By vinayias desk
अंगूठा
अंगूतर निकाय एवं भगवती सूत्र ग्रंथ से यह जानकारी मिलती है कि प्राचीन काल में 16 महाजनपद थे जिनमें वर्चस्व की लड़ाई चल रही थी ऋग्वेद में कीकट प्रदेश का जिक्र है जिसे मगध समझा जाता है यजुर्वेद में भी मगध का जिक्र किया गया है और अथर्ववेद में भी एक प्रार्थना में मगध के बारे जिक्र है। इसकी पहली राजधानी गिरी ब्रज आधुनिक राजगीर थी। इसी नगर के दूसरे नाम मगरपुर बृहद रथपुर वसुमति कुशालपुर बिंबिसार पूरी भी कहा गया है
बृहद्रथ राजवंश
महाभारत एवं पुराण दोनों में इस वंश का जिक्र किया गया है बृहद रथ जो जरासंध का पिता और वसु का पुत्र था उसने मगध की स्थापना की थी
नागवंश
पुराण के अनुसार इसकी स्थापना शिशुनाग ने किया था उसके उत्तराधिकारी में काकबर्न, क्षेमबर्मा का नाम दिया गया है ।शिशुनाग ने अपने साम्राज्य में वैशाली और वाराणसी को मिला लिया था ।शिशुनाग ने प्रदोत वंश के प्रभाव को भी समाप्त कर दिया था और वहां का राजा स्वयं बन गया था ।शिशुनाग का पुत्र काल अशोक पाटलिपुत्र का राजा था
शिशुनाग को वहां की जनता ने ही राजा बनाया था। पुराण के अनुसार बनारस का राजा बनने के पहले वह गिरी ब्रज में भी राजा था। वैशाली उसकी दूसरी राजधानी थी। शिशुनाग ने अवंती के राजा प्रदोत वंश के गौरव को समाप्त कर दिया था और उसका अंतिम राजा अवंती वर्धन के समय में उसे हरा दिया था। काल अशोक के समय में दूसरी बौद्ध संगति वैशाली में आयोजित की गई थी। उसने फिर से पाटलिपुत्र को अपना राजधानी बनाया काल अशोक के उत्तराधिकारी उसका 10 पुत्र था जिन्होंने एक साथ शासन किया लेकिन पुराण में केवल नंदी वर्धन का नाम मिलता है।
हर्यक वंश
बिंबिसार के पिता का नाम एवं जीत था और वह 15 वर्ष की आयु में ही राजा बन चुका था इसका दूसरा नाम श्रेणिक था उसने राजा बनने के बाद वैवाहिक संधि का सहारा लिया ।एक रानी कौशल के राजा प्रसनजीत की बहन जिसमें काफी उसे दहेज में मिल गया उस समय काशी का राजस्व ₹100000 था ।उसकी एक और रानी का नाम चेल्ना था और वह वैशाली के राजा चेतक की सबसे छोटी बेटी थी। उसकी एक और पत्नी पंजाब के madra dynasty से थी उसका नाम खेमा था वैवाहिक संधि से बिंबिसार को काफी लाभ हुआ और वह पूर्व और पश्चिम दोनों दिशा में अपना राज्य विस्तार कर लिया।
अलग-अलग ऐतिहासिक स्रोत के अनुसार बिंबिसार की सभी पत्नी से बच्चे हुए थे चेलन्ना के 3 पुत्र थे एवं एक पुत्र उसे आम्रपाली से भी प्राप्त हुआ था। जब अवंती के राजा बीमार पड़ गए उन्हें पीलिया रोग हो गया तो बिंबिसार ने अपना वैद्य जीवक को अवंती के राजा का उपचार करने के लिए भेजा था इसे कूटनीति की के रूप में देखा जाता है। वही बिंबिसार ने ब्रह्मदत्त राजा को हराकर अंग राज्य को जीत लिया था बिंबिसार ने अपने राज्य में प्रचार प्रसार करते हुए 80000 गांव तक कब्जा कर लिया था और उस समय उनका क्षेत्रफल लगभग 3000 वर्ग मील था
बिंबिसार ने अपने प्रशासनिक ढांचे को बहुत मजबूत किया था और बुद्धिमान लोगों को श्रेष्ठ पदों पर रखा था। उनके उच्चाधिकारी राज भट्ट चार केटेगरी में बांटे गए थे पहले वे थे जो सामान्य कार्य की देखरेख करते थे उन्हें समथक कहते थे दूसरे सेना के अधिकारी होते थे सेनानायक महामात, तीसरे न्यायधीश होते थे वह वोहाआरिक महामात। राज्य के प्रांत को भी स्वायत्तता प्रदान कर दी गई थी ग्रंथों में मंडलीक राजा का भी उल्लेख किया गया है ।बिंबिसार के विषय में यह कहा जाता है कि वह बौद्ध एवं जैन दोनों धर्म को मानने वाले थे ।कई ग्रंथों में यह लिखा हुआ है कि बिंबिसार को उसका बेटा अजातशत्रु ने हत्या करके राजा बनने का सपना देखा था जो उसका पूरा हुआ। इसके लिए गौतम बुध का चचेरा भाई देवदत्त का नाम भी आता है कि उसने ही अजातशत्रु को हत्या करने के लिए उकसाया था ।बिंबिसार के बाद अजातशत्रु राजा बना अजातशत्रु ने कौशल राज्य पर आक्रमण किया मगध और कौशल में युद्ध हुआ। वैशाली के साथ भी अजातशत्रु का युद्ध हुआ ।लिच्छवी के साथ भी अजातशत्रु का युद्ध हुआ। इसमें अजातशत्रु का मंत्री वस्कासर लिच्छवी से जाकर मिलकर उसका विश्वास पात्र बन गया लेकिन वह वास्तव में अजातशत्रु का ही भेजा गया मंत्री था। युद्ध आरंभ करने से पहले उसने एक नया नगर और किलाबंदी वाला शहर बनाया इस प्रकार पाटलिपुत्र की स्थापना हुई ।इस युद्ध में अजातशत्रु ने महाशिला कंटक और रथ मुसल का प्रयोग किया जिसमें शत्रु पर बड़े-बड़े पत्थर फेंके जाते थे ।अवंती के विरूद्ध भी अजातशत्रु ने युद्ध किया था ।अजातशत्रु मुख्य रूप से जैन धर्म को मानने वाला था। कुछ इतिहासकार उसे बौद्ध धर्म के प्रति अच्छा दृष्टिकोण अपनाने वाला मानते हैं। अजातशत्रु और गौतम बुद्ध की भेंट को द्वितीय ईसा पूर्व की भारत की मूर्ति में दिखाया गया है जिसमें यह बताया गया है कि अजातशत्रु महात्मा को प्रणाम करता है मूर्ति में राजा को एक हाथी पर दिखाया गया है। अजातशत्रु का उत्तराधिकारी दर्शक नाम का राजा था लेकिन दूसरे पुस्तकों के अनुसार अजातशत्रु के बाद उदयन राजा बना था उसकी मां का नाम पद मावली था। अपने पिता की मृत्यु के समय चंपा में वायसराय के पद पर कार्यरत था। उदयन ने ही गंगा नदी के किनारे एक नई राजधानी बनाई जो बाद में पाटलिपुत्र के नाम से जानी गई उस समय पाटलिपुत्र को कुसुमपुर भी कहा जाता था उदयन ने पटना में एक जैन मंदिर का निर्माण किया
नंद वंश
जैन ग्रंथ के अनुसार नंद वंश का पहला राजा एक गणिका और एक नाई का पुत्र था पुराण में महापद्मनंद को क्षत्रियों का नाशक कहा गया है उसने द्वितीय परशुराम की उपाधि ली थी उसने एकारथ की भी उपाधि ली थी जिसका अर्थ होता है पृथ्वी पर सिर्फ एक राजा है ।उसने इक्षवाक वंश पंचाल काशी कलिंग अस्मक कुरु मिथिला सोर सेन सभी राजाओं को पराजित किया ।कलिंग के राजा खारवेल हाथी गुफा शिला लेख में नंद राजा का जिक्र है ।महापद्मनंद के बारे कहा जाता है कि उसके पास 20,000 घोड़े वाला सैनिक था 200000 पैदल सैनिक थे दो हजार से ज्यादा चार चार घोड़े वाले रथ थे और 3000 से अधिक हाथी थे। इस वंश का अंतिम शासक धनानंद था जब सिकंदर भारत पर आक्रमण करना चाहता था उस समय नंद वंश की सेना से डरकर वह भारत पर आक्रमण नहीं कर पाया