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1.देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा भंडार का क्या योगदान है? 2.नई आर्थिक नीति देश में कब अपनाई गई? इसका क्या उद्देश्य था?
3. विदेशी मुद्रा भंडार क्या है?

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा की भूमिका अहम होती है कोरोना काल की चुनौतियों के बीच भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार लगातार बढ़ता जा रहा है। केंद्र बैंक द्वारा जारी किए गए नए आंकड़ों के अनुसार देश का विदेशी मुद्रा भंडार 10 जुलाई तक $516 से भी अधिक स्तर पर पहुंच गया है ।
वर्ष 1991 में जब देश के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी थे तब देश की आर्थिक स्थिति हालत बेहद खराब थी एवं अर्थव्यवस्था भुगतान संकट में था क्योंकि उस समय देश में विदेशी मुद्रा भंडार केवल 1.1 अरब डॉलर था इतने कम रकम आयात के लिए पर्याप्त नहीं थे । ऐसे में रिजर्व बैंक द्वारा 47 टन सोना विदेशी बैंकों में गिरवी रखकर कर्ज लिया गया था।
जिसके बाद 1991 में नई आर्थिक नीति अपनाई गई। जिसका मुख्य उद्देश्य देश में वैश्वीकरण एवं निजीकरण को बढ़ावा देना था एवं इस नई नीति के बाद धीरे-धीरे भुगतान संतुलन की स्थिति में सुधार होने लगी। 1994 से भारत के विदेशी मुद्रा में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने लगा जो 2002 के बाद मुद्रा की बढोत्तरी ने रफ्तार पकड़ी एवं विदेशी मुद्रा भंडार 100 के पार पहुंच गया ।
5 जून 2020 को 501अरब डॉलर हो गया जो विदेशी मुद्रा भंडार का ऐतिहासिक स्तर है।
विदेशी मुद्रा भंडार क्या है? तो विदेशी मुद्रा भंडार वह है जिसमें किसी देश की केंद्रीय बैंक द्वारा रखी गई धनराशि व अन्य परिसंपत्तियों जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर अपने देनदारियों के भुगतान के लिए किया जाता है ।
किसी भी देश में विदेशी मुद्रा भंडार में 4 तत्व मुख्य रूप से होते है जिसमें विदेशी कंपनियों के विभिन्न शेयर, बॉन्ड, डिबेंचर इत्यादि शामिल होते हैं ।
जिसमें स्वर्ण भंडार, आईएमएफ के पास रिजर्व ट्रेंच तथा विशेष आहरण अधिकार विदेशी मुद्रा भंडार को आमतौर पर किसी देश की अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।


देश में कोरोना काल में जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट देखने को मिल रही है बावजूद इसके भारत की अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों का भारत के प्रति विश्वास बना रहा एवं विदेशी निवेश संतोषजनक गति से बढ़ता रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका भारत बिजनेस काउंसिल की इंडिया आइडियाज सम्मिट में कहा कि कोविड-19 के बीच भारत में वैश्विक सहयोग की भूमिका हमसे दुनिया का भारत में विश्वास बढ़ा रहा है एवं 2020 की अवधि में देश को $20 का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ है।
लॉकडाउन लागू होने के कारण जून 2020 तक डीजल पेट्रोल की मांग कम हो गई थी इसके कई कारण है-

१.भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरत का 80 से 85% आयात करता है इस पर सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च की जाती है परंतु कच्चे तेल के दामों में गिरावट के बाद विदेशी मुद्रा भंडार के व्यय में कमी की गई है एवं कच्चे तेल की कमर सस्ती खरीदारी के कारण सरकार को कम विदेशी मुद्रा का भुगतान करना पड़ा है।

२.इसी तरह सोने की आयात में भी लगातार कमी करने के कारण विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है एवं देश के आयात बिल में सबसे प्रमुख स्थान सोने के आयात का है इससे अब तक सबसे अधिक बचत हुई है।

३.वित्त वर्ष 2019-20 में देश के व्यापारिक घाटे में भी कमी आई है और चीन से आयात कम होने के कारण विदेशी मुद्रा भंडार सबसे अधिक बढ़ा है ।


देश में महामारी के बीच विदेशी मुद्रा भंडार का बढ़ना देश में स्थिरता लाने के लिए मुख्य भूमिका निभा सकता है। विदेशी निवेशक भारत में अधिक से अधिक निवेश करने के लिए उत्साहित हो सकते हैं।
ऐसा कहा जा सकता है कि जिस तरह का सुधार देश की अर्थव्यवस्था में दिखाई दे रहा है इससे यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में विदेशी निवेश पर निर्यात में बढ़ोतरी होगी तथा आयात में कमी होगी व विदेशी मुद्रा में और अधिक वृद्धि होगी।


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