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ऊर्जा संसाधन– ऊर्जा का उत्पादन खनिजों जैसे कोयला, ऊर्जा संसाधन- ऊर्जा का उत्पादन खनिजों जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम तथा विद्युत से किया जाता है। ऊर्जा संसाधनों को परंपरागत तथा गैर परंपरागत संसाधनों में वर्गीकृत किया जाता है। परंपरागत साधनों में लकड़ी, उपले, कोयले, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत( जल विद्युत और ताप विद्युत) सम्मिलित है। गैर परंपरागत साधनों में सौर , पवन, ज्वारीय, भूतापीय, बायोगैस तथा परमाणु ऊर्जा शामिल किए जाते हैं। ग्रामीण घरों में आवश्यक ऊर्जा का 70% से अधिक इंदौर साधनों से प्राप्त होता है लेकिन अब घटते वन क्षेत्र के कारण इनका उपयोग करना कठिन हो जा रहा है जिसके अस्तित्व उपयोग का उपयोग भी हतोत्साहित किया जा रहा है। क्योंकि इसमें सर्वाधिक मूल्यवान खाद्य का उपभोग होता है जिसे कृषि में उपयोग किया जा सकता है।
ताप विद्युत– राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम की स्थापना 1975 में की गई इस दिल्ली में है। प्रतिमान में 47228 मेगावाट क्षमता की 35 विद्युत परियोजनाओं का क्रियान्वयन कर रही है देश की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना भाखड़ा नांगल परियोजना का संचालन भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड चंडीगढ़ के द्वारा किया जाता है। देश की पहली बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजना दामोदर घाटी परियोजना की स्थापना 18 फरवरी 1948 को की गई थी ।ताप विद्युत क्रिया नवीकरण योग्य जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कर विद्युत उत्पन्न करते हैं।


जल विद्युत– तेज बहते जल से जल विद्युत उत्पन्न की जाती है जो एक नवीकरण योग्य संसाधन है। भारत में अनेक बहुउद्देशीय परियोजनाएं हैं जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती है । भारत में पहला जल विद्युत शक्ति गिरी 18 से 98 ईसवी में दार्जिलिंग में स्थापित किया गया था। विश्व के कुल संभावित विद्युत ऊर्जा उत्पादन में भारत का स्थान पांचवा है। राष्ट्रीय पनबिजली निगम लिमिटेड की स्थापना 1975 में की गई। 1902 में कर्नाटक में कावेरी नदी के जलप्रपात शिवसमुद्रम पर 40 किलोमीटर शक्ति वाला पन बिजलीघर लगाया गया।
गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत के संसाधन
ऊर्जा की बढ़ती उपभोग ने देश को कोयला तेल और गैस जैसी जीवाश्म ईंधन ऊपर अत्यधिक निर्भर कर दिया है गैस व तेल की बढ़ती कीमतों तथा इनकी संभाव्य कमियों नेभविष्य में ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा के प्रति अनिश्चितता उत्पन्न करती हैं। जीवाश्म ईंधन का प्रयोग गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न करता है अतः नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधन जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैविक ऊर्जा आशीष पदार्थ जनित ऊर्जा के उपयोग की बहुत जरूरत है यह ऊर्जा के गैर परंपरागत संसाधन कहलाते हैं।
सौर ऊर्जा– भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है यहां सौर ऊर्जा के दोहन की असीम संभावनाएं हैं। फोटो वॉल टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है। भारत के ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तेजी से बढ़ता चला जा रहा है कुछ बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र देश के विभिन्न भागों में भी स्थापित किए जा रहे हैं। भारत में सौर ऊर्जा केंद्र के संस्थान हरियाणा में स्थित है। विश्व का प्रथम ऐसा देश है जिसमें सर्वप्रथम 1962 ईस्वी में सौर कुकर का उत्पादन प्रारंभ किया। भारत को सौर ऊर्जा क्षेत्र में विश्व का अग्रणी देश बनाने के उद्देश्य से 11 जनवरी 2010 को जवाहरलाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन का उद्घाटन किया गया।


पवन ऊर्जा– भारत में पवन ऊर्जा के उत्पादन की महान संभावनाएं हैं। भारत में पवन ऊर्जा फार्म के विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र तथा लक्षदीप में भी है। नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए माने जाते हैं। भारत में करीब 50000 मेगा वाट की पवन ऊर्जा होती है। पवन ऊर्जा उत्पादन में भारत का विश्व में चीन, अमेरिका, जर्मनी, स्पेन के बाद पांचवा तथा एशिया में प्रथम स्थान प्राप्त है। पवन ऊर्जा प्रौद्योगिकी केंद्र की स्थापना चेन्नई में की गई है।
बायोगैस– ग्रामीण इलाकों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव जनित अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपभोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है। जैविक पदार्थों के आवंटन से गैस उत्पन्न होती है जिस की तबीयत क्षमता मिट्टी के तेल उपयोग एवं चारकोल की अपेक्षा अधिक होती है। बायोगैस संयंत्र नगरपालिका सहकारिता तथा निजी स्तर पर होती है ।पशुओं का गोबर प्रयोग करने वाले संयंत्र ग्रामीण भारत में गोबर गैस प्लांट के नाम से जाने जाते हैं। यह किसानों को दो प्रकार से लाभ पहुंचाते हैं पहला तो ऊर्जा के रूप में तथा दूसरा उन्नत प्रकार के उर्वरक के रूप में।
ज्वारीय ऊर्जा– महासागरीय तरंगों का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है। संकरी खारी के आरपार बार द्वारा बनाकर बांध बनाए जाते हैं। उच्च ज्वार में इस संकड़ी खड़ी नुमा प्रवेश द्वार से पानी भीतर भर जाता है और द्वार बंद होने पर बांध में ही रह जाता है। बाढ़ द्वार के बाहर ज्वार उतारने पर बांध के पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की तरह बहाया जाता है जो इसे ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर ले जाता है। भारत में खंभात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में और पश्चिम बंगाल में सुंदरबन क्षेत्र में गंगा के डाटा में जो आर्य तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की प्रक्रिया की जाती है।
भूतापीय ऊर्जा– पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं यह प्रदूषण मुक्त ऊर्जा स्रोत है। भूतापीय ऊर्जा इसलिए अस्तित्व में होती है क्योंकि बढ़ती गहराई के साथ पृथ्वी पर आगामी ढंग से तप्त होती जाती है। यहां भी भूतापीय प्रवणता अधिक होती है वहां उतरी गहराइयों पर भी अधिक तापमान पाया जाता है। भारत में सैकड़ों गर्म पानी के चश्मे है जिनका विद्युत उत्पादन में प्रयोग किया जाता है। भूतापीय ऊर्जा के दोहन के लिए भारत में दो प्रायोगिक परियोजना शुरू की गई है एक हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाट में स्थित है तथा दूसरा लद्दाख में पूगा घाटी में स्थित है।


खनिज संसाधन तथा ऊर्जा संसाधन का संरक्षण
खनिजों का संरक्षण- हम सभी लोग उद्योग और कृषि की खनिज नीचे को और उसमें विनिर्मित पदार्थों प्रभारी निर्भरता के लिए प्रेषित है। खनिज संसाधनों के निर्माण व सांद्रण में लाखों वर्ष लगे हैं हम उनका जिस शीघ्रता से उपभोग कर रहे हैं उससे यही लगता है कि आने वाले दिनों में हमें काफी कठिनाइयों से सामना करना पड़ेगा। खनिज निर्माण की भूगर्भिक प्रक्रिया इतनी धीमी है कि उनके वर्तमान उपभोग की दर की तुलना में उनके पुनर्भरण की दर अपरिमित रूप से काफी कम है। हमें खनिज संसाधनों को सुनियोजित एवं सतत पोषणीय ढंग से प्रयोग करने के लिए एक तालमेल युक्त प्रयास का गठन करना होगा। निम्न कोटि के अयस्को को कम लागत ऊपर प्रयोग करने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी यों का सतत विकास करते रहना चाहिए तथा धातु के पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित करना चाहिए। हमें खनिजों के निर्यात में कमी करना चाहिए। इसी प्रकार से हम खनिजों का संरक्षण कर सकते हैं क्योंकि खनिजों को आर्थिक रीड की हड्डी कहा जाता है इसलिए इनका संरक्षण अति आवश्यक है।
ऊर्जा संसाधन के संरक्षण
आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक आधारभूत आवश्यकता है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक सेक्टर कृषि, उद्योग, परिवहन तथा घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऊर्जा के निवेश की आवश्यकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आर्थिक विकास की योजना को चालू रखने के लिए ऊर्जा की बड़ी मात्रा में आवश्यकता थी फल स्वरुप पूरे देश में ऊर्जा के सभी प्रकारों का उपभोग धीरे धीरे बढ़ता चला जा रहा है। हम विभिन्न स्तरों पर ऊर्जा का संरक्षण कर सकते हैं जैसे कि घर के अस्तर पर ऊर्जा का संरक्षण, सामुदायिक स्तर पर ऊर्जा का संरक्षण, नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का प्रयोग, गृह समूह हेतु सामुदायिक स्तर पर ऊर्जा संरक्षण, उद्योगों तथा अन्य स्थानों पर ऊर्जा संरक्षण। वर्तमान में भारत विश्व के अल्पतम ऊर्जा दक्ष देशों में गिना जाता है। हमें ऊर्जा के सीमित संसाधनों के न्याय संगत उपयोग के लिए सावधानी पूर्ण उपागम अपनाना होगा। भविष्य के लिए हमें ऊर्जा संसाधन का संरक्षण बहुत जरूरी है अर्थात हम यह कह सकते हैं कि ” ऊर्जा की बचत ही ऊर्जा उत्पादन है”।


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