Geography-Hindi – Vinay IAS Academy https://vinayiasacademy.com Rashtra Ka Viswas Tue, 14 Jul 2020 12:46:06 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=5.3.4 स्वर्णरेखा नदी घाटी परियोजना https://vinayiasacademy.com/?p=2685 https://vinayiasacademy.com/?p=2685#respond Tue, 14 Jul 2020 12:46:01 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2685 Share itस्वर्णरेखा नदी घाटी परियोजना के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन? इस परियोजना की न्यू 1978 में रखी गई जिससे देश के 3 राज्यों को सीधा फायदा पहुंचने वाला था। झारखंड की सबसे बड़ी दामोदर नदी के बाद राज्य की दूसरी बड़ी नदी स्वर्णरेखा है। स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना आप 1000 करोड़ में पूरी होगी केंद्र […]

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स्वर्णरेखा नदी घाटी परियोजना के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन?

इस परियोजना की न्यू 1978 में रखी गई जिससे देश के 3 राज्यों को सीधा फायदा पहुंचने वाला था। झारखंड की सबसे बड़ी दामोदर नदी के बाद राज्य की दूसरी बड़ी नदी स्वर्णरेखा है। स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना आप 1000 करोड़ में पूरी होगी केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय से इस की प्रशासनिक स्वीकृति भी मिल चुकी है। स्वर्णरेखा नदी प्रदेश की सबसे बड़ी नदी घाटी बहुउद्देशीय परियोजना केंद्र सरकार से प्रस्तावित हैं
स्वर्ण रेखा भारत के झारखंड प्रदेश में बहने वाली एक पहाड़ी नदी है। यह रांची नगर से 16 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित नगरी गांव में रानी चूआँ नामक स्थान से निकलती है उत्तर पूर्व की ओर बढ़ती हुई मुख्य पठार को छोड़कर प्रपात के रूप में गिरती है इस प्रपात को हुंडरू जलप्रपात के नाम से जाना जाता है। प्रपात के रूप में गिरने के बाद नदी का बहाव पूर्व की ओर हो जाता है और मानभूम जिले के तीन संगम बिंदुओं के आगे या दक्षिण पूर्व की ओर मुड़कर सिंबू में बहती हुई उत्तर पश्चिम से मिदनापुर जिले में प्रवेश हो जाती है। इस जिले के पश्चिमी भूभाग के जंगलों में बहती हुई बालेश्वर जिले में पहुंचती है यह पूर्व पश्चिम की ओर टेढ़ी-मेढ़ी बहती हुई बालेश्वर नामक स्थान पर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इस नदी की कुल लंबाई 474 किलोमीटर है और लगभग 28928 वर्ग किलोमीटर का जल निकास किसके द्वारा होता है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां कांची एवं करकारी है। भारत का प्रसिद्ध एवं पहला लोहे तथा इस्पात का कारखाना इसी के किनारे स्थापित हुआ। कारखाने के संस्थापक जमशेदजी टाटा के नाम पर बसा यहां का नगर जमशेदपुर या टाटानगर कहा जाता है। अपने मुहाने से ऊपर की ओर या 16 मील तक देसी ना वो के लिए नौगम्य है।

झारखंड के विभिन्न प्रकार के उद्योगों के बारे में उल्लेख करें?

झारखंड दुनिया का सबसे अमीर खनिज क्षेत्रों में से एक है। इसके बड़े खनिज भंडार के कारण खनन और खनिज निष्कर्षण राज्य में या काफी आ गया है। 2018 से 19 के दौरान खनिज उत्पादन का मूल्य 2313 करोड़ था। हमारा राज्य खनिज संसाधनों से समृद्ध है। झारखंड के नवजात राज्य में कोयला अभ्रक और अन्य खनिजों में विशेषकर सिंहभूम, बोकारो, हजारीबाग, रांची ,कोडरमा, धनबाद आदि के शोषण की प्रबल संभावना है।
झारखंड कोयला( भारत के भंडार का 27.3%), लौह अयस्क( भारत के भंडार का 26%), तांबा अयस्क( भारत के भंडार का 18.5%), यूरेनियम, बॉक्साइट, ग्रेनाइट और चूना पत्थर जैसे खनिज संसाधनों से समृद्ध है। कूल लौह अयस्क के 25% भंडार के साथ झारखंड राज्य में दूसरे स्थान पर है । राज्य के उद्योग एक विशेष स्थान विशेष लाभ का आनंद लेते हैं क्योंकि यह पूर्वी भारत के विशाल बाजार के करीब है। यह कोलकाता हल्दिया और पारादीप के बंदरगाहों के करीब है जो खनिजों के परिवहन में मदद करता है। राज्य देश में तसर सिल्क का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिस के कुल उत्पादन में 76.4% हिस्सा है। दो हजार अट्ठारह से 19 में राज्य में कच्चे रेशम का उत्पादन 2375 मेट्रिक टन था।
झारखंड के प्राकृतिक संसाधन, नीतिगत प्रोत्साहन स्थान विशेष लाभ खनन और धातु निष्कर्षण, इंजीनियरिंग, लोहा और इस्पात और रसायनों जैसे क्षेत्रों में निवेश का समर्थन करते हैं।
झारखंड में इंजीनियरिंग उद्योग के प्रमुख विकास ड्राइवर कच्चे माल, बिजली, पानी और औद्योगिक श्रम की उपलब्धता है ।

झारखंड के बड़े उद्योग कुछ इस प्रकार हैं:
सार्वजनिक क्षेत्र का बोकारो स्टील प्लांट
जमशेदपुर में निजी क्षेत्र की टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी
अन्य प्रमुख उद्योग
टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी
टिमकें इंडिया लिमिटेड
भारत कुकिंग लिमिटेड
खिलाड़ी सीमेंट फैक्ट्री
इंडियन एलुमिनियम
एसीसी सीमेंट
सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड
उषा मार्टिन, उषा बेल्ट्रॉन, यूरेनियम कॉरपोरेशन लिमिटेड
हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड
हिंडालको बॉक्साइट�


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झारखंड की जनसंख्या वृद्धि और घनत्व https://vinayiasacademy.com/?p=2683 https://vinayiasacademy.com/?p=2683#respond Tue, 14 Jul 2020 12:40:00 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2683 Share itझारखंड की जनसंख्या वृद्धि और घनत्व तथा उनके प्रमुख त्योहार के बारे में महत्वपूर्ण टिप्पणी? झारखंड राज्य की जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय दर से ज्यादा है। झारखंड का औसत जनसंख्या घनत्व 338 व्यक्ति वर्ग किलोमीटर 2001 की जनगणना के अनुसार झारखंड राज्य की साक्षरता 54% है जो राष्ट्रीय साक्षरता दर से कम है। वर्तमान […]

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झारखंड की जनसंख्या वृद्धि और घनत्व तथा उनके प्रमुख त्योहार के बारे में महत्वपूर्ण टिप्पणी?

झारखंड राज्य की जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय दर से ज्यादा है। झारखंड का औसत जनसंख्या घनत्व 338 व्यक्ति वर्ग किलोमीटर 2001 की जनगणना के अनुसार झारखंड राज्य की साक्षरता 54% है जो राष्ट्रीय साक्षरता दर से कम है। वर्तमान जनगणना के अनुसार झारखंड में 76% ग्रामीण आबादी है जबकि 24% शहरी आबादी है। यहां स्त्री और पुरुष का अनुपात 949 है। और कूल शिशु जनसंख्या 5389495 है। राज्य में अनुसूचित जाति के लोगों की कुल जनसंख्या 3985644 है जो कुल जनसंख्या का 12% है। vinayiasacademy.com
झारखंड की जनजातियां
झारखंड यानी झाड़ जो स्थानीय रूप में बढ़िया है और खंड यानी टुकड़े से मिलकर बना है अपने नाम के अनुरूप या मूलत एक वन प्रदेश है जो झारखंड आंदोलन के फल स्वरुप उदित हुआ झारखंड एक जनजातीय राज्य है 15 नवंबर 2000 को यह प्रदेश भारतवर्ष का 28 वा राज्य बना। बुकानन के अनुसार काशी से लेकर बीरभूम तक समस्त पठारी क्षेत्र झारखंड के लाता था। झारखंड क्षेत्र विभिन्न भाषाओं संस्कृतियों और धर्मों का संगम क्षेत्र कहा जा सकता है क्योंकि द्रविड़ आर्य मास्टरों एशियाई तत्वों के सम्मिश्रण का इससे अच्छा कोई क्षेत्र भारत में नहीं है।
अनुसूचित जनजातियों की कुल आबादी का आधे से अधिक जनसंख्या लोहरदगा जिले और पश्चिमी सिंहभूम जिले में हैं जबकि रांची और पाकुड़ में इनकी प्रतिशत 41 से 44 है। कोडरमा जिले में अनुसूचित जनजाति का जनसंख्या अनुपात. 8% और चतरा में 3. 8% है। झारखंड 32 आदिवासी समूह तथा अनुसूचित जनजातियों का समूह है जो कि इस प्रकार हैः
मुंडा
संथाल
उड़ाव
खड़िया
गोंड
कोल
कनबार
सावर
असुर
बैगा
बंजारा
बेदिया
बिनझिया
चेरो

गोराई
करमाली
हो
खोंड
लोहरा
मोहाली
माल पहाड़िया
सौरिया पहाड़ियां
भूमिज
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झारखंड के जनजातियों का प्रमुख त्योहार
झारखंड में कुल 32 जनजातियां मिलकर रहती हैं। एक विशाल सांस्कृतिक प्रभाव होने के साथ-साथ झारखंड यहां के मनाए जाने वाले अपने त्योहारों की मेजबानी के लिए जाना जाता है। इसके उत्सव प्रकृति के कारण या भारत की ज्वलंत आध्यात्मिक कैनवास पर भी कुछ अधिक रंग फैलाता है। झारखंड में पूरे उल्लास के साथ सभी त्योहारों को मनाया जाता है। झारखंड के मुख्य आकर्षण आदिवासी त्योहारों के उत्सव में होता है यहां की सबसे प्रमुख उल्लास के साथ मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है “सरहुल”।
सरहुल– यह पर्व बसंत के मौसम के दौरान मनाया जाता है, जब साल के पेड़ की शाखाओं पर नए फूल खिलते हैं। यह गांव के देवता की पूजा है जिन्हें इन जनजातियों का रक्षक माना जाता है इस देवता की पूजा साल के फूलों से की जाती है। पूजा के दिन के पिछली शाम को 3:00 में मिट्टी के बर्तन लिए जाते हैं और उसे ताजे पानी से भरा जाता है और अगली सुबह इन मिट्टी के बर्तन के अंदर पानी का स्तर देखा जाता है अगर पानी का स्तर कम होता है तो इससे अकार्य कम बारिश होने की भविष्यवाणी की जाती है और यदि पानी का स्तर सामान्य रहता है तो वह अच्छी बारिश का संकेत माना जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद हरिया नामक प्रसाद ग्रामीणों के बीच वितरित किया जाता है चावल से बनाए बीयर होते हैं पूरा गांव गायन और नृत्य के साथ सरहुल का त्यौहार मनाता है। यह त्यौहार छोटा नागपुर के इस क्षेत्र में लगा सप्ताह भर मनाया जाता है। कोल्हान क्षेत्र में इस त्यौहार को बा पोरोब कहा जाता है। जिसका अर्थ फूलों का त्यौहार होता है यह खुशियों का त्योहार है। vinayiasacademy.com


कर्मा– कर्मा त्यौहार कर्म देवता, बिजली, युवा और देवता की पूजा है। यह भद्रा महीने में चंद्रमा की 11 पर आयोजित किया जाता है। युवा ग्रामीणों के समूह जंगल में जाते हैं और लकड़ी पर और फूलों को इकट्ठा करके जो की पूजा के दौरान आवश्यक होता है लेकर आते हैं। झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण और जीवंत युवा महोत्सव का दुर्लभ उदाहरण में से एक है

तुशु- यह ज्यादातर बुंडू, तमाड़ और झारखंड की राइ डीह क्षेत्र के बीच के क्षेत्र में देखा जाता है। भारत की आजादी के आंदोलन के दौरान इस क्षेत्र में एक महान इतिहास देखा गया है। के अंतिम दिन में सर्दियों के दौरान आयोजित एक फसल कटाई का त्यौहार है यह खासकर अविवाहित लड़कियों के लिए भी है लकड़ी या बांस रंग के प्रेम को कागज के साथ लपेट कर उपहार की तरह सजाते हैं और पाक के पहाड़ी नदी में प्रदान कर देते हैं। वहां इस त्योहार पर उपलब्ध कोई दस्तावेज इतिहास नहीं है बल्कि यह जीवन और स्वास्थ्य भरा गाने की विशाल संग्रह पेश करती है यह गीत जनजातीय लोगों को सादगी और मासूमियत को दर्शाते हैं।


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झारखंड में पाए जाने वाले खनिज संसाधन https://vinayiasacademy.com/?p=2681 https://vinayiasacademy.com/?p=2681#respond Tue, 14 Jul 2020 12:34:06 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2681 Share itझारखंड में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के खनिज संसाधन? vinayiasacademy.com संपूर्ण भारत में खनिज उत्पादन के मामले में झारखंड को पहला स्थान प्राप्त है। संपूर्ण भारत में खनिज उत्पादन का झारखंड 40% उत्पन्न करता है राजू को केवल खनन उद्योग से ₹3000 की कमाई होती है। झारखंड के मुख्य खनिज भंडार कोयलाः 76712 […]

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झारखंड में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के खनिज संसाधन?

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संपूर्ण भारत में खनिज उत्पादन के मामले में झारखंड को पहला स्थान प्राप्त है। संपूर्ण भारत में खनिज उत्पादन का झारखंड 40% उत्पन्न करता है राजू को केवल खनन उद्योग से ₹3000 की कमाई होती है।
झारखंड के मुख्य खनिज भंडार
कोयलाः 76712 मिलियन टन
हेमेटाइटः 4036 मिलियन टन
मैग्नेटाइटः 1026 मिलियन टन
चूना पत्थरः 746 मिलियन टर्न
बॉक्साइटः 118 मिलियन टन
काईनाइटः 5.7 मिलियन टन
ग्रेफाइटः 10.34 मिलियन टन
अग्नि मिट्टी: 66.8 मिलियन टन
अभ्रकः 1665 मिलियन टन

खनिजों का जिले के अनुसार वितरण

धनबादः कोयला, अग्नि मिट्टी, आलू पत्थर
गिरिडीहः कोयला, चूना पत्थर, बालू पत्थर
बोकारोः कोयला, चूना पत्थर, बालू पत्थर
हजारीबागः कोयला, चूना पत्थर, फायर क्ले, कीमती एवं अर्ध कीमती पत्थर
चतराः कोयला, अर्ध कीमती पत्थर
कोडरमाः अभ्रक, बालू पत्थर, अर्ध कीमती पत्थर
पलामूः कोयला, चूना पत्थर, बालू पत्थर, चाइना क्ले, ग्रेफाइट, मैग्नेटाइट, ईट पत्थर, मार्बल, ग्रेनाइट
लातेहारः कोयला, फायर क्ले, फेल्सपार, मैग्नेटाइट, चूना पत्थर, बालू पत्थर, मार्बल
रांचीः कोयला, चूना पत्थर, फायर प्ले, चाइना क्ले, ग्रेनाइट
पश्चिमी सिंहभूमः लौह अयस्क, मैग्नेट, क्रोमाइट, चुना पत्थर, पीली मिट्टी, सिलिका सैंड, बालू पत्थर
पूर्वी सिंहभूमः कॉपर अयस्क, काईनाइट, यूरेनियम, चांदी, बालू पत्थर

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झारखंड को रतनगर्भा के नाम से भी जाना जाता है। इसे भारत का रूर प्रदेश भी कहा जाता है। संपदा से संपन्न भूमि है तथा अधिकांशत आकियन खनिज पदार्थ मिलते हैं। खनिज उत्पादन की दृष्टि से झारखंड का भारत में प्रथम स्थान है। कोयले भंडार में भी झारखंड का ठाणे क्यों किया लगभग 33% कोयला उत्पादन करता है। झारखंड में प्रथम बार कोयला खान का प्रारंभ झरिया में हुआ था झारखंड में कोयले की प्राप्ति गोंडवाना क्रम केके चट्टानों से की जाती है। झारखंड में धरवार प्रकार के लौह अयस्क की चट्टाने मिलती है। झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम जिले में लौह अयस्क उत्पादन के लगभग 100% के साथ यह राज्य का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। अभ्रक उत्पादन की दृष्टि से झारखंड का भारत में चतुर्थ स्थान है क्योंकि यहां 90% अब रख पाया जाता है सर्वाधिक चूना पत्थर की प्राप्ति हमें रांची तथा हजारीबाग जिले से होती है। vinayiasacademy.com


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दामोदर घाटी निगम परियोजना https://vinayiasacademy.com/?p=2679 https://vinayiasacademy.com/?p=2679#respond Tue, 14 Jul 2020 12:28:15 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2679 Share itझारखंड के दामोदर घाटी निगम परियोजना पर विस्तार पूर्वक वर्णन करें? दामोदर घाटी निगम(damodar valley corporation) भारत की बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है। यह देश की ऊर्जा का सूत्र धार है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह भारत की प्रथम नदी घाटी परियोजना है जो 7 जुलाई 1948 को अस्तित्व में आया। जिसे पंडित जवाहरलाल […]

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झारखंड के दामोदर घाटी निगम परियोजना पर विस्तार पूर्वक वर्णन करें?

दामोदर घाटी निगम(damodar valley corporation) भारत की बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है। यह देश की ऊर्जा का सूत्र धार है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह भारत की प्रथम नदी घाटी परियोजना है जो 7 जुलाई 1948 को अस्तित्व में आया। जिसे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश के विद्युत ऊर्जा के क्षेत्र में समृद्धि लाने के लिए अस्तित्व में लाया।दामोदर नदी झारखंड तथा पश्चिम बंगाल के राज्यों को आवृत्तकरते हुए 25000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है।Vinayiasacademy.com
दामोदर घाटी की प्रबलता को बाढ़ द्वारा निरंतर विध्वंस का सामना करना पड़ा। जिसमेंसे इसके विध्वंस कारी प्रमुख प्रलय को प्रथम बार 1930 में देखा गया था। इसके पश्चात नियमित अंतराल पर विध्वंसक बाढ़ आती गई परंतु 1943 की बाढ़ ने अपनी प्रचंड तबाही की छाप हमारे स्मृति पर छोड़ दी। इसके परिणाम स्वरूप बंगाल के राज्यपाल ने वर्तमान के महाराज की अध्यक्षता तथा भौतिक विज्ञानी डॉ मेघनाद सहा को सदस्य बताओ जांच बोर्ड का गठन किया। अपनी रिपोर्ट में बोर्ड ने संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के टेनिस ई घाटी प्राधिकरण के अनुरूप प्राधिकरण के गठन का सुझाव दिया।

श्री वुदूइन के प्रारंभिक ज्ञापन ने दामोदर घाटी में बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, विद्युत उत्पादन तथा शौचालय हेतु अभी कल्पित एक बहुदेशीय विकास योजना का सुझाव दिया। दामोदर घाटी निगम के गठन के उद्देश्य हेतु 3सरकारों केंद्रीय सरकार, पश्चिम बंगाल सरकार तथा झारखंड के राज्य सरकारों की संयुक्त सभ्यता की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय विधान मंडल द्वारा दामोदर घाटी निगम अधिनियम को 1948 में पारित किया गया। डीपीसी का पहला विद्युत उत्पादन संयंत्र बेरमो अनुमंडल के बोकारो थर्मल में स्थापित किया गया जिसे 21 फरवरी 1953 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाइट ऑफ कर देश को समर्पित किया था। बीटीपीएस ए प्लांट के नाम से विख्यात उक्त पावर प्लांट काफी लंबे अरसे तक विद्युत उत्पादन करने के बाद पिछले दो दशक पूर्व ही बंद कर दिया गया।दामोदर नदी छोटा नागपुर की पहाड़ियों से निकलती है इस की सहायक नदियां कोनार, बोकारो और बराकर प्रमुख है। नदिया गिरिडीह, हजारीबाग और बोकारो जिले से होकर बहती है। इसकी कुल लंबाई 368 मील है। इस नदी के द्वारा पति संवर्ग में क्षेत्र का जल निकास होता है पहले इस नदी में एकाएक बाढ़ आ जाती थी जिससे इसको बंगाल का अभिशाप कहा जाता था. Vinayiasacademy.com


दुर्भाग्य दामोदर नदी को वश में करने तथा घाटी में बार-बार होने वाली भयंकर बाढ़ से होने वाली पति को नियंत्रित करने के लिए डीवीसी की स्थापना हुई। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैंः
बाढ़ नियंत्रण एवं सिंचाई
विद्युत का उत्पादन और वितरण
दामोदर घाटी के निवासियों का सामाजिक और आर्थिक कल्याण
पर्यावरण संरक्षण तथा वनीकरण
औद्योगिक और घरेलू उपयोग हेतु जलापूर्ति दृष्टि

दामोदर घाटी निगम की उपलब्धियां Vinayiasacademy.com
डीवीसी भारत सरकार द्वारा शुरू की जाने वाली प्रथम बहुदेशीय नदी घाटी परियोजना है।
कोयला, जल तथा तरल ईंधन तीनों स्रोतों से विद्युत उत्पादन करने वाला भारत सरकार का प्रथम संगठन है।
मैथन में भारत का प्रथम भूमिगत विद्युत केंद्र।
विगत शताब्दी के पांचवें दशक में बोकारो का एक राष्ट्र का विद्युत संयंत्र के रूप में क्षेत्र का उत्पन्न होना।
बीटीपीएस का एक बॉयलर इंधन फाइनेंस में अनटैप्ड निम्न स्तर कोयला जलाने में प्रथम स्थान पाना।
मेजिया इकाई जीरो कोल रिजेक्ट हेतु सेवा में ट्यूब मिलो सहित भारत में अपने प्रकार की प्रथम घाटी परियोजना।

डीवीसी उद्योगों तथा वितरक लाइसेंस धारी को विभिन्न स्थानों पर 33kv, 132 केवी तथा 220kv पर अधिक मात्रा में विद्युत की आपूर्ति करता है। उद्योगों में रेलवे, इस्पात और कोयला आदि जैसे प्रमुख उद्योग हैं जो हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है।


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झारखंड के कृषि और सिंचाई विभाग https://vinayiasacademy.com/?p=2677 https://vinayiasacademy.com/?p=2677#respond Tue, 14 Jul 2020 12:22:58 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2677 Share itझारखंड के कृषि और सिंचाई विभागों के बारे में महत्वपूर्ण टिप्पणी दें? झारखंड राज्य का लगभग 1600000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि ऊंचा या मध्यम है। कृषि वैज्ञानिक के अथक परिश्रम एवं किसानों के निरंतर प्रयास से भारतवर्ष में हरित क्रांति का सपना साकार हुआ है। झारखंड सरकार कई महत्वपूर्ण कार्य किसानों के हित में […]

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झारखंड के कृषि और सिंचाई विभागों के बारे में महत्वपूर्ण टिप्पणी दें?

झारखंड राज्य का लगभग 1600000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि ऊंचा या मध्यम है। कृषि वैज्ञानिक के अथक परिश्रम एवं किसानों के निरंतर प्रयास से भारतवर्ष में हरित क्रांति का सपना साकार हुआ है। झारखंड सरकार कई महत्वपूर्ण कार्य किसानों के हित में कर रही है। रांची पठारी क्षेत्र होते हुए भी यहां की भूमि कृषि के लिए उपयुक्त है। यहां सिंचाई के रूप में मुख्य रूप से लोग बारिश होने पर होते हैं परंतु कुआँऔर नदी का भी उपयोग किया जाता है। निकला क्षेत्र धान की खेती के लिए उपयुक्त स्थितियां प्रदान करता है खेती के लिए उच्च ऊंचाई वाले बगीचे बाजरा और सब्जी के बगीचे भी प्रदान करता है। झारखंड की 25 लाख हैक्टेयर भूमि खेती योग्य है इसमें 15% रवि फसल की खेती होती है बाकी 75% खरीफ फसल की खेती होती है सबसे ज्यादा धान उसके बाद दलहन और तिलहन की खेती होती है। झारखंड में कृषि विभाग के द्वारा प्रदेश की बेकार बड़ी भूमि को कृषि योग बनाने की योजनाओं का क्रियान्वयन कोई नया बात नहीं है और कृषि उत्पादन लक्ष्य बनाने के लिए सरकार कृषि भूमि के क्षेत्रफल में विस्तार का ताना-बाना वर्षों से तैयार कर रही है। Vinayiasacademy.com

झारखंड में कृषि उत्पादकता का मानक 116% है अर्थात राज्य में 100 एकड़ में मात्र 16 हेक्टेयर में ही खेती की जा रही है। झारखंड के कृषि विभाग ने वित्तीय वर्ष 2012 में ही ऐसी प्रति भूमि को कृषि कार्य के लिए उपयोग में लाने की योजना तैयार की थी जहां उस समय तक खेती नहीं की गई थी। कृषि का रकबा बढ़ाने की जुगत में जुटे कृषि विभाग ने वित्तीय वर्ष 2012 में 38372 प्रति भूमि पर खेती की योजना बना डाली थी। झारखंड के हजारीबाग जिले के अधिकांश हिस्से जंगल और पत्थरों से भरे पड़े हैं खेती योग्य भूमि को दो भागा था ऊपरी भूमि और निकली भूमि में विभाजित किया गया है नदियों के किनारे जो भूमि स्थित है वह तो उपजाऊ है इसलिए इन भूमि में उर्वरकों ई का मात्रा का उपयोग करके भी अच्छी फसल मिल जाती है लेकिन ऊपरी भूमि बंजर है इन जमीनों में खेती के लिए भारी मात्रा में उर्वरक और सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है सामान्य तो यहां पर रवि और खरीफ की फसल को बोया जाता है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण इस जिले में सिंचाई सुविधा प्राप्त नहीं है । और पंप सेट का उपयोग किया जाता है दामोदर घाटी योजना भी इस क्षेत्र में सिंचाई के लिए की जाती है लेकिन यह उपाय पर्याप्त नहीं है अभी भी आमतौर पर किसान अपनी खेती के लिए बारिश पर ही निर्भर है।

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झारखंड की सिंचाई व्यवस्था
झारखंड को सिंचाई कूप निर्माण में पूरे देश में तीसरा स्थान मिला है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस वित्तीय वर्ष 2019 के अगस्त माह तक की रैंकिंग में इसे तृतीय स्थान दिया है जिसमें झारखंड तीसरे पायदान पर है। इस वित्तीय वर्ष के 5 माह में झारखंड में अब तक 5734 हुए बन चुके हैं। राज्य का 1.8 मिलियन हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है जो कि यहां के भौगोलिक क्षेत्रफल का 22% है। पारंपरिक तौर पर यहां के किसान वर्षा पर आधारित खेती करते हैं। सरकार द्वारा विभिन्न सिंचाई व्यवस्था राज्य के हर उन क्षेत्रों में की जा रही है जहां पढ़ पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं है या फिर ना के बराबर है। स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना 1978 में 128 करोड़ की लागत से शुरू हुई यह योजना अभी तक पूरी नहीं हुई है इस दौरान इसका बजट बढ़कर 14949 दशमलव 78 करोड हो गया है। चांडिल के बाईं मुख्य नहर का कार्य पूरा होने से 127 किलोमीटर तक जल प्रवाहित किया जा रहा है जिससे 99507 हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता के सृजन का जल संसाधन विभाग के द्वारा किया जा रहा है। अजय बराज योजना के निर्माण में 10. 34 करोड़ की स्वीकृति प्रशासन के तरफ से 1975 में दी गई परंतु अब तक इस योजना में 412 करोड रुपए का वह हो चुका है।

पुनासी जलाशय परियोजना 1982 में शुरू की गई थी जिसका उस समय प्रशासन के द्वारा तय की गई कीमत 26. 90 करोड़ थी अभी इसकी पुनरीक्षित लागत बढ़कर 797. 82 करोड़ हो गई है। इस योजना से चुरा अब तक 50% कार्य भी पूरा नहीं हुआ है। उत्तर कोयल जलाशय परियोजना को मंडल डैम के नाम से जाना जाता है यह परियोजना 1970 में महज 30 करोड़ रुपए में प्रशासन के द्वारा जीके स्वीकृति से शुरू की गई थी, परंतु बरसो काम बंद रहने के कारण प्रधानमंत्री ने इसे इस वर्ष जनवरी में अधूरे कार्य पूरा करने के लिए शिलान्यास किया था जिससे उसकी योजना की लागत बढ़कर 13000 करोड रुपए से भी अधिक हो गई है।Vinayiasacademy.com
झारखंड में सिंचाई की व्यवस्था काफी दयनीय है। विभिन्न तरह के सिंचाई योजना का कार्य प्रगति पर है अगर यह इसी तरह सुचारू रूप से चला तो झारखंड में सिंचाई के लिए मनुष्य को किसी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।


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झारखंड की जलवायु, मिट्टी तथा वनों का विस्तार https://vinayiasacademy.com/?p=2675 https://vinayiasacademy.com/?p=2675#respond Tue, 14 Jul 2020 12:17:06 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2675 Share itझारखंड की जलवायु, मिट्टी तथा वनों पर विस्तार पूर्वक वर्णन? झारखंड के जलवायु सामान्यता उष्णकटिबंधीय है किंतु पठारी भाग होने के कारण यहां की जलवायु की स्थिति आसपास के क्षेत्रों से भिन्न है। झारखंड प्रदेश उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित है यह क्षेत्र मानसूनी जलवायु के अंतर्गत आने वाले प्रत्येक मौसम के उतार-चढ़ाव से परिपूर्ण […]

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झारखंड की जलवायु, मिट्टी तथा वनों पर विस्तार पूर्वक वर्णन?

झारखंड के जलवायु सामान्यता उष्णकटिबंधीय है किंतु पठारी भाग होने के कारण यहां की जलवायु की स्थिति आसपास के क्षेत्रों से भिन्न है। झारखंड प्रदेश उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित है यह क्षेत्र मानसूनी जलवायु के अंतर्गत आने वाले प्रत्येक मौसम के उतार-चढ़ाव से परिपूर्ण है। अतः यहां की जलवायु उसने मानसूनी कही जाती है झारखंड में कर्क रेखा नेतरहाट, किसको, ओरमांझी, गोला, मुरहू सुदी, गोपालपुर, पोखन्ना, गोसाईडीह और पाल कुद्री होते हुए बंगाल की और चली जाती है। अर्थात या रेखा झारखंड के ठीक बीचोबीच गुजरती है जिसके आधार पर इसे गर्म जलवायु का आभास करना पड़ता है। झारखंड की जलवायु में पर्याप्त मात्रा में आद्रता होती है जिसके कारण यह उष्णकटिबंधीय जलवायु से कुछ भिन्न प्रकार की बन जाती है। यहां पर वार्षिक वर्षा 1200 मिली मीटर से 1400 मिली मीटर के बीच में होती है। यह क्षेत्र दक्षिण पश्चिम मानसून के रास्ते में आता है इसलिए कभी-कभी जुलाई से सितंबर के दौरान भारी बारिश होती है, गर्मियों के मौसम के दौरान अधिकतम तापमान यहां 40 सेंटीग्रेड से 45 सेंटीग्रेड तक बढ़ जाता है न्यू में न्यूनतम 8 सेंटीग्रेड तक स्थिर रहता है।

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झारखंड में पाई जाने वाली मिट्टियाँ ः
झारखंड में 6 तरह की मिट्टी पाई जाती है

लाल मिट्टी- यह राज्य की प्रमुख मिट्टी है जो कि छोटा नागपुर के क्षेत्र में लगभग 90% मात्रा में पाई जाती है। यह छोटा नागपुर में दामोदर घाटी की गोंडवाना चट्टानों का क्षेत्र तथा ज्वालामुखी उद्भव के राजमहल उच्च भूमि को छोड़कर संपूर्ण छोटा नागपुर में सामान्यता पाई जाती है। लो खनिज तत्वों की कमी या आदित्य के अनुसार इस मिट्टी का रंग लाल या पीलापन होता है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और सो मच की कमी रहती है इसलिए इसकी उर्वरा शक्ति भी कम होती है।

काली मिट्टी– यह मिट्टी राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है जो कि धान एवं चने की खेती के लिए प्रसिद्ध है। यह मिट्टी बेसाल्ट के अपक्षय से निर्मित है। इसका रंग काला और बुरा होता है यह मिट्टी ग्रेनाइट चट्टानों से बनी हुई है इसमें अत्यंत आभारी कणों से हुआ है इसलिए पानी पड़ने पर यह अत्यंत ल सरदार हो जाती है और पैरों से चिपकने लगती है। इस मिट्टी मैं लोहा चूना , मैग्नीशियम और एलुमिना का मिश्रण होता है।

लैटेराइट मिट्टी– यह मिट्टी रांची के पश्चिमी क्षेत्र में पलामू के दक्षिणी क्षेत्र संथाल परगना के क्षेत्र आदि में पाई जाती है यह मिट्टी उपजाऊ नहीं होती है। इस मिट्टी का रंग गहरा लाल होता है इसमें लोहा ऑक्साइड की प्रधानता होती है तथा या मिट्टी कंकड़ी ली होती है।
अभ्रक मुलक- यह मिट्टी कोडरमा के मांडू बड़कागांव तथा झुमरीतिलैया आदि के क्षेत्र में पाई जाती है जो अभ्रक के लिए काफी प्रसिद्ध है। इसका रंग हल्का गुलाबी होता है निम्न प्रदेशों में नमी के कारण पीला हो जाता है यह मिट्टी रेतीली होती है। इसमें अभ्रक के कणों की चमक रहती है तथा या मिट्टी उपजाऊ होती है लेकिन जल की कमी के कारण इस मिट्टी में कृषि कार्य समुचित रूप से नहीं हो पाता है।
रेतीली मिट्टी– हजारीबाग के पूर्व और धनबाद में या मिट्टी पाई जाती है इसमिट्टी में मोटे अनाज प्रचुर मात्रा में उगाए जाते हैं। इस मिट्टी का रंग लाली युक्त, धूसर कथा पीला होता है।
जलोढ़ मिट्टी- यह मिट्टी मुख्यता संथाल परगना के उत्तरी क्षेत्र में पाई जाती है जो कि धान एवं गेहूं की खेती के लिए काफी उपयुक्त होती है यह मिट्टी खेती के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्णस्थान रखती है।

झारखंड में वनों का विस्तार
झारखंड भारत का एक राज्य है जिसकी रांची राजधानी है। झारखंड की सीमाएं उत्तर में बिहार पश्चिम उत्तर प्रदेश एंड छत्तीसगढ़ दक्षिण में उड़ीसा और पूर्व में पश्चिम बंगाल को छूती है। संपूर्ण भारत में वनों के अनुपात में यह प्रदेश एक अग्रणी राज्य माना जाता है। झारखंड वनस्पतिक एवं जैविक विविधता का भंडार है। यहां अनेक प्रकार के अभयारण्य एवं वनस्पति उद्यान भी मौजूद है जैसे कि बेतला राष्ट्रीय अभ्यारण जो कि पलामू में है डाल्टेनगंज से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह लगभग 250 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है विभिन्न प्रकार के वन्यजीव तथा बाघ हाथी जैसे सैकड़ों तरह के जंगली सूअर एवं 20 फुट लंबा अजगर चित्तीदार हिरण ओके जुड़ शीतल एवं अन्य स्तनधारी प्राणी इस पार्क की शोभा बढ़ाते हैं। इस बार को 1974 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था।
रांची जैसे झाड़ झंकार वाले प्रदेश झारखंड की पहचान और जंगल यहां के रहने वाले लोगों से ही हैं। राज्य की बड़ी आबादी अभी बनो पर ही आश्रित है हाल ही में जहां देश में जंगल घटते जा रहे हैं वहीं झारखंड में वनों का क्षेत्रफल बढ़ता जा रहा है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 200 वर्ग किलोमीटर जंगल बड़े हैं जंगलों पर नक्सलियों और खनन माफियाओं का कब्जा रहा है इसे जंगल की आबोहवा ही बदल गई है।

राज्य सरकार ने झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पार्षद को मजबूत बनाने के लिए एक योजना तैयार की है। हजारीबाग में परिषद के क्षेत्रीय कार्यालय सर प्रयोगशाला के लिए सरकार ने 1.059 एकड़ जमीन हस्तांतरित कराई है तथा रांची में भी एक नई भवन निर्माण की योजना की है। बायो मेडिकल वेस्ट कॉमन डिस्पोजल सिस्टम की स्थापना के लिए प्रक्रिया अंतिम चरण पर है। झारखंड में बाघों की संख्या लगातार घटती जा रही है जबकि इनके रखरखाव पर ज्यादा पैसे खर्च हो रहे हैं अभिक पलामू टाइगर प्रोजेक्ट में 2003 में 38 बाघ थे अब मात्र एक ही बाघ का पता चल रहा है। एशिया में पाए जाने वाले हाथियों की कुल संख्या का करीब 50 पीस दी भारत में पाया जाता है हाल के वर्षों में इनकी संख्या तो बढ़ी है लेकिन इनकी सुरक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जंगल और वहां के रहने वाले लोगों को बचाना है तो वन अधिकार कानून 2006 को सख्ती से लागू करना होगा क्योंकि जंगल हमारी संस्कृति है सरकार की संपत्ति नहीं। सरकार बनो का व्यवसायीकरण कर अधिक से अधिक लाभ कमाने की कोशिश कर रही है जिससे जंगल तो नहीं बचेगा पर्यावरण भी हमारा दूषित होता चला जाएगा। झारखंड का करीब एक तिहाई हिस्सा वनों से आच्छादित है जिसमें पचासी तिथि प्रोटेक्टेड 1 और 15 फ़ीसदी ही रिजर्व फॉरेस्ट हैं प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट पैसायिला का होता है जहां कुछ कार्यों की मनाही है उसे छोड़कर सब कुछ ग्रामीणों द्वारा किया जा सकता है जबकि रिजर्व फॉरेस्ट में यह सुविधा नहीं है। सरकार प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट का सही लाभ वन में रहने वाले लोगों को दे तो जंगलों का नक्शा ही बदल जाएगा।


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झारखंड की भू आकृति https://vinayiasacademy.com/?p=2660 https://vinayiasacademy.com/?p=2660#respond Sat, 04 Jul 2020 10:28:08 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2660 Share itझारखंड की भू आकृति के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन करें? झारखंड 21° 58` 10″ उत्तरी अक्षांश से 25° 19′ 15″ दक्षिणी अक्षांश तथा 83° 20′ 50″ पूर्वी देशांतर 88°4’40” पूर्वी देशांतर के मध्य फैला हुआ है। यह राज्य चतुर्भुज के आकार का है।झारखंड का कुल क्षेत्रफल 79714 वर्ग किलोमीटर है भारत के कुल […]

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झारखंड की भू आकृति के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन करें?

झारखंड 21° 58` 10″ उत्तरी अक्षांश से 25° 19′ 15″ दक्षिणी अक्षांश तथा 83° 20′ 50″ पूर्वी देशांतर 88°4’40” पूर्वी देशांतर के मध्य फैला हुआ है। यह राज्य चतुर्भुज के आकार का है।झारखंड का कुल क्षेत्रफल 79714 वर्ग किलोमीटर है भारत के कुल क्षेत्रफल का 2.4% है। झारखंड के पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़, उत्तर में बिहार दक्षिण में उड़ीसा से घिरा है।
झारखंड का प्रमुख भौतिक लक्षण छोटा नागपुर पठार है। जो कि पठार पहाड़ियों तथा घाटियों की श्रृंखला है। यह लगभग समूचे राज्य में फैला है और अधिकांशत क्रिस्टल चट्टानों से बना है। हजारीबाग और रांची यह दो मुख्य पठार दामोदर नदी के भंशित और कोयला युक्तअवसाद से विभाजित हैं। इनकी औसत ऊंचाई लगभग 610 मीटर है पश्चिम में 300 से अधिक विच्छेद इट लेकिन सपाट शिखर वाले पठार हैं जिनकी ऊंचाई लगभग 914 मीटर है और यह पाट कहलाते हैं। झारखंड में उच्चतम बिंदु हजारीबाग स्थित पारसनाथ की शंक्वाकार ग्रेनाइट चोटी है जिसकी ऊंचाई 1369 मीटर है। जैन मतावा लंबी और संथाल जनजाति दोनों ही इसे पवित्र मानते हैं। दामोदर घाटी में मिट्टी बन गई है जबकि पठार की मिट्टी अधिकांश का लाल है। संपूर्ण भारत में वनों के अनुपात में यह प्रदेश एक अग्रणी राज्य माना जाता है। इस प्रदेश के अन्य बड़े शहरों में धनबाद बोकारो एवं जमशेदपुर शामिल है।

झारखंड की जल निकासी व्यवस्था

किसी क्षेत्र की सतह या उपसतह के पानी को प्राकृतिक कृत्रिम ढंग से हटाना जल निकासी कहलाता है। कृषि भूमि के उत्पादन को सुधारने या पानी की आपूर्ति के प्रबंधन के लिए जल निकासी की आवश्यकता पड़ती है। प्राकृतिक हटाओ से एवं जंगल पहाड़ पठार कनिष्क बताओ से अलंकृत झारखंड की धरती पर जीवन को और भी सुंदर बनाने के लिए अनेक नदियां एवं जलप्रपात है। प्रतिवर्ष लगभग 1000 मिलीमीटर से भी अधिक वर्षा वाला यह राज्य झारखंड भूगर्भीय जल में भी पीछे नहीं है। कोयल, अजय गुमानी, स्वर्णरेखा, दामोदर नदी अपने जल से प्रकृति और प्रकृति के प्राणियों में प्राण का संचार करती रहती है। इस प्रदेश की अधिकांश नदियां भारत की अन्य नदियों से भिन्न है। झारखंड में कठोर चट्टानों के कारण भूमिगत जल का स्तर नदियों से अलग रह जाता है यह नदियां कठोर एवं पथरीले और पहाड़ी भूभाग से प्रवाहित होने के कारण बिहार एवं उत्तर प्रदेश की नदियों की तरह अपने मार्ग नहीं बदलती है बल्कि साथ ही साथ यहां की नदियों का प्रवाह भू आकृति के कारण नियंत्रित रहता है। यू के दिनों में अल्प मात्रा में जल रहता है या यह नदियां लगभग सूख जाती हैं इस प्रदेश में उत्तर की ओर प्रवाहित होने वाली नदियां मैदानी भाग में प्रवेश करने के कारण मंद पड़ जाती हैं और कम कटाव कर पाती है जबकि ठीक इसके विपरीत दक्षिण की ओर बहने वाली नदियां दूर तक सिर्फ गति से बहती है और वे अधिक कटाव कर पाती हैं ।झारखंड की किसी भी नदी में नाव नहीं चलाई जा सकती है क्योंकि पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यह नदियां नाव चलाने की उपयुक्त नहीं है।

नदियों के अलावा इस प्रदेश में अनेक प्रकार के प्राकृतिक जलकुंड है जो अपने भौगोलिक, धार्मिक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक एवं अन्य महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इन प्राकृतिक जल कुंड का जल हमेशा गर्म रहता है। हजारीबाग दुमका, सिमडेगा, गुमला, धनबाद आदि जिले में गर्म पानी के इस तरह के झड़ने अवस्थित हैं। यह गर्म पानी हिमाचल प्रदेश के तत्तापानी को याद दिलाते हैं ठीक हिमाचल के की तरह इंतजार में भी गंदा के खनिज लवणों का मिश्रण खुला होता है जिसके कारण अनेक रोगी विशेष तौर से त्वचा रोगों से ग्रस्त मरीज इन गर्म जल कुंड के पानी में नहाते हैं जिससे उनकी बीमारी का इलाज हो पाता है इस चिकित्सा में धर्म की मान्यता भी जुड़ी हुई है इन सभी कारणों से यह प्राकृतिक स्रोत पर्यटकों के लिए आकर्षक का केंद्र बना हुआ है। हजारीबाग का सूरजकुंड नाम से ही काफी प्रसिद्ध है से गर्म एवं विख्यात जलकुंड है जिसका तापमान 190 डिग्री होता है। हजारीबाग में गर्म जल के अनेक झरने हैं जिनमें पिंडारकुण्ड , काबा, लुरगाथा आदि प्रमुख हैं। इसी तरह से इस प्रदेश में लगभग 20 छोटे बड़े और आकर्षक जलप्रपात भी हैं जो जीवन को जल्द से और भी प्राण मान बना देते हैं। हुंडरू का जलप्रपात झारखंड का सबसे बड़ा जलप्रपात है अतः इस प्रदेश के एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में भी विख्यात हो चुका है। यहां पानी की जलधारा 300 पीठ के ऊपर से गिरती है हुंदरू रांची शहर से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इस जलप्रपात से सिकिदिरी पनबिजली संयंत्र में बिजली का उत्पादन भी होता है। दूसरा आकर्षक जलप्रपात रांची शहर के 40 किलोमीटर दूरी पर कांची नदी स्थित दशम जलप्रपात है। यह 10 चल धाराओं का प्रपात है इसलिए इसे दशम जलप्रपात कहा जाता है। सदनी जलप्रपात गुमला जिले में है। शंख नदी पर स्थित इस जलप्रपात में जलधारा लगभग 200 फीट से गिरती है। झारखंड के प्रसिद्ध शक्तिपीठ रजरप्पा में दामोदर नदी पर रजरप्पा जलप्रपात भी काफी आकर्षक है। नेतरहाट में घाटी नदी पर स्थित जलप्रपात पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है क्योंकि इसकी जलधारा लगभग 150 फीट के ऊपर से गिरती है।
हमारा झारखंड इसी प्रकार के संपदा ओं से भरा पूरा है।


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अंतरराष्ट्रीय व्यापार https://vinayiasacademy.com/?p=2658 https://vinayiasacademy.com/?p=2658#respond Sat, 04 Jul 2020 10:23:59 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2658 Share itअंतरराष्ट्रीय व्यापार से आप क्या समझते हैं भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के बारे में संक्षेप पूर्वक वर्णन करें? अंतरराष्ट्रीय व्यापार अंतरराष्ट्रीय सीमा व्यास क्षेत्रों के आर पार कुंजी माल और सेवाओं का आदान-प्रदान है। सोमैया सकल घरेलू उत्पाद के महत्वपूर्ण अंश का प्रतिनिधित्व करता है जबकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार इतिहास के अधिकांश भाग में मौजूद […]

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अंतरराष्ट्रीय व्यापार से आप क्या समझते हैं भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के बारे में संक्षेप पूर्वक वर्णन करें?

अंतरराष्ट्रीय व्यापार अंतरराष्ट्रीय सीमा व्यास क्षेत्रों के आर पार कुंजी माल और सेवाओं का आदान-प्रदान है। सोमैया सकल घरेलू उत्पाद के महत्वपूर्ण अंश का प्रतिनिधित्व करता है जबकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार इतिहास के अधिकांश भाग में मौजूद रहता है इसका आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक महत्व हाल की सदियों में बढ़ने लगा है
अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर औद्योगिकीकरण ,उन्नत परिवहन, वैश्वीकरण, बहुराष्ट्रीय निगम और बाय स्रोत से कार्य निष्पादन इन सभी का व्यापक प्रभाव पड़ता है। वैश्वीकरण की निरंतरता के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बढ़ोतरी काफी महत्वपूर्ण है अंतरराष्ट्रीय व्यापार के बिना देश सिर्फ अपनी खुद की सीमा के भीतर उत्पादित माल और सेवाओं तक ही सीमित रह पाता है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के बीच एक और अंतर यह है कि पूंजी और श्रम जैसे उत्पादन कारक आमतौर पर बाहर की तुलना में देशों के भीतर अधिक गतिशील होते हैं। इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय व्यापार ज्यादातर माल और सेवाओं के व्यापार तक सीमित है और पूंजी श्रम या उत्पादन के अन्य कारकों के व्यापार में केवल एक छोटे पैमाने पर। अंतरराष्ट्रीय व्यापार अर्थशास्त्र की एक शाखा भी है जो अंतरराष्ट्रीय वित्त के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र की विशेष शाखा का निर्माण करती है।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार विनियमन
परंपरागत रूप से दो देशों के बीच व्यापार द्विपक्षीय संधियों के माध्यम से नियमित कीया जाता था। कई सदियों तक वाणी के बाद में विश्वास के तहत अधिकार देशों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर सीमा शुल्क उच्च था और कई प्रतिबंध भी थे। 19वीं सदी में विशेष रुप से यूनाइटेड किंगडम में मुक्त व्यापार में विश्वास सर्वोपरि बन गया उसके बाद यही धारणा पश्चिमी देशों के बीच भी आ गई। विश्व युद्ध के बाद के वर्षों में विवादास्पद बहुत अच्छी है संदीप जैसे जनरल एग्रीमेंट ऑन टेरिफ एंड ट्रेड और विश्व व्यापार संगठन ने वैश्विक स्तर पर विनियमित व्यापार ढांचे को निर्मित करते हुए मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने का प्रयास किया।
परंपरागत रूप से कृषि हेतु आमतौर पर मुक्त व्यापार के पक्ष में है जबकि विनिर्माण क्षेत्र अफसर संरक्षणवाद का समर्थन करते हैं। हाल ही के वर्षों में इसमें कुछ हद तक बदलाव आया है वास्तव में कृषि से जुड़े हुए विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका यूरोप और जापान में प्रमुख अंतरराष्ट्रीय व्यापार संधियों में खास लोगों के लिए मुख्य तक जिम्मेदार है जो अधिकांश अन्य वस्तुओं और सेवाओं की अपेक्षा कृषि में अधिक संरक्षण वादी उपायों की अनुमति देते हैं। मंदी के दौरान घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए प्रशुल्क बढ़ाने का अक्सर अत्यधिक घरेलू दवा होता है दुनिया भर में होता है। कई अर्थशास्त्रियों ने विश्व व्यापार में पतन के लिए प्रश्न को अंदरूनी कारण के रूप में रेखांकित किया है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का विनियमन विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से वैश्विक स्तर पर किया जाता है और कई अन्य क्षेत्रीय व्यवस्था के माध्यम से दक्षिण अमेरिका में मेरकोसर , अमेरिका, कनाडा और मेक्सिको के बीच नॉर्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट और 27 स्वतंत्र देशों के बीच यूरोपीय संघ फ्री ट्रेड एरिया ऑफ द अमेरिका की योजना पर स्थापना पर 2005 ब्यूनस आयर्स वार्ता मुख्य रूप से लैटिन अमेरिकी देशों की आबादी के विरोध से विफल हो गई।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार में जोखिम के कारण
अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार व्यापार कर रही कंपनियां उन्हीं समान जोखिमों का का सामना करती है जो सामान्य रूप से कट्टर घरेलू लेन-देन में प्रदर्शन करती है। जैसे
क्रेता दिवालियापन
अस्वीकृति
ऋण जोखिम
नियामक जोखिम
हस्तक्षेप
राजनीतिक जोखिम
युद्ध और अन्य नियंत्रण घटनाएं

भारत का विदेश व्यापार
भारत के विदेश व्यापार के अंतर्गत भारत से होने वाले सभी निर्यात एवं विदेशों से भारत में आयात सभी सामानों से है। विदेश व्यापार भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की देखरेख में होता है। प्राचीन काल सेभारत विश्व के कईभागों से व्यापार करता रहा है। प्राचीन काल से मसालों और इस्पात का निर्यात होता रहा है। रोम के भारत से व्यापारिक संबंध थे वास्कोडिगामा 1478 में कालीकट पहुंचा था उसकी इस यात्रा से पुर्तगाल से इतना लाभ हुआ कि अन्य यूरोपीय भी यहां से व्यापार करने के लिए तैयार हो गए। भारत विश्व के 190 देशों को लगभग 7510 वस्तुएंनिर्यात करता है तथा 140 देशों से लगभग 6000 वस्तुएंआयात करता है। 2014 में भारत ने 318.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य का सामान निर्यात किया तथा 462.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य का सामान आयात किया।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार के फायदे

अपने उत्पादों या सेवाओं का व्यापार दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय विकास की न्यू प्रदान करता है जिससे व्यवसाय के वित्तीय प्रदर्शन में सुधार होता है केवल घरेलू व्यापार के साथ आने जाने वाले जोखिम को विविधता में लाया जा सकता है। एक्सपोर्ट वर्ल्ड वाइड एक अंतरराष्ट्रीय अग्रणी पीढ़ी मंच है जो आपको अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लाभों का उपयोग करने में सक्षम बनाता है। यह सुनिश्चित करता है कि आपके उत्पाद या सेवा के सदस्य देशों में और 20 भाषाओं में सामग्री का अनुवाद करके और अनुकूलित करके विश्व व्यापार बाजार का 84% हो सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए- घरेलू बाजारों पर ध्यान केंद्रित करने वाली कंपनियां उस क्षेत्र तक ही सीमित हो जाती है परंतु अगर व्यापार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जाए तो यह कई अंतरराष्ट्रीय बाजारों में फैलता है जिससे हमारा नाम पूरे विश्व मेंबढ़ सकता है।
बेहतर वित्तीय प्रदर्शन– बिग बाजार हमारे राज्य के नए स्रोत तक पहुंच प्रदान कर सकता है जो कि व्यवसाय को अधिक वित्तीय क्षमता भी देता है।
विविध जोखिम– एक बाजार में व्यापार करके आप जोखिम को कम करते हैं कि घरेलू व्यापार के मुद्दे आपके व्यवसाय पर हो सकते हैं।
कम प्रतिस्पर्धा– आपके उत्पादों या सेवाओं को घरेलू स्तर पर बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है परंतु अंतरराष्ट्रीय बाजारों में यह स्पर्धा कम हो जाती है।
अधिक आकर्षक- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने वाली कंपनियां तथा अन्य व्यवसाय और संभावित कर्मचारियों अधिक आकर्षित हो जाती है क्योंकि इनका अंतरराष्ट्रीय बाजार में व्यापार करना ही लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है।
राष्ट्रीय सुधार- अंतरराष्ट्रीय व्यापार से राजस्व वृद्धि ने हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में काफी सुधार किया है।


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संचार व भारत में हुए संचार माध्यमों में विस्तार https://vinayiasacademy.com/?p=2656 https://vinayiasacademy.com/?p=2656#respond Sat, 04 Jul 2020 10:18:00 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2656 Share itसंचार माध्यम से आप क्या समझते हैं भारत में हुए संचार माध्यमों के विस्तार का वर्णन करें? संदेश के प्रभाव में प्रयुक्त किए जाने वाले माध्यम को संचार माध्यम कहते हैं। संचार माध्यमों के विकास के पीछे मुख्य कारण मानव के जिज्ञासु प्रवृत्ति का होना है। वर्तमान समय में संचार माध्यम समाज में गहरा […]

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संचार माध्यम से आप क्या समझते हैं भारत में हुए संचार माध्यमों के विस्तार का वर्णन करें?

संदेश के प्रभाव में प्रयुक्त किए जाने वाले माध्यम को संचार माध्यम कहते हैं। संचार माध्यमों के विकास के पीछे मुख्य कारण मानव के जिज्ञासु प्रवृत्ति का होना है। वर्तमान समय में संचार माध्यम समाज में गहरा संबंध होता जा रहा है इसके द्वारा जन सामान्य की रुचि अब हितों को स्पष्ट भी किया जा रहा है। तकनीकी विकास के संचार माध्यम का विकास हुआ है तथा इससे संचार अब ग्लोबल फेनोमेनल बन गया है। संचार माध्यम अंग्रेजी के मीडिया शब्द से बना है जिसका अभिप्राय होता है दो बिंदुओं को जोड़ने वाला। संचार माध्यम सम प्रेषक और श्रोता को परस्पर जोड़ता है। हेराल्ड के अनुसार संचार माध्यम के मुख्य कार्य सूचना संग्रहएवं प्रसार सूचना विश्लेषण सामाजिक मूल्य एवं संप्रेषण तथा लोगों का मनोरंजन करवाना है। संचार माध्यम का प्रभाव समाज में अनादि काल से ही रहा है परंपरागत एवं आधुनिक संचार माध्यम समाज की विकास प्रक्रिया से जुड़े हैं संचार माध्यम का सौदा अथवा लक्ष्य समूह बिखरा होता है इसके संदेश भी अच्छे स्वभाव वाले होते हैं।
संचार शब्द अंग्रेजी के कम्युनिकेशन का हिंदी रूपांतर है जो लैटिन शब्द कम्युनिस से बना है जिसका अर्थ है सामान्य भागीदारी युक्त सूचना। क्योंकि संचार समाज में ही घटित होता है अतः हम समाज के परिपेक्ष्य से देखें तो पाते हैं कि सामाजिक संबंधों को दिशा देने अथवा निरंतर प्रवाह मान बनाए रखने की प्रक्रिया ही संसार है।

परिभाषाएं
प्रसिद्ध संचार बेत्ता डेनिस मैक्वेल के अनुसार,” संचार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति का अर्थ पूर्ण संदेशों का आदान प्रदान है।”
डॉक्टर मारी मत के अनुसार,” संचार सामाजिक उपकरण का सामंजस्य है।”
राजनीतिक शास्त्र विचारक लुकिंग पाई के विचार में,” सामाजिक प्रक्रिया का विश्लेषण ही संसार है”।
संचार माध्यमों की प्रकृति
भारत में संचार सिद्धांत काव्य परंपरा से जुड़ा हुआ है। स्थाई भाव संचार सिद्धांत से ही जुड़े हुए हैं। जहां तक संचार माध्यमों की प्रकृति का सवाल है तो वह संचार की उपयोगकर्ता के साथ-साथ समाज से भी जुड़ा होता है। संचार माध्यम समाज के भीतर की प्रक्रिया को ही उतारते हैं निवर्तमान शताब्दी में भारत के संचार माध्यमों की प्रकृति व चरित्र में बदलाव ही हुए हैं लेकिन प्रेस में मुख्यतः तीन से चार गुणात्मक परिवर्तन दिखाई देते हैं जो कि इस प्रकार हैंः

पहला– शताब्दी के पूर्वार्ध में इसका चरित्र मूलता मिशन वादी रहा। बजट की स्वतंत्रता आंदोलन व औपनिवेशिक शासन से मुक्ति। इसके चरित्र के निर्माण में तिलक, गांधी, माखनलाल चतुर्वेदी, विष्णु पराड़कर, माधव राव सपरे जैसे व्यक्तित्व ने योगदान दिया था।

दूसरा– 15 अगस्त 1947 के बाद राष्ट्र के एजेंडे पर नहीं प्राथमिकताओं का उभरना यहां से राष्ट्र निर्माण का आरंभ हुआ और प्रेस पीस के संस्कारों से प्रभावित हुआ और यह दौर दो दशकों तक चला।

तीसरा- सातवें दशक से बेसुध व्यावसायिक ताकि संस्कृति आरंभ हुई वजह थी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का विस्फोट होना।

चौथा– अंतिम दो दशकों में प्रेस का आधुनिकीकरण हुआ क्षेत्रीय प्रेस का एक शक्ति के रूप में उभरना और पत्र-पत्रिकाओं से संवेदनशीलता दृष्टि का विलुप्त होना।


भारत में संचार व्यवस्था
आधुनिक विश्व में संचार तकनीक के विकास के बिना सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में प्रगति हासिल करना असंभव है। संचार तकनीक के त्वरित विकास को क्रांति की संज्ञा दी गई है। संचार प्रौद्योगिकी के अंतर्गत डाक प्रणाली दूरसंचार एवं सूचना तकनीक जैसे विभिन्न संचार के साधन शामिल हैं।
संचार तंत्र में टेलीग्राफ, डाक, दूरसंचार, रेडियो प्रसारण, टेलीविजन सम्मिलित हैं।
डाक व्यवस्था- व्हाट 1766 में लौट फ्लाइट द्वारा स्थापित डाक व्यवस्था को आगे का विकास वारेन हेस्टिंग्स ने 1774 में एक पोस्ट मास्टर जनरल के अधीन कोलकाता जीपीओ की स्थापना करके किया। भारत में डाक प्रणाली का उपयोग 1837 तक सरकारी उद्देश्य हेतु किया जा रहा था परंतु इसके बाद 1837 में डाक सेवाएं सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होने लगी। 1812 में कराची में पहली डाक टिकट जारी की गई जो मात्र सिंध प्रांत में वैद्य थी। भारतीय डाक कार्यालय को इस संस्था के रूप में गठित किया गया उस समय भारत में 700 डाकघर मौजूद थे। भारत में भारतीय डाकघर अधिनियम 1818 के अनुसार डाक सेवा को अधिसूचित किया जाता है यह अधिनियम सरकार को देश में पत्रों की कतरन संचरण एवं वितरण का विशेष अधिकार प्रदान करती है
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में 23344 डाकघर से, जिनमें से 19184 ग्रामीण क्षेत्रों में सदा 4160 शहरी क्षेत्रों में स्थित थें। वर्तमान में पूरे देश में 154822 डाकघर हैं इनमें से 140086 डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 15776 शहरी क्षेत्रों में है। डाकघर के अतिरिक्त बुनियादी डाक सेवाएं फ्रेंचाइजी और पंचायत संचार सेवा केंद्र के जरिए भी मुहैया कराई जाती है ट्रेन चाय की दुकानें शहरी क्षेत्रों में ऐसी जगह खोली गई है जहां अस्थाई डागर खोलना संभव नहीं है इस योजना में केवल विशेष काउंटर सेवा ही दी गई है जबकि लघु बचत से डिप्रेशन और वितरण कार्य इन केंद्रों को नहीं दिया गया है। इसके अंतर्गत स्पीड सेवा पोस्ट भी आती है जो कि 1 अगस्त 1986 को शुरू की गई थी इस सेवा के अंतर्गत पत्रों दस्तावेज और पार्षदों की डिलीवरी की एक निश्चित अवधि के अंतर्गत की जाती है और अवधि में डिलीवरी ना होने पर ग्राहक को डाक शुल्क पूर्ण रूप से वापस कर दिया जाता है। स्पीड पोस्ट नेटवर्क में 315 राष्ट्रीय और 986 राज्य स्पीड पोस्ट केंद्र शामिल है। यह सेवा अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी 97 देशों में उपलब्ध है।

दूरसंचार – आज के विश्व में दूरसंचार का महत्व बढ़ता जा रहा है, और भारत को यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतियोगिता चना का स्थान प्राप्त करना है तो इस क्षेत्र में हमें श्री विकास करना होगा। भारत विश्व के सर्वाधिक बड़े दूरसंचार संस्थाओं में से एक का संचालन करता है टेलीफोन, मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से होने वाला संचार शामिल है। विश्वस्तरीय दूरसंचार आधार संरचना के अस्तित्व प्रावधान देश के त्वरित आर्थिक और सामाजिक विकास की कुंजी होती है। भारत में टेलीग्राफ और टेलीफोन अविष्कार के तुरंत बाद दूरसंचार सेवाएं आरंभ हो गई। डेली टेलीग्राफ लाइन कोलकाता और डायमंड हर्बल पतन के बीच 18 से 51 में संचार हेतु खोली गई। मार्च 18 से 84 द टेलीग्राफ संदेश आगरा से कोलकाता को भेजे जा सकते थे 1990 तक भारतीय रेलवे को सेवा टेलीग्राफ और टेलीफोन सेवा प्राप्त हुई। स्वतंत्रता से लेकर अब तक दूरसंचार सेवा में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।
जनसंचार– हमारे जैसे देशों में जनसंचार स्वास्थ्यवर्धक मनोरंजन के अतिरिक्त सूचना शिक्षा प्रदान करके लोगों में राष्ट्रीय नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता पैदा करके एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह राष्ट्र निर्माण के कार्य में लोगों की सक्रिय सहभागिता में भी मदद करता है। सरकारी प्रसारण क्षेत्र में 1997 के एक अधिनियम द्वारा प्रसार भारती का गठन किया गया। जिसमें दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो शामिल है प्रसारण क्षेत्र में पूरे देश में सबसे अधिक निजी चैनल और केबल नेटवर्क हैं। इसके अंतर्गत प्रिंट मीडिया भी शामिल है जिसका देखरेख भारतीय प्रेस परिषद द्वारा किया जाता है। रेडियो क्लब ऑफ मुंबई के द्वारा प्रथम रेडियो कार्यक्रम का प्रसारण जून 1923 में किया गया। इसके पश्चात प्रसारण सेवा की स्थापना भारत सरकार एवं एक निजी कंपनी इंडिया ब्रॉडकास्टिंग कंपनी लिमिटेड के समझौते के अंतर्गत हुई। जिसे 23 जुलाई 1927 को मुंबई एवं कोलकाता में एक साथ एक प्रायोगिक आधार पर प्रशासन की शुरुआत की गई। इसके बाद इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का गठन किया गया और ऑल इंडिया रेडियो 1957 से आकाशवाणी के नाम से जाना जाने लगा भारत में 6 रेडियो स्टेशन थे। अब रेडियो स्टेशन की संख्या 252 हो गई है और ऑल इंडिया रेडियो की पहुंच देश की 95% से अधिक जनसंख्या तक है। वर्तमान में दूरदर्शन 35 सैटेलाइट चैनल और 1415 ट्रांसपोर्टरों का संचालन करता है। पहला प्रसारण आकाशवाणी भवन नई दिल्ली में मैच की फीस चूड़ियों से 15 सितंबर 1959 की प्रसारित किया गया था।

प्रेस कथा प्रिंट मीडिया– भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक का कार्यालय 1953 में प्रथम प्रेस आयोग की सिफारिशों और प्रेस कथा पुस्तक पंजीयन अधिनियम 18 सो 67 में संशोधन से अस्तित्व में आया। समानता प्रेस रजिस्ट्रार के रूप में प्रसिद्ध आरएनएस भारत में समाचार पत्रों की स्थिति पर प्रत्येक वर्ष 31 दिसंबर तक एक वार्षिक रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत करनी होती है। हिंदी भाषा में सर्वाधिक संख्या में समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं तथा इसके बाद अंग्रेजी और उर्दू का स्थान आता है। भारत की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया भारतीय समाचार पत्रों की बिना लावरी सहकारी संस्था है जिसका दायित्व अपने ग्राहकों को कुशल एवं निष्पक्ष समाचार उपलब्ध कराना है। इसकी स्थापना 27 अगस्त 1947 को हुई थी और इसमें एक फरवरी 1949 से अपनी सेवा शुरू कर दी।

श्रव्य दृश्य मीडिया- पिक्चर फिल्मों का निर्माण भारत में 1912 तेरा से किया जाने लगा। 1912 में आठवीं तोड़नी ने एनजी चित्रों के साथ मिलकर पुंडलिक बनाइ। जबकि धुंडीराज गोविंद फाल्के ने 1913 में राजा हरिश्चंद्र का निर्माण किया। फिल्मों का दौर 1921 में बोलने वाली फिल्मों के आने से समाप्त हुआ जब आर्देशिर ईरानी ने आलम आरा बनाई इस समय भारत विश्व में वार्षिक पिक्चर फिल्म के निर्माण में अग्रणी था।
सोशल मीडिया– इंटरनेट आधारित सॉफ्टवेयर इंटरफेस जो लोगों को एक-दूसरे से बातचीत करने की अनुमति प्रदान करता है तथा अपने जीवन के तत्व जैसे जैविक एवं आपदा से पेशेवर जानकारी व्यक्तिगत फोटो एवं पल-पल के विचार बांटना संभव बनाता है, सोशल मीडिया कहलाता है।

संचार का महत्व
संचार के महत्व को हम निम्नलिखित बिंदुओं से समझ सकते हैं
समन्वय के आधार के रूप में कार्य-
संचार संगठनात्मक लक्ष्यों, उन्हें प्राप्त करने के तरीके, व्यक्तियों के बीच पारस्परिक संबंध आदि के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करके संगठन में विभिन्न विभागों और व्यक्तियों की गतिविधियों के संबंध में में मदद करता है।
इसलिए संचार समझने के लिए एक आधार के रूप में कार्य करता है।
एंटरप्राइज के स्मूथ वर्किंग में मदद करता है- संचार एक उद्यम के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करता है। एक संगठन का अस्तित्व पूरी तरह से संचार पर निर्भर करता है। यदि संचार बंद हो जाता है तो किसी संगठन की गतिविधियां गतिरोध में आ जाती हैं

निर्णय लेने के आधार के रूप में कार्य– संचार सभी आवश्यक जानकारी प्रदान करके निर्णय लेने की प्रक्रिया में मदद करता है तथा प्रासंगिक जानकारी के संचार के अभाव में कोई भी सार्थक निर्णय नहीं ले सकता है।

प्रबंधकीय क्षमता बढ़ाता है- किसी उद्यम के लक्ष्यों और उद्देश्यके बारे में जानकारी प्रदान करता है। यह निर्देश प्रदान करता है और जिम्मेदारियों का आवंटन तथा काम करो कि काम की देखरेख करता है।
प्रभावी नेतृत्व स्थापित करता है- एक अच्छे नेता के पास अधीनस्थों के व्यापार को प्रभावित करने के लिए कुशल संचार कौशल होना चाहिए इस प्रकार संचार नेतृत्व का आधार है।


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BRITISH TYPE OF CLIMATE (COOL TEMPERATE WESTERN MARGIN https://vinayiasacademy.com/?p=2620 https://vinayiasacademy.com/?p=2620#respond Wed, 01 Jul 2020 12:42:22 +0000 https://vinayiasacademy.com/?p=2620 Share it10.BRITISH TYPE OF CLIMATE (COOL TEMPERATE WESTERN MARGIN). Cool temperate western margins are under the permanent influence of the westerlies all-round the year approx. at 50* N- S They are also regions of much cyclonic activity, typical of Britain, & are thus said to experience the British type of climate. 🔸️ Distribution: This type […]

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10.BRITISH TYPE OF CLIMATE (COOL TEMPERATE WESTERN MARGIN).

Cool temperate western margins are under the permanent influence of the westerlies all-round the year approx. at 50* N- S

They are also regions of much cyclonic activity, typical of Britain, & are thus said to experience the British type of climate.
🔸 Distribution:
This type of climate is experienced in western Europe and North America .in North America, the rockies mountain range prevents eastwards extension of this type of climate.
This reason come under permanent influence of Westerlies.
In the southern hemisphere,this type of climate is confined to lower part of Chile, Argentina, Newzealand, and southern island of Australia,called Tasmani.
🔸 Climate:
This region receives rainfall throughout the year under the influence of Westerlies. the average annual rainfall is nearly 60 – 70cm.

Summers are infact never very warm and temperature above 20*C is rare; winters are abnormally mild & no station record a mean temp. of below freezing point.

Heat waves are a welcome feature in such cool temperate climate.

Account of the warming effect ,some ports even at Higher latitude remain operational throughout the year. the climate of this region is considered more comfortable for physical comfort and mental alertness. favourable climate is considered on the vital reason for high economic development in this region.

Relief can also make great differences in annual rainfall, hence it is difficult to say how much annual rainfall is typical for British type of climate..
🔸Type of vegetation:
This Region mainly consists of deciduous trees. Confires are found in latitude higher than 50 degree.

The open nature of the forests with sparse undergrowth is highly useful in logging operations as easy penetration means much cost can be saved in movement of the logs.

Higher up the mountains in Scavandian highlands, Rockies and Southern Alps of New Zealand, deciduous trees are generally replaced by conifers which can survive a higher altitude, a lower temperature & poorer soils.

The land in these region are extensively utilized .for example ,in England ,only 4% of land is converd with forest .wheat is the predominant crop grown in this region.
11.COOL TEMPERATE CONTINENTAL (SIBERIAN TYPE OF CLIMATE).

Cool temperate continental (Siberian) climate is only experienced in northern hemisphere, where the continents within the high latitudes have a broad east west spread.
On its poleward side, it merges into Arctic tundra of Canada & Eurasia at around Arctic Circle;
Southwards, the climate becomes less severe & fades into the temperate Steppe climate.
🔸Distribution:
This type of climate is confined to the northern hemisphere only because in the southern hemisphere, is absence of land mass in these latitude.

Annual range of temperature is quite high due to extremes of temperature observed in this type of climate, as temp. well below freezing point in winters and approx. 15° in summers.

In the northern hemisphere, it is confined to Alaska, Northern part of Canada ,Europe, and Asia region .In Russia , single longest stretch of coniferous forests in the reason is locally called Taiga.
🔸Climate:
These regions experience very high annual range of temperature. in Russia,the temperature range is in extremes on account of vast geographical extent of these reason and distance from the sea. consequently, the coldest inhabitable place in the world, verkhoyansk,is located in this region.
With low temperatures in cold season, heavy snowfall can be expected, with frost occurring as early as August
By September, most of the lakes & ponds are icebound; with the number of days in which the rivers are frozen, increases from south to north. As these regions are located in the interior of continents, the precipitation rainfall is 36 to 60 CM.the winter precipitation is in the form of Snow. this regions experience bitterly cold winter, and summer temperature is not exceed 10 degree Celsius .in North America and the east west extent of land mass is less ;thus, the temperature variability is also low.
🔸Type of vegetation:

No other trees are as well adapted as the conifers, to withstand such a severe inhospitable environment as Siberian type of climate.

Coniferous belts of Eurasia & North America are the richest sources of softwood; Used in construction, furniture, matches, paper & pulp, rayon & other chemical products.

USA is the leading producer in the production of wood pulp & Canada in newsprint, accounting for almost half of the world’s production.
On account of high latitudes,these regions are dominated by Coniferous forest .the characteristic feature of Coniferous forests are as follows:
■Coniferous forests are not very less dense.
■ They are conical in shape.
■ Coniferous forests are evergreen because their moisture requirement is low.
■ coniferous forest have homogeneous varieties of trees in one place.
■ There is little undergrowth in this forests. the leaves of these trees, when fall, at little humus to the Soil on account of less mass. Moreover, less availability of sunlight also hampers the development of undergrowth.
These forests can also be put to Commercial use it because these forests are not dense; their wood is light in weight and can be transported through rivers; and these forest carry homogeneous variety of trees at one place.

  1. COOL TEMPERATURE EASTERN MARGIN CLIMATE (LAURENTIAN TYPE ).

The Cool Temperate Eastern Margin (Laurentian) Climate is an intermediate type of climate between the British and the Siberian type of climate. It has features of both the maritime and the continental  climate. It is apparent from Fig. 153 that the Laurentian type of climate is found only in two regions.
🔸 Distribution:
This climate is confined to 45 to 65 degree latitude in the Eastern margin of the continents. in North America, this climate is experienced in Eastern Canada and north-Eastern United states,and in Asia, it is experienced in North -Eastern China and South Eastern Russia.
One is north-eastern North America, in­cluding eastern Canada, north-east U.S.A., (i.e. Maritime Provinces and the New England states), and Newfoundland. This climate is also called laurentian type because this climate is experienced in the laurentian plateau region of Canada.
🔸Climate:
These region receive rainfall of 50 to 60 CM. The rainfall is mainly on account of monsoon winds.
The annual range of temperature is around 25 degree Celsius. the monthly average temperature of the warmest month is up to 20 degree Celsius.
🔸Type of vegetation:
The region many has coniferous forest.
The predominant vegetation of the Laurentian type of climate is cool temperate forest. The heavy rainfall, the warm summers and the damp air from fogs, all favour the growth of trees. Generally speaking, the forest-tend to be coniferous north the 50°N. parallel of latitude.
🔸Human activity:
Lumbering and its associated timber, paper and pulp industries are the most important economic under­taking. Agriculture is less important in view of the severity of the winter and its long duration. Fortunately the maritime influence and the heavy rainfall enable some hardy crops to be raised for local needs.
the important fishing ground of the world are found in this region.some of these fishing Grounds are:
■ coast of Japan.
■ newfoundland in Canada.
The fishing Grounds exist in this reason on account of the following:
■ indented coastline provides calm water for plankton growth. the continental shelves are longer in length.
■ these are the places where cold and warm currents meet .at Newfoundland and in North America the labrador current and the North Atlantic drift meet. at the coast of Japan,the kureishi and bering currents meet.

  1. POLAR TYPE CLIMATE (ARCTIC TYPE).
    The climate of the Arctic is characterized by long, cold winters and short, cool summers. There is a large amount of variability in climate across the Arctic, but all regions experience extremes of solar radiation in both summer and winter. Some parts of the Arctic are covered by ice a year-round, and nearly all parts of the Arctic experience long periods with some form of ice on the surface.
    🔸Distribution:
    The polar type of climate and vegetation is found mainly north of the Arctic Circle in the northern hemisphere. The ice-caps are confined to Greenland and to the highlands of these high-latitude regions, where the ground is permanently snow-covered.
    This region is confined to the north of Arctic circle in the coastal strip of Greenland, northern and Canada, and the northern tip of Asia and Europe.
    🔸Climate: the range of temperature is very wide, with monthly average temperature of the warmest month up to 10 degree Celsius and the coldest month below -40 degree Celsius.
    The polar climate is characterized by a very low mean annual temperature and its warmest month in June seldom rises to more than 50°F. In mid-winter (January) temperatures are as low as -35°F. and much colder in the interior.
    At the North Pole, there are six months without light in winter. Despite the long duration of sunshine in summer, when the sun does not set, temperatures remain low because the sun is low in the sky and much of the warmth of its faint rays is either reflected by the ground snow, or used up in melting the ice. The predominant vegetation consists of legs hands and masses this vegetation is lichens and mosses.this vegetation is locally called Thunder in Russia. Arctic Tundra is found in the far northern hemisphere, north of the Taiga belt.
  2. 🔸 Human life:
    Human activities of the tundra are largely con­fined to the coast. Where plateaux and mountains increase the altitude, it is uninhabitable, for these are permanently snow-covered. The few people who live in the tundra live a semi-nomadic life and have to adapt themselves to the harsh environment. In Greenland North Canada and Alaska the tribal people ,Eskimos ,live.their homes are called igloos.the igloos are dome -shaped house,typically built from block of solid snow.
    Important mineral have been discovered in this region. it is estimated that more than 40% of global reserves of oil are confined to this reason
  3. 14.ALPINE TYPE OF CLIMATE.
  4. One simple definition is the climate which causes trees to fail to grow due to cold.
  5. the alpine climate proper which occurs when the mean biotemperature of a location is between 1.5 and 3 °C .
    This type of climate is found on the mountains. depending on the latitude and altitude ,various type of vegetation exist over mountains slopes.
    Deciduous forests are found at the foothills of the Himalayas. At even higher elevation are meadows ,and at the top of high Himalayas is the polar type of vegetation.
    On the other hand,the coniferous type of vegetation is found at the foothills of the Alps, and at Higher elevation of the alps is the polar type of vegetation.

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