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By vinayias desk

मौर्य साम्राज्य का अध्ययन करने के लिए अशोक का शिलालेख सबसे प्रामाणिक स्रोत माना जाता है ।इसमें स्तंभ अभिलेख वृहद शिलालेख ,लघु शिलालेख एवं अन्य अभिलेख भी शामिल है। अशोक के अभिलेख राज आदेश के रूप में जारी किए गए हैं। अशोक का अभिलेख लगभग 45 स्थान से प्राप्त हुआ है जो भारत पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अलग-अलग भाग में स्थित है। इसके कुल अभिलेख की संख्या 150 से अधिक है, 181 भाग में इन अभिलेख को रखा जाता है। अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा में है उसमें ब्रह्मी लिपि का प्रयोग किया गया है लेकिन अशोक के उत्तर पश्चिम का अभिलेख खरोष्ठी एवं आरा माईकलिपि का प्रयोग से है। अफगानिस्तान में या भाषा अरामाइक है और यूनानी भी है । अधिकांश अभिलेख राजमार्ग के किनारे जिसमें अशोक के जीवन और बौद्ध धर्म विदेश नीति से संबंधित राज्य विस्तार का वर्णन है। अशोक के शिलालेख आठवां और 21वा में उनके राज्य अभिषेक की जानकारी मिलती है। ब्रम्हगिरी अभिलेख में इसके लेखक का भी नाम दिया गया है जिसमें चौपड़ को लेखक बताया गया है 1750 ईस्वी में दिल्ली मेरठ स्तंभ शिलालेख का पता टिफिनथेलर ने बताया 1785 में बराबर की और नागार्जुनी पर्वतीय गुफा की खोज हैरिंगटन ने किया 1822 में गिरनार शिलालेख की खोज james tod ने किया ।रामपुरवा स्तंभ लेख और bairat लघु शिलालेख का खोज किया ।

अशोक के 14 वृहद शिलालेख कलसी शाहबाजगढ़ी मनशेहरा सुपारा धौली जोगड़ गिरनार येरागुड़ी में पाए गए हैं।

लघु शिलालेख

यह शिलालेख रूपनाथ बैराट राजस्थान में सहसराम मास्की गुर्जरा ब्रह्मागिरी सिद्धपुर जतिन रामेश्वर गवी मार्ट आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में इरा गुड्डी राजू लंढरी अहरौरा दिल्ली पालकी गुड्डू भाब्रू में पाए गए तारो मारो मध्यप्रदेश में पंडरिया नित्तूर उदय गोलम काहा पूरा में भी इसकी प्राप्ति हुई है मास्की गुर्जरा नीतू उदय गोलम में अशोक का व्यक्तिगत नाम दिया गया है ब्रह्मागिरी अभिलेख में एक प्राचीन नगर इशीला की जानकारी है।

स्तंभ अभिलेख

यह अभिलेख लौरिया अरेराज लौरिया नंदनगढ़ दिल्ली टोपड़ा दिल्ली मेरठ इलाहाबाद रामपुरवा में मिला है। इलाहाबाद के अशोक स्तंभ पर अशोक , समुद्रगुप्त और जहांगीर का भी अभिलेख मिलता है ।दिल्ली टोपरा स्तंभ पर अशोक के सात अभिलेख दिए गए, इस पर अजमेर का चौहान शासक बीसलदेव का भी लेख है।

वृहद शिलालेख जिसकी संख्या 14 है

इसमें पशु हत्या और किसी भी प्रकार के समारोह पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है इसमें बताया गया है कि राजा की पाठशाला में सैकड़ों पशु के मारने के स्थान पर अब सिर्फ दो मोर और एक मृग की ही हत्या की जाती थी

इसमें समाज की कल्याणकारी योजनाओं को बताया गया है इसलिए इसे धर्म में शामिल कर लिया गया इसमें मनुष्य और पशु के लिए चिकित्सा करना उसके लिए मार्ग निर्माण करना कुआं खोदना वृक्ष लगाने का भी उल्लेख है इसमें कहा गया है कि देवनमप्रियदर्शी ने चिकित्सा सभी लोगों को दिलवाया उन्होंने चोल वंश सत्य पुत्र केरल पुत्र पांड्य वंश के राजा को भी चिकित्सा दी थी इसमें एंटीयोकस का भी जिक्र है

लोगों को धर्म की शिक्षा देने के लिए रज्जूक प्रादेशिक और युक्त अधिकारी 5 वर्ष में एक दौरा करते थे इसमें ब्राह्मण और श्रमण के प्रति उदारता को बताया गया है माता-पिता का सम्मान करना सोच समझकर धन खर्च करना

पशु हत्या को रोके जाने का दावा किया गया है अशोक की धार्मिक नीति को बताया गया है

अशोक की नियुक्ति राजा बनने के बाद 13 वर्ष के बाद धम महामात्र की नियुक्ति का उल्लेख है यह अधिकारी लोगों को धर्म में परिवर्तित कर आता था

धम महामात्र के लिए आदेश जारी किया गया है व राजा के पास किसी भी समय कोई भी सूचना दे सकता था इस शिलालेख के दूसरे भाग में एक सक्रिय प्रशासन को भी बताया गया है

सभी संप्रदाय के लिए धार्मिक नीति सभी के लिए सहिष्णुता की बात की गई है

सम्राट अशोक द्वारा जंगल में जाकर शिकार करने को त्याग देना और इसके स्थान पर धार्मिक यात्रा करना

किसी भी प्रकार का खर्च में कटौती करना जैसे जन्म और विवाह के अवसर पर जो होता था उसे बंद कर देना

राजा द्वारा अपनी प्रशंसा करने पर रोक लगाई गई है धर्म की नीति को ही श्रेष्ठ बताया गया है

धर्म नीति की व्याख्या की गई है इसमें बड़ों का आदर करना पशु हत्या ना करना और मित्रों के लिए उदारता पर बल दिया गया है

अलग-अलग धर्म के बीच किस प्रकार से सामंजस्य बैठाया जाए इस पर ध्यान दिया गया है

इसमें कलिंग विजय की चर्चा है इस इस विजय के बदले धर्म विजय पर बल दिया गया है इसमें बताया गया है कि अशोक का क्षेत्र 600 योजन तक है । इसमें अलग-अलग क्षेत्र के राजा का भी जिक्र है यूनान का शासक एनटीओकस टोलेमी , एंटीगोनएस ,एलेग्जेंडर दक्षिण में चोल पांड्य श्रीलंका इसके साथ साथ यूनानी कंबोज वासी भोज पितनिक आंध्र वासी की भी चर्चा है।

इसमें सभी अभिलेख में लेखक ने जो गलती किया है उसका जिक्र किया गया है ।# अशोक का प्रथम अतिरिक्त शिलालेख धौली शिलालेख है जिसमें न्याय अधिकारी क्षेत्र के अधिकारी को संबोधित करने का जिक्र है इसमें कहा गया है कि सारी प्रजा मेरी संतान है# अशोक का द्वितीय अतिरिक्त शिलालेख जोगड़ शिलालेख के नाम से जाना जाता है जिसमें सारी प्रजा को संतान और एक समान घोषित किया गया है इसलिए दोनों शिलालेख को कलिंग प्रज्ञ पति भी कहते हैं

अशोक के लघु शिलालेख

सुवर्णागिरी लघु शिलालेख जिसमें रज्जूक नामक अधिकारी की चर्चा है ।रानी लघु शिलालेख जिसमें अशोक की पत्नी करूबाकी को एक रानी के रूप में बताया गया है और उसका पुत्र तीव्

र की चर्चा है। बराबर गुफा अभिलेख जिसमें सूचना मिलती है कि राज्य अभिषेक के बारे में उसने बराबर गुफा आजीवक संप्रदाय को दान में दे दिया। कंधार द्विभाषी शिलालेख जिसमें मछुआरे और आखेटक ने भी शिकार करना बंद कर दिया था यह बताया गया है। भाब्रू अभिलेख इसमें अशोक ने गौतम बुद्ध धर्म और संघ के प्रति जो आस्था जताई है इसे बताया गया है। अशोक ने मगधधीराज खुद को कहा है ।निगाली सागर लेख इसमें बताया गया है कि कनक मुनि के स्तूप को उसने दुगना बड़ा कर दिया। रमीनदेई स्तंभ लेख इससे पता चलता है कि अशोक शाक्य भूमि की जन्मभूमि पर आया था और वहां पर एक अभिलेख स्थापित किया था अशोक ने यहां पर टैक्स को माफ कर दिया और उसे 1 बटा 8 भाग कर दिया बलि कर को समाप्त किया ।शीजम अभिलेख जिसमें अधिकारियों के लिए आदेश जारी किया गया है

स्तंभ अभिलेख

प्रथम स्तंभ अभिलेख में अशोक ने घोषणा की है कि मेरा सिद्धांत है धर्म के द्वारा रक्षा प्रशासन का संचालन लोगों को संतोष और साम्राज्य की सुरक्षा करें दूसरा एवं तीसरा धर्म से संबंधित अभिलेख है इसमें अशोक स्वयं से प्रश्न करता है कि धर्म आखिर है क्या? चौथा स्तंभ अभिलेख जिसमें रज्जूक नामक अधिकारी की चर्चा हुई है यह भी बता दिया जाता है कि जिसे मृत्युदंड दिया जाता था उसे 3 दिन की मोहलत दी जाती थी। पांचवा स्तंभ अभिलेख में भी रज्जूक अधिकारी की चर्चा है यह बताया गया है कि उसने वृक्ष लगवाया कुआं खुदवाया अशोक के स्तंभ लेख में दिल्ली टोपरा का स्तंभ लेख एकमात्र ऐसा लेकर जिस पर अशोक के सात आदेश दिए गए बाकी सभी स्तंभ लेख पर अशोक के छह आदेश मिलते हैं

रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में एक साथ अशोक तथा चंद्रगुप्त मौर्य का नाम मिलता है।

बौद्ध साहित्य जातक कथाओं में इसके समकालीन सामाजिक आर्थिक और धार्मिक अवस्था पर प्रकाश डाला गया है दिव्य निकाय से राजत्व के सिद्धांत का पता चलता है दीप वंश महावंश पुस्तक से बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार की जानकारी मिलती है दिव्य ग्रंथ से भी मौर्य काल की जानकारी मिलती है

जैन साहित्य में भद्रबाहु के कल्पसूत्र हेमचंद्र का परिशिष्ट परवन जिन प्रभा सूरी की विविध प्रकल्प में चंद्रगुप्त मौर्य की जानकारी है

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मौर्य काल की चर्चा की गई हालांकि कौटिल्य ने ना तो पाटलिपुत्र का जिक्र अर्थशास्त्र में किया है और ना ही किसी मौर्य शासक का उल्लेख किया है लेकिन इससे संबंधित तिथि का उल्लेख है अर्थशास्त्र की प्रथम हस्तलिपि आर शर्मा ने 1904 में खोजा था उन्होंने ही इस पुस्तक का अनुवाद किया है यह पुस्तक 15 भाग में है इसके 180 उप भाग है इसमें लगभग 6000 श्लोक है यह गद्य और पद्य दोनों में लिखा हुआ है इसे आमतौर पर महाभारत शैली कहा जाता है इसकी भाषा संस्कृत है। अर्थशास्त्र में तीन प्रकार के विजय बताए गए पहला विजय धर्म विजय है जिसमें पराजित शासक से जुर्माना और उपहार वसूला और उसे पुनः राजा बना दिया जाता था दूसरा विजय लोभ विजय जिसमें पराजित करने के पश्चात पूरी संपत्ति की मांग करना और उसके अधिकांश भाग को अपने में मिला लेना था तीसरा असुर विजय था जिसमें राज्य को संपूर्ण समाप्त कर दिया जाता था।

मौर्य साम्राज्य की जानकारी मेगास्थनीज के इंडिका पुस्तक से भारत की भौगोलिक स्थिति भूमि की उर्वरता के बारे में जानकारी प्राप्त होता है


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