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विश्व के मॉनसून:-
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विश्व की प्रमुख मॉनसून प्रणालियों में पश्चिमी अफ़्रीका एवं एशिया-ऑस्ट्रेलियाई मॉनसून आते हैं। इस श्रेणी में उत्तरी अमरीका और दक्षिण अमरीकाई मॉनसूनों को सम्मिलित करने में कुछ मतभेद अभी भी जारी हैं।

दक्षिण एशियाई:-

1.भारतीय मॉनसून:-भारत में मॉनसून हिन्द महासागर व अरब सागर की ओर से हिमालय की ओर आने वाली हवाओं पर निर्भर करते है। जब ये हवाएं भारत के दक्षिण पश्चिम तट पर पश्चिमी घाट से टकराती हैं, तो भारत तथा आसपास के देशों में भारी वर्षा होती है। ये हवाएं दक्षिण एशिया में जून से सितंबर तक सक्रिय रहती हैं। वैसे किसी भी क्षेत्र का मॉनसून उसकी जलवायु पर निर्भर करता है। भारत के संबंध में यहां की जलवायु ऊष्णकटिबंधीय है और ये मुख्यतः दो प्रकार की हवाओं से प्रभावित होती है:- उत्तर-पूर्वी मॉनसून व दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून। उत्तर-पूर्वी मॉनसून को प्रायः शीत मॉनसून कहा जाता है। यह हवाएं मैदान से सागर की ओर चलती हैं, जो हिन्द महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी को पार करके आती हैं। यहां अधिकांश वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून से होती है। भारत में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर से कर्क रेखा निकलती है। इसका देश की जलवायु पर सीधा प्रभाव पड़ता है। ग्रीष्म, शीत और वर्षा ऋतुओं में से वर्षा ऋतु को प्रायः मॉनसून भी कह जाता है।

सामान्य रूप से मॉनसून की अवधि में तापमान में तो कमी आती है, लेकिन आर्द्रता (नमी) में अच्छी वृद्धि होती है। आद्रता की जलवायु विज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। यह वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प की मात्र से बनती है और यह पृथ्वी से वाष्पीकरण के विभिन्न रूपों द्वारा वायुमंडल में पहुंचती है।

2.पूर्व एशियाई:-

मॉनसून इंडो-चीन, फिलिपींस, चीन, कोरिया एवं जापान के बड़े क्षेत्रों में प्रभाव डालती है। इसकी मुख्य प्रकृति गर्म, बरसाती, ग्रीष्मकाल एवं शीत-शुष्क (शीतकाल) होते हैं। इसमें अधिकतर वर्षा एक पूर्व-पश्चिम में फैले निश्चित क्षेत्र में सीमित रहती है, “सिवाय” पूर्वी चीन के जहां वर्षा पूर्व-पूर्वोत्तर में ‘कोरिया’ व ‘जापान’ में होती है। मौसमी वर्षा को चीन में मेइयु, कोरिया में चांग्मा और जापान में बाई-यु कहते हैं। ग्रीष्मकालीन वर्षा का आगमन ‘दक्षिण चीन’ एवं ‘ताईवान’ में मई माह के आरंभ में एक मॉनसून-पूर्व वर्षा से होती है। इसके बाद मई से अगस्त पर्यन्त ग्रीष्मकालीन मॉनसून अनेक शुष्क एवं आर्द्र शृंखलाओं से उत्तरवर्ती होती जाती है। ये ‘इंडोचाइना’ एवं ‘दक्षिण चीनी सागर’ (मई में) से आरंभ होक्र यांग्तज़े नदी एवं जापान में (जून तक) और अन्ततः उत्तरी चीन एवं कोरिया में जुलाई तक पहुंचती है। अगस्त में मॉनसून काल का अन्त होते हुए ये दक्षिण चीन की ओर लौटता है।

3.अफ़्रीका:-

पश्चिमी उप-सहारा अफ़्रीका का मॉनसून को पहले अन्तर्कटिबन्धीय संसृप्ति ज़ोन के मौसमी बदलावों और सहारा तथा विषुवतीय अंध महासागर के बीच तापमान एवं आर्द्रता के अंतरों के परिणामस्वरूप समझा जाता था। ये विषुवतीय अंध महासागर से फरवरी में उत्तरावर्ती होती है, और फिर लगभग 22 जून तक पश्चिमी अफ़्रीका पहुंचती है और अक्टूबर तक दक्षिणावर्ती होते हुए पीछे हटती है। शुष्क उत्तर-पश्चिमी व्यापारिक पवन और उनके चरम स्वरूप हारमट्टन, ITCZ( Intertropical Convergence Zone) में उत्तरी बदलाव से प्रभावित होते हैं और परिणामित दक्षिणावर्ती पवन ग्रीष्मकाल में वर्षाएं लेकर आती हैं। सहेल और सूडान के अर्ध-शुष्क क्षेत्र अपने मरुस्थलीय क्षेत्र में होने वाली अधिकांश वर्षा के लिये इस शैली पर ही निर्भर रहते हैं।

4.उत्तरी अमरीका:-उत्तरी अमेरिका मानसून ( जिससे लघु रूप में NAM भी कहते हैं।)
जून के अंत या जुलाई के आरंभ से सितंबर तक आती है। इसका उद्गम मेक्सिको से होता है और संयुक्त राज्य में मध्य जुलाई तक वर्षा उपलब्ध कराती है। इसके प्रभाव से मेक्सिको में सियेरा मैड्र ऑक्सीडेन्टल के साथ-साथ और एरिज़ोना, न्यू मेक्सिको, नेवाडा, यूटाह, कोलोरैडो, पश्चिमी टेक्सास तथा कैलीफोर्निया में वर्षा और आर्द्रता होती है। ये पश्चिम में प्रायद्वीपीय क्षेत्रों तथा दक्षिणी कैलीफोर्निया के ट्रान्स्वर्स शृंखलाओं तक फैलते हैं, किंतु तटवर्ती रेखा तक कदाचित ही पहुंचते हैं। उत्तरी अमरीकी मॉनसून को समर, साउथवेस्ट, मेक्सिकन या एरिज़ोना मॉनसून के नाम से भी जाना जाता है। इसे कई बार डेज़र्ट मॉनसून भी कह दिया जाता है, क्योंकि इसके प्रभावित क्षेत्रों में अधिकांश भाग मोजेव और सोनोरैन मरुस्थलों के होते हैं।


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