व्यापक क्षेत्र एक जनसंख्या – Vinay IAS Academy https://vinayiasacademy.com Rashtra Ka Viswas Tue, 14 Jul 2020 15:54:28 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=5.3.4 जनसांख्यिकी विश्लेषण व इसके लाभ https://vinayiasacademy.com/?p=2691 https://vinayiasacademy.com/?p=2691#respond Tue, 14 Jul 2020 14:06:41 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2691 जनसांख्यिकी विश्लेषण क्या हैं ? इसके क्या लाभ है? राष्ट्रीय जनसंख्या नीति से आप क्या समझते हैं? 2011 के दौरान भारत की जनगणना क्या थी तथा कृषि के क्षेत्र में क्या स्थिति थी? उल्लेख करें! जनसांख्यिकी विश्लेषण को राष्ट्रीयता, शिक्षा, धर्म और जातीयता जैसे मानदंडों के आधार पर विभाजित पूरे समाज पर यह समूह पर […]

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जनसांख्यिकी विश्लेषण क्या हैं ? इसके क्या लाभ है? राष्ट्रीय जनसंख्या नीति से आप क्या समझते हैं? 2011 के दौरान भारत की जनगणना क्या थी तथा कृषि के क्षेत्र में क्या स्थिति थी? उल्लेख करें!

जनसांख्यिकी विश्लेषण को राष्ट्रीयता, शिक्षा, धर्म और जातीयता जैसे मानदंडों के आधार पर विभाजित पूरे समाज पर यह समूह पर लागू किया जा सकता है। शिक्षण क्षेत्र में जनसांख्यिकी को अक्सर समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र मानव विज्ञान की एक शाखा के रूप में माना जाता है। औपचारिक जनसांख्यिकी के अध्ययन का लक्ष्य जनसंख्या की प्रक्रियाओं के मापन तक ही सीमित है जबकि सामाजिक जनसांख्यिकी जनसंख्या अध्ययन का अधिक व्यापक क्षेत्र एक जनसंख्या को प्रभावित करने वाले आर्थिक, सामाजिक ,सांस्कृतिक और जैविक प्रक्रियाओं के बीच संबंधों का विश्लेषण करता है। vinayiasacademy.com
जनांकिकी शब्द को अक्सर गलत से जनसांख्यिकी के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन या किसी खास उन समुदाय की विशेषताओं को का प्रयोग सरकारी या अभिमत अनुसंधान में या ऐसे अनुसंधान में इस्तेमाल जनसांख्यिकी प्रोफाइल में होता है। जनसांख्यिकी बड़े को एकत्रित करने के लिए एक प्रत्यक्ष विधि है जनगणना। एक जनगणना आम तौर पर राष्ट्रीय सरकार द्वारा आयोजित की जाती है और देश के हर व्यक्ति को गिरने का प्रयास करती है। जनगणना सामान्यतया केवल हर 10 साल में होती है और इस प्रकार आम तौर पर जन्म और मृत्यु के आंकड़ों के लिए सबसे अच्छा स्रोत नहीं है। विष्णु को एक जनगणना के बाद यह अनुमान लगाने के लिए आयोजित किया जाता है कि अधिक गणना या अल्प गणना कितनी हुई है।
जनगणना में लोगों की सिर्फ गिनती के अलावा काफी कुछ प्रक्रिया होती है। आमतौर पर परिवार या घरों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के साथ-साथ, व्यक्तिगत विशेषताओं जैसे उम्र, लिंग, वैवाहिक स्थिति, साक्षरता, रोजगार स्थिति और व्यवसाय तथा भौगोलिक अवस्थिति से संबंधित जानकारी इकट्ठा करते हैं। उन देशों में जहां महत्वपूर्ण पंजीकरण प्रणाली अधूरी हो जनगणना का इस्तेमाल मृत्यु दर और प्रजनन क्षमता के बारे में जानकारी के प्रत्यक्ष स्रोत के रूप में भी किया जाता है। उदाहरण के लिए चीन गणराज्य की जनगणना ऐसे जन्म व मृत्यु की जानकारी एकत्रित करती है जो जनगणना के ठीक पहले 18 महीने में घटती है।
भारत की जनगणना 2011 से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यः
भारत की जनगणना 2011 जनगणना आयुक्त सी चंद्र मोली द्वारा राष्ट्र को समर्पित भारत 15वीं राष्ट्रीय जनगणना है, जो कि 1 मई 2010 को शुरू हुई थी। भारत में जनगणना अट्ठारह सौ बहत्तर से की जाती रही है। जनगणना को दो चरणों में पूरा किया जाता है अंतिम जारी प्रतिवेदन के अनुसार भारत की जनसंख्या 2001 से 2011 दशक के दौरान 18,15,55,986 से बढ़कर1,21,08,54,977 हो गई है। भारत में जनसंख्या मामले में अपने को दूसरे स्थान पर बनाए रखा है। इस दौरान भारत की साक्षरता 64. 83% से बढ़कर 69. 3% हो गई है।vinayiasacademy.com

जनसांख्यिकी लाभांश
जनसांख्यिकीय लाभांश से आशय उस संभावित प्रबल आर्थिक विकास से है जो किसी जनसंख्या में काम करने वालों की संख्या तथा उनके ऊपर आश्रित लोगों की संख्या का अनुपात अधिक होने पर मिल सकता है भारतीय अर्थव्यवस्था में मानव संसाधन के सकारात्मक और सतत विकास को चित्त करता है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि के द्वारा जनसांख्यिकी लाभांश की परिभाषाः किसी जनसंख्या के आयुक्त संरचना के परिवर्तन के परिणाम स्वरूप उससे मिलने वाला संभावित आर्थिक विकास यदि काम करने वाले( 14 से 64 वर्ष की आयु वाले) लोगों की संख्या उन पर आश्रित( 14 वर्ष से कम या 64 वर्ष से अधिक आयु वाले) लोगों की संख्या से अधिक हो।
दूसरे शब्दों में काम करने वाले लोगों की संख्या और उन पर आश्रित लोगों से की संख्या का अनुपात जितना अधिक होगा आर्थिक उत्पादन को उतना ही मदद होगा। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि का यह कहना है कि किसी देश में यदि नवयुवकों या नव युवतियों की संख्या अधिक हो रही है और गुणवत्ता कम हो रही है उस देश को इस जनसांख्यिकी स्थिति का लाभ मिलेगा।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति का उद्देश्य पूर्ण प्रजना पता को प्रतिस्थापन स्तर यानी दो बच्चे प्रति जोड़ा तक लाना है जो इसका मध्य स्तरीय लक्ष्य है। इस जनसंख्या जन्म दर तथा जनसंख्या वृद्धि में कमी लाना, विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि करना, परिवार नियोजन को प्रोत्साहित करना और महिला शिक्षा पर विशेष जोर देने का लक्ष्य रखा गया था। इसके बाद फरवरी 2000 में सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 की घोषणा की।
भारत की जनसंख्या नीतिः
भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने सबसे पहले 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम को अपनाया। प्रथम पंचवर्षीय योजना में ही बढ़ती आबादी को विकास के बाधक के तौर पर चिन्हित किया और तभी से विभिन्न पंचवर्षीय योजना में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोशिश की जा रही है।


भारत में सबसे पहले जनसंख्या नीति बनाने का सुझाव साल 1960 में एक विशेषज्ञ समूह ने दिया था।
साल 1976 में देश की पहली जनसंख्या नीति की घोषणा की गई बाद में 1981 में इस जनसंख्या नीति में कुछ संशोधन भी किए गए।vinayiasacademy.com
इस जनसंख्या नीति के तहत जन्म दर तथा जनसंख्या वृद्धि में कमी लाना, विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि करना, परिवार नियोजन करना और महिला शिक्षा पर विशेष जोर देने का लक्ष्य रखा गया था।
फरवरी 2000 में सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 की घोषणा की यह नीति डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित एक विशेषज्ञ दल की रिपोर्ट पर आधारित है।
इस नीति का प्रमुख उद्देश्य प्रजनन तथा टिश्यू स्वास्थ्य की देखभाल के लिए बेहतर सेवा तंत्र की स्थापना तथा गर्भनिरोधक और स्वास्थ्य धाम के बुनियादी ढांचे की आवश्यकताएं पूरी करना है इसका दीर्घकालीन लक्ष्य जनसंख्या में साल 2045 तक स्थायित्व प्राप्त करना है।
आबादी पर काबू पाने के लिए हाथ से देश में साल 1996 से काहिरा मॉडल लागू है जिसके तहत आबादी को घटाने के लिए आम जनता पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला जाता है, बल्कि शिक्षा के जरिए उन्हें छोटे परिवार के प्रति एहसास जगाया जाता है पूरी दुनिया में अभी यही फार्मूला लागू है।
राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग
मई 2000 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया जिसका कार्य थाः राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के क्रियान्वयन की समीक्षा करना, निगरानी करना, स्वास्थ्य संबंधी, शैक्षणिक, पर्यावरणीय और विकास कार्यक्रमों में सक्रिय कोबरा हवा देना, कार्यक्रमों की योजना बनाने अंतर क्षेत्रीय तालमेल को बढ़ावा देना।
जनसंख्या वृद्धि के कारण
जीवन प्रत्याशा में वृद्धि
परिवार नियोजन की कमी
बाल विवाह
अशिक्षा
धार्मिक कारण और रूढ़िवादिता
गरीबी
अवैध प्रवासी
जनसंख्या के फायदे

जनसंख्या वृद्धि को अगर एक अलग नजरिए से देखा जाए तो यह भारत जैसे देशों के लिए बहुत ही अच्छा साबित हो सकता हैः
जनसांख्यिकी लाभः भारत में जनसंख्या की लाभ सबसे चर्चित मुद्दा है, जिसका मतलब है कि एक देश की कुल जनसंख्या में कामकाजी उम्र की आबादी का अनुपात ज्यादा है। यह लोग आर्थिक विकास में व्यापक योगदान कर सकते हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की करीब आधी आबादी ऐसी है जिसकी उम्र 25 साल से कम है भारत को इस बड़ी आबादी से लाभ मिलेगा।


मानव संसाधन में बढ़ोतरीः अगर भारत मानव संसाधन का बेहतर तरीके से उपयोग करें तो यह आर्थिक तौर पर बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है। मसलन कुशल श्रम, मानव संसाधन का निर्यात, जनसांख्यिकीय लाभांश और संस्था लेबर जैसे लड़कों का लाभ उठाया जा सकता है।
ज्यादा जनसंख्या मतलब बड़ा बाजारः कंपनियों के लिए भारत एक बहुत ही अनुकूल देश है जहां पर उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक आसानी से एक ही जगह मिल जाता है।
शक्तिशाली सेनाः अगर किसी देश में पर्याप्त रूप से मानव संसाधन मौजूद है तो सेना का शक्तिशाली होना एक सामान्य बात है। जनसंख्या के मामले में भारतीय सेना दुनिया की सबसे बड़ी सेना है।
जनसंख्या वृद्धि के नुकसानः भारत में जनसंख्या विस्फोट के कारण बेरोजगारी, खाद्य समस्या, कुपोषण, प्रति व्यक्ति निम्न आय, निर्धनता में वृद्धि और कीमतों में वृद्धि जैसी दिक्कतें उभर कर सामने आई है। इसके अलावा कृषि विकास में बाधा बचत तथा पूंजी निर्माण में कमी, जनोपयोगी सेवाओं पर अधिक व्यय अपराधों में वृद्धि पर समस्या में वृद्धि जैसी दूसरी समस्याएं भी पैदा हुई है। इन सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की है देश में पूंजीगत साधनों की कमी के कारण रोजगार मिलने में मुश्किलें आ रही है।
जनसंख्या वृद्धि की समस्या के लिए क्या उपाय किया जाना चाहिएः
परिवार नियोजन
विवाह की उम्र में वृद्धि
संतुलित अनुपात
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार
भूमि का उचित उपयोग
शिक्षा और जागरूकता की आवश्यकता
उचित औद्योगिकीकरण
बेहतर सरकारी नीतियां
परिवार नियोजन को बढ़ावा देना


कृषि व्यवस्थाः
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़है। सिंधु घाटी सभ्यता के दौर से भारत में कृषि होती जाती रही है। 1960 के बाद कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति के साथ एक नया दौर आया। 2007में भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं संबंधित कार्यों का सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा 16.6% था। उस समय संपूर्ण कार्य करने वालों का 52% कृषि में लगा हुआ था।
भारत में कृषि में 1960 के दशक में पारंपरिक बीजों का प्रयोग किया जाता था जिनके ऊपर अपेक्षाकृत कम थी कम सिंचाई की आवश्यकता पड़ती थी उर्वरक के रूप में गाय के गोबर का प्रयोग किया जाता था। 1960 के बाद ऊपर बीज का प्रयोग शुरू हुआ। इससे सिंचाई और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ गया। इस कृति में सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ने लगी इसके साथ ही गेहूं और चावल के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई जिसके कारण इसे हरित क्रांति कहा जाने लगा।
1960 के मध्य के दशक तक सिंचाई का मतलब खेती और कृषि गतिविधियों के प्रयोजन के लिए भारतीय नदियों, तालाबों, नहर और अन्य कृत्रिम परियोजनाओं से पानी की आपूर्ति करना होता था। भारत जैसे देश में 64% खेती करने को भूमि मानसून पर निर्भर होती थी। भारत में सिंचाई करने का आर्थिक महत्व है उत्पादन में अस्थिरता को कम करना, कृषि उत्पादकता की उन्नति करना, मानसून पर निर्भरता को कम करना, खेती के अंतर्गत अधिक भूमि लाना, काम करने के अवसरों का सृजन करना, बिजली और परिवहन की सुविधा को बढ़ाना, बाहर सूखे की रोकथाम को नियंत्रण करना।
वर्ष 2013 से 14 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 4.7% हो गई।
खाद्यान्न मैं उत्पादन 264.4 मिलियन टर्न हुआ।
कृषि निर्यात में 5.1% की वृद्धि हुई।
समुद्री उत्पादों के निर्यात में 45% भेजी हुई।
2013 से 14 मई सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और इसके सहयोगी क्षेत्रों की हिस्सेदारी 13.9% से घट गई।
किसानों की संख्या घटी वर्ष 2001 में 12.73 करोड़ किसान थे जिनकी संख्या घटकर 2011 में 111 10987 करोड़ रह गई।

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