकि प्रभावती गुप्त के पुणे ताम्रपत्र अभिलेख में इसे आदिराज कहकर संबोधित किया गया है। यह प्राचीनतम भारतीय साम्राज्य था […]

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गुप्त साम्राज्य का उदय
गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी शताब्दी के अंत में प्रयाग के निकट कौशांबी में हुआ था जिस प्राचीनतम गुप्त राजा के बारे में पता चला है वह है श्री गुप्त हालांकि प्रभावती गुप्त के पुणे ताम्रपत्र अभिलेख में इसे आदिराज कहकर संबोधित किया गया है। यह प्राचीनतम भारतीय साम्राज्य था जो लगभग 319 से 605 ईसवी तक अपनी चरम पर मौजूद था और भारतीय उपमहाद्वीप में अधिकांश हिस्सों पर इनका आधिपत्य स्थापित था।मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल में हर्ष तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही कुषाण एवं सात वाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया मौर्योत्तर काल के उपरांत तीसरी शताब्दी ईस्वी में तीन राजवंशों का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्ति दक्षिण में वाकाटक तथा पूर्वी भाग में गुप्त वंश प्रमुख है मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनः स्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को गुप्त तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी के शुरुआत में हुआ गुप्त वंश का प्रारंभिक राजा आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था। श्री ग्रुप में गया में चीनी यात्रियों के लिए एक मंदिर बनवाया था जिसका उल्लेख चीनी यात्री इत्सिंग ने 500 वर्ष बाद किया पुराणों में यह कहा गया है कि आरंभिक गुप्त राजाओं का साम्राज्य गंगा द्रोणी प्रयाग साकेत तथा मगध में फैला था श्री गुप्त के समय में महाराजा की उपाधि सामंतों को प्रदान की जाती थी अतः श्री गुप्त किसी के अधीन शासक था प्रसिद्ध इतिहासकार केपी जायसवाल के अनुसार उक्त धाराओं के अधीन छोटे से राज्य प्रशासन चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार मगध के मन में एक मंदिर का निर्माण करवाया था तथा मंदिर के व्यय में 24 गांव को दान दिए थे।


गुप्त काल के ऐतिहासिक स्रोतों में विशाखदत्त खरीद देवीचंद्रगुप्तम तथा मुद्राराक्षस शुद्र का मृच्छकटिकम् कालिदास रचित मालविकाग्निमित्रम् कुमारसंभवम् रघुवंशम अभिज्ञान शाकुंतलम् प्रमुख है स्मृतियों में बृहस्पति नारद आदि प्रमुख है पुराणों के अनुसार वायु पुराण मत्स्य पुराण विष्णु पुराण ब्रह्म पुराण आदि से हमें गुप्तकालीन ऐतिहासिक स्रोत की जानकारी प्राप्त होती है इनके अलावा बौद्ध साहित्य मैं मंजूश्री मूल कल्प तथा वसुबंधु चरित तथा जैन साहित्य जिनसेन रचित हरिवंश पुराण से भी हमें गुप्तकालीन जानकारी प्राप्त होती है इनके अलावा विदेशी साहित्य को में फाह्यान का फो-क्यों-कि तथा युवान च्वांग ह्वेनसांग का सी-यु-की आदि ग्रंथ प्रमुख है। साथ ही पुरातात्विक स्रोतों से भी इनकी विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है यथा प्रशासकीय एवं अभिलेख समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति एवं एरण अभिलेख चंद्रगुप्त द्वितीय का महरौली स्तंभ लेख तथा उदयगिरी गुफा अभिलेख कुमारगुप्त प्रथम का मंदसौर लेख गढ़वा शिलालेख दिलशाद स्तंभ लेख स्कंद गुप्त का जूनागढ़ प्रशस्ति भीतरी स्तंभ लेख प्रमुख है।गुप्त साम्राज्य की जानकारी में मुद्राओं का भी काफी महत्वपूर्ण स्थान रहा है गुप्त योग्य से भारतीय मुद्रा के इतिहास में नवीन युग की शुरुआत आती है गुप्त शासकों की स्वर्ण एवं रजत मुद्राएं मंदिर एवं मूर्तियां उदयगिरि भूमरा नाचना कुठार देवगढ़ एवं तिगवा के मंदिर सारनाथ बुद्ध मूर्ति मथुरा की जैन मूर्तियां अजंता व भाग्य चित्र भूमि अदनान संबंधी भी कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती है। अतः गुप्त वंश का इतिहास की जानकारी के लिए उपरोक्त स्रोतों का होना अति आवश्यक है।

सर्वप्रथम साहित्यिक स्रोतों में पुराणों का महत्व पूर्ण स्थान है पुराणों में दी गई वंशावली यों का आलोचनात्मक अध्ययन करने के बाद या निष्कर्ष निकाला गया है कि पुराणों में दी गई गुप्त वंश संबंधी जानकारी विश्वसनीय है पुराणों की संख्या 18 है किंतु ऐतिहासिक दृष्टि से वायु प्रवाह ब्रह्म पुराण मत्स्य पुराण विष्णु पुराण और भागवत पुराण अत्यधिक महत्त्व रखते हैं पुराणों से गुप्त साम्राज्य उसके विभिन्न प्रांतों तथा सीमाएं स्पष्ट चित्र मिलता है साम्राज्य के अखंड भागो तथा उसके कार्य क्षेत्र से बाहर के प्रदेशों में अंतर रखा गया है राजाओं तथा छोटे-छोटे राज्यों के नाम याद करने तथा उनकी क्षमता स्थापित करने में पुराणों से सहायता मिलती है साम्राज्य के अंदर के राज्य तथा स्वतंत्र राज्यों के अभ्युदय का समय निश्चित करने में भी वे सहायक रहे हैं पुराणों से ही ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त प्रथम साकेत तथा मगध में राज्य करता था गुप्त साम्राज्य के राज्य के पूर्वार्ध में उसके समकालीन शासक को जैसे तथा वाकाटक वंश और सिंध तथा पश्चिमी पंजाब में शक आदि का पूर्ण विवरण पुराणों से प्राप्त होता है।धर्म शास्त्रों से भी बहुत से लाभदायक सामग्री प्राप्त होती है जयसवाल मानता है कि नारद का समय पूर्व गुप्त काल था संभवत बृहस्पति भी पूर्व गुप्त काल में ही जीवित रहा व्यास हरित पितामह की स्मृतियां भी संभवत गुप्त काल में ही लिखी गई थी उनकी रचनाओं से पर्याप्त जानकारी मिलती है। मंदाकिनी 30r की रचना संभवत चंद्रगुप्त द्वितीय के समय में उसके प्रधानमंत्री शिखर ने की पुस्तक का उद्देश्य राजा को आदेश देना था लेखक ने अपने स्वामी द्वारा सक शासक के वध की रक्षा की है।

लेखक के शब्दों में भेष बदलकर शत्रु की हत्या करने से नैतिकता का उल्लंघन नहीं होता। काव्य-नाटक साहित्य भी हमारे लिए लाभदायक है सेतुबंध काव्य या सेतु काव्य कौमुदी महोत्सव देवीचंद्रगुप्तम और मुद्राराक्षस इसी श्रेणी में आते हैं। सेतुबंधम एक प्राकृत काव्य है जिसमें लंका पर आराम के आक्रमण तथा रावण के वध को चित्रित किया गया है इस पुस्तक की रचना वाकाटक राजा भंवर सिंह ने की थी कौमुदी महोत्सव 5 अंकों में लिखा गया एक नाटक है कुछ विद्वानों का विचार है कि इस पुस्तक की रचना किशोरी का ने की और कुछ अन्य विद्वानों ने व जी का को इसकी लेखिका बताया है। मगर वास्तविकता यह है कि इस पुस्तक की रचना 340 इसी में की गई और इसमें मदद की तत्कालीन राजनीतिक अवस्था का चित्रण किया गया है इस नाटक की कथा के अनुसार सुंदर वर्मा मगध का राजा था उसकी कई रानियां थी लेकिन उस में से किसी ने भी पुत्र को जन्म नहीं दिया था जब वह बूढ़ा होने लगा तो उसने चंद्रसेन को दत्तक पुत्र बना लिया वह मदद खुद का था और उसकी पत्नी लिखी हुई जाति की थी प्लीज कोई मदद के राजवंश के पुराने शत्रु थे नाटक में छवियों को मलेज कहा गया है चंद्रसेन को गोद लेने के बाद सुंदर वर्मा के एक पुत्र हुआ जिसका नाम उसने कल्याण वर्मा रखा राजा अपने पुत्र को बहुत चाहने लगा चंद्रसेन को यह अच्छा ना लगा और उसने अपने पोषक पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया युद्ध में सुंदर वर्मा की मृत्यु हो गई और चंद्र सेन राजा बन गया प्रधानमंत्री मंत्र गुप्त तथा सेनापति कुंजारा को यह मानना था और उन्होंने स्वर्गीय राजा के वास्तविक पुत्र का पक्ष ले लिया उसे बहुत दूर एक सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया जहां वह कई वर्ष रहा प्रधानमंत्री तथा सेनापति अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा करने लगे जब उसे सिंहासन पर बैठाया जाए सीमांत प्रदेश में एक विद्रोह को दबाने के लिए चंद्रसेन को राजधानी छोड़नी पड़ी चंद्रसेन की अनुपस्थिति में कल्याण वर्मा को राजधानी में लाया गया और चंद्रसेन को गद्दी से उतार कल कल्याण वर्मा को राजा बना दिया गया कहा गया है कि चंद्रसेन ही गुप्त वंश का चंद्रगुप्त प्रथम था इस नाटक में गुप्त वंश की उत्पत्ति तथा उन्नति पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है गुप्त वंश के इतिहास की गई उलझन को सुलझाने में इसने विद्वानों की सहायता की है।

देवीचंद्रगुप्तम एक राजनीतिक नाटक है और इसकी रचना का श्रेय मुद्राराक्षस के लेखक विशाखदत्त को दिया जाता है इस नाटक की पूर्ण प्रति प्राप्त नहीं हो सकी है मगर कुछ लेखकों द्वारा लिए गए उठकर उदाहरण ही प्राप्त हुए हैं अभिनव गुप्त ने इसके उदाहरण अभिनव भारतीय में दिए भोज ने श्रृंगार प्रकाश में रामचंद्र ने न्याय दर्पण में तथा सागर ना दिन ने नाटक लक्षण रत्न कोष में इसके उदाहरण दिया इस पुस्तक में दी गई जानकारी को एकत्र करके देवीचंद्रगुप्तम की पूर्ण प्रति बनाई जा सकती है नाटे दर्पण से ज्ञात होता है कि राम गुप्त चंद्रगुप्त द्वितीय का बड़ा भाई था अंत:पुरा में रानी का सेवक माधव सिंह था राजकुमार चंद्रसेन रानी का प्रेमी बन गया सतपति राम गुप्त का शत्रु था उन दोनों के युद्ध में राम गुप्त की पराजय हुई और उसने अपनी रानी ध्रुव देवी को शक राजा को देना स्वीकार किया बताया गया है कि राम ग्रुप में या शक मंत्रियों के परामर्श से स्वीकार की जनता के परामर्श से नहीं।विशाखदत्त कृत मुद्राराक्षस से भी लाभदायक जानकारी मिलती है कथावस्तु तो चंद्रगुप्त मौर्य तथा कौटिल्य द्वारा मौर्य वंश की स्थापना से संबंध है किंतु प्रतीत होता है कि विशाखदत्त ने अपने समय में गुप्त वंश की स्थापना संबंधी घटनाओं का उल्लेख भी कर दिया है नाटक कूटनीति तथा राजनीति भरपूर है गुप्त काल में राजा के धर्म तथा जनता की धार्मिक स्थिति पर भी प्रकाश पड़ता है ऐसा प्रतीत होता है कि धार्मिक सहिष्णुता प्रचलित थी नाटक में जीव सिद्दीकी महत्वपूर्ण स्थिति से इसकी पुष्टि होती है।
फाहियान एक चीनी यात्री लेखक खा लिया चीनी यात्री गुप्त नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था इसके विवरण में गुप्त कालीन भारत की सामाजिक आर्थिक धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है इसने अपने विवरण में मध्य एशियाई देशों के बारे में बताया है या चीन से रेशम मार्ग प्राचीन काल और मध्य काल में ऐतिहासिक व्यापारिक सांस्कृतिक मार्गों का समूह था जिसके माध्यम से एशिया यूरोप अफ्रीका जुड़े हुए थे इससे होते हुए भारत आया था।फाहियान एक चीनी बौद्ध भिक्षुक यात्री लेखक एवं अनुवादक थे जो 399 ईसवी से लेकर 412 ईसवी तक भारत श्रीलंका और आधुनिक नेपाल में स्थित गौतम बुद्ध के जन्म स्थल कपिलवस्तु धर्म यात्रा पर आए उनका दिए यहां से बौद्ध ग्रंथ एकत्रित करके उन्हें वापस छीन ले जाना था उन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन अपने पूरे ग्ररंथ में लिखा जिसका नाम बहुत राज्यों का एक अभिलेख चीनी बिच्छू आसियान की बौद्ध अभ्यास पुस्तकों की खोज में भारत और शिलोन की यात्रा था।

उनकी यात्रा के समय भारत में गुप्त राजवंश के चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का काल था और चीन में जीन राजवंश का काल चल रहा था। फाह्यान द्वारा लिखित विवरण से भी पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है ।फाहियान का मुख्य उद्देश्य बौद्ध पुस्तकों तथा कि मंत्रियों की खोज करना था किंतु उसने तत्कालीन सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति की भी पर्याप्त जानकारी दी उसने नगरों तथा नागरिकों के धन समृद्धि का उल्लेख किया है राज्य तथा अन्य परोपकारी संस्थाओं द्वारा चलाए निशुल्क चिकित्सालय कभी उसने वर्णन किया है। एक अन्य चीनी यात्री इत्सिंग का भी इतिहास में नाम उल्लेखनीय है वह भी एक बौद्ध भिक्षुक था यो चीन से सुमात्रा के रास्ते समुद्री मार्ग से भारत आया था और 10 वर्षों तक नालंदा विश्वविद्यालय में रहा था उसने वहां के प्रसिद्ध आचार्य से संस्कृत तथा बौद्ध धर्म के ग्रंथों को पढ़ा सिंह ने अपना प्रसिद्ध ग्रंथ भारत तथा मले निकुंज में प्रचलित बौद्ध धर्म का विवरण लिखा उसने नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा उस समय के भारत पर प्रकाश डाला है उस समय के भारत पर प्रकाश डाला इस ग्रंथ से हमें उस काल के भारत के राजनीतिक इतिहास के बारे में तो अधिक जानकारी नहीं मिलती परंतु जागरण बौद्ध धर्म और संस्कृत साहित्य के इतिहास का अमूल्य स्रोत माना जाता है इसने भारत में कागज का प्रयोग देखा था सिंह ने अपनी पुस्तक में जय आदित्य के वृत्तीसूत्र का उल्लेख किया है।चीनी यात्री ईत्सिग ने हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात भारत की यात्रा की उसने महाराजा श्री गुप्त का उल्लेख किया है जिसने चीनी तीर्थ यात्रियों द्वारा एक मंदिर निर्माण करवाने का उल्लेख किया है। गुप्त काल की जानकारी में अभिलेखों का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है गुप्तकालीन इतिहास लिखने में अभिलेख भी काफी सहायक सिद्ध हुए हैं गुप्त अभिलेखों में आरंभिक गुप्त राजा तथा उनके उत्तराधिकारी ओं के अभिलेख हैं किंतु डॉक्टर फ्लिट ने केवल आरंभिक गुप्ता राजाओं के ही नहीं बल्कि उत्तर कालीन गुप्त राजाओं के अभिलेख भी संकलित किए हैं।आरंभिक गुप्त राजाओं की मुख्य शाखा को स्कंद गुप्त के साथ समाप्त हुई समझा जाता है 484 ईसवी का बुध गुप्त तथा 510 का भानु गुप्त का पर्स के क्रम से 19 तथा 20 अभिलेखों में उल्लिखित है समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख से भारतीय नेपोलियन की विधियों का विस्तृत विवरण मिलता है समुद्रगुप्त के एरण शिलालेख अभिलेख संख्या 2 से भी समुद्रगुप्त की शक्ति तथा कार्यकलापों का ज्ञान होता है।उदयगिरि गुफा अभिलेख मथुरा शिलालेख सांची शिलालेख और गढ़वा शिलालेख सभी चंद्रगुप्त द्वितीय के हैं और धर्म के प्रति राज्य की नीति से हमें अवगत कराते हैं गढ़वा शिलालेख मिल चार स्तंभ शिलालेख और मन कुंवर मूर्ति शिलालेख में कुमारगुप्त प्रथम का वर्णन है दो भागों में बिहारी स्तंभ शिलालेख भिकारी स्तंभ शिलालेख जूनागढ़ जिला अभिलेख कहां हो स्तंभ शिलालेख और इंदौर ताम्रपत्र अभिलेख में स्कंद गुप्त का वर्णन दिया गया है।

महरौली लौह स्तंभ अभिलेख में किसी राजा चंद्र का वर्णन है व्यास नदी के निकट एक पहाड़ी पर इसके मालिक स्थान से दिल्ली का एक शासक इसे दिल्ली के निकट महरौली ले आया इस अभिलेख में कहा गया है कि उसके विरुद्ध संगठित एक राजा समूह के विरुद्ध युद्ध करके उसने वह लिखो पर भी विजय पाई उसने अपनी विजय ख्याति दक्षिणी समुद्र तक पहुंचा ही अपनी भुजाओं की शक्ति से उसने संसार में अपनी सर्वोच्च सत्ता स्थापित की।स्कंद गुप्त के भी तारी स्तंभ अभिलेख में उसके पिता कुमारगुप्त प्रथम के समय में पुष्य मित्रों तथा संभवत हूणों के साथ भी स्कंद गुप्त के युद्ध का वर्णन है।इस अभिलेख से स्कंद गुप्त के कार्यकलापों का वर्णन प्राप्त होता है बताया गया है कि उसने आक्रमणकारी या आक्रमणकारियों को बुरी तरह पराजित किया और विजई होकर वापस राजधानी लौट आया प्रतीत होता है कि उसके वापस लौटने पर उसके पिता ने राज्य कार्य उसे सौंप दिया। इनके अलावा मोहरे भी गुप्तकालीन जानकारी प्रदान करने में काफी महत्वपूर्ण योगदान निभाया है।इतिहासकारों का यह मानना है कि अगर किसी देश का इतिहास जानना है तो उसके तत्कालीन सिक्कों का प्रचलन देखना चाहिए भारत को सोने की चिड़िया का नाम देने वाला वंश का इतिहास उसके सिक्के के रूप में दिखाई देता है गुप्त वंश के सिक्के बहुमूल्य धातु जैसे सोने और चांदी के अलावा शीशे के बने होते थे विदेशी व्यापार की अधिकता के कारण सोनभंडार में हमेशा वृद्धि होती रहती थी और इस कारण समाज में स्वर्ण एवं रजत सिक्कों का प्रचलन अधिक था।गुप्त वंश में स्वर्ण मुद्रा का प्रचलन अधिक था इसके अतिरिक्त इस मुद्रा में कलात्मकता का भी अधिक किया था उस समय जारी की गई स्वर्ण मुद्रा को दिनार कहा जाता था इन मुद्राओं के निर्माण में कुषाण वंश द्वारा प्रयोग की गई स्वर्ण मुद्रा की मात्रा तुलनात्मक रूप से कम थी ।

इसके अलावा जब चंद्रगुप्त द्वितीय के शासकों को पराजित करके गुजरात राज्य को अपने अधीन कर लिया तब विजय प्रतीक स्वरूप चांदी के सिक्के जारी किए गए लेकिन यह मुद्रा आम आदमी के दैनिक व्यवहार के लिए उपयुक्त नहीं थी इसलिए रोजमर्रा की जिंदगी में उन्हें वस्तुओं के आदान-प्रदान और कौड़ियों का प्रयोग से काम चलाना पड़ता था।गुप्त वंश में चंद्रगुप्त प्रथम ने सबसे पहले सिक्कों का प्रचलन शुरू किया था इन सिक्कों के एक और चंद्रगुप्त का चित्र अंकित था तो दूसरी और रानी कुमार देवी को अंकित किया गया था अपने पूरे शासनकाल में चंद्रगुप्त ने इस प्रकार के छह सिखों को जारी किया था आरंभ में इन सिक्कों का वजन 120 से 121 ग्रैंन हुआ करता था।चंद्रगुप्त द्वारा जारी किए गए सिक्कों में सबसे अधिक प्रचलित सिक्कों में हुआ सिक्का था जिसमें उसके बाएं हाथ में ध्वज धारण किए हुए था इस चित्र में भी उसके कुषाण सम्राट की भांति विदेशी पोशाक धारण किए हुए दिखाया गया है इसी प्रकार चंद्रगुप्त की रानी को भी विदेशी रूप में दिखाया गया था।चंद्रगुप्त के पुत्र समुद्रगुप्त द्वारा जारी किए गए सिखों में विदेशी कोर्ट नहीं था समुद्र ग्रुप में अपने सिक्कों में स्वयं को एक धनुर्धर के रूप में प्रदर्शित किया था इस चित्र को आगे आने वाले गुप्त शासकों ने भी पसंद करते हुए अपनाया था इसके अलावा समुद्रगुप्त द्वारा जारी किए गए सिखों में उसे एक हाथ में युद्ध में प्रयोग किए जाने वालेकुल्हाड़ी के साथ भी दिखाया गया है और इसके साथ ही उसके सामने एक संदेश वाहक अभी खड़ा है समुद्रगुप्त ने कला प्रेमी व धार्मिक रूप को भी सिखों के रूप में दिखाया जा सकता है कुछ सीखो मैं उसे वीणा बजाते हुए यज्ञ करते हुए भी दिखाया गया था समुद्रगुप्त ने मुख्य रूप से केवल 10 शिक्षकों को ही जारी किया था उसके राज्य में तांबे के सिक्के का प्रचलन नाममात्र का ही था इस समय जारी किए गए सिक्के का वजन 144 ग्रेन था जबकि चांदी के सिक्कों का भार 30336 ग्रेन रखा गया था।गुप्त वंश के एक और शासक कुमारगुप्त ने भी कुछ सिक्कों को जारी किया था यह सिक्के पहले के शासकों की तुलना में काफी भीड़ थी कुमारगुप्त ने अपने शासनकाल में लगभग 14 प्रकार के स्वर्ण सिक्कों को जारी किया था इन सिक्कों में अधिकतर घुड़सवार की आकृति वाले सिक्के देखे जा सकते हैं।इसके अलावा नाचते हुए मोर को भी कुछ स्वर्ण मुद्रा में अंकित किया गया था अपने पूर्वजों की परंपरा का पालन करते हुए कुमारगुप्त ने स्वयं को एक अधिकारी व क्षत्रिय के रूप में भी सिखों पर अंकित करवाया था इसके लिए कहीं चीते का शिकार तो कहीं अश्वमेघ करते हुए अंकित करवाई गई इसके अतिरिक्त को सिखों पर देखा जा सकता है चंद्रगुप्त भाटी राजा रानी को भी सिखों पर अंकित करवाया गया इस प्रकार कहा जा सकता है गुप्त वंश की प्रतिष्ठा का परिचायक रहे हैं।मुजफ्फरपुर जिले में वैशाली से बहुत बड़ी संख्या में मोरे प्राप्त हुई है चंद्रगुप्त द्वितीय की रानी महादेवी ध्रुवस्वामिनी की मुहर भी प्राप्त हुई है यह महाराजा गोविंद गुप्त की माता की यह संभवत कुमारगुप्त प्रथम का छोटा भाई था अपने पिता चंद्रगुप्त द्वितीय के राज्य में हुआ वैशाली का गवर्नर था वैशाली के अन्य कर्मचारियों की अनेक मोरे भी वहां से प्राप्त हुई है मोरो की विविधता तथा नमूने से प्रांतीय तथा स्थानीय प्रशासन के संबंध में पता चलता है उच्च तथा अधीन कर्मचारियों की मोहरे प्राप्त हुई है नागरिक तथा सैनिक प्रशासन ने कर्मचारियों की एक लंबी सूची हमें प्राप्त हो जाती है। गोपी इतिहासकार की बहुत सी सामग्री गुप्त सम्राटों के सिक्कों से प्राप्त होते हैं गुप्त वंश के सिक्कों का नियमित अध्ययन किया गया है समुद्रगुप्त द्वारा चलाए गए सिक्के प्राप्त हुए हैं इन पर चंद्रगुप्त प्रथम तथा उसकी रानी कुमार देवी के चित्र अंकित है। समुद्रगुप्त के चीता प्रकार वीणा वादक प्रकार और श्रमिक प्रकार पताका प्रकार धनुर्धर प्रकार आदि सिक्के प्राप्त हुए हैं चंद्रगुप्त द्वितीय के भी विभिन्न प्रकार के अनेक सिक्के हैं यथा धनुर्धर प्रकार संघ प्रकार छात्र प्रकार शेर घातक प्रकार घुड़सवार प्रकार कुमारगुप्त प्रथम के भी कई सिक्के मिले हैं जो धनुर्धर प्रकार अशोक में प्रकार घुड़सवार प्रकार से घातक प्रकार चीता घातक प्रकार हाथी सवार प्रकार आदि स्कंद गुप्त के धनुर्धर प्रकार के सिक्के मुख्यतः सोने के हैं इसको मुद्रा लेखों से कवि की श्रेष्ठ झलकती है चंद्रगुप्त ने चांदी के सिक्के केवल उन्हीं प्रदेशों के लिए चलाएं जो पहले पश्चिमी क्षेत्र को के अधीन किंतु बाद में चांदी के सिक्के ग्रुपों के लिए भी चला दिए गए।


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औद्योगिक अर्थव्यवस्था नीति https://vinayiasacademy.com/?p=2715 https://vinayiasacademy.com/?p=2715#respond Thu, 16 Jul 2020 11:08:56 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2715 Share itऔद्योगिक अर्थव्यवस्था नीति क्या है विस्तार पूर्वक वर्णन करें? किसी देश की औद्योगिक नीति व नीति है जिसका उद्देश्य उस देश के निर्माण उद्योग का विकास करना एवं उसे उचित दिशा प्रदान करना होता है। औद्योगिक नीति का अर्थ सरकार के उन निर्णय हो एवं घोषणाओं से होता है जिसमें उद्योगों के लिए अपनाई […]

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औद्योगिक अर्थव्यवस्था नीति क्या है विस्तार पूर्वक वर्णन करें?

किसी देश की औद्योगिक नीति व नीति है जिसका उद्देश्य उस देश के निर्माण उद्योग का विकास करना एवं उसे उचित दिशा प्रदान करना होता है। औद्योगिक नीति का अर्थ सरकार के उन निर्णय हो एवं घोषणाओं से होता है जिसमें उद्योगों के लिए अपनाई जाने वाली नीतियों का उल्लेख होता है। 1948 से अभी तक सरकार द्वारा घोषित औद्योगिक नीतियों से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका, औद्योगिक संस्कृति की दिशा और औद्योगिकीकरण का निर्धारण होता रहा है इन नीतियों की घोषणा समय-समय पर सरकारों की बदलती प्राथमिकताओं पर आधारित होती है।
ऐसी भी है जो ऐतिहासिक कही जाती है जैसे, 1956 की औद्योगिक नीति जिससे आज के सार्वजनिक क्षेत्र की पहचान बनी है, 1991 की दूसरी ऐतिहासिक नीति जिसे भारत में आर्थिक सुधारों की जननी कहा जाता है, यहां 1948 से बनी सभी औद्योगिक नीतियों का विवेचन आवश्यक नहीं है परंतु 1991 से पहले की नीतियों की प्रमुख बातों को अगर हम समझ ले तो 19 91 की नीति को समझना आसान हो जाएगा।
1991 से पूर्व की औद्योगिक नीति
पहले औद्योगिक नीति 1948,
दूसरी औद्योगिक नीति 1956,
तीसरी औद्योगिक नीति 1977,
चौथी औद्योगिक नीति 1980,
पांचवी औद्योगिक नीति 1990
छठी औद्योगिक नीति 1991

56 की नीति के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र की स्थापना हुई थी और कुल 18 क्षेत्रों में उद्योग के लिए उनका एकाधिकार था। कुछ क्षेत्रों में निजी क्षेत्र को मोहलत विधिवत पंजीकरण और लाइसेंस के बाद दी जा सकती थी यदि सरकार चाहे तो इन क्षेत्रों में भी सार्वजनिक क्षेत्र का प्रवेश कर सकते थे।
इस प्रकार अर्थव्यवस्था में महत्व वाले तेल, ऊर्जा, भारी उद्योग, टेलीकॉम इत्यादि विश स्टेटस सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गए।
म्यूजिक बड़ी कंपनियां एकाधिकार एवं प्रतिबंधित व्यापार नियमन एवं विदेशी कंपनियां विदेशी मुद्रा अधिनियम के तहत अत्यधिक नियमन के दायरे में थी इन्हें क्रम एमआरटीपी कंपनी और एसपीआरए कंपनियां भी कहा जाने लगा था।
सरकारों का यह विश्वास था कि जब कंपनी का आकार बड़ा हो जाता है तबीयत अधिकार एवं शोषण की प्रवृतियां बनाने लगती हैं। इसलिए व्यवसाय शुरू करने के लिए लाइसेंस प्राप्त कर लेने के बाद भी निजी क्षेत्र को विस्तार या विभिनता लाने के लिए सरकार से पुणे अनुमति आवश्यक थी जबकि यही सब कुछ किसी भी व्यवसाय के लिए सामान्य बात होनी चाहिए।
1991 से पूर्व की नीतियों में औद्योगिक उत्पादों जैसे सीमेंट, स्टील और अन्य मौलिक उत्पादों का मूल्य नियमन सरकारों द्वारा किया जाता था।


सरकार की हरनीति घोषणा में मिश्रित अर्थव्यवस्था यानी सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के साथ-साथ विकसित होने पर बल दिया जाता था परंतु वास्तव में यह नीतियां सार्वजनिक क्षेत्र के पक्ष में भारी झुकाव रखती थी।
1991 से पूर्व की औद्योगिक नीतियां अत्यधिक नियमन और नियंत्रण करने वाली थी, शालिनी क्षेत्र का बोलबाला था और सीमित क्षेत्र में निजी क्षेत्र का अस्तित्व था। सरकार द्वारा बनाई गई औद्योगिक नीति से उस देश के औद्योगिक विकास के निम्नलिखित तथ्यों का पता चलता हैः
औद्योगिक विकास की कार्य योजना एवं कार्य योजना की रणनीति क्या होगी।
औद्योगिक विकास में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की भूमिका क्या होगी।
औद्योगिक विकास में विदेशी उद्यमियों एवं विदेशी पूंजी निवेश की दिशा क्या होगी।

नई औद्योगिक नीति 1991ः 1991 की नई औद्योगिक नीति को भारत में आर्थिक सुधारों की जननी कहा जाता है। यद्यपि सुधार के कदम पहले भी उठाए गए थे परंतु वे निवर्तमान नीतियों में बदलाव द्वारा लाए गए थे जबकि नई औद्योगिक नीति में इन बदलावों को स्पष्ट रूप से दिखाया गया।,
इसे नई औद्योगिक नीति नई आर्थिक नीति तथा नई उदारीकरण नीति जैसे नामों से भी जाना गया। नई नीति के द्वारा व्यवसाय करने की पूरी छूट बिना किसी प्रकार के सरकारी नियंत्रण और सार्वजनिक क्षेत्र का दायरा काम करते हुए निजी क्षेत्र के विस्तार हेतु कई सहूलियत दी गई। नहीं विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए उधार विदेशी निवेश नीतियां बनाने की वकालत की गई। और नई औद्योगिक अथवा आर्थिक नीति के तीन प्रमुख क्षेत्र निर्धारित किए गए हैंः
उदारीकरण
सार्वजनिक क्षेत्र
विदेशी निवेश

उदारीकरणः उदारीकरण द्वारा पूर्व की लाइसेंस और पंजीकरण को समाप्त किया गया ताकि निजी क्षेत्र स्वतंत्र रूप से बिना लाइसेंस और पंजीकरण के अपने उद्योग स्थापित कर सके। लाइसेंस व्यवस्था की समाप्ति उदारीकरण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। परमाणु ऊर्जा और रेलवे इन दोनों को भी निजी क्षेत्र के दायरे से बाहर रखा गया है। कुछ क्षेत्रों के लिए अभी भी निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए लाइसेंस की आवश्यकता पड़ती है जैसे किसी प्रकार का हथियार, दवाई , कोयले का खनन, रक्षा संबंधी सामान, सभी प्रकार की शराब, सिगरेट , खतरनाक रसायन।
पर्यावरण को प्रभावित करने या प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योगों को लाइसेंस लेने या पंजीकरण की आवश्यकता तो नहीं है परंतु उन्हें प्रशासनिक अनुमति द्वारा निवेश के पहले लेना पड़ता है। इसके अतिरिक्त उदारीकरण नीति के अंतर्गत अब निजी कंपनियों द्वारा क्षमता विस्तार और विविधीकरण के लिए किसी पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है। नई नीति से निजी क्षेत्र को कौन सा एक व्यवसायिक प्रतिष्ठान के रूप में काम करने की बिना प्रशासनिक नियंत्रण के पूरी छूट मिल चुकी है और उनका संचालन विस्तार आदि बाजार की मांग के अनुसार और उपलब्ध अवसरों पर आधारित हो चुका है। अब निजी क्षेत्र की परिपक्वता लचीलापन और उनकी युद्ध समन्वय स्थिति को स्वीकार आ जाए और देश की अर्थव्यवस्था में उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां दी जाए यह समय आ चुका है। नई नीति इस बात का परिचायक है कि सरकार की सोच में भी एक आधारभूत बदलाव आया है और यह है कि सरकार का काम शासन करना जो उत्पादन करने से भिन्न है। निजी क्षेत्र और सरकार की अलग-अलग भूमिकाएं भी स्पष्ट हो चुकी है निवेश बढ़ाकर समृद्धि में निरंतरता निजी क्षेत्र की जिम्मेदारी है जबकि सरकार का काम बड़े सामाजिक मुद्दों पर विचार अर्थव्यवस्था और कुशल प्रशासन देने की है। जिम्मेदारियों का निर्धारण भी सरकार की सोच में बदलाव का एक द्योतक है।

सार्वजनिक क्षेत्रः 1991 की नई नीति से सार्वजनिक क्षेत्र की परिधि को काफी सीमित कर दिया गया। 18 क्षेत्रों को घटाकर कुल 5 क्षेत्रों वाला कर दिया गया और भविष्य में इंसान क्षेत्रों को और विक्रम करने की आशा व्यक्त की गई है। हालांकि इसमें परमाणु ऊर्जा रेलवे और लाइसेंस की आवश्यकता वाले उद्योग शामिल नहीं है। इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया है कि भविष्य में अब कोई भी नया सार्वजनिक क्षेत्र नहीं स्थापित होगा और मौजूदा कंपनियों में यदि निवेश किया गया तो उसके लिए पूंजी उत्साहजनक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों को अपनी प्राप्ति से या अब तक हुए लाभों से प्राप्त की जाएगी साजन क्षेत्रों के लिए कोई नया बजट प्रावधान नहीं किया जाएगा शिवाय घाटे में चल रही कंपनियों और आर्थिक दबाव झेल रही कंपनियों को छोड़कर।
साजन क्षेत्र की कंपनियों में ज्यादा व्यवसाई कुशलता की अपेक्षा शुरू से हो रही है। इन कंपनियों के निदेशक मंडल में इस क्षेत्र विशेष के विषय के साथियों की ही नियुक्ति होती है। इसके मुख्य कार्यकारी कंपनी के निष्पादन के लिए जवाब दे होते हैं। साजन क्षेत्र की किन कंपनियों का निष्पादन खाती हो रहा है उन्हें दैनिक क्रियाकलाप में ज्यादा स्वतंत्रता मिलती है सर्वप्रथम यह स्वतंत्रता उन्हें समझौता ज्ञापन के द्वारा निष्पादन में प्रतिबद्धता और संचालन में लचीलापन के द्वारा प्रदान की जाती है इंटरनेट पादन के आधार पर इन्हें महारत्न नवरत्न और मिनी रत्न सैन्य में वर्गीकृत कर के निवेश के निर्णय लिए जाते हैं।

निजीकरणः क्षेत्र की स्थापना के लिए सरकार द्वारा निवेश शेयर के माध्यम से बजट प्रावधानों के अंतर्गत किया गया था अतः विनिवेश एवं निजी करण दोनों से आशय है सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र को प्रतिभूतियों को बेचना। हमें पता है कि प्रतिभूतियों का खरीदना और बेचना स्टॉक मार्केट के माध्यम से होता है और इस प्रकार प्रतिभूतियों की कीमत खरीदार और विक्रेता के द्वारा तय की जाती है।

1991 की नीति निजीकरण का समर्थक क्यों है?

इस नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण का परिपक्व फैसला निम्न कारणों से लिया गया:
प्रारंभ में प्रमुख क्षेत्रों में क्षमता विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है जैसे कि निर्भरता, जोगी करण के लिए धरातल तैयार किया गया औद्योगिक समृद्धि सुनिश्चित की गई। परंतु अब वह समय आ गया है कि क्रियाकलापों को ऊंची गति प्रदान की जाए तथा अधिक क्षमता का विकास हो सके।
उधारी इसे प्रमुख क्षेत्रों में निजी क्षेत्र द्वारा निवेश के मार्ग खुल गया है जिससे प्रतियोगिता और भी ज्यादा बढ़ गई है। साजन क्षेत्र का निजी क्षेत्र की तुलना में शुद्ध बिजनेस मॉडल बनकर काम करना संभव नहीं हो पा रहा है।


औद्योगिक उत्पादन करने में सरकार की भूमिका सदैव एक अंतरिम और थोड़े समय वाली व्यवस्था है यह कमी अस्थाई व्यवस्था नहीं हो सकती सरकार अस्थाई तौर पर केवल उन्हीं क्षेत्रों में उत्पादन वती हो सकती है। जहां जनकल्याण प्रभावित हो रहा हो जैसे रेलवे अथवा राष्ट्रहित का मामला हो जैसे परमाणु ऊर्जा।
लाभ क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण क्यों किया जाए? निजी करण का उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना ही नहीं है परंतु इसके पीछे एक और भी बड़ा कारण यह है कि क्या भविष्य में भी आज के लाभ कमाने वाले उपक्रम कड़ी प्रतियोगिता वाले वातावरण में भविष्य में भी उतने ही लाभ करने वाले होंगे।
किसी भी व्यवसाय में त्वरित निर्णय लेने की योग्यता होनी चाहिए इसमें यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि लिया गया निर्णय सही था या गलत। इस प्रकार के निर्णय में व्यावसायिक जोखिम की संभावना हमेशा बनी रहती है परंतु निर्णय लेने की योग्यता होना आवश्यक है।
उपरोक्त सारी बातों को ध्यान में रखकर सरकार ने कुछ बड़ी कंपनियों के निजीकरण का फैसला लिया जैसे कि वेदांता ग्रुप, बीएसएनल, आईपीसीएल, मॉडर्न फूड्स और मारुति। निजी करण का प्रथम चरण विरोध तथा विवादों से भरा रहा। निजीकरण के लाभ और आवश्यकता होने के बावजूद सरकार और अधिक निजी करण के पक्ष में नहीं है तथा इस विषय पर विपक्ष और कर्मचारी यूनियनों की आम सहमति की प्रतीक्षा करेगी जो कि ठीक भी है निजी करण एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें कई दशक लग जाते हैं।
निजी करण को ही मात्र आर्थिक सुधार का जरिया नहीं समझना चाहिए और ना ही इसे सारी आर्थिक समस्याओं का हल निकल कर सामने आएगा कुछ ऐसी गलत धारणा सार्वजनिक क्षेत्र की स्थापना के समय बनी थी निजी करण ज्यादा से ज्यादा यह कर सकता है कि देश में एक प्रतियोगी और 10:30 उद्योग का आधार बन सके किंतु इसे सुधारो का एकमात्र पहलू कहना गलत होगा।
देश में अभी भी व्यवसाय करने में काफी नौकरशाही जैसी अड़चनें हैं और सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। हम यह कह सकते हैं कि उदारीकरण से लाभ तो हुआ है परंतु अभी भी इसे विश्वस्तरीय नहीं कहा जा सकता। हमारे भारत को हजारों छोटे आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है ना की धमाकेदार बड़े सुधार।


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Zharkhand Test https://vinayiasacademy.com/?p=1169 https://vinayiasacademy.com/?p=1169#respond Wed, 15 Apr 2020 03:38:32 +0000 http://vinayiasacademy.com/?p=1169 Share it Custom Notifications and Alerts without a hassle. Notify anyone about any action in your WordPress. With powerful Merge Tags, you can endlessly customize your messages. Set unlimited Notifications in your WordPress Admin via the beautiful and intuitive interface within 5 minutes. Share it

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झारखंड की भौगोलिक स्थिति https://vinayiasacademy.com/?p=962 https://vinayiasacademy.com/?p=962#respond Tue, 07 Apr 2020 11:39:59 +0000 http://vinayiasacademy.com/?p=962 Share it झारखंड राज्य देश का 28वां राज्य है । राज्य के लंबाई- उत्तर से दक्षिण 380 किमी० चौड़ाई- पूर्व से पश्चिम 463 किमी० है । राज्य का क्षेत्रफल – 79,714 वर्ग किमी० है। राज्य की सीमाएं – झारखंड राज्य के उत्तर में बिहार ,दक्षिण में उड़ीसा ,पूर्व में पश्चिम बंगाल तथा पश्चिम में छत्तीसगढ़ […]

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  • झारखंड राज्य देश का 28वां राज्य है ।
  • राज्य के लंबाई- उत्तर से दक्षिण 380 किमी० चौड़ाई- पूर्व से पश्चिम 463 किमी० है ।
  • राज्य का क्षेत्रफल – 79,714 वर्ग किमी० है। राज्य की सीमाएं – झारखंड राज्य के उत्तर में बिहार ,दक्षिण में उड़ीसा ,पूर्व में पश्चिम बंगाल तथा पश्चिम में छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश।
  • झारखंड उत्तरी गोलार्ध में 21°58′ से 25°18′ उत्तरी अक्षांश के बीच स्थित । # vinayiasacademy. Com#
  • देशांतरीय विस्तार 83°19′ से 87°57′ पूर्व के बीच स्थित ।
  • झारखंड की जनसंख्या (2011 के अनुसार) – 32,988,134
  • देश की कुल जनसंख्या का 2.72% झारखंड में निवास करते हैं ।
  • जनसंख्या घनत्व – 414 व्यक्ति प्रति घन किमी० है ।
  • झारखंड की सबसे ऊंची चोटी- पारसनाथ की चोटी (ऊंचाई 1365 मीटर) #vinayiasacademy.com#
  • सभी पठारों की औसत ऊंचाई- 760 मीटर
  • राजकीय पशु – हाथी।
  • राजकीय वृक्ष- काल।
  • राजकीय पक्षी – कोयल ।
  • राजकीय फूल- पलाश ।
  • कर्क रेखा रांची, नेतरहाट व पलामू जिले से होकर गुजरती है ।
  • राज्य में उष्ण जलवायु पाई जाती है ।
  • झारखंड में मानसून का प्रवेश- 8 जून (दक्षिण- पश्चिम)
  • जीडीपी में राज्य का योगदान- लगभग 25% है।
  • झारखंड की उपराजधानी – दुमका ।
  • #vinayiasacademy.com#
  • राज्य की प्रति व्यक्ति आय- ₹14990।
  • राज्य में सर्वाधिक वन वाला जिला – चतरा (47.8%)
  • राज्य में वन क्षेत्र की स्थिति – 29.55%
  • ( प्रांत के कुल क्षेत्रफल का )
  • राज्य में सबसे कम वन वाला जिला – धनबाद(6.74%)
  • राज्य में कुल कृषि योग्य भूमि- 38 %

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झारखंड के प्रमुख विद्रोह https://vinayiasacademy.com/?p=857 https://vinayiasacademy.com/?p=857#respond Sat, 04 Apr 2020 07:29:34 +0000 http://vinayiasacademy.com/?p=857 Share itतमाड़ विद्रोह:- 1771 में अंग्रेजों ने छोटानागपुर पर अपना अधिकार जमाया . जमींदारों ने किसानों की जमीन हड़पी शोषण नीति के कारण उरांव जनजाति में विद्रोह भड़का दी. 1789 में विद्रोही जमींदार पर टूट पड़े. चेरो विद्रोह:- 1800ई०- किसानों ने अपने राजा के विरुद्ध विद्रोह किया । पक्षपात नीति का विरोध हुआ जब जयनाथ […]

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तमाड़ विद्रोह:-

  • 1771 में अंग्रेजों ने छोटानागपुर पर अपना अधिकार जमाया .
  • जमींदारों ने किसानों की जमीन हड़पी शोषण नीति के कारण उरांव जनजाति में विद्रोह भड़का दी.
  • 1789 में विद्रोही जमींदार पर टूट पड़े.

चेरो विद्रोह:-

  • 1800ई०- किसानों ने अपने राजा के विरुद्ध विद्रोह किया ।
  • पक्षपात नीति का विरोध हुआ जब जयनाथ सिंह को हटाकर गोपाल राय को राजा बनाया गया.
  • गोपाल राय के कुछ लोगों ने इनके साथ विश्वासघात किया है जिसके बाद इन्हें पटना जेल में बंदी बनाया गया और गोपाल राय की जगह चुड़ामन को राजा बनाया गया ।
  • कर्नल जोंस ने बहुत कोशिश की इस विद्रोह को कुचलने की पर असफल रहे बाद में 1802 में चेरो नेता को फांसी दे दी गई।

हो विद्रोह:-

  • यह विद्रोह 1821- 22 में छोटानागपुर के हो लोगों ने सिंहभूम के राजा जगन्नाथ सिंह के विरुद्ध किया था ।
  • विद्रोह का कारण :- राजा जगन्नाथ सिंह ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार की इसलिए “हो” लोगों ने विद्रोह किया ।
  • हो लोग पहले राजा के प्रति तटस्थ थे ।
  • 1 साल तक विद्रोह करने के बाद “हो” लोगों ने आत्मसमर्पण कर दिया।

कोल विद्रोह:-

  • यह विद्रोह 1831 के लगभग हुआ था।
  • पलामू, हजारीबाग व सिंहभूम क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैल गया ।
  • नेतृत्व कर्ता : नारायणराव गोमध कुमार।
  • विद्रोह का कारण:- अंग्रेज लोग कृषि व शिकार पर आश्रित लोगों से जबरन करके वसूली करते तथा अत्याचार करते थे तथा जमीन (दीकुओ को ) को दे दी जाती थी ।
  • यह विद्रोह लगभग 5 वर्षों तक चला । उस समय इस विद्रोह का नेतृत्व बुधु भगत, सूर्य मुंडा व सिंह राय कर रहे थे अंग्रेजी सेना के उस वक्त कमान कैप्टन विलकिंसन के हाथों में थी।
  • उस वक्त बंगाल तथा झारखंड के अंग्रेजों के नियम समान थे बाद में परिस्थिति को देखते हुए कंपनी ने “रेगुलेशन 8” नाम का नया कानून बनाया।

भूमिज विद्रोह:-

  • इस विद्रोह को “गंगा नारायण हंगामा” भी कहा जाता है।
  • यह विद्रोह 1832- 33 में हुआ था।
  • (नेतृत्व कर्ता- गंगा नारायण सिंह)
  • कारण :-आदिवासी उत्पीड़न।
  • पुरुलिया का पुराना नाम “मानबाजार” था जिसे 1838 में बदलकर पुरुलिया किया गया। प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार का सबसे बड़ा कारण “भूमिज विद्रोह” बना।

संथाल विद्रोह:-

  • यह विद्रोह 1855 में हुआ (नेतृत्व कर्ता सिद्धू कान्हू)
  • कारण :-1793 में लॉर्ड कॉर्नवालिस द्वारा शुरू किए गए स्थाई बंदोबस्त के कारण व जमीदारी प्रथा से मुक्ति।
  • 1856 ई०- यह विद्रोह वीरभूम, बांकुड़ा और हजारीबाग में फैल गया।
  • विद्रोह का नारा :- “करो या मरो अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो”।
  • जनवरी 1856 तक संथाल परगना क्षेत्र में इस विद्रोह को दबा दिया ।
  • 30 नवंबर 1856 को संथाल परगना जिला को स्थापित किया गया।

1857 का विद्रोह:-

  • यह भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है ।
  • झारखंड में यह विरोध ज्यादा असरदार नहीं रहा। यह देवघर के रोहिणी ग्राम से शुरू हुआ । 12 जून 1857 में मेजर लैसली की हत्या हुई। (नेतृत्व कर्ता जय मंगल पांडे व सूबेदार माधव सिंह)
  • 1857 ई०- 3 अक्टूबर को जय मंगल पांडे को मौत की सजा मिली।
  • पलामू में इस विद्रोह के नेतृत्व कर्ता- नीलांबर और पितांबर
  • सिंहभूम क्षेत्र में इस विद्रोह के नेतृत्व कर्ता अर्जुन सिंह, भगवान सिंह, रामनाथ सिंह.
  • 10 अगस्त 1857 :- मार्शल लॉ लागू (इसमें क्रांतिकारियों को फांसी देने का प्रावधान है।) 1850 ई०-अप्रैल मे लैसलीगंज में नीलांबर-पीतांबर को फांसी दी गई।

सरदारी आंदोलन या साफा – होर आंदोलन:-

  • 1850 ई०- अनेक आदिवासियों द्वारा ईसाई धर्म अपनाया गया ।
  • ईसाई धर्म के विरुद्ध अनेक जनजातीय सुधारवादी आंदोलन चलाया।
  • सरदारी आंदोलन 1859-1881 के बीच चला।
  • इसका जिक्र एक्सी राय ने अपनी पुस्तक “द मुंडाज “में किया ।
  • विद्रोह का उद्देश्य:- जमींदारों को बाहर करना, बेकारी प्रथा समाप्त करना।
  • यह आंदोलन के तीन चरण :
  • पहला भूमि आंदोलन (1858-81)
  • दूसरा स्थापना संबंधी आंदोलन (1881-90)
  • तीसरा राजनीतिक आंदोलन(1890-95)

खरवार आंदोलन या संथाल आंदोलन:-

  • नेतृत्व कर्ता – भागीरथ मांझी ।उद्देश्य:- प्राचीन और जनजातीय परंपराओं को पुनः स्थापित करना ।
  • प्रभाव क्षेत्र : संथाल परगना।
  • इस आंदोलन के प्रति पूर्ण समर्पण वाले “सफाहोर” तथा उदासीन लोग “बाबजिया”कहलाए ।
  • बेमन पूजको को मेलबरागर कहा गया।

बिरसा मुंडा आंदोलन:-

  • भगवान का अवतार माना जाता था ,लोग इन्हें ‘धरती आबा’ के नाम से भी जानते हैं ।
  • 1 अक्टूबर 1894 को इन्होंने लगभग 6000 मुंडाओ को एकत्रित किया एवं 1895 में उन्हें गिरफ्तार किया गया तथा 2 साल का कारावास (हजारीबाग) में दिया गया था।
  • विद्रोह का उद्देश्य: स्वतंत्र मुंडा राज्य स्थापना, अंग्रेज सरकार का पूरी तरह दमन करना तथा छोटानागपुर सहित सभी अन्य क्षेत्रों से दिक्कत (बाहरी) को भगाना ।
  • निधन :- 9 जून 1900 (राँची)।
  • 1908ई०- 11 नवंबर 1908 को छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम लागू किया गया । इसके अंतर्गत “मुंडारी खूँटकारी व्यवस्था” को लागू किया गया इससे प्रशासनिक सेवाओं को बेहतर बनाया गया ।
  • खूंटी को 1905 में तथा गुमला को 1908 में अनुमंडल बनाया गया।

ताना भगत आंदोलन( जतरा भगत) :-

  • यह आंदोलन 1914 में शुरू हुआ (बिरसा मुंडा के आंदोलन से ही यह आंदोलन का जन्म)
  • आंदोलन का उद्देश्य:- सामाजिक अस्मिता, धार्मिक परंपरा व मानवीय अधिकारों से संबंधित मुद्दे।

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भारतीय संविधान सभा का निर्माण और उसके स्रोत पर चर्चा करें- https://vinayiasacademy.com/?p=846 https://vinayiasacademy.com/?p=846#respond Fri, 03 Apr 2020 17:16:51 +0000 http://vinayiasacademy.com/?p=846 Share it भारत में संविधान सभा की मांग एक प्रकार से राष्ट्रीय स्वतंत्रता की ही मांग थी संविधान सभा के सिद्धांत के सर्वप्रथम 1895 के स्वराज में तय किया गया था ,जिसे तिलक के निर्देशन में तैयार किया गया। 1922 में महात्मा गांधी ने इसी ओर इशारा किया था 1924 में पंडित मोतीलाल नेहरू ने […]

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भारत में संविधान सभा की मांग एक प्रकार से राष्ट्रीय स्वतंत्रता की ही मांग थी संविधान सभा के सिद्धांत के सर्वप्रथम 1895 के स्वराज में तय किया गया था ,जिसे तिलक के निर्देशन में तैयार किया गया। 1922 में महात्मा गांधी ने इसी ओर इशारा किया था 1924 में पंडित मोतीलाल नेहरू ने ब्रिटिश सरकार के सम्मुख संविधान सभा के निर्माण की मांग प्रस्तुत की थी लेकिन बाद में एमएन रॉय ने इसके बारे में ज्यादा विस्तृत रूप से बताया लेकिन जवाहरलाल नेहरू का नाम प्रमुख रूप से आता है कि उनके प्रयास के कारण ही संविधान सभा के और सफलता मिला ,1936 के लखनऊ अधिवेशन में संविधानसभा का अर्थ और महत्व को बताया गया 1934 एवं 1938 के अधिवेशन में भी इस मांग को उठाया गया, 1940 के प्रस्ताव में ब्रिटिश सरकार ने कहा कि भारत का संविधान स्वयं भारतवासी तैयार करेंगे 1942 की योजना के द्वारा एक बार किया कैबिनेट मिशन योजना में भारतीय संविधान के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया

संविधान सभा के कुल 389 सदस्य थे जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांत के प्रतिनिधि थे चार चीफ कमिश्नर क्षेत्र के प्रतिनिधि थे और 93 देशी रियासत के प्रतिनिधि थे # कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार जुलाई 1946 में संविधान सभा के चुनाव हुए संविधान सभा के प्रांतों के लिए 296 सदस्य के लिए ही यह चुनाव हुए थे इनमें कांग्रेस के 208 मुस्लिम में लिखकर 73 तथा 15 अन्य दल के व स्वतंत्र उम्मीदवार निर्वाचित हुए। संविधान सभा में मुस्लिम लीग बहुत कम सदस्य थे इसलिए उन्होंने इसका बहिष्कार कर दिया और 9 दिसंबर 1946 को इसके प्रथम अधिवेशन में वे लोग सम्मिलित भी नहीं हुए संविधान सभा का गठन तो 6 दिसंबर 1946 को ही हो चुका था

अगर सही मायने में देखा जाए तो कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन हुआ एवं इसमें कुल 389 सदस्य की संख्या निश्चित की गई द्वितीय चरण की शुरुआत 3 जून 1947 की विभाजन योजना से होती है जिसके अनुसार 324 प्रतिनिधि होते थे और तृतीय चरण देशी रियासतों से संबंधित था और उनके प्रतिनिधि संविधान सभा में अलग-अलग समय में सम्मिलित हुए हैदराबाद एक ऐसी रियासत थी जिसके प्रतिनिधि अंत तक सम्मिलित नहीं हुए ।संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन 9 दिसंबर 1946 को संसद भवन में हुआ डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा को पहला अस्थाई अध्यक्ष चुना गया संविधान सभा की पहली बैठक में 210 सदस्य उपस्थित थे ,11 दिसंबर 1946 की बैठक में डॉ राजेंद्र प्रसाद को सभा का अस्थाई अध्यक्ष चुन लिया गया एवं बी एन राव को संविधान सभा का सलाहकार बनाया गया 13 दिसंबर 1946 को तीसरी बैठक में जवाहरलाल नेहरू ने अपना उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसे 22 जनवरी 1947 को अपना लिया गया इसमें यह बताया गया कि भारत एक प्रभुत्व संपन्न राज्य होगा जिसके द्वारा स्वयं अपने संविधान का निर्माण किया जाएगा किस समय ब्रिटिश भारत कहे जाने वाले क्षेत्र भारतीय रियासत में आने वाले क्षेत्र और ब्रिटिश भारत और यासत के बाहर के ऐसे क्षेत्र जो भारत में सम्मिलित होना चाहते हैं सबको मिलकर एक संघ बनाया जाएगा लेकिन सारी शक्ति और मुख्य रूप से अधिकांश शक्ति केंद्र सरकार के पास ही होगा भारत के सभी नागरिक को सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक न्याय एवं कानून की समानता विचार भाषण अभिव्यक्ति विश्वास संघ निर्माण कार्य की स्वतंत्रता कानून और सार्वजनिक नैतिकता के अधीन प्राप्त होगी अल्पसंख्यक वर्ग पिछड़ी जाति और जनजाति के हित की रक्षा की समुचित व्यवस्था की जाएगी ।


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इतिहास के साहित्यिक स्रोत https://vinayiasacademy.com/?p=702 https://vinayiasacademy.com/?p=702#respond Thu, 26 Mar 2020 15:30:28 +0000 http://vinayiasacademy.com/?p=702 Share itइसे धार्मिक साहित्य एवं लौकिक साहित्य में बांटा जा सकता है ब्राह्मण साहित्य और ब्रह्म नेत् र साहित्य में भी बांटा जा सकता है- ब्राह्मण साहित्य में वेद ब्राह्मण ग्रंथ आरण्यक उपनिषद वेदांग सूत्र महाकाव्य स्मृति ग्रंथ पुराण प्रमुख है वेदों में ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद एवं अथर्ववेद है। ऋग्वेद ब्राह्मण साहित्य में सबसे प्राचीन […]

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इसे धार्मिक साहित्य एवं लौकिक साहित्य में बांटा जा सकता है ब्राह्मण साहित्य और ब्रह्म नेत् र साहित्य में भी बांटा जा सकता है- ब्राह्मण साहित्य में वेद ब्राह्मण ग्रंथ आरण्यक उपनिषद वेदांग सूत्र महाकाव्य स्मृति ग्रंथ पुराण प्रमुख है वेदों में ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद एवं अथर्ववेद है। ऋग्वेद ब्राह्मण साहित्य में सबसे प्राचीन ग्रंथ है वेदों के द्वारा प्राचीन आज के धार्मिक सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक जीवन पर पूरी जानकारी दी हुई है इसे 1520 अपूर्व से 1000 ईसा पूर्व में लिखा गया होगा ऋग्वेद में 10 मंडल है और 1028 सूक्त ऋग्वेद के मंत्र की यज्ञ के अवसर पर देवता को की स्तुति के लिए होत्री ऋषि द्वारा उच्चारित किया गया था इसके दो ब्राह्मण थे एतरई एवं कौशितकी । यजुर्वेद में यज्ञ के नियम एवं कानून का संकलन है इसके पुरोहित और अधर्वायु थे इसे शुक्ल यजुर्वेद एवं कृष्ण यजुर्वेद में बांटा जाता है यजुर्वेद कर्मकांड प्रधान है इसके 5 भाग है काठक कपीश पिस्टल मैत्रायणी तेतरीई वाज सनई यजुर्वेद के प्रमुख उपनिषद है कठोपनिषद ईश उपनिषद श्वेता श्ववत उपनिषद मैत्रायणी उपनिषद यह वेद गद्य एवं पद्य दोनों में है। सामवेद मुख्य रूप से यज्ञ के अवसर पर गाया जाने वाला मंत्र था या भारतीय संगीत का मूल ग्रंथ है सामवेद में प्रमुख रूप से भगवान सूर्य की स्तुति के मंत्र है सामवेद को गाने वाला उदगात्री कहा जाता था इसके प्रमुख उपनिषद छंद गयो एवं जमीन या उपनिषद इसके मुख्य ब्राह्मण पंच विश थे इसके दूसरे ब्राह्मण टांडिया मना एवं तिमनिया थे। अर्थ वेद को सबसे अंत में लिखा गया है इसमें 731 सुक्त है 20 अध्याय है 6000 मंत्र है इसमें आज और अनाज के विचारधारा को बताया गया है इसमें कुरु के राजा परीक्षित की भी चर्चा है उत्तर वैदिक काल में अर्थव्यवस्था विशेष महत्व था इसमें ब्रह्म ज्ञान धर्म दवा जादू टोना तंत्र मंत्र के बारे में जानकारी इसके ब्राह्मण का नाम गुफा था था इसके मुख्य उपनिषद है मुंडकोपनिषद जिससे सत्यमेव जयते लिया गया है प्रश्न उपनिषद एवं मांडूक्योपनिषद। ब्राह्मण ग्रंथ- वेदों की व्याख्या के लिए ब्राह्मण ग्रंथ की रचना हुई थी जैसे कि ऋग्वेद का ऐतरेय ब्राह्मण यजुर्वेद का शतपथ ब्राह्मण सामवेद का पंच 20 ब्राह्मण और अथर्ववेद का गो पाथ ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण में राजा बनने का नियम बताया गया है तो शतपथ ब्राह्मण में गांधार शैली कई कई कुरु पांचाल कौशल विद ए राजा का जिक्र मिलता है। अरण्यक- या ब्राह्मण ग्रंथ का अंतिम भाग है इसमें दार्शनिक एवं रहस्य के बारे में बताया गया है मुख्य रूप से सात हैं- अप्रैल संख्या ज्ञान तैत राई मैत्रीयानी बृहद अरण्यक तलवे कार छंदों गयो। उपनिषद- वह रहस्य विद्या का ज्ञान जो गुरु के समीप बैठकर प्राप्त किया जाता था इसमें भारतीय दर्शन बताया गया है वैदिक साहित्य के अंतिम भाग होने के कारण उपनिषद को ही वेदांत कहते हैं उपनिषद उत्तर वैदिक काल की रचना है इसे परा विद्या अथवा आध्यात्म विद्या भी कहते हैं इसकी संख्या 108 है लेकिन मुख्य रूप से 12 इश, केन कठो प्रश्न मुंडक मंडुक्य त ऐतरेय ही कौशी टकी बृहदारण्यक श्वेता स्वतर इसमें आत्मा परमात्मा मोक्ष एवं पुनर्जन्म की अवधारणा को बताया गया है। वेदांग- इसकी संख्या 6 है शिक्षा कल्प व्याकरण निरुक्त छंद ज्योतिष। शिक्षा का निर्माण वैदिक काल के शुद्ध उच्चारण के लिए था कल्प का निर्माण नियम के लिए था व्याकरण में किसी भी वाक्य को शुद्ध रूप से कैसे बोलेंगे इसके लिए था निरुक्त भाषा विज्ञान है छंद वैदिक साहित्य में गायत्री मंत्र के लिए ज्योतिष में ब्रह्मांड की जानकारी है। सूत्र- स्रोत सूत्र जिसमें यज्ञ के बारे में बताया गया है गृह इस सूत्र जिसमें लौकिक पारलौकिक कर्तव्य का है धर्मसूत्र जिसमें धार्मिक सामाजिक राजनीतिक कर्तव्य बताया गया धर्मसूत्र में ही स्मृति ग्रंथ का विकास हुआ जिसमें मनुस्मृति याज्ञवल्क्य स्मृति पराशर स्मृति नारद स्मृति बृहस्पति स्मृति कात्यायन स्मृति गौतम स्मृति। मनुस्मृति का रचना काल ईसा पूर्व 200 से लेकर 200 ईसवी तक है मनुस्मृति के भाष्य कार या टीकाकार मेघा तिथि गोविंदराज भरुचि एवं कुल लुक भट्ट थे। याज्ञवल्क्य स्मृति का रचनाकाल 120v से 300 ईसवी है इसके टीकाकार विश्वरूप विज्ञान ईश्वर या मिताक्षरा एवं अपराक है। उपवेद- आयुर्वेद धनुर्वेद गंधर्व वेद सील पैक व्याकरण गणित में सबसे महत्वपूर्ण अष्टाध्याई है जिसे पाणिनि ने लिखा था इसका रचनाकाल 400 ईसवी के लगभग माना जाता है। यश के नाम के विद्वान ने निरुक्त ग्रंथ लिखा था वैदिक साहित्य के बाद रामायण महाभारत दो महाकाव्य प्राचीन इतिहास को जानने का स्रोत है महाभारत महाकाव्य की रचना 400 ईसा पूर्व में हुआ था लेकिन इसका संकलन ईशा के बाद चौथी शताब्दी में हुआ इसकी रचना का श्रेय वेदव्यास को दिया जाता है शुरुआती समय में महाभारत में सिर्फ 8800 लोग थे और इसका नाम जय संहिता था बाद में श्लोक की संख्या 24000 हो गई और इसका नाम भारत हुआ उसके बाद श्लोक की संख्या 100000 हो गई इसका नाम महाभारत पड़ा। रामायण महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य है इसमें मुख्य रूप से 6000 से लोग थे जो बाद में 12000 से लॉक हो गए और अंत में 24000 श्लोक हो गए इसकी रचना ईशापुर में पांचवीं शताब्दी में स्वीकार की जाती है लेकिन इसका संकलन ईशा के पश्चात चौथी शताब्दी ईस्वी में माना गया है रामायण पुराना ग्रंथ एड इसमें हिंदू या 1 छक्के संघर्ष का विवरण मिलता है महाभारत में भी सत्य वन होना दी जातियों का विवरण है। पुराण- पुराणों की संख्या 18 है ब्रह्म पुराण पदम पुराण विष्णु पुराण वायु पुराण भागवत पुराण नारद पुराण मार्कंडेय पुराण अग्नि पुराण भविष्य पुराण ब्रह्म वैवर्त पुराण लिंग पुराण वराह पुराण स्कंद पुराण वामन पुराण कूर्म पुराण मत्स्य पुराण गरुड़ पुराण ब्रह्मांड पुराण पुराण के रचयिता महर्षि बम उनका बेटा उग्र सर्वदा अधिकांश पुराण की रचना तीसरी चौथी शताब्दी ईस्वी में हुई थी मत्स्य पुराण सबसे अधिक प्राचीन है मौर्य वंश की जानकारी के लिए विष्णु पुराण सातवाहन वंश तथा शुंग वंश की जानकारी के लिए मत्स्य पुराण और गुप्त वंश के लिए वायु पुराण महत्वपूर्ण ग्रंथ है


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