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नये धर्मों का उदय:—- ईसा पूर्व छठी सदीं में उत्तर भारत के सामाजिक जीवन में कुरीतियों, पाखंड,छुआछूत, कुप्रथा,ऊॅच-नीच जैसे आडंबरों का उद्भव हो चुका था। इस समय वर्ण व्यवस्थाओं की जटिलता धार्मिक व्यवस्थाओं के प्रति असंतोष की भावना उत्पन्न होने लगी थी और इसी के फलस्वरुप में नए विचारधारा का उदय होना प्रारंभ हो गया था धर्म सुधार आंदोलन में भी काफी तेजी आने लगी यह आंदोलन कोई आकस्मिक घटना नहीं थी बल्कि यह एक लंबे समय से सिंचित हो रहे असंतोष का परिणाम था। धार्मिक कर्मकांड के विरुद्ध प्रतिक्रिया होनी प्रारंभ हो गई,लोगों में कर्मकांड और आडंबरों का विरोध करना शुरू कर दिया और धर्म के नैतिक पक्ष पर बल दिया इन लोगों ने गौतम बुद्ध औंर महावीर प्रमुख थे।गौतम बुध के द्वारा बौद्ध धर्म की स्थापना हुई और महावीर के द्वारा जैन धर्म की नींव रखी गई। इन समस्त धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र मगध को माना जाता है।अक़यवाद एवं नीतिवाद के समनिंन्व़तस्वरूप का स्वरूप का प्रस्फूटन “आजीवक संप्रदाय” के रूप में न “मखाली गोसाल” ने किया।पूर्ण कश्यप के अनुसार कर्मों का कोई फल नहीं मिलता था उसकी यह विचारधा अकियवादी के रूप में उभरी। संजयबेलटृपुत्त में अनिश्चयवादी दर्शन का प्रतिपादन किया। (vinayiasacademy.com) पाकुध कात्यायन ने भौतिकवाद का समर्थन किया इसके द्वारा पुनर्जन्म और कर्म के प्रति अविश्वास रखा जाने लगा। तत्कालीन भारत में वर्ण,जाति, कर्मकांडों के जटिल स्वरूप को तोड़ने के लिए दो नए संप्रदायों का उदय हुआ। जिन्हें बौद्ध धर्म और जैन धर्म के नाम से जाना जाने लगा, इन दोनों संप्रदायों को नास्तिक संप्रदाय भी कहा जाने लगा। मगर इन दोनों नास्तिक संप्रदायों के विस्तार को रोकने के लिए वैदिक धर्मों में भी सुधार होना प्रारंभ हो गया था तथा इसी के फलस्वरूप वैदिक धर्मों में भी दोनों संप्रदायों का उदय होने लगा जिसे वैष्णव संप्रदाय और शैव संप्रदाय के नाम से जाना जाने लगा,इन दोनों संप्रदायों में पूर्व वैदिक धर्म की अपेक्षा आडंबर पूर्ण रीति-रिवाजों को तोड़ा जाने लगा।vinayiasacademy.com

बौद्ध धर्म:—563 ईसवी पूर्व में नेपाल की तराई में कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी वन में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था।बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध को माना जाता है इनके बचपन का नाम “सिद्धार्थ” था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन था और यह शाक्य गण के प्रधान थे मगर गौतम बुध का पालन पोषण उनकी मौसी महा प्रजापति गौतमी के द्वारा किया गया था क्योंकि बुध के जन्म के पहले सप्ताह में ही उनकी माता की मृत्यु हो गई गौतम बुद्ध का प्रारंभिक जीवन काफी सुख सुविधा पूर्ण व्यतीत हुआ था 16 वर्ष की अवस्था में ही गौतम बुद्ध का विवाह यशोधरा से हुआ।बुध के पुत्र का नाम राहुल था राहुल के चचेरे भाई का नाम देवदत्त था गौतम बुध बचपन से ही चिंतनशील स्वभाव के थे वे एकांत में बैठकर जन्म मरण सुख-दुख आदि विषयों पर गहराई से चिंतन किया करते थे गौतम बुध को संसार इक सुखों से मुंह नहीं था इन सांसारिक सुखों से पर्याप्त संतुष्ट नहीं थे उनका ह्रदय मानवता को दुख में फसा देखकर अत्यधिक खिन्न हो गया संसारी समस्याओं ने उनके जीवन का मार्ग बदल दिया और वे इन्हीं समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए 29 वर्ष की आयु में पत्नी और अपने पुत्र राहुल को सोता छोड़कर गृह त्याग किया और आगे चलकर इसी घटनाक्रम को “महाभिनिष्क्रमण”कहां जाने लगा। शान की खोज में भी कई वर्षों तक इधर-उधर भटकते रहे इसी समय उनके 5 साथी हुए जिनके नाम आंज,अस्सजि,वप्प,महानाम, भद्विय थे। 16 वर्षों की कठिन तपस्या के उपरांत वैशाख पूर्णिमा की रात को उरुवेला में निरंजना नदी के तट पर एक पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई इस घटना के बाद ही वे बुद्ध के नाम से पूरे संसार में विख्यात हुए ज्ञान की प्राप्ति के उपरांत वे सारनाथ गए जहां उन्होंने अपना प्रथम उपदेश दिया जिसे “धर्मचक्र प्रवर्तन” कहा गया।(vinayiasacademy.com)।

गौतम बुध ने अपना द्वितीया उपदेश मगध की राजधानी राजगृह में दिया। उस समय यहां के राजा बिंबिसार ने बौद्ध धर्म को अपनाया बहुत गौतम बुद्ध ने 40 वर्षों तक घूम घूम कर उपदेश दिए इन के रिश्तेदारों में इनकी मौसी पिता पुत्र और पत्नी ने भी बौद्ध धर्म को अपना लिया गौतम बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में कुसीनारा में हुई अतः इस घटना को महापरिनिर्वाण कहा गया है। गौतम बुद्ध के जीवन में घटित 5 घटनाओं को पांच प्रतीक चिन्ह के द्वारा समझाया जाता है इनके जन्म को कमल और वृषभ का प्रतीक चिन्ह माना गया है इनके महाभिनिष्क्रमण को अश्व के चिन्ह से संबोधित किया गया धर्म चक्र परिवर्तन को चक्र का प्रतीक चिन्ह से जाना जाता है। निर्वाण को बोधि वृक्ष का प्रतीक चिन्ह दिया गया है और इनकी महापरिनिर्वाण को स्तूप के चीन से जाना जाता है बुद्ध एवं बौद्ध धर्म पर आधारित ग्रंथों को पालि त्रिपिटक के नाम से भी जाना जाता है जिन्हे सुत्तपिटक,विनयपिटक और अभिछम्यपिटक तक कहा गया है। बुद्ध के सर्वप्रथम दो अनुयायियों थे तापुस और भल्लुक। बिंबिसार ने बौद्ध भिक्षु के निवास के लिए बैलूवन विहार का निर्माण करवाया था।बुद्ध संघ में सर्वप्रथम प्रवेश पाने वाली महिला उनकी मौसी गौतमी थी। आनंद नामक शिष्य ने गौतम बुद्ध से अनुमति प्राप्त कर संघ में महिलाओं का प्रवेश प्रारंभ किया। पूर्वाराम विहार का निर्माण अंग जनपद की पुत्री विशाखा के द्वारा बनाया गया था इसमें बुद्ध स्वयं विश्राम किया करते थे बुद्ध ने अपना सर्वाधिक उपदेश कुशल की राजधानी श्री बस्ती में दिए। कुख्यात डाकू अंगुलिमाल को भी बुद्ध श्रीवस्तु में ही उपदेश दिए थे इनकी महापरिनिर्वाण के उपरांत उनके अवशेषों का स्थान पर 8 स्तूपों का निर्माण करवाया गया। गौतम बुद्ध की शिक्षा में चार आर्य सत्य थे दुख दुख समुदाय दुख निरोध दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा गौतम बुद्ध ने निर्वाण की प्राप्ति और दुखों से मुक्ति पाने के लिए अष्टांगीक मार्ग बताए हैं इसे मध्यम मार्ग के नाम से भी जाना जाता है। सम्यक कर्म,सम्यक वाणी,सम्यक संकल्प, सम्यक दृष्टि,सम्यक आजिव,सम्यक व्यायाम,सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि यह सभी अष्टांगिक मार्ग कहलाते हैं।

बौद्ध धर्म के त्रिरत्नों बौद्ध धर्म और संघ का महत्व है। बहुत गर्मी की सफलता के कई कारण थे सर्पदंश के नियमों में किसी प्रकार की आडबंना नहीं थी। इसकी नियम जटिल नहीं हुआ करते थे। बौद्ध धर्म को अपनाने वाले को मध्यम मार्ग की अनुमति थी अर्थात ग्रस्त जीवन के साथ-साथ बौद्ध धर्म के नियमों का पालन किया जा सकता था इनके धर्म में एक व्यवहारी सरलता थी इस धर्म को अपनाने वाले किसी भी धर्म जाति का हो सकता था।इसके दरवाजे सभी धर्म एवं जाति के लोगों के लिए हमेशा खुली हुई थी।बुद्व के राजपूत से संबंधित होने के कारण इन्हें बहुत सारी राजाओं का भी संरक्षण प्राप्त हुआ और इसी कारणवश बौद्ध संघ को कभी भी आथिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ा इन्हीं सारे नियमों की वजह से बहुत धर्म तत्कालीन समय में काफी ऊंचाई पर पहुंच गया था इस धर्म का विकास काफी तेज गति से होने लगा इस धर्म विस्तार विदेशों में भी होने लगा था बौद्ध धर्म के विस्तार में संघ का भी काफी योगदान रहा यह संघ लिच्छवियों की शासन प्रणाली के अनुसार संगठित था संघ में प्रवेश पाने को ‘प्रवज्या’कहां जाता था मगर कर्जदार ,रोगी,अल्पवयस्क,दास अपराधी सैनिको संघ में प्रवेश पाने की अनुमति नहीं थी।धर्म चक्र परिवर्तन के पश्चात बुद्ध नें सारनाथ में एक संघ की स्थापना की थी इस संघ के सबसे पहले सदस्य बुद्ध के पांच ब्राह्मण साथी हुए जो बनारस के धनी व्यापारी हैं। संघ में शामिल होने वाले भिक्षुक कहा जाता था। गृहस्थों और भिक्षुओं के नियम अलग-अलग हुआ करते थें और सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि संघ में स्त्रियों को प्रवेश दिया जाता था। बुद्ध संघ के त्रिरत्न उनमें बुध संघ और धर्म का उल्लेख पाया जाता है बुद्ध द्वारा प्रतिपादित पंच इंद्रियों में श्रद्धा, समाधि, प्रज्ञा, विर्य और स्मृति का उल्लेख मिलता है।

संघ में भिक्षुओं द्वारा की जाने वाली विशिष्ट धार्मिक चर्चा को “उपोसथ” कहा गया है। सभी भौतिक वस्तुएं नष्ट हो जाती है कर्त्तव्यपरायणता के साथ प्रयास करो यह गौतम बुद्ध के अंतिम शब्द थे। प्राचीनतम बौद्ध ग्रंथों में गायों को अन्न देने वाली, रूप देने वाली एवं सुख प्रदान करने वाली बताया गया है। कुछ समय उपरांत शशांक नामक राजा ने बोधि वृक्ष को कटवा दिया था।बुद्ध के महापरिनिर्वाण के कुछ समय उपरांत संघ में भेद होना आरंभ हो गया था तथा तृतीय बौद्ध संगति में इन भेदों को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए। तृतीय बौद्ध संगीति में धोखादियो का पक्ष काफी प्रबल रहा। चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन कश्मीर के कुंडलवन में किया गया और इसकी अध्यक्षता वासुमित्र के द्वारा की गई।अश्वघोष इसके उपाध्यक्ष थे इसी संगति में संग दो भागों में विभाजित हो गया हीनयान और महायान के नाम से जाना जाने लगा। हीनयान को मानने वाले बुद्ध के प्राचीन परंपराओं पर विश्वास रखते थे तथा महायान को मारने वाले लोग बुद्ध को ईश्वर तुल्य मानते थे। इसी के फल सिर्फ बुद्ध की मूर्ति पूजा का आरंभ हुआ हर्षवर्धन के शासनकाल में बुद्ध की पांचवी संगीति का आयोजन कन्नौज में हुआ ,इसकी अध्यक्षता एक विदेशी चीनी यात्री ह्वेनसांग द्वारा की गई षष्टम बौद्ध संगीति का आयोजन भी हर्षवर्धन के शासनकाल में हुआ था। यह आयोजन भी कन्नौज में ही संपन्न हुई।हृवेनसांग ने ही इसकी भी अध्यक्षता की थी,यह संगीति लगभग 75 दिनों तक चलती रही इस संगति में लगभग 5लाख लोग एकत्रित हुए थे। महायान शब्द का अर्थ “उत्कृष्ट मार्ग” है। महायान संप्रदाय भी दो भागों में विभाजित हो गया जिसे विज्ञानवाद और माध्यमिक या शून्यवाद के नाम से जाना जाता था।शून्यवाद के प्रवर्तक नागार्जुन को माना गया तथा विज्ञान वाद के प्रवर्तक मैत्रेयना को माना जाता था।बौद्ध धर्म का जितनी तेजी से विकास हुआ उतनी ही तेजी से इस धर्म का पतन भी होना आरंभ हो गया था। बौद्ध धर्म में भी ब्राह्मण धर्मों के समान नंबरों का आविर्भाव होना प्रारंभ हो गया बहुत धर्मों में भी विभिन्न संप्रदायों का विकास होने लगा और यह स्वता ही कमजोर पड़ गया इसकी पतन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण था इसने जनसाधारण की भाषा पाली को छोड़कर संस्कृत को अपना लिया जिससे आम जनता को इस धर्म को समझना काफी कठिन होने लगा दान दक्षिणा मिलने के कारण भिक्षुक लोग भ्रष्टाचारी हो गए हैं और उनका जीवन विलासिता की ओर और अग्रसर होता चला गया,इन्हीं सब कारणों से आगे चलकर इस धर्म को किसी भी राज्य का संरक्षण प्राप्त नहीं हुआ।बौद्ध धर्म के जितने भी अभिलेख मौजूद थे उनमें से आधे से अधिक अभिलेखों को विदेशी यात्री अपने साथ ले गए, इस वजह से भी नई पीढ़ियों को इस धर्म की जानकारी नहीं मिली इन्हीं सब कारणों से कहा जा सकता है कि बौद्ध धर्म जितनी तेजी से उभरा था उतनी ही तेजी से धर्म का पतन हो गया। (vinayiasacademy.com).

जैन धर्म:—महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे इनका जन्म 599 ईसवी पूर्व में वैशाली के निकट कुंड ग्राम में हुआ था मगर जैन धर्म के ग्रंथों के आधार पर माना जाता है कि जैन धर्म के संस्थापक एवं प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे मगर इस धर्म को व्यवस्थित और विकसित करने का श्रेय वर्तमान महावीर को दिया जाता है जो इस धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर का प्राणी नाम वर्तमान था और उनका आध्यात्मिक नाम महावीर स्वामी था उनका जन्म वैशाली के निकट ग्राम में एक छतरी परिवार में हुआ उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था जो ज्ञात्रक कुल के थे।इनकी माता का नाम त्रिशला था,वह लिच्छवी गणराज्य की चेटक की बहन थी,इनकी पत्नी का नाम यशोदा था और पुत्री का नाम प्रियदर्शना इनकी पुत्री दामाद क्षत्रिय युवक जमाली थे।सिद्धार्थ का लालन-पालन एक राजकुमार के रूप में हुआ था और युवावस्था में ही इनका विवाह संपन्न हो गया था वर्तमान में 30 वर्ष की अवस्था तक एक सूची ग्रस्त जीवन व्यतीत किया अपने पिता की मृत्यु के उपरांत उन्होंने अपने भाई नंदी वर्धन से आज्ञा लेकर सन्यासी जीवन व्यतीत करने के लिए गृह त्याग किया और इसे “महापरिभिनिष्कर्मण”कहां गया 12 वर्षों की कठोर तपस्या के बाद जृम्मियक ग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर 1 साल वृक्ष के नीचे उन्हें कैवल्य (ज्ञान)की प्राप्ति हुई। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्हें कैवालिन यानी सर्वोच्च ज्ञान रखने वाला कहा गया।बुध की भांति महावीर के उपदेश भी सरल हुआ करते थे महावीर स्वामी को कई उप नामों से भी जाना जाता था जैसे केवलीन,जिन, महावीर निग्रंथ एवं अहृत।महावीर की शिक्षा पूर्णतया नैतिक हुआ करती थी जैन धर्म में अहिंसा एवं सदाचार पर बल दिया गया था इसकी अनुयायियों को संयमित जीवन जीना पड़ता था। vinayiasacademy.com).


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