नागवंशी शासन कब और किसके द्वारा स्थापित हुआ?
नागवंशी शासन व्यवस्था का प्रारंभ प्रथम शताब्दी में हुआ। राजा फनी मुकुट राय के द्वारा इसकी स्थापना 64Ad मैं हुई। मुंडा वंश का संस्थापक राजा सुतिया मुंडा के अंतिम उत्तराधिकारी राजा मद्रा मुंडा थे उन्होंने सभी पड़ा पंचायत के मंत्रियों से सलाह करने के बाद अपने दत्तक पुत्र फनी मुकुट राय को यह सत्ता सौंप दी। नाग वंश की स्थापना मुंडा राज्य के उत्तराधिकारी राज्य के रूप में हुआ था इसलिए नागवंशी राज मुंडा उनको अपना बड़ा भाई मानते थे और मुंडा ओं की परंपरागत शासन व्यवस्था मुंडा मानकी का आदर भी करते थे और अपने प्रशासनिक कार्यों के संचालन में उनका सहयोग प्राप्त करते थे।
नागवंशी शासक व्यवस्था को व्यवस्थित करने की क्या दृष्टि थी?
यह छोटा नागपुर के आसपास के क्षेत्रों में फैला था इसके साथ साथिया जाति वर्तमान में उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल के राज्यों में बसी हुई है। नागवंशी शासकों ने मुंडा शासन व्यवस्था में अनुकूल परिवर्तन करते हुए इसे अधिक विस्तारित करने का प्रयास किया तथा इसके शासनकाल में पूर्व की व्यवस्था कर व्यवस्था तथा शासन व्यवस्था का संचालन होता रहा।
मुगल काल में इस शासन व्यवस्था का क्या रूप था?
मुगल काल में नागवंशी राजाओं की स्थिति बदली और विशेषकर नागवंशी राजा दुर्जन साल को जब जहांगीर ने 12 साल के लिए बंदी बनाया और फिर रिहाई के बाद ₹6000 वार्षिक लगान देने को मजबूर किया तो इस क्षेत्र में प्रशासनिक स्वरूप बदल गया और आरंभ में नागवंशी राजाओं ने नियमित कर वसूली का जिम्मा मुंडा मानकी को ही सौंपा परंतु बाद में यह जिम्मेदारी जागीरदारों को दे दी गई जिसे जागीरदारी प्रथा का नाम दिया गया। सत्र मुगल बादशाह आलम शाह से अंग्रेजों को बंगाल बिहार और उड़ीसा का दीवानी अधिकार प्राप्त हुआ जिस पर आगे चलकर लॉर्ड कार्नवालिस ने 1793 में स्थाई बंदोबस्त लागू किया और इस प्रक्रिया में जमींदार को भूस्वामी बनाया गया। बस लागू होने के बाद जमींदारों ने इस क्षेत्र का जमकर शोषण किया और बड़े पैमाने पर जमीन से जुड़े अधिकारों में हेरफेर कर लिया इसी बीच नागवंशी शासन व्यवस्था कमजोर हुई तथा मुंडा मानकी का महत्व धार्मिक क्रियाकलापों तक ही सिमट कर रह गया। अंत में 1963 में बिहार जमीदारी उन्मूलन कानून लागू होने के बाद नागवंश का अंत हो गया और इसके अंतिम राजा चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव तथा अंतिम राजधानी रातू गढ़ रही।
नागवंशी शासन व्यवस्था में कर के क्या नियम थे?
इस शासन व्यवस्था में आम रैयतो से कर वसूली नहीं की जाती थी परिणाम का संपूर्ण राज्य के कार्य का भार नागवंशी शासन पर पड़ने लगा इस भार को कम करने हेतु नागवंशी राजाओं ने आम जनता से मालगुजारी वसूल ना प्रारंभ किया तथा इसे वसूलने की जिम्मेदारी पढ़हा कर मानकीयों को दे दिया गया।। इन मानकियों को नागवंशी शासन में भूईहर कहा जाने लगा। बाद में नागवंशी राजाओं द्वारा मालगुजारी वसूलने के लिए अलग जागीरदार रखे गए तथा इनके द्वारा मुगल बादशाह हो द्वारा मांगे जाने पर ही गुजारी दी जाती थी तथा इस अनियमित मालगुजारी को नजराना या पेशकश कहा जाता था।
नागवंशी शासन व्यवस्था किस तरह कार्य करती थी?
1..ग्राम स्तर पर : ग्राम स्तर पर कई अधिकारी अपने-अपने क्षेत्र और इलाकों में अलग-अलग जिम्मेवारियों का निर्वहन करते थे। ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले 22 अधिकारियों का वर्णन प्राप्त होता है। इनमें दो मुख्य थे- (a) महतो : गाँव का महत्वपूर्ण व्यक्ति महतो या महत्तम कहलाता था। (b) भण्डारी : राजा के गाँवों में खेती बारी करने तथा अन्न का भण्डारन करने हेतु इसकी नियुक्ति की जाती थी। (c) भण्डारीक : यह भण्डार गृह का प्रहरी होता था।
2.पट्टी स्तर पर : इस काल में परहा को पट्टी कहा जाने लगा तथा इस स्तर पर काम करने वाला अधिकारी मानकी अब भुईहर कहलाने लगा, जबकि परहा को पट्टी के नाम से जाना गया। यहा के मुख्य अधिकारी निम्न थे- (a) भूईहर : यह मानकी पद का ही बदला हुआ रूप था। परन्तु इस काल में भूईहर के न्यायिक एवं राजनीतिक अधिकार तो लंबे काल तक बने रहे जबकि उनके आर्थिक अधिकार में कटौती की गई। (b) जागीरदार : मुगलकाल में लगान वसूली करने हेतु इसकी नियुक्ति की गई। (c) पाहन : पड़हा में किसी भी प्रकार के आयोजन की व्यवस्था करना जैसे- बलि, भोज, प्रसाद आदि का कार्य करता था।
3.राज्य स्तर पर : नागवंशी राजा को महाराजा कहकर संबोधित किया जाता था तथा वह प्रशासन का सर्वोच्च बिन्दु था। महाराजा के सहयोगी अधिकारी दीवान, पाण्डेय, कुंअर, लाल, ठाकुर आदि नाम से जाने जाते थे, इन्हें राजा भी कहा जाता था और सामान्यतः राज्य परिवार से जुड़े सदस्य ही इन पदों पर बिठाये जाते थे। उदाहरण स्वरूप जरियागढ़ के राजा ठाकुर महेन्द्र नाथ शाहदेव थे तो बड़कागढ़ के राजा ठाकुमर विश्वनाथ शाहदेव आदि। राजा के प्रमुख सहयोगी अधिकारी निम्न थे- (a) दीवान : यह शासन में वित्तीय मामलों का प्रमुख था। (b) पाण्डेय : पंच में या पड़हा राजा की अनुमति से लिये गये निर्णय को मौखिक रूप से सभी को अवगत कराता था।
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