सर्वोच्च न्यायालय के कौन-कौन से कार्य है? सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार और शक्तियों का वर्णन करें?
उत्तर: सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता और शक्तियाँ उनकी प्रकृति एवं विस्तार के अनुसार किसी भी अन्य देश के सर्वोच्च न्यायालय की तुलना में अधिक है। अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय की तरह यह परिसंघीय न्यायालय, मूल अधिकारों का संरक्षण तथा संविधान का अंतिम व्याख्याकार है, जबकि इंग्लैंड के हाउस ऑफ लॉर्ड्स की न्यायिक समिति की तरह देश के सभी और आपराधिक मामलों में अपील का अंतिम न्यायालय भी है। सर्वोच्च न्यायालय को देश के सभी न्यायालयों, पंचायतों आदि का न्यायिक अधीक्षण करने की शक्ति प्राप्त है। यह उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को मंगवा सकता है एवं उसका निपटारा कर सकता है तथा एक उच्च न्यायालय से दूसरे में स्थानांतरित भी कर सकता है।
*सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार और शक्तियों को निम्न रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है-
- मौलिक अथवा आरंभिक क्षेत्राधिकार-
- अनुच्छेद 131 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मौलिक क्षेत्राधिकार का वर्णन किया गया है। ये मौलिक क्षेत्राधिकार ऐसे विवाद से संबंधित हैं, जिसमें विधि का या तथ्य का कोई प्रश्न अंतर्निहित है जिस पर कोई विधिक अधिकार का अस्तित्व अथवा विस्तार निर्भर करता है।
*इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय तीन तरह के मामलों की सुनवाई करता है –
- भारत सरकार तथा एक या अधिक संघ के राज्यों के बीच के विवाद।
- एक ओर भारत सरकार और किसी राज्य या राज्यों एवं दूसरी ओर एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच के विवाद।
- परस्पर दो या अधिक राज्यों के बीच का विवाद।
- ध्यातव्य है कि वैसे विवाद जो पूर्ववर्ती भारतीय रियासतों के साथ हुई संधियों से या किसी ऐसी रियासत द्वारा हस्तांतरित संधि से उत्पन्न हुए हों, सर्वोच्च न्यायालय के मौलिक अधिकारिता अथवा क्षेत्राधिकार के अंतर्गत शामिल नहीं किये जाते हैं।
*संविधान में कुछ अन्य अनुच्छेदों में वर्णित विषयों जैसे अनुच्छेद 262 के अंतर्गत अन्तर्राज्यीय जल आयोग संबंधी मामले अनुच्छेद 131 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में नहीं आते हैं।
- अपीलीय क्षेत्राधिकार-
*सर्वोच्च न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है तथा उसे उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध सुनने का अधिकार प्राप्त
है। - दूसरे शब्दों में यदि किसी उच्च न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश से कोई ऐसा प्रश्न जुड़ा है जो संविधान से संबद्ध ‘विधि का सारवान प्रश्न’ है और उच्च न्यायालय इस आशय का प्रमाण दे देता है तो सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी।
*आपराधिक अथवा फौजदारी मामले (अनुच्छेद 134) में उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है जब-
*किसी अपराधी को अधीनस्थ न्यायालय ने छोड़ दिया होता तथा अपील में उच्च न्यायालय ने उसे मृत्युदंड दिया हो। - किसी मामले को उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय से हटाकर अपने पास हस्तांतरित कर लिया हो तथा अपराधी को मृत्युदंड दिया हो।
- उच्च न्यायालय द्वारा प्रमाणित कर दिया जाए कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में सुनने योग्य है।
- अभिलेख न्यायालय की शक्तियाँ-
- सर्वोच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय के रूप में कार्य करता है अर्थात् आधिकारिक तौर पर प्रकाशित किए जाते हैं तथा उन्हें दृष्टांत स्वरूप मानकर उनके आधार पर निर्णय दिए जाते हैं। उसके द्वारा दिए गए निर्णय को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। सर्वोच्च न्यायालय को अपनी मानहानि के लिए भी दंडित करने का अधिकार प्राप्त है।
- रिट अधिकारिता-
- संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश निषेध अधिकार पृच्छा एवं उत्प्रेषण रिट जारी किए जा सकते हैं।
* यह रिट अधिकारिता संविधान के मूल ढाँचे का हिस्सा है। इसका अर्थ है कि संसद इस शक्ति को ना तो कम कर सकती है और न ही समाप्त। - परामर्शी/सलाहकारी अधिकारिता-
- संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार, जब कभी राष्ट्रपति को ऐसा लगे कि विधि या तथ्य से संबंधित कोई ऐसा प्रश्न उठा है अथवा उठने की संभावना है, जो सार्वजनिक महत्त्व का है अथवा जिसकी प्रकृति ऐसी है कि उस पर सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श लेना उचित होगा तो राष्ट्रपति उस प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख परामर्श हेतु भेज सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय उसकी सुनवाई कर उस पर अपना परामर्श राष्ट्रपति को भेज सकता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया गया परामर्श राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं होता।
- सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि यदि अनुच्छेद 143 के अंतर्गत उससे पूछा गया प्रश्न व्यर्थ है या अनावश्यक है तो वह उत्तर देने से मना कर सकता है।
- पुनर्विलोकन का अधिकार-
- अनुच्छेद 137 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णयों का पुनर्विलोकन करने का अधिकार प्राप्त है।
- यदि सर्वोच्च न्यायालय को यह प्रतीत हो कि उसके द्वारा दिए गए निर्णय में किसी पक्ष के प्रति न्याय नहीं हुआ है तो वह अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकता है तथा उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है।
- संविधान का संरक्षक-
- यदि कोई कानून संविधान का उल्लंघन करता है तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसे अवैध घोषित किया जा सकता है।
- संसद अथवा राज्य विधान मंडल द्वारा पारित कानून को संविधान के प्रावधानों के अनुरूप होना चाहिए उस पर अंकुश लगाने हेतु सर्वोच्च न्यायालय को अधिकार प्राप्त है।
- अन्य शक्तियाँ एवं अधिकारिताएँ-
- अनुच्छेद 137 सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करने तथा सुधारने की शक्ति देता है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जाँच करने एवं उन्हें प्रमाणित करने के उपरांत ही राष्ट्रपति द्वारा संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों को पदच्युत किया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की व्याख्या का अंतिम तथा पूर्ण अधिकार है जो उसे मुख्यतः अनुच्छेद 131, 132 तथा 133 से प्राप्त होता है।
- सर्वोच्च न्यायालय को देश के सभी न्यायालयों, पंचायतों आदि का न्यायिक अधीक्षण करने की शक्ति प्राप्त है।
- यह उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को मंगवा सकता है एवं उसका निपटारा कर सकता है तथा एक उच्च न्यायालय से दूसरे में स्थानांतरित भी कर सकता है।
- राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के संबंध में यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है तो उसका निपटान करने की शक्ति सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय के पास ही है।
संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के संरक्षक का कार्य भी प्रदान किया है। इसका तात्पर्य यह है कि सर्वोच्च न्यायालय को कानूनों की वैधता की जाँच करने का अधिकार प्राप्त है। इसे ही ‘न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार’ कहते हैं।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की योग्यता क्या है?
उत्तर: भारत का उच्चतम न्यायालय या भारत का सर्वोच्च न्यायालय या भारतीय सुप्रीम कोर्ट भारत का शीर्ष न्यायिक प्राधिकरण है जिसे भारत का संविधान/भारतीय संविधान के भाग 5 अध्याय 4 के तहत स्थापित किया गया है। भारतीय संघ की अधिकतम और व्यापक न्यायिक अधिकारिता उच्चतम न्यायालय को प्राप्त हैं। भारत का संविधान/भारतीय संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय की भूमिका संघीय न्यायालय और भारत का संविधान/भारतीय संविधान के संरक्षक की है। भारत का संविधान/भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक में वर्णित नियम उच्चतम न्यायालय की संरचना और अधिकार क्षेत्रों की नींव हैं। उच्चतम न्यायालय सबसे उच्च अपीलीय अदालत है जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च न्यायालय/उच्च न्यायालयों के फैसलों के विरुद्ध अपील सुनता है। इसके अलावा, राज्यों के बीच के विवादों या मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों के गंभीर उल्लंघन से सम्बन्धित याचिकाओं को आमतौर पर उच्चतम न्यायालय के समक्ष सीधे रखा जाता है। भारत के उच्चतम न्यायालय की स्थापना 28 जनवरी 1950 को हुआ और उसके बाद से इसके द्वारा 24,000 से अधिक निर्णय दिए जा चुके हैं। न्यान्याधीशों के वेतन और भत्ते- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 125 मे कहा गया कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन व भत्ते दिये जाए जो संसद (भारत की संचित) निधि निर्मित करे। न्यायाधीश के लिए वेतन भत्ते अधिनियम 1जनवरी 2009 के अनुसार उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 2,80,000 मासिक आय और न्यायाधीश को 2,50,000 मासिक आय प्राप्त हुए है। निःशुल्क आवास, मनोरंजन स्टाफ, कार और यातायात भत्ता मिलता है। इनके लिए वेतन संसद तय करती है जो कि संचित निधि से पारित होती है। कार्यकाल के दौरान वेतन मे कोई कटौती नही होती है। न्यायाधीश के कार्यकाल- 65 वर्ष की आयु। वर्तमान में उच्चतम न्यायलाय के मुख्य न्यायधीश नूतलपाटि वेंकटरमण हैं।
उच्चतम न्यायालय भवन के मुख्य ब्लॉक को भारत की राजधानी नई दिल्ली में तिलक रोड स्थित 22 एकड़ जमीन के एक वर्गाकार भूखंड पर बनाया गया है। निर्माण का डिजाइन केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के प्रथम भारतीय अध्यक्ष मुख्य वास्तुकार गणेश भीकाजी देवलालीकर द्वारा इंडो-ब्रिटिश स्थापत्य शैली में बनाया गया था। न्यायालय 1958 में वर्तमान इमारत में स्थानान्तरित किया गया। भवन को न्याय के तराजू की छवि देने की वास्तुकारों की कोशिश के अंतर्गत भवन के केन्द्रीय ब्लाक को इस तरह बनाया गया है की वह तराजू के केन्द्रीय बीम की तरह लगे। 1979 में दो नए हिस्से पूर्व विंग और पश्चिम विंग को 1958 में बने परिसर में जोड़ा गया। कुल मिलकर इस परिसर में 15[4] अदालती कमरे हैं। मुख्य न्यायाधीश की अदालत, जो कि केन्द्रीय विंग के केंद्र में स्थित है सबसे बड़ा अदालती कार्यवाही का कमरा है। इसमें एक ऊंची छत के साथ एक बड़ा गुंबद भी है।
*उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति संपादित करें
संविधान में तैतीस (33) न्यायधीश तथा एक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति का प्रावधान है। उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के परामर्शानुसार की जाती है। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इस प्रसंग में राष्ट्रपति को परामर्श देने से पूर्व अनिवार्य रूप से चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समूह से परामर्श प्राप्त करते हैं तथा इस समूह से प्राप्त परामर्श के आधार पर राष्ट्रपति को परामर्श देते हैं।
अनु 124[2] के अनुसार मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह लेगा। वहीं अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के समय उसे अनिवार्य रूप से मुख्य न्यायाधीश की सलाह माननी पड़ेगी!
- सर्वोच्च न्यायालय एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाद 1993 मे दिये गये निर्णय के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण इस प्रकार की प्रक्रिया है जो सर्वाधिक योग्य उपलब्ध व्यक्तियों की नियुक्ति की जा सके। भारत के मुख्य न्यायाधीश का मत प्राथमिकता पायेगा। उच्च न्यायपालिका मे कोई नियुक्ति बिना उनकी सहमति के नहीं होती है। संवैधानिक सत्ताओं के संघर्ष के समय भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायपालिका का प्रतिनिधित्व करेगा। राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश को अपने मत पर फिर से विचार करने को तभी कहेगा जब इस हेतु कोई तार्किक कारण मौजूद होगा। पुनः विचार के बाद उसका मत राष्ट्रपति पर बाध्यकारी होगा यद्यपि अपना मत प्रकट करते समय वह उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठम न्यायधीशों का मत अवश्य लेगा। पुनःविचार की स्थिति में फिर से उसे दो वरिष्ठम न्यायधीशों की राय लेनी होगी वह चाहे तो उच्च न्यायालय/उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की राय भी ले सकता है लेकिन सभी राय सदैव लिखित में होगी
बाद में अपना मत बदलते हुए न्यायालय ने कम से कम 4 जजों के साथ सलाह करना अनिवार्य कर दिया था। वह कोई भी सलाह राष्ट्रपति को अग्रेषित नहीं करेगा यदि दो या अधिक न्यायाधीशों की सलाह इसके विरूद्ध हो किंतु 4 न्यायाधीशों की सलाह उसे अन्य न्यायाधीशों जिनसे वो चाहे, सलाह लेने से नहीं रोकेगी।