Share it

By vinayias desk saf

सिंचाई प्रणाली (Irrigation Systems) :
नहर सिंचाईCanal system
कुएं व नलकूप (well/ Tubewell)
तालाब (Tanks)

भारत में सिंचाई प्रणाली :
भारत एक कृषि प्रधान देश है और खाद्यान्न के लिए एक भारी जनसंख्या कृषि क्षेत्र पर निर्भर करती है इसलिए यह कहना ग़लत नहीं होगा कि सिंचाई प्रणाली भारत की रीढ़ की हड्डी है । चूंकि भारत में कृषि वर्षा पर निर्भर करती है और वर्षा ऋतु देश में केवल 4 महीने के लिए हीं आती है जिसके समय, प्रभाव व परिमाण का सामान्यतः अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है । और हमें पूरे देश में जल का एक समान वितरण देखने को नहीं मिलता है तथा असमान वितरण होने के कारण जल का इस्तेमाल कुशल तरीके से नहीं हो पाता है । साथ ही साथ बहुत सारे बारिश के पानी यूं ही बहकर नष्ट हो जाते हैं । इस सब के अलावा दुसरे मौसमों में पानी की काफी किल्लत होती है । दुसरी ओर कुछ ऐसी विशेष फसलें हैं जिनके लिए अधिक जल की जरूरत होती है जिसकी पूर्ति कृत्रिम तरीके से करनी होती है । जिसके लिए सिंचाई प्रणाली का उपयोग कर फसलों की जल की आपूर्ति के साथ साथ उसकी उत्पादकता को बढ़ावा दिया जा रहा है । देश में नदी प्रणालियां एक बहुत बड़ा प्राकृतिक जल संसाधन है जिसके जल का उपयोग कर फसलों की सिंचाई की जा सकती है । इस प्रकार प्रकृति स्वयं देश में सिंचाई के विकास को बढ़ावा देने में मददगार हो रहे हैं । vinayiasacademy.com

भारत में सिंचाई के स्रोत :
भारत की भौगोलिक परिस्थितियाँ ऐसी है जिसमें पूरे भारत में पानी का एक समान वितरण नहीं होता है । जिसके कारण अलग अलग राज्यों में अलग अलग प्रकार के सिंचाई के स्रोत उपयोग किए जाते हैं । जैसे कि उदाहरण के लिए हम देखते हैं कि उत्तरी भारत में नहरों तथा कुओं के द्वारा सिंचाई की जाती है वहीं दक्षिणी भारत में तालाब का प्रयोग कर सिंचाई की जाती है । तो हम कह सकते है कि भारत में सिंचाई के लिए मुख्यतः नहरों, कुओं तथा तालाबों को सिंचाई के स्रोत के रूप में उपयोग में लाया जाता है । vinayiasacademy.com

भारत में सिंचाई के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है :
I. नहर द्वारा सिंचाई :
नहरे कृत्रिम संरचना है जिसका प्रयोग खेतों की सिंचाई के लिए जल को एक जगह से दूसरे जगह तक पहुंचाने के काम में लाई जाती है । नहरों का निर्माण नदियों के पानी को अलग अलग क्षेत्रों में सिंचाई हेतु पहुंचाने के लिए किया जाता है । देश की एक बड़ी जनसंख्या कृषि उत्पादन के लिए नहर सिंचाई प्रणाली पर निर्भर करती है । vinayiasacademy.com
सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण इस तरह से किया जाता है कि यह ऐसे रास्तों से ले जाया सके जहां पर से नहरों के दोनों किनारों की ओर से पानी निकल कर खेतों में सिंचाई के लिए उपयोग में लाई जा सके । नहरों का निर्माण इस वजह से भी किया जाता है क्योंकि कुछ ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां पर कृषि ऊंची जगह पर की जाती है और इसके विपरीत जो दूसरे जल संसाधन है जैसे कि नदियां, नाले वह क्षेत्र के नीचे नीचे से होकर जाती है जिससे कि वहां का पानी खेती के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता है इसलिए यहां पर नहरों का निर्माण किया जाता है जो की दो बड़ी बड़ी नदियों के बीच ऊंची जगह पर से निकालकर बनाई जाती है । जिससे ऊंची ऊंची जगहों पर भी आसानी से सिंचाई की जा सकती है । vinayiasacademy.com
भारत में कृषि क्षेत्र के कुल सिंचाई वाली जमीन का लगभग 39 प्रतिशत भाग नहरों के पानी से सींचा जाता है । भारत मुख्य तौर से नहरों द्वारा सिंचाई में आधारित है । भारत के उत्तरी पश्चिमी शहरों नहरों द्वारा सिंचाई काफी प्रसिद्ध है । vinayiasacademy.com
चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि ज्यादातर सिंचाई के जल पर ही आश्रित रहती है तो सिंचाई के लिए नेहरों के निर्माण के साथ ही उनको अच्छे कंडीशन में रखना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है जिसके संचालन के लिए बहुत से विशेष नियम कानून बनाए गए हैं जिनके अंतर्गत नहर विभाग कार्यरत है । vinayiasacademy.com
नदियों और नालों की तरह नहर भी अलग अलग शाखाओं में बंट जाते हैं और इन शाखाओं को आगे बढ़कर छोटे-छोटे नहरे जिन्हें माइनर (minor) या बंबे कहते हैं उसमें बांट दिया जाता है जिनसे फिर कुलाबे, मौधै या आउटलेट (outlet) के द्वारा पानी निकाल कर खेतों को सींचा जाता है । यह सब वितरण वैज्ञानिक रूप से एक निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार किया जाता है जिससे नहरों का पानी सैकड़ों मीलों दूर तक आसानी से पहुंचे तथा पानी की ज्यादा हानि ना हो सके । इन सिद्धांतों को निर्धारित करने एवं नहर निर्माण का काम कुशलतापूर्वक करने के लिए सरकारी विभाग स्थापित किए गए हैं इनमें कई कुशल इंजीनियर रखे गए हैं जो नहरों के निर्माण के साथ ही साथ अच्छी देख रेख भी करते हैं तथा खेतों की सिंचाई के लिए उनके अनुसार निर्धारित मात्रा में पानी खेतों में पहुंचाने का काम भी करते हैं । इसके अलावा नहरों से संबंधित कोई भी समस्या उत्पन्न होती है तो उसका समाधान करने का उत्तरदायित्व भी इंजीनियर के ऊपर ही होता है । vinayiasacademy.com नहरों में पानी निकालने के साथ साथ उसकी गति पर भी खासा ध्यान देने की जरूरत पड़ती है ताकि उससे नहरों में कटाव या तलछट के जमा होने जैसी समस्या उत्पन्न ना हो । तथा आवश्यकता के अनुसार नहर के रास्ते में जल प्राप्त का भी निर्माण किया जाता है । जिससे नहरों को एक निर्धारित और नियमित दशा में रखा जा सके । नहरों में जल निकास (escape) का भी निर्माण किया जाता है । जिसका उपयोग किसी टूट फूट या आपदा या आवश्यकता ना रहने पर अतिरिक्त पानी को बाहर निकाल कर कोई निकटवर्ती नदी व नालो में पहुंचा दिया जाता है । ऐसा तभी होता है जब नहर में पानी भरा हो । और साथ ही में उस क्षेत्र में भारी वर्षा हो जाए जिससे खेतों में पानी की मांग को वर्षा जल से पूरा किया जा कर दिया गया हो और नहरों के पानी की आवश्यकता ना हो, तो ऐसी अवस्था में कुलाबों और मैधों को बंद कर दिया जाता है जिससे नहरों में पानी अत्यधिक मात्रा में भर बढ़ जाती है और नहर इस पानी को साध नहीं सकता । अतः इस पानी को निकास द्वारा निकालकर नदी व नालों में पहुंचा दिया जाता है । vinayiasacademy.com

खेतों में नहरों द्वारा सिंचाई करने के निम्नलिखित कारण हैं –
यहां पर नदियां साल भर बहती रहती है जिससे की इनसे नहर निकाल कर खेतों में सिंचाई करना मुमकिन हो जाता है ।
यहां के कृषि क्षेत्र की मिट्टी कोमल व मुलायम होती है, जिससे नहर आसानी से निकाली जा सकती है । vinayiasacademy.com
ऐसे क्षेत्रों की मिट्टी काफी उपजाऊ होती है परन्तु वर्षा की कमी की वजह से कृषि में समस्या उत्पन्न होती है परन्तु नहरों के निर्माण से पानी की मांग को पूरा किया जा सकता है ।
ऐसे क्षेत्रों में खेत में ढलान काफी देखने को मिलता है तो यहां पर नहरों के द्वारा पानी को ढलान की सहायता से दुर दुर तक पहुंचाया जा सकता है जिससे खेतों को सिंचना बहुत आसान हो जाता है । vinayiasacademy.com
नहरों द्वारा सिंचाई के गुण
नहरों की सहायता से ऐसे क्षेत्रों में सिंचाई का काम साल भर चलता है क्योंकि नहर नदियों के द्वारा पूरे साल जल प्रदान करती है ।
नहर का निर्माण नदियों द्वारा होता है और क्योंकि नदियां पर्वतों से उपजाऊ मिट्टी लेकर आती है जो नहर के द्वारा खेतों में पहुंचाई जाती है जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बहुत बढ़ जाती है इससे कृषि के उत्पादन में भी वृद्धि देखने को मिलती है ‌।
नहरों का निर्माण जल को एक जगह से दूसरे जगह दूर-दूर तक पहुंचाने के लिए होता है । तो ऐसे सुदूर क्षेत्र जहां पर जल की कमी होती है तो वहां पर नहरों द्वारा जल को आवश्यकता के अनुसार पहुंचा कर पानी की कमी को दूर किया जाता है ‌।
नेहरू का निर्माण केवल सिंचाई के लिए ही नहीं होता बल्कि जल परिवहन अथवा जल विद्युत उत्पादन के लिए भी किया जाता है जिससे की लोगों को बिजली की समस्या से भी छुटकारा मिलता है और परिवहन की समस्या भी नहीं होती है । vinayiasacademy.com
नहरों के निर्माण में केवल प्रारंभिक आयत ही ज्यादा होती है परंतु उसका रख रखाव काफी सस्ता होता है क्योंकि एक बार नहर बन जाने के बाद उसमें कोई अतिरिक्त आय नहीं लगती है और यह सिंचाई के लिए भी जल निरंतर प्रदान करती रहती है । vinayiasacademy.com
नहरों द्वारा सिंचाई से हानि :
नहर से जल का काफी नुकसान होता है क्योंकि नहरों का जल आसपास के क्षेत्रों में रिस रिस कर चल जाता है जिससे कई स्थानों पर दलदल जैसी समस्या पैदा हो जाती है जो कि खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहती और इससे पानी के साथ साथ भूमि का भी नुकसान होता है । vinayiasacademy.com
इसके अलावा दलदली भूमि या भूमि में नमी रहने से मच्छर पैदा होते हैं जिससे मलेरिया जैसे कई भयानक बीमारीयां जन्म लेती है जो कि वहां की जनता के लिए चिंता का विषय बन जाता है । उदाहरण के तौर पर एक ऐसी ही समस्या इंदिरा गांधी नहर के आसपास देखने को मिली है ।
खेतों में नहरों द्वारा अधिक सिंचाई होने के कारण वहां की भूमि में लवणता की मात्रा बढ़ जाती है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जो भूमिगत जल का तल होता है वह अधिक सिंचाई होने के कारण ऊपर आ जाता है जिससे भूमिगत जल के भीतर के भाग में जो लवण पाए जाते हैं वह धरातल तक पहुंच जाते हैं । इसके परिणाम स्वरूप कृषि क्षेत्र की भूमि ऊसर हो जाती है । vinayiasacademy.com इस प्रकार की कई समस्या उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब जैसे क्षेत्रों में देखने को मिलती है । एक ऐसी हीं समस्या महाराष्ट्र के नीरा नदी की घाटी में देखने को मिली है जहां पर नमक की तह जम जाने के कारण लगभग 36 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि खेती के अयोग्य हो गई जिससे महाराष्ट्र में कृषि का काफी नुकसान हुआ है । vinayiasacademy.com
वैसे तो नहर का निर्माण कम वर्षा वाले क्षेत्रों में किया जाता है परंतु कभी-कभी वर्षा ऋतु के समय भारी वर्षा होने के कारण नहर के तट टूट जाते हैं जिससे कि नहर के आसपास के क्षेत्र बाढ़ ग्रसित हो जाते हैं और फसलों, पशुओं व जान माल को भी नुकसान होता है ।
नहर द्वारा सिंचाई का एक अवगुण यह भी है की यह केवल समतल वाली भूमि पर ही संभव हो पाता है ऊबड़ खाबड़ वाली भूमि पर नहर द्वारा सिंचाई नहीं हो पाती है । पहाड़ों व पठारों वाली क्षेत्रों में जहां की भूमि ऊबड़ खाबड़ तथा पथरीली होती है ऐसी जगह पर नहर का निर्माण करना कठिन हो जाता है । इसके अलावा नहर जल को स्रोत से ज्यादा ऊंचे इलाके में लेकर जाने में असमर्थ होते हैं । कहीं-कहीं पर नहरों का जल ऊंची जगहों तक पहुंचाया गया है परंतु यह एक अत्यधिक वह व्यय वाली प्रणाली बन जाती है जो आम लोगों के लिए मुमकिन नहीं हो पाता है ।
नहर खेतों में सिंचाई की के जल के साथ खरपतवार के बीजों को भी खेत में पहुंचा देता है जो अन्य फसलों के साथ मिलकर बढ़ने लगता है और आगे जाकर फसलों को नुकसान पहुंचाने का काम करता है । vinayiasacademy.com

  1. कुएं तथा नलकूप द्वारा सिंचाई :
    कुएं दो प्रकार के होते हैं – खुले कुएं (Well) और नलकूप (Tubewell) ।
    अ) खुले कुएं (Well) :
    खुले कुएं कम गहरे वाले होते हैं इनमें जमीन की सतह को लगभग 3 से 5 मीटर तक खोदकर भूमिगत जल को प्राप्त किया जाता है । खुले कुओं की सिंचाई प्रणाली एक सस्ती एवं अच्छी प्रणाली मानी जाती है क्योंकि इनकी सीमा सीमित होती है एवं इनमे पानी की आपूर्ति कम हो पाती है । जिसके कारण यह केवल छोटे क्षेत्रों की सिंचाई में ही सक्षम हो पाते हैं । परंतु बड़े क्षेत्रों में कुएं से सिंचाई करना असंभव हो जाता है तथा सूखे मौसम में इन में पानी का स्तर बहुत नीचे चला जाता है जिसकी वजह से यह सिंचाई के लिए उतना उपयोगी नहीं हो पाता है ।
    खुले कुएं दो प्रकार के होते हैं – कच्चा कुआं व पक्का कुआं । vinayiasacademy.com
    कच्चा कुआं थोड़े समय के लिए इस्तेमाल में लाने के लिए खोदा जाता है तथा ऐसे क्षेत्रों में इनका उपयोग ज्यादा होता है जहां पर भूमिगत जल का स्तर भूमि से लगभग 3 से 5 मीटर तक ही मैं मिल जाता है । परंतु पक्के कुएं कच्चे कुएं से ज्यादा गहरे होते हैं तथा इनको अधिक गहराई तक खोदकर बनाया जाता है एवं इनके निर्माण के लिए श्रम और धन दोनों ही ज्यादा लगता है परंतु यह कच्चे कुएं से ज्यादा लाभान्वित होते हैं । इन कुओं से पानी को बेकरी या किराना, पुर या चरस तथा रहट की मदद से प्राप्त किया जाता है । vinayiasacademy.com
    एक रिपोर्ट यह भी पता बताता है कि भारत में सन् 1950 से 1951 तक में लगभग 50 लाख कुएं खोदे गए हैं । तथा इनकी संख्या बढ़कर आज लगभग 3 गुनी एक सौ पचास लाख हो गई है ।
    भारत में कुओं द्वारा खेतों की सिंचाई के लिए गुजरात पहले स्थान पर है जहां लगभग 78 प्रतिशत भाग इसी के द्वारा सींचा जाता है । तथा इसका पालन करते हुए राजस्थान दूसरे स्थान पर जहां 62 प्रतिशत, तीसरे व चौथे स्थान में पंजाब तथा उत्तर प्रदेश 60 प्रतिशत और पांचवें स्थान में महाराष्ट्र लगभग 56 प्रतिशत भाग में कुओं के पानी से सिंचाई की जाती है । इसके साथ ही अकेले उत्तर प्रदेश में लगभग 50 प्रतिशत खोदे गए हैं । vinayiasacademy.com
    ब) नलकूप (Tubewell) :
    नलकूप एक कुएं का ही प्रकार है परंतु इसमें नल के द्वारा भूमि के अधिक गहराई से जल को प्राप्त किया जाता है । इसमें पानी को भूमि से निकालने के लिए बिजली के विभिन्न स्रोतों जैसे मोटर, डीजल वाले इंजन तथा अन्य दूसरी शक्ति स्रोतों की आवश्यकता पड़ती है । vinayiasacademy.com
    खेतों में सिंचाई के लिए नलकूप द्वारा पानी निकालने के लिए निम्नलिखित कारक आवश्यक होते हैं-
    यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जिस भूमि के नीचे खुदाई हो रही है वहां पर पर्याप्त मात्रा में भूमिगत जल उपलब्ध हो ।
    नलकूप की खुदाई 150 से अधिक गहराई पर नहीं होनी चाहिए इसका तात्पर्य यह है कि भूमिगत जल का तल 150 मीटर के अंदर ही मिल जाना चाहिए ।
    बिजली पर ज्यादा खर्च होता है । तो ऐसे चालक शक्ति को लगाना चाहिए जो सस्ती हो ता कि इसमें ज्यादा पैसे खर्च ना हो ।
    इसके अलावा क्योंकि नलकूप के निर्माण में तथा इसके बाद की चालक शक्तियों का प्रयोग करने में ज्यादा पैसे लगते हैं तो उनकी भरपाई करने के लिए अधिक उपजाऊ वाली मिट्टी में खेती करने को सुनिश्चित करना आवश्यक है ता कि बाद में इनका व्यय फसलों को बेचकर पूरा किया जा सके । vinayiasacademy.com
    नलकूप को खेत के नजदीक लगाया जाना चाहिए ताकि इसके इस्तेमाल से नजदीक की भूमिगत जमीन में जल आसानी से उपलब्ध हो सके और खेत को ज्यादा व पानी के कम नुकसान के साथ सींचा था सके ।
    नलकूप क्योंकि गहरे होते हैं तो यह खेती के लिए खुले कुओं की तुलना में ज्यादा अनुकूल होते हैं । और इनसे खुले कुओं के मुकाबले पानी भी अधिक निकाला जा सकता है तथा इसमें पूरे साल हीं पानी उपलब्ध रहता है । जहां खुले कुएं से केवल आधा हेक्टेयर हीं खेत सींजा जा रहा होता था वही अब बिजली की सहायता से नलकूप द्वारा लगभग 6 से 7 हेक्टेयर खेतों पर सिंचाई करना संभव हो पाया है ।
    नलकूप का उपयोग मुख्यतः उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब बिहार और गुजरात जैसे राज्य में किया जा रहा है । vinayiasacademy.com
    कुओं व नलकूपों द्वारा सिंचाई से लाभ –
    कुओं व नलकूपों द्वारा सिंचाई के निम्नलिखित लाभ हैं –
    कुओं व नलकूपों द्वारा सिंचाई, सिंचाई का एक सस्ता साधन माना जाता है क्योंकि कुओं या नलकूपों के निर्माण में नहरों व तालाबों की तुलना में कम खर्च में ही हो जाता है । तो यह कहा जा सकता है कि कुओं व नलकूपों द्वारा सिंचाई भारत के गरीब किसानों के लिए एक सुगम सस्ता तथा उपयुक्त साधन होता है । vinayiasacademy.com
    भूमिगत जल में अनेक रसायनिक तत्व जैसे कि नाइट्रेट, क्लोराइड, सल्फेट व सोडा इत्यादि घुले रहते हैं । तथा कुओं व नलकूपों का निर्माण ऐसा होता है जिसमें पानी भूमिगत जल से लिया जाता है इसलिए सिंचाई के दौरान भूमिगत जल में घुले रसायनिक तत्व भी पानी के साथ खेतों में पहुंच जाते हैं जिससे कि जल के साथ आवश्यक तत्व वहां की मिट्टी को मिलते हैं और इसकी वजह से वहां की मृदा की उपजाऊ शक्ति बढ़ जाती है और कृषि के उत्पादन में अधिक वृद्धि देखने को मिलती है । vinayiasacademy.com
    यदि हम कुओं और नलकूपों की तुलना नहर से करें तो कुआं और नलकूप सिंचाई का एक स्वतंत्र साधन है । क्योंकि कुओं व नलकूपों के निर्माण में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता । वही दूसरी ओर नहर के निर्माण अथवा देख रेख के लिए सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है ।
    नहरों द्वारा सिंचाई करने में हमने देखा कि वहां की भूमि में जल के जमा होने से भूमिगत जल का तल ऊपर आ जाता है जिसकी वजह से वहां की मृदा में लवणीयता बढ़ जाती है और वहां की मिट्टी ऊसर हो जाती है । जबकि कुआं व नलकूपों द्वारा सिंचाई करने में ऐसे किसी भी समस्याओं का डर नहीं रहता है ।
    नहरों का निर्माण नदियों द्वारा होता है जो हर जगह नहीं हो सकता जबकि कुओं व नलकूपों का निर्माण कहीं भी किया जा सकता है । vinayiasacademy.com
    क्योंकि नहर सरकार की निगरानी में रहता है तो इसके द्वारा सिंचाई करने के लिए किसानों को बार-बार टैक्स देना पड़ता रहता है जबकि कुआं को खोदने में एक ही बार ऐसा लगाना होता है । और किसानों के सर पर से टैक्स का बोझ कम हो जाता है
    कुओं व नलकूपों द्वारा सिंचाई के हानि –
    वैसे तो कुँओं व नलकूपों द्वारा सिंचाई के कई लाभ हैं, परंतु ये पूरी तरीके से दोषरहित नहीं हैं । इसके निम्नलिखित हानियां हैं :
    कुओं व नलकूपों द्वारा सीमित क्षेत्रों की हीं सिंचाई हो पाती है । उदाहरण के तौर पर हम देखें तो एक कच्चे कुएं से एक से डेढ़ हेक्टेयर तक की भूमि को सींचा जा सकता है तथा पक्के कुएं से 6 से 8 हेक्टेयर भूमि को हीं सींचा जा सकता है । vinayiasacademy.com
    कुओं व नलकूपों द्वारा लंबे समय तक जल की प्राप्ति नहीं हो पाती है । क्योंकि यदि हम लगातार अधिक जल कुएं से निकालते रहेंगे तो कुआं सूख जाता है जिससे कि वह सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं रह पाता है । और किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ता है ।
    खेतों में कुओं व नलकूपों द्वारा सिंचाई करने में ज्यादा मेहनत और पैसे भी अधिक लगते हैं इसलिए किसानों को अधिक आर्थिक लाभ कमाने के लिए इस सिंचाई प्रणाली के द्वारा केवल ऐसे ही फसल उगाने पड़ते हैं जिन से ज्यादा पैसे कमाए जा सके जैसे कि गेहूं, कपास, गन्ना आदि ।
    बहुत सारे क्षेत्रों में भूमिगत जल में लवणीयता यानी कि खारापन होता है जिससे कि वहां खोदे गए कुएं व नलकूप का जल सिंचाई के लिए या पीने के लिए उपयोगी नहीं रह पाता । उदाहरण के लिए पश्चिमी राजस्थान तथा पंजाब व हरियाणा के दक्षिण पश्चिम भागों के भूमिगत जल समानता खारा हीं होते हैं । vinayiasacademy.com
    कुआं वह नलकूप ज्यादा भरोसेमंद वाली सिंचाई प्रणाली साबित नहीं हो पाती है । क्योंकि सूखे के वक्त पर भूमिगत जल का स्तर नीचे चला जाता है जिससे कि कुएं व नलकूप सूख जाते हैं तथा जब पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तब ही इन कुओं व नलकूपों से पानी निकालना संभव नहीं हो पाता है ।
    कुओं व नलकूपों द्वारा सिंचाई करने में यह भी समस्या खड़ी होती है कि वहां का के भूमिगत जल के हृास होने की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि नलकूप पानी को भूमिगत जल से आसपास के जमीनों से खींच कर लाता है जिससे कि आसपास की भूमि सूख जाती है और अनूपजाऊ हो जाने की संभावना हो जाती है । vinayiasacademy.com
  2. तालाब :
    भारत की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि यहां पर प्रायद्वीपीय के अधिकांश भाग पठारी हैं तथा यहां की भूमि भी पथरीली होती है । और इस प्रकार के इलाकों में भूमिगत जल का अभाव होता है जिसके कारण ऐसे प्रदेशों में कुआं खोदना बहुत ही मुश्किल काम हो जाता है । साथ ही साथ पथरीली भूमि होने के कारण यहां पर नहरे भी नहीं बनाई जा सकती हैं । और यदि चट्टानों को काट काट कर नहरे बना भी ली जाए तो इन चट्टानों के काटने से दरारे बन जाती हैं जिसमें से नहर का पानी रिस रिस कर नहर से बाहर निकल जाता है तथा दूसरी और ऐसे क्षेत्रों में नदियां मौसमी होती हैं । मतलब की इन इलाकों में साल भर तक नदियां भरी नहीं रहती है । जैसे कि दक्षिण भारत की नदियों में देखने को मिलता है । इन इलाकों में केवल वर्षा ऋतु भर तक पानी रहता है और जैसे ही मानसून खत्म होता है धीरे धीरे इन नदियों का पानी सूखने लगता है । vinayiasacademy.com तो ऐसे इलाकों में नहर का निर्माण करना मुश्किल हो जाता है । और अगर नहर बना भी ली जाए तो इनके निर्माण से फसलों में कोई विशेष प्रभाव नहीं देखने को मिलता है । तथा यह फसलों तक पानी पहुंचाने में सक्षम होते हैं । इन इलाकों की भूमि चट्टानी वह ऊबड़ खाबड़ वाली होती है ऐसा होने की वजह से यहां कहीं कहीं बड़े बड़े गड्ढे बने होते हैं जो थालानुमा आकृति का होता है । जिसे सामान्यतः तालाब कहते हैं । इन तालाबों में मानसून के वक्त पर वर्षा का जल भर जाता है । इन तालाबों का धरातल चट्टानी होता है तथा धरातल कठोर होने की वजह से इन तालाबों से पानी रिस रिस कर नहीं निकल पाता और यहां पर जल का अवशोषण नहीं हो पाता है । जिसके कारण इन इलाकों में तालाब का पानी बना रहता है । और अधिकांश खेतों की सिंचाई तलाब में जमा पानी से की जाती है । vinayiasacademy.com
    तलाब दो प्रकार के होते हैं – अ) प्राकृतिक व ब) कृत्रिम ।
    अ) प्राकृतिक तालाब: इस प्रकार के तालाब प्राकृतिक रूप से प्रकृति में पहले से ही बने होते हैं तथा इनके चारों और पहले से ही ऊंचा घेराव होता है जिससे इसे एक तालाब का आकार दिया जाता है ।
    ब) कृत्रिम तालाब : कृत्रिम तालाब मानव द्वारा निर्मित होता है जिसे गड्ढे खोदकर या बांध बनाकर प्राप्त किया जाता है ।
    भारत में तालाबों द्वारा सिंचाई का कुल सिंचित क्षेत्र लगभग 8 प्रतिशत है जो कि लगभग 38 लाख हेक्टेयर भूमि में होता है । पूरे भारत में खेतों की तलाब से सिंचाई के लिए आंध्र प्रदेश पहले स्थान पर था परन्तु अब आंध्र प्रदेश का स्थान तमिलनाडु ने ले लिया है और अब इस सिंचाई प्रणाली द्वारा सिंचाई के लिए दक्षिण भारत का तमिलनाडु पहले स्थान पर आता है । उसके बाद क्रमशः कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान आते हैं ।
    तालाबों द्वारा सिंचाई से लाभ :
    तालाब सभी सिंचाई प्रणालियों में से सबसे ज्यादा टिकाऊ माना जाता है क्योंकि इसका निर्माण कठोर चट्टानी धरातल वाली जगह पर होता है ।
    भारत के दक्षिणी इलाकों में ज्यादातर तालाब प्राकृतिक रूप से बने बनाए हैं जिसके निर्माण में कोई खर्च नहीं होता है । और यदि मानव द्वारा भी बनाए जाएं तो इन तालाबों के निर्माण में ज्यादा खर्च नहीं होता है क्योंकि इसका निर्माण पठारी व ऊंची भूमि वाली जगह पर होता है । जिसके लिए केवल एक ही तरफ बांध बनाकर जल रोका जा सकता है । अर्थात तालाब का निर्माण कम व्यय में भी हो जाता है ।
    तालाब का निर्माण सिंचाई के अलावा अन्य उत्पादन को भी बढ़ावा देता है जैसे मत्स्य पालन आदि । इन तालाबों में मछलियों का उत्पादन भी किया जाता है जिससे कि आय में वृद्धि होती है और रोजगार बढ़ता है । vinayiasacademy.com
    तालाबों द्वारा सिंचाई के हानि :
    तालाबों द्वारा सिंचाई के निम्नलिखित हानियां हैं:
    तालाबो द्वारा साल भर सिंचाई करना संभव नहीं हो पाता है क्योंकि इन इलाकों में भूमिगत जल धरातल के काफी नीचे पाया जाता है तो खुश्क मौसम में क‌ई तालाबों का पानी सूख जाता है और सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं हो पाता है । vinayiasacademy.com
    वैसे तो तालाब के निर्माण में ज्यादा खर्च नहीं होता है परंतु इसका रख रखाव थोड़ा अधिक खर्चीला हो जाता है । क्योंकि हर साल तालाबों में पानी वर्षा जल के द्वारा भरी जाती है जिससे कि वर्षा जल के साथ साथ कई अन्य अवसाद भी तालाबों में जमा होने लगते हैं । और इससे तलाब की गहराई कम होने लगती है जिसके कारण इसकी जल ग्रहण करने की क्षमता भी कम हो जाती है । तो इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए तालाबों की साफ सफाई समय समय पर करनी पड़ती है जिससे कि धन का व्यय होता है । vinayiasacademy.com
    इन इलाकों की भूमि पथरीली होने की वजह से तालाबों से पानी दूर दूर के इलाकों में पहुंचाना थोड़ा मुश्किल होता है जिससे कि तालाबों से खेतों की सिंचाई की सीमा सीमित होती है तथा यह कुओं की तरह हीं दूर-दूर तक खेतों की सिंचाई नहीं कर पाता है ।
    योजना आयोग (जो अब समाप्त हो गया है और उसकी जगह पर नीति आयोग आ गया है) में सिंचाई से संबंधित कुछ योजनाएं बनाई गई हैं जो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग काम कर रहे हैं । vinayiasacademy.com
    इन योजनाओं को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा गया है
    वृहद या बड़ी सिंचाई योजना
    मध्यम सिंचाई योजना
    लघु या छोटी सिंचाई योजना
  3. वृहद या बड़ी सिंचाई योजना :
    इस सिंचाई योजना में 10,000 हेक्टेयर या उससे ज्यादा भागों में खेतों की सिंचाई करने के लिए योजनाएं बनाई जाती हैं । वृहद सिंचाई योजना में बड़ी बड़ी नहरों का निर्माण करना, बड़ी बड़ी नदियों के लिए जहां बांध बनाया गया है वहां से नहरें निकालना आदि जैसे बहुउद्देशीय परियोजनाएं शामिल किए गए हैं । उदाहरण के लिए इंदिरा गांधी नहर परियोजना, शारदा नहर परियोजना भारत की सबसे बड़ी नहर परियोजना में से एक है । इसका उद्देश्य यह है कि बड़ी बड़ी नहरें बनाई जाए ताकि उससे कृषि सिंचित भूमि में वृद्धि हो सके । vinayiasacademy.com
  4. मध्यम सिंचाई योजना :
    इस योजना में 2000 से 10 हजार हेक्टेयर तक भूमि को सिंचित करना शामिल किया गया है । इस में छोटी छोटी नहरों का निर्माण करना सम्मिलित किया गया है ।
    भारत में कृषि कुल सिंचित क्षेत्र के लगभग 37% भाग में वृहद या बड़ी और मध्यम सिंचाई परियोजना पर निर्भर करता है । vinayiasacademy.com
  5. लघु या छोटी सिंचाई योजना :
    इस योजना में 2000 हेक्टेयर से कम भूमि की सिंचाई करना शामिल किया गया है । इतनी छोटी भूमि कि सिंचाई के लिए कुएं, नलकूपों, तालाबों आदि के निर्माण के द्वारा सिंचाई किया जाता है । तथा पूरे भारत में इन्हीं कुओं व तालाबों आदि के द्वारा सिंचाई करना प्रसिद्ध है । तथा पूरे देश में इस योजना से ज्यादा सिंचाई हो रही है । भारत में कुल सिंचित क्षेत्रफल के 62 प्रतिशत भाग में इस योजना के माध्यम से सिंचाई की जा रही है । vinayiasacademy.com
    सिंचाई से संबंधित कुछ अन्य तथ्य :
    विश्व में सबसे ज्यादा सिंचित क्षेत्र चीन के अंतर्गत आता है जो विश्व के कुल सिंचित क्षेत्र के लगभग 21 प्रतिशत भाग पर सिंचाई करता है । तथा भारत भी चीन को टक्कर देते हुए विश्व के कुल सिंचित क्षेत्र के लगभग 20.2 प्रतिशत भाग पर सिंचाई करता है ।
    भारत में सिंचाई का सबसे ज्यादा उपयोग करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश है क्योंकि भारत में सबसे ज्यादा खेती मैदानी क्षेत्रों में होती है और यही कारण है कि उत्तर प्रदेश सर्वाधिक सिंचित क्षेत्रफल वाला राज्य है । इसके बाद क्रमशः राजस्थान पंजाब और आंध्र प्रदेश सबसे ज्यादा सिंचित क्षेत्रफल वाला राज्य है । vinayiasacademy.com
    प्रतिशत की दृष्टि से देखा जाए तो पंजाब का लगभग 97 प्रतिशत भाग में कृषि सिंचाई द्वारा होती है ।
    भारत का सबसे कम सिंचाई वाला राज्य महाराष्ट्र और राजस्थान है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि महाराष्ट्र का एक बहुत बड़ा भाग वृष्टि छाया प्रदेश के अंतर्गत आता है । वृष्टि छाया प्रदेश ऐसे प्रदेश को कहते हैं जहां पर वर्षा न्यूनतम होती है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि महाराष्ट्र अरब सागर की शाखा के निकट स्थित है और जब अरब सागर से मानसून उठता है तो वह पश्चिमी घाट के पर्वतों से टकराकर वापस पश्चिमी घाट के ही पश्चिम के हिस्से में रह जाते हैं । जिससे कि मानसून पश्चिमी घाट के पर्वतों के पूर्वी हिस्से तक नहीं पहुंच पाते हैं और वह पूरा भाग सूखा रह जाता है । इसी को वृष्टि छाया प्रदेश कहते हैं । जैसे कि उदाहरण के लिए महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र वृष्टि छाया प्रदेश के अंतर्गत आता है । महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कुआं और नलकूप वगैरह भी नहीं बनाए जा सकते हैं ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस इलाके में भूमि पथरीली होती है और चट्टानें ताप और दाब के कारण परिवर्तित होती रहती हैं । जिसके फलस्वरूप चट्टानों में दरारे आ जाती हैं ‌। और दरारें पड़ने से कुएं व नलकूप का पानी रिस रिस कर बाहर निकल जाता है । इसलिए यहां पर कुओं व नलकूपों और नहर कुछ भी बनाना संभव नहीं हो पाता है । vinayiasacademy.com

Share it