Share it

: सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार की चर्चा करें प्रारंभिक क्षेत्राधिकार एवं अन्य क्षेत्राधिकार को भी बताएं-
Vinayiasacademy.com संविधान के अनुच्छेद 129 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय होगा ।इसका मतलब यह होता है इसके समक्ष निर्णय को रिकॉर्ड के रूप में रखा जाएगा और प्रमाणिकता के साथ माना जाएगा ।सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य रूप से तीन प्रकार के कार्य करने के अधिकार है। पहला संघ और राज्य के बीच जो विवाद होता है उस विवाद का समाधान निकालना ,दूसरा संविधान की व्याख्या करना और तीसरा अपील के क्षेत्र में सर्वोच्च न्यायालय को यह देखना कि क्या यह अपील सही रूप से किया गया है ।अगर सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को देखा जाए तो प्रारंभिक क्षेत्राधिकार, अभिलेखों क्षेत्राधिकार ,अपीलीय क्षेत्राधिकार, परामर्श क्षेत्राधिकार, आवृत्ति संबंधित क्षेत्राधिकार
Vinayiasacademy.com अनुच्छेद 131 के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय संघ एवं एक राज्य या एक से अधिक राज्य के बीच किसी भी प्रकार का विवाद हो जैसे की नदी जल बंटवारे का ,सीमावर्ती क्षेत्र का, प्रशासनिक क्षेत्र का तो इसका निपटारा कर सकता है। दूसरा भारत का संघ और कोई एक राज्य अगर एक और से है तथा वह दूसरे राज्य को परेशान कर रहा है तो यह मामला भी सर्वोच्च न्यायालय के अंतर्गत आता है ।कभी-कभी दो राज्य दो से अधिक राज्य के बीच विभिन्न चीजों को लेकर विवाद उत्पन्न हो जाता है यह मामला भी सर्वोच्च न्यायालय का प्रारंभिक क्षेत्राधिकार है। जब कभी सर्वोच्च न्यायालय में प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के प्रश्न पर मुक़दमा हो जाता है तो सर्वोच्च न्यायालय यह देखता है कि इसमें किसी भी कानून का उल्लंघन हुआ है या नहीं हुआ है। उसके बाद ही उस मामले को लिया जाता है


Vinayiasacademy.com नागरिकों के मौलिक अधिकार के मामले में राज्य का उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय दोनों को एक जैसे अधिकार दिए गए हैं अनुच्छेद 32 में मूल अधिकार के उल्लंघन के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय जाया जा सकता है सर्वोच्च न्यायालय इसके लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण परमादेश प्रतिषेध अधिकार परीक्षा एवं उत्प्रेषण प्रकार का लेख है जिसे जारी कर सकता है अगर अनुच्छेद 32 के द्वारा मूल अधिकार को नष्ट किया गया ऐसा लगता है तो सर्वोच्च न्यायालय फिर से एक बार मूल अधिकार को जीवित कर सकती है उदाहरण के रूप में जम्मू कश्मीर में इंटरनेट की सेवा बहाल करना दिल्ली में शाहीन बाग में धरना देने को सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकार तो बताया साथ ही यह भी बताया कि किसी व्यक्ति को आने-जाने में तकलीफ ना हो यह भी दूसरे व्यक्ति का मौलिक अधिकार है
Vinayiasacademy: यहां यह भी जानना जरूरी है कि सर्वोच्च न्यायालय प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत किसी व्यक्ति के द्वारा अगर सरकार के विरुद्ध मुकदमा किया जाता है तो ऐसे केस को नहीं लेंगे। राजनीतिक प्रश्न के मामले में भी न्यायालय को कुछ विशेष अधिकार नहीं मिला है, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई महत्वपूर्ण निर्णय में यह जानकारी उपलब्ध करवाई है सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय दोनों को समवर्ती प्रारंभिक क्षेत्राधिकार मिला हुआ है इसके अंतर्गत नागरिक के वैसे अधिकार आते हैं जिनकी रक्षा का दायित्व सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों को है संसद द्वारा समय-समय पर कानून बनाकर सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को परिवर्तित भी किया जा सकता है जैसे कि अनुच्छेद 262 के अंतर्गत कानून बनाकर अलग-अलग राज्य के बीच नदी जल बंटवारे को लेकर हो रहा विवाद को इस के क्षेत्र अधिकार से बाहर किया जा सकता है। अनुच्छेद 280 के अंतर्गत वित्त आयोग को जो विषय सौंपा गया है उस विवाद को भी अलग कर सकते हैं अनुच्छेद 290 के अंतर्गत केंद्र और राज्य के बीच खर्च को लेकर जो विवाद है उसे भी अलग किया जा सकता है। अनुच्छेद 148 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को सुझाव देने के लिए जो मामला दिया गया है यहां पर यह सुझाव मंत्रिमंडल से पूछ कर ही दिया जाता है क्योंकि राष्ट्रपति को अंतिम रूप से उसी सुझाव को मानना है जो उसे मंत्रिमंडल देगी
Vinayiasacademy.com अनुच्छेद 131 के द्वारा यह प्रावधान है कि सर्वोच्च न्यायालय में ही विशेष मुकदमा लड़े जाएंगे लेकिन 131 के (क )में एक प्रावधान दिया गया है ,जिसमें सर्वोच्च न्यायालय केंद्र सरकार की किसी भी कानून को जांच करके देखें कि यह सही है कि नहीं है, 42वां संविधान संशोधन 1976 के द्वारा अनुच्छेद 32 में परिवर्तन करके ऐसे अधिकार को समाप्त करने की कोशिश की गई थी लेकिन 43 संविधान संशोधन 1977 के द्वारा अनुच्छेद 32 के क को पुनः समाप्त कर दिया ।इस प्रकार 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम के पहले की स्थिति को लाया गया। 1961 ईस्वी में बंगाल को लेकर यह प्रश्न उठा कि क्या कोयला खदानों पर नियंत्रण राज्य का होगा यह केंद्र का होगा ।सर्वोच्च न्यायालय ने अपना निर्णय केंद्र सरकार के पक्ष में दिया
Vinayiasacademy.com
सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय भी क्यों कहा जाता है- संविधान के अनुच्छेद 129 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय कहा जाता है इसका अर्थ यह है कि सर्वोच्च न्यायालय में प्रतिदिन अलग-अलग मामले पर फैसला आता है ,अगर सर्वोच्च न्यायालय किसी फैसले को बता देता है तो फिर इसे भारत के सभी न्यायालय में माने जाएंगे और उच्च न्यायालय में साक्ष्य के रूप में इसे रखा जाएगा और इसी फैसले को प्राथमिकता दिया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय को यह भी अधिकार है कि अगर किसी व्यक्ति के द्वारा किसी संस्था के द्वारा अपमान किया जाता है तो वह अपमान के लिए दंड भी दे सकता है ,1971 ईस्वी में न्यायालय अवमानना अधिनियम पारित हुआ। इसमें कोई परिभाषा नहीं है लेकिन न्यायालय ने स्वयं समय-समय पर इसे परिभाषित कर दिया। इसमें दीवानी और फौजदारी दोनों प्रकार की अवमानना आती है। न्यायालय के नजर में कोई भी चीज अगर गलत लगता है, अगर न्यायालय को किसी शिष्टाचार के अंतर्गत होने वाली चीजों से आपत्ति है तो वह व्यक्ति को करना पड़ेगा। यही कारण है कि न्यायपालिका का सम्मान करना है अगर न्यायपालिका का अपमान कोई कर देता है तो न्यायपालिका उसे तुरंत दंडित करने की भी क्षमता रखती है


Vinayiasacademy.com
Vinayiasacademy: सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार का वर्णन करें
Vinayiasacademy.com
संविधान के अनुच्छेद 132 के तहत सर्वोच्च न्यायालय देश का सबसे ऊंचा अपील का न्यायालय है उसे सभी राज्य के उच्च न्यायालय के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है ।सर्वोच्च न्यायालय के अपील क्षेत्र को अलग-अलग प्रकार से देखा जा सकता है जैसे कि संवैधानिक मामला, जिसमें संविधान की व्याख्या करने का प्रश्न उठता है ,तो यह सर्वोच्च न्यायालय के पास चला जाता है, दीवानी मामला जिसमें की सिविल केसेस होते हैं। फौजदारी मामला जिसमें अपराध की श्रेणी वाले केस होते हैं और कुछ मामले ऐसे होते हैं जो विशेष अनुमति से अपील किए जाते हैं अनुच्छेद 134 के द्वारा अपराधिक मामलों की अपील को देखा जाता है उच्च न्यायालय द्वारा किसी आपराधिक कार्यवाही में जब कोई निर्णय सुना दिया जाता है तो फिर व्यक्ति द्वारा इसका अपील उच्चतम न्यायालय में किया जाएगा। उच्च न्यायालय ने न्यायालय के दोष मुक्ति के आदेश को अपील में उलट दिया है तो जो अभियुक्त होते हैं दोष सिद्ध करते हुए अगर उन्हें मृत्युदंड दे दिया गया है तो इस अवस्था में यह मामला सर्वोच्च न्यायालय चला जाता है ।इसी प्रकार अगर किसी जिला स्तर के न्यायालय का मामले को विचार के लिए उच्च न्यायालय अपने पास और बाद में मृत्युदंड दे दिया है, इस मामले पर भी व्यक्ति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में अपील किया जा सकता है ।उच्च न्यायालय अगर किसी मामले में फैसला देखकर यह बता दिया है कि आप चाहे तो सर्वोच्च न्यायालय चले जाएं तो फिर व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है लेकिन इसके लिए कई शर्त भी लागू होती है। वही संवैधानिक मामले में बहुत से निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय में अपील किया जा सकता है अगर उस राज्य का उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134 के द्वारा यह प्रमाण दे दे कि इस मामले में संविधान से संबंधित कोई भी ऐसा प्रश्न है जो व्याख्या की जरूरत है तो
तू व्यक्ति द्वारा सीधा सर्वोच्च न्यायालय जाया जा सकता है 44 वें संविधान संशोधन में देरी से बचने के लिए व्यवस्था की गई है कि उच्च न्यायालय को सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने हेतु प्रमाण पत्र स्वीकार करने के प्रश्न पर अपना निर्णय और अंतिम आदेश सुनाने के समय विचार कर लेना चाहिए ।अनुच्छेद 136 के अंतर्गत अगर विशेष अनुमति के मामले हैं तो कोई व्यक्ति सामाजिक और देश हित में उस प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय में उठा सकता है ऐसे मुकदमे देर रात को भी शामिल हो जाते हैं।
Vinayiasacademy.com
Vinayiasacademy: सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति की अपील फौजदारी मामले में अपील और दीवानी मामले में अपील कैसे की जाती है.


Vinayiasacademy.com अनुच्छेद 136 में यह बताया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय के पास स्वविवेक की शक्ति है यानी कि अगर कोई भी निर्णय ,किसी भी प्रकार का दंड ,आदेश के विरोध और अपील के लिए वह अनुमति दे सकता है। लेकिन यह अनुमति सशस्त्र बल से संबंध किसी भी न्यायालय के निर्णय से शामिल नहीं होगा ।अनुच्छेद 136 में अभी बताया गया है कि ऐसी शक्ति जो अवशिष्ट प्रकार की है जो साधारण कानून से बाहर है वह अनुच्छेद 136 के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय को यह देखने का अधिकार है कि क्या इस अपील से देश के किसी भाग में राष्ट्रीय महत्व की चीजें संविधान के उल्लंघन का प्रश्न है। नागरिक अवज्ञा का प्रश्न है ।शांति व्यवस्था का प्रश्न है तो फिर इसे वह अपने पास शामिल कर सकता है या किसी व्यक्ति के पक्ष में अपील करने का कभी भी कोई अधिकार नहीं देता है लेकिन न्यायालय को समझने की शक्ति प्रदान कर देता है कि विशेष परिस्थिति में वह मुकदमा छुट्टी के दिन भी देख सकें ,देर रात को भी देख सकें और वह देर रात को ही इसका फैसला भी दे दे
दीवानी मामले में अनुच्छेद 137 के द्वारा कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय के फैसले के बाद सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। अगर उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दें कि यह मामला संवैधानिक महत्व का है इस प्रश्न का उत्तर सर्वोच्च न्यायालय दे सकती है और अगर व्यक्ति चाहे तो वह सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है तो फिर अनुच्छेद 137 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के पास अगर ऐसे मामले नहीं उठाए जा सकते हैं जो उच्च न्यायालय में पहले नहीं उठाया गया है यानी कि पहले उच्च न्यायालय में ही मामले को उठाना होगा और उसके बाद ही सर्वोच्च न्यायालय जाना होगा
इसी प्रकार से अनुच्छेद 134 के अनुसार किसी उच्च न्यायालय द्वारा अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय में अपील उच्च न्यायालय के प्रमाण पत्र बिना प्रमाण पत्र दोनों के द्वारा भी की जा सकती है इसमें यह बताया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय में अपील के योग्य है या नहीं है यह विवेक का अधिकार है उच्च न्यायालय का कि वह फौजदारी मामले में प्रमाण पत्र सर्वोच्च न्यायालय जाने के लिए देगा या नहीं देगा
Vinayiasacademy.com


Share it