Share it

सीखने या अधिगम का अर्थ (Meaning of Learning)-
हमारे दैनिक जीवन में सीखने का बहुत महत्त्व है। जन्म के समय व्यक्ति असहाय होता है। धीरे-धीरे वह वातावरण के संपर्क में आता है और वातावरण के अनुसार स्वयं को बनाने का प्रयास करता है। इस क्रिया में वह अपने तथा परिवार व समाज के अन्य व्यक्तियों से भी लाभ उठाता है, जिसके फलस्वरूप उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। भाषा बोलना, पढ़ना, लिखना तथा बहुत सी अन्य आदतें भी हम सीखते हैं, जिसके कारण हमारा व्यवहार समाज के अनुरूप हो जाता है। हमारे व्यक्तित्व के बहुत से शीलगुणों का निर्माण भी सीखने के आधार पर ही होता है। वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति या जीव में कुछ जन्मजात संस्कार होते हैं जो उसकी प्राथमिक प्रतिक्रिया का निर्धारण करते हैं और इन्हीं प्रतिक्रियाओं के द्वारा व्यक्ति स्वयं को बाह्य वातावरण के अनुकूल बनाने का प्रयास करता है। बाह्य वातावरण के प्रति उपयुक्त प्रतिक्रिया को ग्रहण करना ही मनोविज्ञान में सीखना कहलाता है। उदाहरण के तौर पर भूख की स्थिति में बन्दर की छीनने की प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक होगी, परन्तु एक बालक के माँगने की प्रतिक्रिया सीखने का परिणाम होगा। सीखना एक प्रक्रिया है। इसके फलस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन होता है। सीखने से व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों में अभ्यास का बहुत महत्त्व है। अभ्यास के अभाव में व्यवहार में होने वाले परिवर्तन सीखने से सम्बन्धित नहीं होते। सीखने से व्यवहार में होने वाले परिवर्तन अपेक्षाकृत स्थायी होते हैं।

मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति कुछ मूल-प्रवृत्तियाँ लेकर जन्म लेता है तथा उन मूल-प्रवृत्तियों की तृप्ति अधिगम पर निर्भर करती है। अधिगम इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ही संसार का यह विकास संभव हो सका है। अतः सीखने की यह प्रक्रिया बहुत ही विस्तृत प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करने से पहले यह जानना अति आवश्यक है कि सीखना या अधिगम क्या है? सीखने की विशेषताएँ क्या हैं? सीखने के सिद्धान्त कौन-कौन से हैं? इत्यादि।

अधिगम शिक्षा मनोविज्ञान का केन्द्रविन्दु है। अधिगम शिक्षा मनोविज्ञान का दिल है। शिक्षा के पात्र में अधिगम का एक विशेष महत्त्व है, क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य ही सीखना (अधिगम) है। शिक्षा देने का अर्थ सीखना है। हम यह कह सकते हैं-Learning is the heart of all education. All education is an attempt to learn.

  1. अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions)-विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम की अलग-अलग दृष्टिकोणों से व्याख्या की है तथा विभिन्न परिभाषाएं दी हैं। व्यवहारवादियों (Behaviourists) के अनुसार-अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन ही सीखना या अधिगम है। बच्चा जन्म से ही अपने वातावरण से अनुभव ग्रहण करके अपने व्यवहार में परिवर्तन लाता है।

सम्पूर्णवाद या गैस्टाल्ट दृष्टिकोण (Gestalt Viero) के अनुसार सीखने का आधार ‘सम्पूर्ण ढाँचे’ का अवलोकन करके ज्ञान प्राप्त करना है। सम्पूर्ण स्थिति के प्रति क्रिया करना ही सीखना है।

इसी प्रकार होरमिक दृष्टिकोण (Hormic View) लक्ष्य केन्द्रित स्वरूप पर जोर देता है अर्थात् सीखना लक्ष्य को सामने रखकर किया जाता है।

प्रयत्न और भूल दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्ति कई प्रयास करता है तथा कई भूलें भी करता है, तब जाकर कुछ सीख पाता है। इसका प्रतिपादन थॉर्नडाइक ने किया था।

कुर्ट लेविन (Kurt Lewin) ने सीखने का फील्ड दृष्टिकोण (Field View of Learning) प्रस्तुत किया तथा यह स्पष्ट किया कि सीखना परिस्थिति का प्रत्यक्ष ज्ञानात्मक संगठन है और सीखने में प्रेरणा की महत्त्वपूर्ण भूमिका एवं स्थान है।

वुडवर्य (Woodworth) के अनुसार-‘अधिगम नए ज्ञान और नई अनुक्रियाओं को ग्रहण करने की एक प्रक्रिया है।’ (The process of acquiring nero knowledge and nero responses is the process of Learning.)

क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) ने भी अधिगम को आदतों, ज्ञान एवं अभिवृत्तियों को ग्रहण करना बताया है। (Learning is the acquisition of habits, knowledge and attitude.)

जे. पी. गिलफोर्ड (J.P.Gillford) ने व्यवहार से व्यवहार में परिवर्तन को ही अधिगम माना है। (Learning is any change in behaviour resulting from behaviour.)

क्रॉनक (Cronbach) ने कहा कि अनुभव का पारणामस्वरूप व्यवहार परिवर्तन ही अधिगम है। (Learning is shown by a change in behaviour as a result of experience.)

पैवलव (Pavlov) ने अनुक्रिया द्वारा आदतों के निर्माण को ही अधिगम माना है। (Learning in habit formation resulting from conditioning.)

गेट्स (Gates) के अनुसार-“सीखना अनुभव द्वारा व्यवहार का शोध है।” (Learning is modification of behaviour through experience.)

किंग्सले तथा गैरी (Kingsley and Garry) के अनुसार-“शोषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यवहार की अभ्यास या ट्रेनिंग द्वारा उत्पत्ति होती है या उसमें परिवर्तन होता है।” (Learning is a process by which behaviour is originated or change through practice or training.)

कॉलविन (Colvin) के अनुसार-“पहले से निर्मित व्यवहार में अनुभव द्वारा हुए परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।” (Learning is the modification of our readymade behaviour due to experience.)

जी. डी. बाज (G.D. Boaz) के अनुसार-“अधिगम एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति विभिन्न आदतें, ज्ञान एवं दृष्टिकोण सामान्य जीवन की माँगों की पूर्ति के लिये अर्जित करता है।” (Learming is the process by which the individual acquires habits, knowledge and attitude that are necessary to meet the demand of life in general.)

प्रेसी (Pressy) ने कहा है कि अधिगम एक ऐसा अनुभव है जिसके द्वारा कार्य में परिवर्तन या समायोजन होता है तथा व्यवहार की नई विधि प्राप्त होती है।” (Learning represents experience that leads to a change or adjustment in performance and to the acquisition of new ways of behaving.)

सी. ई. स्किनर (C.E.Skinner) के शब्दों में-“व्यवहार के अर्जन में प्रगति की प्रक्रिया को अधिगम कहते हैं।” (Learnting is the process of progressive behaviour adoption.)

उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन एवं विश्लेषण के परिणामस्वरूप अधिगम के सम्बन्ध में कुछ तथ्य स्पष्ट होते हैं, जैसे-

(1) अधिगम व्यवहार परिवर्तन है।
(2) अधिगम व्यवहार का संगठन है।
(3) अधिगम नवीन प्रक्रिया की पुष्टि है।
परन्तु वास्तविकता यह है कि व्यवहार परिवर्तन, व्यवहार संगठन तथा पुष्टिकरण में कोई भी एक कारण अधिगम के लिये पूरी तरह उत्तरदायी नहीं है।
समय के अनुसार भी अधिगम का अर्थ स्पष्ट किया गया है, जैसे-

(1) प्राचीन मत के अनुसार अधिगम एक व्यापक शब्द है। इसमें बच्चों को प्रभावित करने वाली सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है। बच्चे के बड़े होने की प्रक्रिया के साथ-साथ उसके मस्तिष्क का भी विकास होता रहता है। जिसके परिणामस्वरूप उसके व्यवहार में परिवर्तन आते रहते हैं। अनुभवों से बच्चा सीखता रहता है।

(2) इसके पश्चात् मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अधिगम की व्याख्या उद्दीपन-प्रक्रिया (Stimulus Response) के सम्बन्ध के रूप में भी की गई है। उसके अनुसार उद्दीपन और अनुक्रिया में सम्बन्ध का स्थापित होना ही अधिगम कहलाता है।

इस प्रकार अधिगम के सम्बन्ध में कुछ और भी तथ्य हमारे समक्ष आते हैं, जैसे-
(1) अधिगम एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक के व्यवहार में परिवर्तन आते हैं।
(2) अधिगम का अनुमान व्यवहार में परिवर्तनों के आधार पर ही लगाया जाता है।
(3) ये परिवर्तन किसी भी दिशा में अर्थात् धनात्मक या निषेधात्मक हो सकते हैं।
(4) अधिगम के परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तन स्थाई होते हैं।
(5) व्यवहार में होने वाले परिवर्तन अभ्यास के फलस्वरूप होते हैं।

अतः निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि सीखना एक प्रक्रिया है। इसके फलस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन होता है। सीखने से व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों में अभ्यास का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। अभ्यास के अभाव में व्यक्ति के व्यवहार में होने वाले परिवर्तन सीखने से सम्बन्धित नहीं होते। सीखने के कारण व्यवहार में होने वाले परिवर्तन अपेक्षाकृत स्थायी होते हैं। अन्य शब्दों में, ये कुछ समय तक रहने बाले परिवर्तनों की भांति पूर्णतया स्थायी नहीं होते। सीखने की सहायता से जीव ना प्राणी वातावरण की परिवर्तनशील परिस्थितियों से समायोजन स्थापित करते हैं अर्थात् सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत अनुभव एवं प्रशिक्षण के माध्यम से सीखने वाले व्यवहार में अपेक्षाकृत स्थायी किस्म के परिवर्तन लाये जाते हैं।

  1. अधिगम या सीखने की विशेषताएं (Characteristics of Learning)-अधिगम पर सीखने की प्रक्रिया की अपनी कुछ विशेषताएं हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

(1) अधिगम निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है (Learning is aContinuous Process)- अधिगम की प्रक्रिया माँ के गर्भ से ही प्रारम्भ हो जाती है। जन्म होने के पश्चात् बच्चा वातावरण से प्राप्त अनुभवों के द्वारा कुशलता अर्जित करता है। अतः अधिगम हर प्रकार से अर्थात् औपचारिक- अनौपचारिक रूप से तथा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जीवन भर चलता ही रहता है। अधिगम को उत्पादन (Product) न मानकर उसे प्रक्रिया माना जाता तथा इस प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति में ज्ञान, कौशल, आदतों, अभिवृत्तियों तथा अभिरुचियों का विकास होता रहता है। अधिगम का परिणाम ज्ञान के संचय के रूप में होता है तथा यह संचय जीवन भर होता है।

(2) अधिगम व्यवहार में परिवर्तन है (Learning is Change in Behaviour)-सीखने की प्रक्रिया का परिणाम व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन के रूप में प्राप्त किया जाता है। सीखना किसी भी प्रकार का क्यों न हो-परिणाम वही होगा अर्थात् व्यवहार में परिवर्तन। यह परिवर्तन किसी भी रूप में हो सकता है। लेकिन सीखने की प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखना ही पड़ेगा कि ये परिवर्तन वांछित दिशा तथा बांछित रूपम हों अर्थात् ये परिवर्तन सकारात्मक दिशा में हों।

(3) अधिगम सार्वभौमिक प्रक्रिया है (Learning is a Universal Process)-अधिगम प्रक्रिया एक सार्वभौमिक प्रक्रिया मानी गई है। क्योंकि सीखना किसी एक देश, जाति या धर्म का ही अधिकार नहीं है। यह तो सभी के लिये है, हर स्थान के लिये है, हर जाति तथा हर धर्म के लिये है। हर व्यक्ति सीखने की पूरी क्षमता रखता है। अवसरों की आवश्यकता रहती है। सीखने में जो अन्तर दिखाई देता है वह अवसरों में भिन्नता के कारण ही होता है।

(4) अधिगम समायोजन की प्रक्रिया है (Learning is Adjustment)-अधिगम का समायोजन में विशेष योगदान होता है। जन्म के समय बच्चा शत्-प्रतिशत दूसरों पर आश्रित होता है। लेकिन समय के साथ-साथ उसे अपनी आन्तरिक अनुक्रियाओं को बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार दालना पड़ता है। वह सर्वप्रथम अपने वातावरण के साथ समायोजन स्थापित करता है, लेकिन इस समायोजन का आधार उसका अधिगम ही होता है।

(5) अधिगम उद्देश्यपूर्ण एवं लक्ष्य केन्द्रित है (Learning is Purposive and Goal-Oriented) -अधिगम हमेशा लक्ष्य केन्द्रित एवं उद्देश्यपूर्ण होगा। यदि हमारे पास कोई उद्देश्य और लक्ष्य नहीं है तो अधिगम प्रक्रिया का प्रभाव किसी भी रूप में दिखाई नहीं देगा। सीखने की प्रक्रिया के माध्यम से हम किसी पूर्व निर्धारित लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं। जैसे-जैसे हम सीखते जाते हैं, वैसे-वैसे हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाते हैं।

(6) अधिगम विकास की प्रक्रिया है (Learning is Process of Development)-अधिगम किसी भी दिशा में हो सकता है-वांछित या अवांछित (Desirable or undesirable) लेकिन हमारा सम्बन्ध तो व्यक्ति के वांछित दिशा में विकास से होता है। कोई बालक यदि चोरी करना या जेब काटना सीखता है तो भी अधिगम है लेकिन यह अवांछित है। समाज ऐसा विकास कभी नहीं चाहेगा। अतः अधिगम को हमेशा विकास के दृष्टिकोण से ही देखा जाता है।

(7) अधिगम अनुभवों की नई व्यवस्था है (Learning is New Organisation of Experience) -अधिगम या सीखने का आधार है-नवीन अनुभव ग्रहण करने। उन्हें नये अनुभवों के परिणामस्वरूप ही व्यवहार में परिवर्तन आते हैं। पुराने अनुभवों के आधार पर नये नये अनुभव प्राप्त होते हैं तथा एक नई व्यवस्था जन्म लेती है।

(8) अधिगम क्रिया और वातावरण का परिणाम है (Learning is the Product of Activity and Environment)-अधिगम प्रक्रिया के लिए वातावरण के साथ अन्तःक्रिया करण मूलरूप से अनिवार्य है। बिना इस अन्तःक्रिया के अधिगम प्रक्रिया का कोई परिणाम संभव नहीं हो सकता। वातावरण के साथ बच्चों की अन्तःक्रिया जितनी अधिक होगी, उतना ही उन बच्चों का अधिगम अधिक होगा। अतः बिना किसी क्रिया एवं अन्तःक्रिया के अधिगम का कोई परिणाम नहीं हो सकता। यही अन्तःक्रिया बच्चों को अनुभव प्रदान करती है तथा उन्हीं अनुभवों के परिणामस्वरूप बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन होते हैं।

(9) अधिगम शिक्षण-अधिगम उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक (Learning Helps in Achieving Teaching-Learning Objectives)-शिक्षा अधिगम परिस्थितियों में शिक्षण-अधिगम के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं जिन्हें प्राप्त करने के लिये अधिगम प्रक्रिया का सहारा लेना पड़ता है तथा अधिगम, प्रक्रिया को प्रभावी ज्ञान, सूझबूझ, रुचियां, कुशलताएं तथा दृष्टिकोणों का विकास किया जा सकता है। इन्हें अर्जित करने पश्चात् ही व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन अपेक्षित होता है अर्थात् शिक्षण अधिगम उद्देश्यों को प्राप्त करने में अधिगम प्रक्रिया ही मुख्य साधन है।

(10) अधिगम का स्थानान्तरण होता है (Learning is Transferable)-किसी एक परिस्थिति में अर्जित किया गया अधिगम दूसरी अन्य परिस्थिति में स्थानान्तरित होने में सूक्ष्म होता है। एक स्थिति में अर्जित ज्ञान दूसरी अन्य परिस्थिति में ज्ञान की प्राप्ति के लिये सहायक सिद्ध होता है। इसी को अधिगम का स्थानान्तरण (Transfer of Learning) कहते हैं। कई बार यह पूर्व अर्जित ज्ञान नव-ज्ञान को अर्जित करने में बाधा भी पैदा कर सकता है।

(11) अधिगम का सम्बन्ध व्यक्तिगत और सामाजिक आवश्यकताओं से है (Learning is Related to Individual and Social Needs)-व्यक्ति सामाजिक प्राणी है तथा समाज का अभिन्न अंग है। वह समाज में रहकर ही अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है। हर व्यक्ति की विभिन्न आवश्यकताएं होती हैं, जोकि शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक या धार्मिक हो सकती हैं। लेकिन सभी व्यक्तियों की सभी आवश्यकताएं कभी भी पूर्ण नहीं होतीं। ऐसी स्थिति में वह अपनी आवश्यकताओं को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। इसी नियंत्रण करने की प्रक्रिया को परिस्थितियों के अनुकूल ढालना’ कहते हैं। अतः अधिगम प्रक्रिया व्यक्ति और आवश्यकताओं में संतुलन पैदा करती है। सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति की अधिगम प्रक्रिया प्रभावी नहीं रहती।

(12) अधिगम व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक है (Learning is Helps AII-Round Development of Personality)-हर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का संतुलित तथा सर्वांगीण विकास चाहता है। संतुलित और सर्वांगीण विकास में अधिक प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

(13) अधिगम अनुसंधान करता है (Learning is Research)-अनुसंधान करना अधिगम होता है। अनुसंधान के दौरान व्यक्ति विभिन्न प्रयास करता है तथा कई क्रियाएं करने के पश्चात् किसी एक परिणाम पर भी पहुँचता है। इस दृष्टि से अनुसंधान करना भी अधिगम है।

(14) अधिगम चेतन और अचेतन अनुभव है (Learning is Determined by Conscious as Well as Unconscious Experience)-अधिगम चेतन और अचेतन अनुभवों द्वारा निर्धारित होता है। यह सीखने वाले व्यक्ति द्वारा जानबूझकर या अनजाने में अर्जित किया जाता है।

(15) अधिगम द्वारा व्यवहार के सभी पक्ष प्रभावित है (AIIModes of Behaviour are Affected by Learning)-अधिगम व्यवहार के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है, इनमें कौशल, ज्ञान, दृष्टिकोण, व्यक्तित्व, अभिप्रेरणा, भय, शिष्टाचार इत्यादि शामिल हैं।

(16) अधिगम जीवन की मूलभूत प्रक्रिया है (Learning is the Fundamental Process of Life)-अधिगम को जीवन की मूलभूत प्रक्रिया माना गया है। इसके बिना जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं है और न ही किसी प्रकार की प्रगति संभव है। यह सभ्यता की प्रगति के लिये आपार का कार्य करता है।


Share it