विकास से अभिप्राय – Vinay IAS Academy https://vinayiasacademy.com Rashtra Ka Viswas Thu, 28 May 2020 12:51:02 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=5.3.4 विकास से अभिप्राय , विकास की पद्धति, विकास का सिद्धांत https://vinayiasacademy.com/?p=2007 https://vinayiasacademy.com/?p=2007#respond Thu, 28 May 2020 09:36:16 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2007 *विकास से क्या अभिप्राय है ? संक्षेप में विवरण दें. विकास की प्रक्रिया का अध्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।विकास सब उन्नति से संबंधित परिवर्तनों की ओर संकेत करता है और परिपक्वता की और अग्रसर करता है। मानव के आकार और उसकी रचना में गुणात्मक और मात्रात्मक परिवर्तनों के कारण उसमें कार्य संबंधी सुधार आ […]

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*विकास से क्या अभिप्राय है ? संक्षेप में विवरण दें.
विकास की प्रक्रिया का अध्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।विकास सब उन्नति से संबंधित परिवर्तनों की ओर संकेत करता है और परिपक्वता की और अग्रसर करता है। मानव के आकार और उसकी रचना में गुणात्मक और मात्रात्मक परिवर्तनों के कारण उसमें कार्य संबंधी सुधार आ जाते हैं।(Vinayiasacademy.com
जसिल्ड, टेल्फोर्ट, और सॉरी के अनुसार विकास शब्द का अर्थ उन जटिल प्रक्रियाओं का समूह है जिसमें निषेचित अंड से एक परिपक्व व्यक्ति का उदय होता है।
हेलो के अनुसार विकास पर तुम्हें विधि तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह परिपक्वता के लक्ष्य की और परिवर्तनों की एक प्रगतिशील श्रृंखला है।
विकास की भी अपनी विशेष प्रकृति होती है किसी की भी अपनी एक निश्चित पद्धति होती है यह सदा सामान्य से विशिष्ट दिशा की ओर होता है यह जन्म से लेकर मृत्यु तक निरंतर होता ही रहता है।(Vinayiasacademy.com

  • विकास की पद्धति:
  1. विकास की निश्चित पद्धति होती है।
  2. विकास सामान्य से विशिष्ट दिशा की ओर होता है।3. विकास रुकता नहीं निरंतर चलता रहता है।
  3. विकास सभी प्रकार के परिवर्तनों का प्रतिनिधित्व करता है।
  4. विकास गुणात्मक परिवर्तनों का संकेतक है।

2). विकास के मुख्य सिद्धांतों का वर्णन करें?

  • मनुष्य में जन्म से लेकर मृत्यु तक विकास की प्रक्रिया चलती रहती है अतः हम कह सकते हैं कि किसी भी जीव के लिए बुद्धि व विकास बहुत महत्वपूर्ण है। यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है । बच्चे के शरीर की वृद्धि होने के साथ साथी उसका मानसिक विकास भी होता रहता है अर्थात बालक की वृद्धि के साथ-साथ उसकी विकास की प्रक्रिया भी चलती रहती है शिशु के शारीरिक या मानसिक विकास के परिणाम स्वरुप उसके व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देता है और साथ ही उस में विभिन्न प्रकार की योग्यताओं का उदय होता है मैं बालक में होने वाला यह विकास उसके भाभी जीवन के लिए दिशा प्रदान करता है इस प्रकार धीरे-धीरे एक नन्हा से एक जिम्मेदार नागरिक अथवा व्यस्त का रूप धारण कर लेता है।(vinay ias academy)
    इंग्लिश तथा के अनुसार” विकास शरीर व्यवस्था में एक लंबे समय में होने वाला शतक परिवर्तन का एक अनुक्रम है विशेषता या मानव में इस प्रकार के परिवर्तन अथवा संबंधित और स्थाई विशेष परिवर्तन उसके जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत होते रहते हैं।”
    विकास के सिद्धांत-Vinayiasacademy.com
    1) निरंतरता का सिद्धांत- विकास की प्रक्रिया कभी ना रुकने वाली प्रक्रिया है अर्थात या जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती ही रहती है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से तो विकास की प्रक्रिया मां के गर्भ में ही शुरू हो जाती है। विकास की निरंतरता की गति एक समान नहीं रहती। उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। स्पष्ट होता है कि बेटी में आया कोई भी परिवर्तन अचानक नहीं होता आज दिखाई देने वाला परिवर्तन निरंतरता के सिद्धांत का अनुकरण करते हुए कुछ समय पहले शुरू हुआ होगा।
    2) एकरूपता का सिद्धांत- विकास की प्रक्रिया में एकरूपता दिखाई देती है चाहे व्यक्तिगत विभिन्नता कितनी भी हो। लेकिन यह एकरूपता विकास के क्रम के संदर्भ होती है। उदाहरणार्थ- भाषा का विकास एक निश्चित क्रम से ही होगा, चाहे बच्चे विश्व के किसी भी देश के हो। बच्चों का शारीरिक विकास भी एक निश्चित क्रम में होगा अर्थात या विकास फिर से शुरू होता है इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बच्चों के विकास की गति में तो अंतर हो सकता है लेकिन विकास के क्रम में एकरूपता होती है।Vinayiasacademy.com
    3) वैयक्तिक भिन्नता का सिद्धांत- मनोवैज्ञानिक वैयक्तिक भिन्नता के सिद्धांत को बहुत महत्व देते हैं। क्योंकि विकास प्रक्रिया को विभिन्न आयु वर्गों में बांटा गया है तथा हर आयु वर्ग की अलग-अलग विशेषताएं होती है, जिनके कारण हर आयु वर्ग के व्यवहारों में अंतर होता है इन अंतरों कि हम अनदेखी नहीं कर सकते। जुड़वा बच्चों में भी भिन्नता देखने को मिलती है। अतः सभी व्यक्तियों की वृद्धि और विकास उनकी अपनी संभावित गति से होती है किसी व्यक्ति में कुछ विशेषताएं व्यवहार से विकसित हो जाते हैं तथा कुछ व्यक्तियों में यही विशेषताएं या व्यवहार देर से विकसित होते हैं।Vinayiasacademy.com
    4) विकास की भविष्यवाणी का सिद्धांत- अनुसंधान उसे स्पष्ट हो चुका है कि विकास की भविष्यवाणी करना अब संभव है। जैसे कि बालक के सम्मान रुचियां अभिरुचि या उनकी वृद्धि उनके कार्य करने की क्षमता इत्यादि।
  • 5) सामान्य से विशिष्ट की और विकास का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार बालक पहले सामान्य व्यवहार सीखता है, फिर धीरे-धीरे यह सामान्य व्यवहार विशेषता की ओर बढ़ता है। उदाहरणार्थ, सबसे पहले बच्चा किसी वस्तु को पकड़ने का प्रयास करता है तो वह अपने हाथ इधर-उधर मारने का प्रयास करता है। लेकिन धीरे-धीरे यह समय के साथ विशेषता की ओर बढ़ता है । इसके परिणाम स्वरूप वह उसी वस्तु पर हाथ डालता है, जिसे वह उठाना चाहता है। इसी प्रकार बालक पहले सामान्य शब्द सीखता है, फिर विशिष्ट अक्षरों को। पहले बच्चा सभी पक्षियों को चिड़िया कर कर ही संबोधित करता है, लेकिन समय के साथ साथ वह विभिन्न पक्षियों के नाम भी सीख लेता है और वह उन्हें उन नामों से पुकारना शुरू कर देता है।Vinayiasacademy.com
  • 5) पुनरावृति का सिद्धांत- विकास अनुभवों का कुल योग होता है, क्योंकि विकास की प्रत्येक अवस्था की विशेषताओं की आवृत्ति दूसरी अवस्था में भी देखी जा सकती है। उदाहरणार्थ बचपन का प्रेम किशोरावस्था में भी देखा जा सकता है।
    6) मूर्त से अमूर्त की ओर सोचने का सिद्धांत- मानसिक विकास भौतिक रूप से उपस्थित वस्तुओं के बारे में चिंतन करने की योग्यता के उन वस्तुओं को देखने के सिद्धांत का अनुकरण करता है, जो अमूर्त रूप में होती हैं। बालक प्रभाव और कारण को समझने का प्रयास करना शुरू कर देता है।Vinayiasacademy.com
    7) एकीकरण का सिद्धांत,- इस सिद्धांत के अनुसार पहले बच्चा संपूर्ण अंकों और फिर उसके विशिष्ट भागों को प्रयोग करना या चलाना सीखता है उन भागों का एकीकरण सीखता है। उदाहरणार्थ, पहले बच्चा पूरे हाथ को हिलाता है, फिर आपको और उसकी उंगलियों को हिलाने का प्रयास करता है के साथ-साथ पूरे शरीर में उसकी क्रियाशीलता को देखता है और उसे बार-बार करके उस किया को सीखता हैVinayiasacademy.com
    8) विकास में विभेदीकरण तथा एकीकरण की प्रक्रिया होती है- शिशु के रूप में व्यक्ति की क्रियाएं ठोस अर्थात एकीकृत होती है। इन क्रियाओं द्वारा व्यवहार के सामान्य, विशिष्ट एवं समन्वित प्रतिमान उत्पन्न होते हैं। विशिष्ट प्रतिमान नए और जटिल व्यवहार को सीखने के लिए एकीकृत होते हैं विकास के दो सामान्य नियम होते हैं प्रथम विभेदीकरण तथा द्वितीय श्रेणी बद एकीकरण यह दोनों, नियम परस्पर निकट संबंध रखते हैं। बच्चों का शारीरिक विकास उनके नियंत्रण की मात्रा में सुधार होना तथा क्रियात्मक कार्यों में विशेषता को दर्शाता है। शिशु शीघ्र क्रियात्मक समन्वय की अभिव्यक्ति करना शुरू कर देते हैं। पहले वे भुजाओं की क्रियाओं पर नियंत्रण दिखाते हैं, 3 हाथ की क्रियाओं तथा अंत में उंगलियों की क्रियाओं पर पूर्ण नियंत्रण दिखाते हैं। यह नियंत्रण बच्चों की शारीरिक क्रियाओं में विभेदीकरण कहलाता है उदाहरण फल स्वरुप बच्चे द्वारा भुजाओं, टांगो एवं गर्दन की गतिविधियों पर पूर्णरूपेण नियंत्रण करने के पश्चात इन विभेदी क्रियाओं में एकत्रित करता है , जैसे बच्चे द्वारा बिना सहारे के बैठना। इस प्रकार हम देखते हैं कि बच्चा प्रारंभ में खाते समय हाथों तथा चम्मच का प्रयोग अभद्र रूप से करता है तथा खाने का कुछ भाग नीचे बिखेर देता है परंतु कुछ समय पश्चात वाह पूर्ण दक्षता के साथ उंगलियों या चम्मच की सहायता के बिना बिना बिखेरे
    हुए खाना शुरू कर देता है। तथा साथ में समाचार पत्र पढ़ सकता है यह प्रक्रिया एकीकरण कहलाती है।Vinayiasacademy.com

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