संचार माध्यम से आप क्या समझते हैं भारत में हुए संचार माध्यमों के विस्तार का वर्णन करें?
संदेश के प्रभाव में प्रयुक्त किए जाने वाले माध्यम को संचार माध्यम कहते हैं। संचार माध्यमों के विकास के पीछे मुख्य कारण मानव के जिज्ञासु प्रवृत्ति का होना है। वर्तमान समय में संचार माध्यम समाज में गहरा संबंध होता जा रहा है इसके द्वारा जन सामान्य की रुचि अब हितों को स्पष्ट भी किया जा रहा है। तकनीकी विकास के संचार माध्यम का विकास हुआ है तथा इससे संचार अब ग्लोबल फेनोमेनल बन गया है। संचार माध्यम अंग्रेजी के मीडिया शब्द से बना है जिसका अभिप्राय होता है दो बिंदुओं को जोड़ने वाला। संचार माध्यम सम प्रेषक और श्रोता को परस्पर जोड़ता है। हेराल्ड के अनुसार संचार माध्यम के मुख्य कार्य सूचना संग्रहएवं प्रसार सूचना विश्लेषण सामाजिक मूल्य एवं संप्रेषण तथा लोगों का मनोरंजन करवाना है। संचार माध्यम का प्रभाव समाज में अनादि काल से ही रहा है परंपरागत एवं आधुनिक संचार माध्यम समाज की विकास प्रक्रिया से जुड़े हैं संचार माध्यम का सौदा अथवा लक्ष्य समूह बिखरा होता है इसके संदेश भी अच्छे स्वभाव वाले होते हैं।
संचार शब्द अंग्रेजी के कम्युनिकेशन का हिंदी रूपांतर है जो लैटिन शब्द कम्युनिस से बना है जिसका अर्थ है सामान्य भागीदारी युक्त सूचना। क्योंकि संचार समाज में ही घटित होता है अतः हम समाज के परिपेक्ष्य से देखें तो पाते हैं कि सामाजिक संबंधों को दिशा देने अथवा निरंतर प्रवाह मान बनाए रखने की प्रक्रिया ही संसार है।

परिभाषाएं
प्रसिद्ध संचार बेत्ता डेनिस मैक्वेल के अनुसार,” संचार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति का अर्थ पूर्ण संदेशों का आदान प्रदान है।”
डॉक्टर मारी मत के अनुसार,” संचार सामाजिक उपकरण का सामंजस्य है।”
राजनीतिक शास्त्र विचारक लुकिंग पाई के विचार में,” सामाजिक प्रक्रिया का विश्लेषण ही संसार है”।
संचार माध्यमों की प्रकृति
भारत में संचार सिद्धांत काव्य परंपरा से जुड़ा हुआ है। स्थाई भाव संचार सिद्धांत से ही जुड़े हुए हैं। जहां तक संचार माध्यमों की प्रकृति का सवाल है तो वह संचार की उपयोगकर्ता के साथ-साथ समाज से भी जुड़ा होता है। संचार माध्यम समाज के भीतर की प्रक्रिया को ही उतारते हैं निवर्तमान शताब्दी में भारत के संचार माध्यमों की प्रकृति व चरित्र में बदलाव ही हुए हैं लेकिन प्रेस में मुख्यतः तीन से चार गुणात्मक परिवर्तन दिखाई देते हैं जो कि इस प्रकार हैंः
पहला– शताब्दी के पूर्वार्ध में इसका चरित्र मूलता मिशन वादी रहा। बजट की स्वतंत्रता आंदोलन व औपनिवेशिक शासन से मुक्ति। इसके चरित्र के निर्माण में तिलक, गांधी, माखनलाल चतुर्वेदी, विष्णु पराड़कर, माधव राव सपरे जैसे व्यक्तित्व ने योगदान दिया था।
दूसरा– 15 अगस्त 1947 के बाद राष्ट्र के एजेंडे पर नहीं प्राथमिकताओं का उभरना यहां से राष्ट्र निर्माण का आरंभ हुआ और प्रेस पीस के संस्कारों से प्रभावित हुआ और यह दौर दो दशकों तक चला।
तीसरा- सातवें दशक से बेसुध व्यावसायिक ताकि संस्कृति आरंभ हुई वजह थी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का विस्फोट होना।
चौथा– अंतिम दो दशकों में प्रेस का आधुनिकीकरण हुआ क्षेत्रीय प्रेस का एक शक्ति के रूप में उभरना और पत्र-पत्रिकाओं से संवेदनशीलता दृष्टि का विलुप्त होना।

भारत में संचार व्यवस्था
आधुनिक विश्व में संचार तकनीक के विकास के बिना सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में प्रगति हासिल करना असंभव है। संचार तकनीक के त्वरित विकास को क्रांति की संज्ञा दी गई है। संचार प्रौद्योगिकी के अंतर्गत डाक प्रणाली दूरसंचार एवं सूचना तकनीक जैसे विभिन्न संचार के साधन शामिल हैं।
संचार तंत्र में टेलीग्राफ, डाक, दूरसंचार, रेडियो प्रसारण, टेलीविजन सम्मिलित हैं।
डाक व्यवस्था- व्हाट 1766 में लौट फ्लाइट द्वारा स्थापित डाक व्यवस्था को आगे का विकास वारेन हेस्टिंग्स ने 1774 में एक पोस्ट मास्टर जनरल के अधीन कोलकाता जीपीओ की स्थापना करके किया। भारत में डाक प्रणाली का उपयोग 1837 तक सरकारी उद्देश्य हेतु किया जा रहा था परंतु इसके बाद 1837 में डाक सेवाएं सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होने लगी। 1812 में कराची में पहली डाक टिकट जारी की गई जो मात्र सिंध प्रांत में वैद्य थी। भारतीय डाक कार्यालय को इस संस्था के रूप में गठित किया गया उस समय भारत में 700 डाकघर मौजूद थे। भारत में भारतीय डाकघर अधिनियम 1818 के अनुसार डाक सेवा को अधिसूचित किया जाता है यह अधिनियम सरकार को देश में पत्रों की कतरन संचरण एवं वितरण का विशेष अधिकार प्रदान करती है
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में 23344 डाकघर से, जिनमें से 19184 ग्रामीण क्षेत्रों में सदा 4160 शहरी क्षेत्रों में स्थित थें। वर्तमान में पूरे देश में 154822 डाकघर हैं इनमें से 140086 डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 15776 शहरी क्षेत्रों में है। डाकघर के अतिरिक्त बुनियादी डाक सेवाएं फ्रेंचाइजी और पंचायत संचार सेवा केंद्र के जरिए भी मुहैया कराई जाती है ट्रेन चाय की दुकानें शहरी क्षेत्रों में ऐसी जगह खोली गई है जहां अस्थाई डागर खोलना संभव नहीं है इस योजना में केवल विशेष काउंटर सेवा ही दी गई है जबकि लघु बचत से डिप्रेशन और वितरण कार्य इन केंद्रों को नहीं दिया गया है। इसके अंतर्गत स्पीड सेवा पोस्ट भी आती है जो कि 1 अगस्त 1986 को शुरू की गई थी इस सेवा के अंतर्गत पत्रों दस्तावेज और पार्षदों की डिलीवरी की एक निश्चित अवधि के अंतर्गत की जाती है और अवधि में डिलीवरी ना होने पर ग्राहक को डाक शुल्क पूर्ण रूप से वापस कर दिया जाता है। स्पीड पोस्ट नेटवर्क में 315 राष्ट्रीय और 986 राज्य स्पीड पोस्ट केंद्र शामिल है। यह सेवा अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी 97 देशों में उपलब्ध है।

दूरसंचार – आज के विश्व में दूरसंचार का महत्व बढ़ता जा रहा है, और भारत को यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतियोगिता चना का स्थान प्राप्त करना है तो इस क्षेत्र में हमें श्री विकास करना होगा। भारत विश्व के सर्वाधिक बड़े दूरसंचार संस्थाओं में से एक का संचालन करता है टेलीफोन, मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से होने वाला संचार शामिल है। विश्वस्तरीय दूरसंचार आधार संरचना के अस्तित्व प्रावधान देश के त्वरित आर्थिक और सामाजिक विकास की कुंजी होती है। भारत में टेलीग्राफ और टेलीफोन अविष्कार के तुरंत बाद दूरसंचार सेवाएं आरंभ हो गई। डेली टेलीग्राफ लाइन कोलकाता और डायमंड हर्बल पतन के बीच 18 से 51 में संचार हेतु खोली गई। मार्च 18 से 84 द टेलीग्राफ संदेश आगरा से कोलकाता को भेजे जा सकते थे 1990 तक भारतीय रेलवे को सेवा टेलीग्राफ और टेलीफोन सेवा प्राप्त हुई। स्वतंत्रता से लेकर अब तक दूरसंचार सेवा में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।
जनसंचार– हमारे जैसे देशों में जनसंचार स्वास्थ्यवर्धक मनोरंजन के अतिरिक्त सूचना शिक्षा प्रदान करके लोगों में राष्ट्रीय नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता पैदा करके एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह राष्ट्र निर्माण के कार्य में लोगों की सक्रिय सहभागिता में भी मदद करता है। सरकारी प्रसारण क्षेत्र में 1997 के एक अधिनियम द्वारा प्रसार भारती का गठन किया गया। जिसमें दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो शामिल है प्रसारण क्षेत्र में पूरे देश में सबसे अधिक निजी चैनल और केबल नेटवर्क हैं। इसके अंतर्गत प्रिंट मीडिया भी शामिल है जिसका देखरेख भारतीय प्रेस परिषद द्वारा किया जाता है। रेडियो क्लब ऑफ मुंबई के द्वारा प्रथम रेडियो कार्यक्रम का प्रसारण जून 1923 में किया गया। इसके पश्चात प्रसारण सेवा की स्थापना भारत सरकार एवं एक निजी कंपनी इंडिया ब्रॉडकास्टिंग कंपनी लिमिटेड के समझौते के अंतर्गत हुई। जिसे 23 जुलाई 1927 को मुंबई एवं कोलकाता में एक साथ एक प्रायोगिक आधार पर प्रशासन की शुरुआत की गई। इसके बाद इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का गठन किया गया और ऑल इंडिया रेडियो 1957 से आकाशवाणी के नाम से जाना जाने लगा भारत में 6 रेडियो स्टेशन थे। अब रेडियो स्टेशन की संख्या 252 हो गई है और ऑल इंडिया रेडियो की पहुंच देश की 95% से अधिक जनसंख्या तक है। वर्तमान में दूरदर्शन 35 सैटेलाइट चैनल और 1415 ट्रांसपोर्टरों का संचालन करता है। पहला प्रसारण आकाशवाणी भवन नई दिल्ली में मैच की फीस चूड़ियों से 15 सितंबर 1959 की प्रसारित किया गया था।

प्रेस कथा प्रिंट मीडिया– भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक का कार्यालय 1953 में प्रथम प्रेस आयोग की सिफारिशों और प्रेस कथा पुस्तक पंजीयन अधिनियम 18 सो 67 में संशोधन से अस्तित्व में आया। समानता प्रेस रजिस्ट्रार के रूप में प्रसिद्ध आरएनएस भारत में समाचार पत्रों की स्थिति पर प्रत्येक वर्ष 31 दिसंबर तक एक वार्षिक रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत करनी होती है। हिंदी भाषा में सर्वाधिक संख्या में समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं तथा इसके बाद अंग्रेजी और उर्दू का स्थान आता है। भारत की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया भारतीय समाचार पत्रों की बिना लावरी सहकारी संस्था है जिसका दायित्व अपने ग्राहकों को कुशल एवं निष्पक्ष समाचार उपलब्ध कराना है। इसकी स्थापना 27 अगस्त 1947 को हुई थी और इसमें एक फरवरी 1949 से अपनी सेवा शुरू कर दी।
श्रव्य दृश्य मीडिया- पिक्चर फिल्मों का निर्माण भारत में 1912 तेरा से किया जाने लगा। 1912 में आठवीं तोड़नी ने एनजी चित्रों के साथ मिलकर पुंडलिक बनाइ। जबकि धुंडीराज गोविंद फाल्के ने 1913 में राजा हरिश्चंद्र का निर्माण किया। फिल्मों का दौर 1921 में बोलने वाली फिल्मों के आने से समाप्त हुआ जब आर्देशिर ईरानी ने आलम आरा बनाई इस समय भारत विश्व में वार्षिक पिक्चर फिल्म के निर्माण में अग्रणी था।
सोशल मीडिया– इंटरनेट आधारित सॉफ्टवेयर इंटरफेस जो लोगों को एक-दूसरे से बातचीत करने की अनुमति प्रदान करता है तथा अपने जीवन के तत्व जैसे जैविक एवं आपदा से पेशेवर जानकारी व्यक्तिगत फोटो एवं पल-पल के विचार बांटना संभव बनाता है, सोशल मीडिया कहलाता है।

संचार का महत्व
संचार के महत्व को हम निम्नलिखित बिंदुओं से समझ सकते हैं
समन्वय के आधार के रूप में कार्य-
संचार संगठनात्मक लक्ष्यों, उन्हें प्राप्त करने के तरीके, व्यक्तियों के बीच पारस्परिक संबंध आदि के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करके संगठन में विभिन्न विभागों और व्यक्तियों की गतिविधियों के संबंध में में मदद करता है।
इसलिए संचार समझने के लिए एक आधार के रूप में कार्य करता है।
एंटरप्राइज के स्मूथ वर्किंग में मदद करता है- संचार एक उद्यम के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करता है। एक संगठन का अस्तित्व पूरी तरह से संचार पर निर्भर करता है। यदि संचार बंद हो जाता है तो किसी संगठन की गतिविधियां गतिरोध में आ जाती हैं
निर्णय लेने के आधार के रूप में कार्य– संचार सभी आवश्यक जानकारी प्रदान करके निर्णय लेने की प्रक्रिया में मदद करता है तथा प्रासंगिक जानकारी के संचार के अभाव में कोई भी सार्थक निर्णय नहीं ले सकता है।
प्रबंधकीय क्षमता बढ़ाता है- किसी उद्यम के लक्ष्यों और उद्देश्यके बारे में जानकारी प्रदान करता है। यह निर्देश प्रदान करता है और जिम्मेदारियों का आवंटन तथा काम करो कि काम की देखरेख करता है।
प्रभावी नेतृत्व स्थापित करता है- एक अच्छे नेता के पास अधीनस्थों के व्यापार को प्रभावित करने के लिए कुशल संचार कौशल होना चाहिए इस प्रकार संचार नेतृत्व का आधार है।